वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w93 4/1 पेज 22-27
  • मूर्तिपूजा से क्यों बचे रहें?

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • मूर्तिपूजा से क्यों बचे रहें?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • मूर्तिपूजा क्या है
  • मूर्तिपूजा के बारे में यहोवा का दृष्टिकोण
  • परीक्षा में निष्ठावान
  • न्यायालय में मूर्तियाँ हार गईं
  • पिशाचों के प्रति बलिदान
  • सावधान रहने की आवश्‍यकता क्यों है?
  • क्या आप मूर्तिपूजा से बचे रहेंगे?
  • हर प्रकार की मूर्तिपूजा से बचे रहिए
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
  • पाठकों के प्रश्‍न
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2001
  • मूर्तिपूजा से दूर भागो
    हमारी मसीही ज़िंदगी और सेवा — सभा पुस्तिका—2020
  • यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को अनमोल समझिए
    हमारी मसीही ज़िंदगी और सेवा — सभा पुस्तिका—2020
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
w93 4/1 पेज 22-27

मूर्तिपूजा से क्यों बचे रहें?

“हे बालको, अपने आप को मूरतों से बचाए रखो।”—१ यूहन्‍ना ५:२१.

१. यहोवा की उपासना क्यों मूर्तिपूजा से मुक्‍त है?

यहोवा धातु, लकड़ी, या पत्थर की मूर्ति नहीं है। उसे एक पार्थिव मन्दिर में नहीं रखा जा सकता। चूँकि वह सर्वशक्‍तिमान आत्मा है, मानव के लिए अदृश्‍य, इसलिए उसकी मूरत बनाना असम्भव है। अतः, यहोवा की शुद्ध उपासना को मूर्तिपूजा से सम्पूर्ण रूप से मुक्‍त रहना चाहिए।—निर्गमन ३३:२०; प्रेरितों १७:२४; २ कुरिन्थियों ३:१७.

२. कौनसे प्रश्‍न हमारे विचार के योग्य हैं?

२ तो फिर, यदि आप यहोवा के उपासक हैं, तो आप पूछ सकते हैं, ‘मूर्तिपूजा क्या है? अतीत में यहोवा के सेवक इससे बचने में कैसे समर्थ हुए? और आज मूर्तिपूजा से क्यों बचे रहें?’

मूर्तिपूजा क्या है

३, ४. मूर्तिपूजा को कैसे परिभाषित किया जा सकता है?

३ सामान्यतः, मूर्तिपूजा में संस्कार या अनुष्ठान सम्मिलित होता है। मूर्तिपूजा एक मूर्ति के प्रति श्रद्धा, प्रेम, उपासना, या अराधना है। और मूर्ति क्या है? यह एक प्रतिमा है, किसी चीज़ का प्रतिरूप, या एक प्रतीक, जो भक्‍ति का पात्र है। अक्सर, वास्तविक या अनुमानित उच्चतर शक्‍ति की मूर्तिपूजा की जाती है, जिसका सजीव अस्तित्व (एक मानव, एक पशु, या एक संगठन) माना जाता है। परन्तु मूर्तिपूजा निर्जीव वस्तु (एक शक्‍ति या प्रकृति की एक निर्जीव वस्तु) के सम्बन्ध में भी की जा सकती है।

४ शास्त्रों में, मूर्तियों से सम्बन्धित इब्रानी शब्द अक्सर अयोग्यता पर ज़ोर देते हैं, या वे घृणा के शब्द हैं। इन शब्दों में ऐसे शब्द हैं जिनका अनुवाद “खुदी हुई या उत्कीर्ण मूर्ति” (शाब्दिक रूप से, नक़्काशी की गई कोई चीज़); “ढली हुई बुत, प्रतीमा, या मूर्ति” (ढाली या उंडेली गई कोई चीज़); “भयानक मूर्ति”; “व्यर्थ मूर्ति” (शाब्दिक रूप से, असारता); और “घृणित मूर्ति” किया गया है। यूनानी शब्द ईडोलॉन (eiʹdo·lon) का अनुवाद “मूर्ति” किया गया है।

५. यह क्यों कहा जा सकता है कि सभी प्रतिमाएं मूर्तियाँ नहीं हैं?

