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  • राजा अपने लोगों को उपासना के मामले में शुद्ध करता है

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  • राजा अपने लोगों को उपासना के मामले में शुद्ध करता है
  • परमेश्‍वर का राज हुकूमत कर रहा है!
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अध्याय 10

राजा अपने लोगों को उपासना के मामले में शुद्ध करता है

अध्याय किस बारे में है

यीशु ने अपने लोगों को उपासना के मामले में क्यों और कैसे शुद्ध किया

1-3. जब यीशु ने देखा कि मंदिर को दूषित किया जा रहा है तो उसने क्या किया?

यीशु को यरूशलेम के मंदिर के लिए गहरा आदर था, क्योंकि वह जानता था कि वह मंदिर लंबे समय से धरती पर सच्ची उपासना की खास जगह रहा है। वहाँ पवित्र परमेश्‍वर यहोवा की उपासना की जाती थी, इसलिए यह ज़रूरी था कि वह उपासना हर हाल में शुद्ध और पवित्र हो। तो सोचिए, ईसवी सन्‌ 33 के नीसान 10 को जब यीशु मंदिर गया और उसने देखा कि उसे दूषित किया जा रहा है तो उसे कैसा लगा होगा! आखिर वहाँ क्या हो रहा था?​—मत्ती 21:12, 13 पढ़िए।

2 गैर-यहूदियों के आँगन में लालची व्यापारी और पैसा बदलनेवाले सौदागर उन लोगों का फायदा उठा रहे थे जो यहोवा के लिए भेंट चढ़ाने आए थे।a तब यीशु ने ‘उन सब लोगों को खदेड़ दिया जो मंदिर के अंदर बिक्री और खरीदारी कर रहे थे और उसने पैसा बदलनेवाले सौदागरों की मेज़ें उलट दीं।’ (नहेमायाह 13:7-9 से तुलना करें।) उसने उन स्वार्थी लोगों को फटकारा क्योंकि उन्होंने उसके पिता के भवन को “लुटेरों का अड्डा” बना दिया था। इस तरह यीशु ने उस मंदिर के लिए और उस परमेश्‍वर के लिए आदर दिखाया जिसकी उपासना वहाँ की जा रही थी। उसके पिता की उपासना को शुद्ध बनाए रखना ज़रूरी था!

3 सदियों बाद जब यीशु को राजा बनाया गया तो उसने फिर से एक मंदिर को शुद्ध किया। इस मंदिर से उन सब लोगों का नाता है जो आज यहोवा की उपासना सही तरीके से करना चाहते हैं। यह मंदिर क्या है?

“लेवी के बेटों” को शुद्ध किया गया

4, 5. (क) 1914 से 1919 के शुरूआती महीनों तक यीशु के अभिषिक्‍त चेलों को कैसे शुद्ध किया गया? (ख) क्या परमेश्‍वर के लोगों को फिर कभी शुद्ध करने की ज़रूरत नहीं पड़ी? समझाइए।

4 जैसे हमने इस किताब के अध्याय 2 में देखा, यीशु 1914 में राजा बनने के बाद अपने पिता के साथ लाक्षणिक  मंदिर को जाँचने आया था। यह मंदिर शुद्ध उपासना के इंतज़ाम को दर्शाता है।b राजा ने मंदिर को जाँचने पर पाया कि “लेवी के बेटों” यानी अभिषिक्‍त मसीहियों में कुछ अशुद्धता थी जिसे दूर करना ज़रूरी था। (मला. 3:1-3) परमेश्‍वर यहोवा ने शुद्ध करनेवाले के नाते 1914 से 1919 के शुरूआती महीनों तक उन्हें आग जैसी कई परीक्षाओं और मुसीबतों से गुज़रने दिया ताकि वे शुद्ध किए जाएँ। खुशी की बात है कि अभिषिक्‍त मसीही उन परीक्षाओं को पार कर पाए और वे पहले से ज़्यादा शुद्ध हुए। अब अपने राजा यीशु का साथ देने के लिए उनमें और भी जोश भर आया।

5 क्या परमेश्‍वर के लोगों को उसके बाद फिर कभी शुद्ध करने की ज़रूरत नहीं पड़ी? ऐसी बात नहीं है। आखिरी दिनों के इस पूरे दौर में यहोवा अपने ठहराए राजा मसीह के ज़रिए अपने लोगों को शुद्ध करता रहा है ताकि वे लाक्षणिक मंदिर में सेवा करने के योग्य बने रहें। अगले दो अध्यायों में हम देखेंगे कि उसने कैसे अपने लोगों को नैतिक मामले में शुद्ध किया और संगठन चलाने के तरीके में सुधार किया। मगर सबसे पहले आइए देखें कि उसने अपने लोगों को कैसे उपासना के मामले में  शुद्ध किया। यीशु ने अपने चेलों को शुद्ध करने के लिए कई कदम उठाए। उनमें से कुछ कदम साफ नज़र आते हैं, जबकि दूसरे कदम साफ नज़र नहीं आते। जब हम इन बातों पर गौर करते हैं तो हमारा विश्‍वास मज़बूत होता है।