५ सभी प्रतिमाएं मूर्तियाँ नहीं हैं। परमेश्‍वर ने ख़ुद इस्राएलियों को वाचा के सन्दूक के लिए सोने के दो करूब बनाने को कहा और इन आत्मिक जीवों के प्रतिरूप को निवासस्थान के दस परदों के भीतरी आच्छादन पर और पवित्रस्थान को परमपवित्रस्थान से अलग करनेवाले परदे पर काढ़ने के लिए कहा। (निर्गमन २५:१, १८; २६:१, ३१-३३) केवल स्थानापन्‍न याजकों ने इन प्रतिरूपों को देखा जो मुख्यतः स्वर्गीय करूबों के प्रतीक के तौर पर थे। (इब्रानियों ९:२४, २५ से तुलना कीजिए.) यह स्पष्ट है कि करूबों के निवासस्थान प्रतिरूपों पर श्रद्धा नहीं रखी जानी थी, क्योंकि स्वयं धार्मिक स्वर्गदूत उपासना स्वीकार नहीं करते।—कुलुस्सियों २:१८; प्रकाशितवाक्य १९:१०; २२:८, ९.

मूर्तिपूजा के बारे में यहोवा का दृष्टिकोण

६. मूर्तिपूजा के बारे में यहोवा का क्या दृष्टिकोण है?

६ यहोवा के सेवक मूर्तिपूजा से बचे रहते हैं क्योंकि वह मूर्तिपूजा सम्बन्धित सभी अभ्यासों के विरुद्ध है। परमेश्‍वर ने इस्राएलियों को आज्ञा दी थी कि वे श्रद्धा की वस्तु के तौर पर प्रतिमाएं न बनाएं और न उनकी उपासना करें। दस आज्ञाओं में ये शब्द पाए जाते हैं: “तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृथ्वी पर, वा पृथ्वी के जल में है। तू उनको दण्डवत्‌ न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा जलन रखने वाला [अनन्य भक्‍ति की माँग करनेवाला, NW] ईश्‍वर हूं, और जो मुझ से बैर रखते हैं, उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को भी पितरों का दण्ड दिया करता हूं, और जो मुझ से प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं, उन हज़ारों पर करुणा किया करता हूं।”—निर्गमन २०:४-६.

७. यहोवा सभी मूर्तिपूजा के विरुद्ध क्यों हैं?

७ यहोवा सभी मूर्तिपूजा के विरुद्ध क्यों है? मुख्यतः क्योंकि वह अनन्य भक्‍ति की माँग करता है, जैसे कि ऊपर, दस आज्ञाओं की दूसरी आज्ञा में दिखाया गया है। इसके अतिरिक्‍त, उसने अपने भविष्यवक्‍ता यशायाह के द्वारा कहा: “मैं यहोवा हूं, मेरा नाम यही है; अपनी महिमा मैं दूसरे को न दूंगा और जो स्तुति मेरे योग्य है वह खुदी हुई मूरतों को न दूंगा।” (यशायाह ४२:८) एक समय पर, मूर्तिपूजा ने इस्राएलियों को इस हद तक बहकाया कि “उन्हों ने अपने बेटे-बेटियों को पिशाचों के लिये बलिदान किया।” (भजन १०६:३६, ३७) मूर्तिपूजक केवल इस बात से ही इन्कार नहीं करते कि यहोवा सच्चा परमेश्‍वर है बल्कि उसके मुख्य शत्रु, शैतान और साथ ही पिशाचों के भी हितों के लिए काम करते हैं।

परीक्षा में निष्ठावान

८. उन तीन यहूदी शद्रक, मेशक, और अबेदनगो ने कौनसी परीक्षा का सामना किया?

८ यहोवा के प्रति निष्ठा भी हमें मूर्तिपूजा से बचाए रखती है। यह दानिय्येल अध्याय ३ में लिपिबद्ध घटना द्वारा सचित्रित किया गया है। एक सोने की बड़ी मूर्ति, जिसको बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर ने खड़ा किया था, का उद्‌घाटन करने के लिए उसने अपने साम्राज्य के अधिकारियों को इकट्ठा किया। उसकी आज्ञा में शद्रक, मेशक, और अबेदनगो शामिल थे—बाबुल के प्रान्त के तीन यहूदी अधिकारी। कुछ बाजों की आवाज़ सुनने पर सभी उपस्थित लोगों को मूर्ति के आगे दण्डवत्‌ करना था। बाबुल के साम्राज्य को चित्रित करनेवाली मूर्ति के आगे तीन यहूदियों को दण्डवत्‌ करवाने का यह बाबुल के असली देवता, शैतान का प्रयास था। कल्पना कीजिए कि आप उपस्थित हैं।