“खुद को शुद्ध बनाए रखो”

6. यहूदियों को दी गयी आज्ञा के मुताबिक, अपनी उपासना को शुद्ध रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

6 आइए देखें कि यहोवा ने ईसा पूर्व 537 में उन यहूदियों से क्या कहा था जो बैबिलोन की बँधुआई से निकलनेवाले थे। (यशायाह 52:11 पढ़िए।) वे खासकर इसलिए यरूशलेम लौट रहे थे ताकि दोबारा मंदिर को बनाएँ और सच्ची उपासना शुरू करें। (एज्रा 1:2-4) यहोवा चाहता था कि उसके लोग बैबिलोन से निकलने से पहले वहाँ के धर्म का दाग खुद पर से पूरी तरह मिटा दें। ध्यान दीजिए कि उसने उन्हें क्या आज्ञाएँ दीं: “किसी भी अशुद्ध चीज़ को मत छूओ,” “उसमें से निकल आओ” और “खुद को शुद्ध बनाए रखो।” यहोवा चाहता था कि उसकी शुद्ध उपासना पर झूठी उपासना का कोई भी दाग न रहे। इससे हम क्या सीखते हैं? अपनी उपासना को शुद्ध रखने के लिए हमें झूठे धर्मों की शिक्षाएँ और उससे जुड़े काम पूरी तरह छोड़ देने चाहिए।

7. यीशु ने किस इंतज़ाम के ज़रिए अपने चेलों को उपासना के मामले में शुद्ध रहने में मदद दी है?

7 यीशु ने राजा बनने के कुछ समय बाद, 1919 में विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास को ठहराया ताकि यह दास उसके चेलों को उपासना के मामले में शुद्ध बने रहने में मदद दे। इस दास की पहचान साफ थी। (मत्ती 24:45) सन्‌ 1919 तक बाइबल विद्यार्थियों ने कई झूठी शिक्षाएँ माननी छोड़ दी थीं, मगर उनमें अब भी कुछ अशुद्धताएँ रह गयी थीं जिन्हें दूर करना ज़रूरी था। वे ऐसे कुछ त्योहार मनाते थे और ऐसे काम करते थे जिनका नाता झूठे धर्मों से था। इसलिए मसीह ने विश्‍वासयोग्य दास के ज़रिए समय के गुज़रते उन्हें इस बारे में ज़्यादा समझ दी कि उन्हें यह सब छोड़ देना चाहिए। (नीति. 4:18) आइए उनमें से कुछ पर गौर करें।

क्या मसीहियों को क्रिसमस मनाना चाहिए?

8. (क) बाइबल विद्यार्थियों ने बहुत पहले ही क्रिसमस के बारे में क्या समझ लिया था? (ख) फिर भी वे क्या बात नहीं समझ पाए थे?

8 बाइबल विद्यार्थी बहुत पहले ही समझ गए थे कि क्रिसमस गैर-ईसाई धर्मों से निकला है और यीशु 25 दिसंबर को पैदा नहीं हुआ था। दिसंबर 1881 की प्रहरीदुर्ग  में कहा गया था, “गैर-ईसाई धर्मों के लाखों लोगों को चर्च का सदस्य बना दिया गया। मगर जो भी परिवर्तन  हुआ वह केवल नाम  में हुआ था। गैर-ईसाई पुजारी ईसाई धर्म के पादरी बन गए और गैर-ईसाई पर्वों को ईसाई नाम दिए गए। क्रिसमस उन्हीं में से एक पर्व है।” सन्‌ 1883 में एक प्रहरीदुर्ग  में यह लेख छपा था, “यीशु का जन्म कब हुआ था?” लेख में कुछ दलीलें देकर समझाया गया कि यीशु अक्टूबर की शुरूआत में पैदा हुआ था।c फिर भी उस वक्‍त बाइबल विद्यार्थी नहीं समझ पाए कि उन्हें क्रिसमस मनाना बंद कर देना चाहिए। ब्रुकलिन का बेथेल परिवार भी क्रिसमस मनाता रहा। मगर 1926 के बाद बदलाव होने लगा। क्यों?

9. बाइबल विद्यार्थियों ने क्रिसमस के बारे में क्या समझ लिया?