९, १०. (क) उन तीन यहूदियों ने कौनसी स्थिति अपनाई, और उन्हें किस प्रकार प्रतिफल मिला? (ख) इन तीन यहूदियों के मार्ग से यहोवा के गवाह क्या प्रोत्साहन प्राप्त कर सकते हैं?

९ देखिए! तीन यहूदी खड़े हैं। मूर्ति या खुदी हुई प्रतिमा को बनाने और उसकी उपासना करने के विरुद्ध परमेश्‍वर का नियम उन्हें याद आता है। नबूकदनेस्सर उन्हें अन्तिम चेतावनी देता है—दण्डवत्‌ करो या मरो! परन्तु यहोवा के प्रति निष्ठा में, वे कहते हैं: “हमारा परमेश्‍वर, जिसकी हम उपासना करते हैं वह हम को उस धधकते हुए भट्ठे की आग से बचाने की शक्‍ति रखता है; वरन हे राजा, वह हमें तेरे हाथ से भी छुड़ा सकता है। परन्तु, यदि नहीं, तो हे राजा तुझे मालूम हो, कि हम लोग तेरे देवता की उपासना नहीं करेंगे, और न तेरी खड़ी कराई हुई सोने की मूरत को दण्डवत्‌ करेंगे।”—दानिय्येल ३:१६-१८.

१० परमेश्‍वर के इन निष्ठावान सेवकों को अतितापित भट्ठी में फेंक दिया जाता है। भट्ठी में चार व्यक्‍तियों को चलते हुए देखकर, अचम्भित होकर नबूकदनेस्सर उन तीन यहूदियों को बाहर बुलाता है, और वे सही-सलामत निकल आते हैं। इस पर राजा चिल्लाकर कहता है: “धन्य है शद्रक, मेशक, और अबेदनगो का परमेश्‍वर, जिस ने अपना दूत [भट्ठी में वह चौथा व्यक्‍ति] भेजकर अपने इन दासों को इसलिये बचाया, क्योंकि इन्हों ने राजा की आज्ञा न मानकर, उसी पर भरोसा रखा, और यह सोचकर अपना शरीर भी अर्पण किया, कि हम अपने परमेश्‍वर को छोड़, किसी देवता की उपासना वा दण्डवत्‌ न करेंगे। . . . ऐसा कोई और देवता नहीं जो इस रीति से बचा सके।” (दानिय्येल ३:२८, २९) इन तीन यहूदियों का खराई रखना वर्तमान-दिन के यहोवा के गवाहों को परमेश्‍वर के प्रति निष्ठावान रहने, संसार के प्रति निष्पक्षता बनाए रखने, और मूर्तिपूजा से बचे रहने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करता है।—यूहन्‍ना १७:१६.

न्यायालय में मूर्तियाँ हार गईं

११, १२. (क) यहोवा और मूर्ति-देवताओं के सम्बन्ध में यशायाह ने क्या लिपिबद्ध किया? (ख) जब यहोवा द्वारा चुनौती दी गयी, तब अन्यजातियों के देवताओं ने क्या सफ़लता प्राप्त की?

११ मूर्तिपूजा से बचे रहने का एक और कारण है कि मूर्तियों के लिए श्रद्धा व्यर्थ है। चाहे कुछ मानवकृत मूर्तियाँ सजीव प्रतीत हों—अक्सर मुंह, आंखों, और कानों के साथ—वे बोल, देख, या सुन नहीं सकतीं, और वे अपने भक्‍तों के लिए कुछ नहीं कर सकतीं। (भजन १३५:१५-१८) यह सा.यु.पू. आठवीं शताब्दी में प्रदर्शित किया गया, जब परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता ने यशायाह ४३:८-२८ में यहोवा और मूर्ति-देवताओं के बीच, वस्तुतः, एक न्यायालय मुकदमा लिपिबद्ध किया। इस में परमेश्‍वर के लोग इस्राएल एक तरफ़ थे, और सांसारिक अन्यजातियाँ दूसरी तरफ़ थीं। यहोवा ने अन्यजातियों के झूठे देवताओं को “पहली बातें” (NW) बताने, यानी कि सही-सही भविष्यवाणी करने के लिए चुनौती दी। उन में से एक भी ऐसा नहीं कर पाया। अपने लोगों की ओर मुड़कर, यहोवा ने कहा: “तुम मेरे साक्षी हो और . . . मैं ही ईश्‍वर हूं।” अन्यजातियाँ यह प्रमाणित नहीं कर सकीं कि उनके देवता, यहोवा से पहले अस्तित्व में थे या यह कि वे भविष्यवाणी कर सकते हैं। परन्तु यहोवा ने बाबुल के विनाश और अपने बंदीकृत लोगों की रिहाई पूर्वबताया।

१२ इस के अतिरिक्‍त, परमेश्‍वर के मुक्‍त सेवक कहेंगे कि वे ‘यहोवा के हैं,’ जैसे कि यशायाह ४४:१-८ में वर्णन किया गया है। उस ने स्वयं कहा: “मैं सब से पहिला हूं, और मैं ही अन्त तक रहूंगा; मुझे छोड़ कोई परमेश्‍वर है ही नहीं।” मूर्ति-देवताओं की ओर से कोई खंडन नहीं है। यहोवा ने फिर से अपने लोगों के विषय में कहा, “तुम मेरे साक्षी हो,” और फिर कहा: “क्या मुझे छोड़ कोई और परमेश्‍वर है? नहीं, मुझे छोड़ कोई चट्टान नहीं।”

१३. मूर्तिपूजा एक मूर्तिपूजक के विषय में क्या प्रकट करती है?

१३ हम मूर्तिपूजा से इसलिए भी बचे रहते हैं क्योंकि उसमें भाग लेना बुद्धि की कमी को सूचित करता है। एक मूर्तिपूजक एक वृक्ष चुनकर उसके एक भाग से पूजा के लिए देवता बनाता है, और दूसरे भाग को सुलगाकर अपना खाना पकाता है। (यशायाह ४४:९-१७) कितनी मूर्खता! मूर्ति-देवताओं को बनानेवाले और भक्‍ति करनेवाले को इसलिए भी शरमिंदगी उठानी पड़ती है क्योंकि वह उनके देवत्व को प्रमाणित करने के लिए एक विश्‍वासोत्पादक गवाही देने में असमर्थ है। परन्तु यहोवा का ईशत्व अविवाद्य है, क्योंकि उसने बाबुल से अपने लोगों की स्वतंत्रता के बारे में केवल पूर्वबताया ही नहीं बल्कि इसे करवाया भी। यरूशलेम फिर से बसाया गया, यहूदा के शहर फिर से बनाए गए, और बाबुल का ‘गहरा जल’—फरात नदी—सुरक्षा का स्रोत न रहा। (यशायाह ४४:१८-२७) जैसे परमेश्‍वर ने यह भी पूर्वबताया, फ़ारस के कुस्रू ने बाबुल को जीत लिया।—यशायाह ४४:२८-४५:६.

१४. विश्‍व के सर्वोच्च न्यायालय में, स्थायी रूप से क्या प्रमाणित किया जाएगा?

१४ मूर्ति-देवता देवत्व से सम्बन्धित वह मुक़दमा हार गए। और बाबुल के साथ जो घटित हुआ निश्‍चय ही उसके आधुनिक प्रतिरूप, झूठे धर्मों का विश्‍व सम्राज्य, बड़ी बाबुल के साथ भी घटित होगा। जल्द ही वह और उसके सब देवता, धार्मिक सामग्री, और मूर्तिपूजा की वस्तुएं हमेशा के लिए नाश हो जाएंगी। (प्रकाशितवाक्य १७:१२-१८:८) तब विश्‍व के सर्वोच्च न्यायालय में, यह स्थायी रूप से प्रमाणित किया जाएगा कि केवल यहोवा ही जीवित और सच्चा परमेश्‍वर है और कि वह अपने भविष्यसूचक वचन को पूरा करता है।

पिशाचों के प्रति बलिदान

१५. पवित्र आत्मा और पहली-शताब्दी के शासी निकाय ने यहोवा के लोगों और मूर्तिपूजा के सम्बन्ध में क्या सूचित किया?