9 बाइबल विद्यार्थियों ने जब क्रिसमस के बारे में गहरा अध्ययन किया तो वे समझ गए कि क्रिसमस की शुरूआत जिस तरह हुई उससे और इस त्योहार से जुड़े कामों से असल में परमेश्‍वर का अपमान होता है। चौदह दिसंबर, 1927 की स्वर्ण युग  में यह लेख छपा था, “क्रिसमस का आरंभ।” उसमें बताया गया कि क्रिसमस एक गैर-ईसाई त्योहार है, इसका नाता मूर्ति पूजा से है और इसमें लोगों का पूरा ध्यान मौज-मस्ती करने पर होता है। लेख में साफ बताया गया कि मसीह ने क्रिसमस मनाने की आज्ञा नहीं दी थी। लेख के आखिर में क्रिसमस के बारे में साफ शब्दों में कहा गया, “शैतान, यह संसार और पापी मनुष्य चाहते हैं कि यह पर्व हमेशा मनाया जाए . . . यही बात अपने आपमें एक ठोस प्रमाण है कि जो लोग यहोवा की सेवा के लिए पूरी तरह समर्पित हैं वे यह पर्व नहीं मना सकते।” इसलिए ताज्जुब नहीं कि बेथेल परिवार ने न तो उस साल दिसंबर में और न ही इसके बाद फिर कभी क्रिसमस मनाया!

“क्रिसमस का आरंभ और उद्देश्‍य”

दिसंबर 1928 में भाई रिचर्ड एच. बारबर (बायीं तरफ उनकी तसवीर पर गोल निशान है) ने क्रिसमस के बारे में रेडियो पर एक दमदार भाषण दिया। उस भाषण की बातें 12 दिसंबर, 1928 की स्वर्ण युग  में इस लेख के तहत छापी गयीं: “क्रिसमस का आरंभ और उद्देश्‍य।” उस भाषण की कुछ बातें आगे बतायी हैं:

  • “शैतान ने लोगों को यह शिक्षा दी है कि वे यीशु को एक शिशु के तौर पर याद रखें, उसके जन्म  को अधिक महत्त्व दें न कि उसकी मृत्यु  को। शैतान चाहता है कि लोग फिरौती  का मोल न समझ पाएँ।”

  • “हर कोई जानता है कि क्रिसमस के समय लोग खूब शराब पीते हैं और मौज-मस्ती, नीच लैंगिक कामों और रंग-रलियों में डूबे रहते हैं। . . . इनमें से किसी भी काम से न तो यहोवा परमेश्‍वर का और न ही उसके पुत्र का आदर होता है।”

  • “शैतान मानो चर्च की डालियों पर झूठे धर्म के पर्वों, उपवास के दिनों और पवित्र दिनों की कलमें लगाने में सफल हो गया है। . . . उसने लोगों को इस तरह भ्रम में डाल दिया कि उन्होंने उन सारे पर्वों को अपना लिया और उन्हें ईसाई नाम दे दिया। इस तरह उसने महान परमेश्‍वर यहोवा का उपहास करने का प्रयत्न किया है।”

बेथेल परिवार 1926 में आखिरी बार क्रिसमस मना रहा है और रिचर्ड एच. बारबर पर गोल निशान है

1926 में ब्रुकलिन बेथेल में आखिरी बार क्रिसमस मनाया गया

10. (क) दिसंबर 1928 में क्रिसमस का कैसे खुलासा किया गया? (यह बक्स भी देखें: “क्रिसमस का आरंभ और उद्देश्‍य।”) (ख) परमेश्‍वर के लोगों को दूसरे त्योहारों के बारे में क्या बताया गया? (यह बक्स देखें: “दूसरे त्योहारों और खास दिनों का खुलासा।”)

10 अगले साल बाइबल विद्यार्थियों को क्रिसमस के बारे में और भी खुलकर बताया गया। बारह दिसंबर, 1928 को मुख्यालय के सदस्य भाई रिचर्ड एच. बारबर ने रेडियो पर एक भाषण दिया और खुलासा किया कि यह त्योहार किन अशुद्ध रीति-रिवाज़ों से निकला है। मुख्यालय से साफ निर्देश मिलने पर परमेश्‍वर के लोगों ने क्या किया? भाई चार्ल्स ब्रैंडलाइन ने बताया कि उन्होंने और उनके परिवार ने क्रिसमस मनाना कैसे छोड़ दिया। भाई ने कहा, “क्या हमें उन गैर-ईसाई प्रथाओं को छोड़ना बुरा लगा? बिलकुल नहीं! . . . हमने मानो गंदा वस्त्र उतारकर फेंक दिया।” भाई हैनरी ए. कैंटवैल ने भी, जो बाद में सफरी निगरान रहे, ऐसा ही जज़्बा दिखाया। उन्होंने कहा, “हम खुश थे कि हमने वह पर्व मनाना छोड़ दिया क्योंकि इस तरह हम साबित कर पाए कि हम यहोवा से प्यार करते हैं।” मसीह के वफादार चेले बदलाव करने के लिए तैयार थे ताकि वे ऐसे त्योहार से कोई नाता न रखें जो अशुद्ध उपासना से निकला था।d​—यूह. 15:19; 17:14.