१५ यहोवा के लोग इसलिए भी मूर्तिपूजा से बचे रहते हैं क्योंकि वे परमेश्‍वर की आत्मा और संगठन द्वारा मार्गदर्शित हैं। पहली-शताब्दी के यहोवा के सेवकों के शासी निकाय ने संगी मसीहियों से कहा: “पवित्र आत्मा को, और हम को ठीक जान पड़ा, कि इन आवश्‍यक बातों को छोड़, तुम पर और बोझ न डालें; कि तुम मूरतों के बलि किए हुओं से, और लोहू से, और गला घोंटे हुओं के मांस से, और व्यभिचार से, परे रहो। इन से परे रहो; तो तुम्हारा भला होगा। आगे शुभ।”—प्रेरितों १५:२८, २९.

१६. मूर्तियों को बलि की हुई चीज़ों के बारे में पौलुस ने जो कहा, उसे आप अपने शब्दों में कैसे अभिव्यक्‍त करेंगे?

१६ पिशाचवाद से दूर रहना मूर्तिपूजा से बचे रहने का एक और कारण है। प्रभु के संध्या भोज के सम्बन्ध में, प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस के मसीहियों से कहा: “मूर्ति पूजा से बचे रहो। . . . वह धन्यवाद का कटोरा, जिस पर हम धन्यवाद करते हैं, क्या मसीह के लोहू की सहभागिता नहीं? वह रोटी जिसे हम तोड़ते हैं, क्या वह मसीह की देह की सहभागिता नहीं? इसलिये, कि एक ही रोटी है सो हम भी जो बहुत हैं, एक देह हैं: क्योंकि हम सब उसी एक रोटी में भागी होते हैं। जो शरीर के भाव से इस्राएली हैं, उन को देखो: क्या बलिदानों के खानेवाले वेदी के सहभागी नहीं? फिर मैं क्या कहता हूं? क्या यह कि मूरत का बलिदान कुछ है, या मूरत कुछ है? नहीं, बरन यह, कि अन्यजाति जो बलिदान करते हैं, वे परमेश्‍वर के लिये नहीं, परन्तु दुष्टात्माओं के लिये बलिदान करते हैं: और मैं नहीं चाहता, कि तुम दुष्टात्माओं के सहभागी हो। तुम प्रभु के कटोरे, और दुष्टात्माओं की मेज दोनों के साझी नहीं हो सकते। क्या हम प्रभु को रिस दिलाते हैं? क्या हम उस से शक्‍तिमान हैं?”—१ कुरिन्थियों १०:१४-२२.

१७. सामान्य युग पहली-शताब्दी में, एक मसीही कौनसी परिस्थितियों में मूर्तियों को बलि किया हुआ मांस खा सकता था, और क्यों?

१७ पशु के एक अंग को मूर्ति के आगे बलि चढ़ाया जाता था, एक भाग याजकों को दिया जाता था, और उत्सव के लिए उपासक को कुछ भाग मिलता था। फिर भी, मांस का कुछ भाग बाज़ार में बेचा जा सकता था। एक मसीही के लिए मूर्ति के मन्दिर में जाकर मांस खाना अनुचित था, चाहे अनुष्ठान के भाग के तौर पर उसने नहीं भी खाया हो, क्योंकि इससे दूसरों को ठोकर लग सकती है या वह झूठी उपासना की ओर खिंच सकता है। (१ कुरिन्थियों ८:१-१३; प्रकाशितवाक्य २:१२, १४, १८, २०) मूर्ति के आगे पशु की बलि चढ़ाने से मांस में कुछ परिवर्तन नहीं होता, इसलिए एक मसीही बाज़ार से इसमें से कुछ ख़रीद सकता था। उसे किसी के घर में परोसे गए मांस के स्रोत के विषय में भी पूछने की ज़रूरत नहीं थी। परन्तु यदि कोई कहे कि वह “मूरत को बलि की हुई” है, तो किसी को ठोकर देने से बचे रहने के लिए वह उसे नहीं खाएगा।—१ कुरिन्थियों १०:२५-२९.

१८. मूर्ति को बलि की गयी किसी चीज़ के खानेवाले, कैसे पिशाचवाद में अन्तर्ग्रस्त हो सकते हैं?

१८ अक्सर यह सोचा जाता था कि बलि-सम्बन्धी अनुष्ठान के बाद, देवता मांस में होता है और उपासकों के उत्सव में जो इसे खाते हैं, उनके शरीर के अन्दर वह प्रवेश करता है। जैसे कि इकट्ठे खानेवाले लोग आपस में एक बंधन स्थापित करते थे, वैसे ही बलि के पशुओं को खानेवाले, वेदी में सहभागी थे और मूर्ति द्वारा चित्रित किए गए पिशाच-देवता के साथ सहभागिता रखते थे। ऐसी मूर्तिपूजा के द्वारा पिशाच, लोगों को एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करने से रोकते थे। (यिर्मयाह १०:१-१५) कोई आश्‍चर्य की बात नहीं कि मूर्तियों को बलि की गयी चीज़ों से यहोवा के लोगों को निरन्तर दूर रहना था! आज मूर्तिपूजा से बचे रहने में, परमेश्‍वर के प्रति निष्ठा, उसकी पवित्र आत्मा और संगठन द्वारा मार्गदर्शन का स्वीकरण, और पिशाचवाद के साथ सम्बन्ध रखने से दूर रहने का दृढ़ निश्‍चय भी, प्रभावशाली प्रोत्साहन प्रमाणित होते हैं।

सावधान रहने की आवश्‍यकता क्यों है?

१९. प्राचीन इफिसुस में किस प्रकार की मूर्तिपूजा होती थी?

१९ मसीही कर्मठतापूर्वक मूर्तिपूजा से बचे रहते हैं क्योंकि इसके काफ़ी रूप हैं, और एक भी मूर्तिपूजा सम्बन्धित कार्य उनके विश्‍वास का समझौता कर सकता है। प्रेरित यूहन्‍ना ने संगी विश्‍वासियों से कहा: “अपने आप को मूरतों से बचाए रखो।” (१ यूहन्‍ना ५:२१) इस सलाह की आवश्‍यकता थी क्योंकि कई तरह की मूर्तिपूजा उन्हें घेरे हुई थीं। यूहन्‍ना ने इफिसुस शहर से लिखा, जो जादुई अभ्यासों और झूठे देवताओं के बारे में पौराणिक कथाओं में डूबा हुआ था। दुनिया के सात आश्‍चर्यों में से एक आश्‍चर्य इफिसुस में था—अरतिमिस का मन्दिर, अपराधियों के लिए शरणस्थान और अनैतिक अनुष्ठान का केंद्र। इफिसुस के तत्वज्ञ हरेक्लाईटस ने उस मन्दिर की वेदी की ओर जानेवाले प्रकाशरहित उपगमन की तुलना घृणितता के अंधकार के साथ की, और उसने मन्दिर की नैतिकता को पशुओं की नैतिकता से भी बदतर समझा। इस प्रकार, इफिसुस के मसीहियों को पिशाचवाद, अनैतिकता, और मूर्तिपूजा के विरुद्ध दृढ़ खड़ा होना था।

२०. मूर्तिपूजा से ज़रा-भी नाता न रखने की आवश्‍यकता क्यों थी?

२० मूर्तिपूजा से ज़रा-सा भी नाता न रखने के लिए मसीहियों को दृढ़ निश्‍चय की आवश्‍यकता है क्योंकि इब्‌लीस की सिर्फ़ एक बार उपासना करना, उसकी चुनौती का समर्थन करना होगा कि परीक्षा में मनुष्य परमेश्‍वर के वफ़ादार नहीं रहेंगे। (अय्यूब १:८-१२) यीशु को “सारे जगत के राज्य और उसका विभव” दिखाते समय, शैतान ने कहा: “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम [मेरी एक बार उपासना, NW] करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूंगा।” (तिरछे टाइप हमारे.) मसीह के इन्कार ने यहोवा के पक्ष में विश्‍व-सर्वसत्ता के वाद-विषय का समर्थन किया और इब्‌लीस को झूठा ठहराया।—मत्ती ४:८-११; नीतिवचन २७:११.

२१. रोमी सम्राट के सम्बन्ध में, वफ़ादार मसीहियों ने क्या करने से इन्कार किया?