11. हम कैसे परमेश्‍वर के राज के राजा का साथ दे सकते हैं?

11 उन वफादार बाइबल विद्यार्थियों ने हमारे लिए कितनी बढ़िया मिसाल रखी! उन्हें याद करके हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘जब विश्‍वासयोग्य दास कोई निर्देश देता है तो मैं क्या करता हूँ? क्या मैं उसे खुशी-खुशी स्वीकार करता हूँ और उसके मुताबिक काम करता हूँ?’ अगर हम खुशी से आज्ञा मानेंगे तो हम अपने राजा मसीह का साथ दे रहे होंगे जो विश्‍वासयोग्य दास के ज़रिए हमें सही समय पर खाना दे रहा है।​—प्रेषि. 16:4, 5.

दूसरे त्योहारों और खास दिनों का खुलासा

सालों से मसीह अपने चेलों को सिखाता आया है कि उन्हें दुनिया से अलग रहने के लिए क्या करना चाहिए। आगे कुछ पुरानी पत्रिकाओं का ज़िक्र किया गया है जिनमें परमेश्‍वर के लोगों को खबरदार किया गया था कि उन्हें कौन-से त्योहार और खास दिन नहीं मनाने चाहिए।

  • ईस्टर: “ईस्टर गैर-ईसाई धर्मों का एक विशेष पर्व है और इसे भी ईसाई कहलानेवाले चर्च में अपना लिया गया।”​—12 दिसंबर, 1928 की स्वर्ण युग, पेज 168.

  • वैलेंटाइन डे: “सेंट वैलेंटाइन डे के आरंभ के बारे में देखें तो उस दिन ऐसा कोई भी पवित्र काम नहीं किया गया था कि उसे पवित्र दिवस माना जाए।”​—25 दिसंबर, 1929 की स्वर्ण युग, पेज 208.

  • जन्मदिन: “शास्त्र में केवल दो पुरुषों के जन्मदिन के बारे में बताया गया है। एक है यूसुफ के समय के मिस्र के राजा फिरौन का जन्मदिन जो मूर्तिपूजा करता था और दूसरा है [हेरोदेस] का जन्मदिन जब यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले की हत्या कर दी गयी। बाइबल में ऐसा एक भी वृत्तांत नहीं है कि परमेश्‍वर के लोगों में से किसी ने जन्मदिन मनाया हो।”​—6 मई, 1936 की स्वर्ण युग, पेज 499.

  • नए साल का जश्‍न: “आमोद-प्रमोद करना और पीकर धुत्त होना, नव वर्ष उत्सव की विशेषता होती है। इसलिए यह उत्सव चाहे किसी भी दिन मनाया जाए, यह ईसाई पर्व नहीं है। शुरू के मसीही यह पर्व नहीं मनाते थे।”​—22 दिसंबर, 1946 की सजग होइए!, पेज 24.

क्या मसीहियों को क्रूस का इस्तेमाल करना चाहिए?

क्रूस और मुकुट का ब्रूच

क्रूस और मुकुट की निशानी (पैराग्राफ 12 और 13 देखें)

12. कई सालों तक बाइबल विद्यार्थी क्रूस के बारे में क्या मानते थे?

12 सालों से बाइबल विद्यार्थी मानते आए थे कि क्रूस मसीही धर्म की निशानी है। वे हरगिज़ यह नहीं मानते थे कि क्रूस की उपासना की जानी चाहिए, क्योंकि वे जानते थे कि मूर्तिपूजा गलत है। (1 कुरिं. 10:14; 1 यूह. 5:21) सन्‌ 1883 की प्रहरीदुर्ग  में साफ बताया गया कि “परमेश्‍वर हर प्रकार की मूर्तिपूजा से घृणा करता है।” फिर भी बाइबल विद्यार्थी शुरू में सोचते थे कि क्रूस का कुछ तरीकों से इस्तेमाल करना गलत नहीं है। मिसाल के लिए, वे अपनी पहचान कराने के लिए बड़े गर्व से एक ब्रूच पहनते थे, जिस पर क्रूस और मुकुट की नक्काशी होती थी। इस निशानी का यह मतलब था कि अगर वे मरते दम तक वफादार रहे तो उन्हें जीवन का मुकुट मिलेगा। सन्‌ 1891 से क्रूस और मुकुट की निशानी प्रहरीदुर्ग  के पहले पन्‍ने पर प्रकाशित की जाने लगी।

13. मसीह के चेलों को क्रूस के इस्तेमाल के बारे में क्या समझ मिली? (यह बक्स भी देखें: “क्रूस के इस्तेमाल के बारे में बढ़ती समझ।”)

13 बाइबल विद्यार्थियों को क्