२१ न ही यीशु के प्रारंभिक अनुयायी एक बार उपासना करने के द्वारा शैतान के पक्ष में इस वाद-विषय का समर्थन करते। हालाँकि वे सरकारी “प्रधान अधिकारियों” के लिए उचित आदर रखते थे, वे रोमी सम्राट के सम्मान में धूप नहीं जलाते थे, चाहे इससे उनकी जान ही क्यों न चली जाए। (रोमियों १३:१-७) इस विषय में डेनियल पी. मैनिक्स ने लिखा: “हालाँकि मसीहियों की सुविधा के लिए आम तौर पर अखाड़े में एक आग से जलती हुई वेदी रखी जाती थी, उन में से बहुत थोड़ों ने धर्मत्याग किया। एक बंदी को केवल चुटकी भर लोबान ज्वाला पर बिखेरना होता था और फिर उसे बलिदान का प्रमाणपत्र देकर मुक्‍त कर दिया जाता था। साथ में उसे सावधानी से समझाया जाता था कि वह सम्राट की उपासना नहीं कर रहा, मात्र रोमी राज्य के सरदार के तौर पर सम्राट की ईश्‍वरीय विशेषता को स्वीकार कर रहा है। फिर भी, लगभग किसी मसीही ने भी बच निकलने के इस अवसर का लाभ नहीं उठाया।” (वे जो मरने वाले थे, Those About to Die, पृष्ठ १३७) यदि समान रूप से परखा जाए, तो क्या आप सम्पूर्ण रूप से सभी मूर्तिपूजा का प्रतिरोध करेंगे?

क्या आप मूर्तिपूजा से बचे रहेंगे?

२२, २३. आपको मूर्तिपूजा से क्यों बचे रहना चाहिए?

२२ स्पष्ट रूप से, मसीहियों को हर प्रकार की मूर्तिपूजा से बचे रहना चाहिए। यहोवा अनन्य भक्‍ति की माँग करता है। बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर द्वारा खड़ी की गई बड़ी मूर्ति की पूजा करने से इन्कार करके उन तीन वफ़ादार यहूदियों ने एक बढ़िया उदाहरण प्रदान किया। यशायाह भविष्यवक्‍ता द्वारा लिपिबद्ध किए गए विश्‍व न्यायालय के मुकदमे में, यहोवा अकेला ही सच्चा और जीवित परमेश्‍वर प्रमाणित किया गया। उसके प्रारंभिक मसीही गवाहों को मूर्तियों को बलि की हुई चीज़ों से निरन्तर दूर रहना था। उन में से काफ़ी निष्ठावान जन मूर्तिपूजा सम्बन्धित एक भी कार्य करने के दबाव के नीचे नहीं झुके, जो कि यहोवा का इन्कार करने के बराबर होता।

२३ तो फिर, क्या आप स्वयं मूर्तिपूजा से बच रहे हैं? क्या आप परमेश्‍वर को अनन्य भक्‍ति दे रहे हैं? क्या आप यहोवा की सर्वसत्ता का समर्थन करते हैं और सच्चे और जीवित परमेश्‍वर के तौर पर उसकी प्रशंसा करते हैं? यदि हाँ, तो मूर्तिपूजा सम्बन्धित अभ्यासों के विरुद्ध दृढ़ खड़े रहना आपका दृढ़ निश्‍चय होना चाहिए। परन्तु हर प्रकार की मूर्तिपूजा से बचे रहने में कौनसे अतिरिक्‍त शास्त्रवचनीय मुद्दे आपकी सहायता कर सकते हैं?

आपके क्या विचार हैं?

▫ मूर्तिपूजा क्या है?

▫ यहोवा सभी मूर्तिपूजा के विरुद्ध क्यों है?

▫ मूर्तिपूजा के सम्बन्ध में उन तीन यहूदियों ने कैसी स्थिति अपनाई?

▫ मूर्तियों को बलि की हुई चीज़ों के खानेवाले, कैसे पिशाचवाद में अन्तर्ग्रस्त हो सकते हैं?

▫ हमें मूर्तिपूजा से क्यों बचे रहना चाहिए?

[पेज 25 पर तसवीरें]

चाहे उनकी जान ख़तरे में थी, तो भी उन तीन यहूदियों ने मूर्तिपूजा में भाग नहीं लिया

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें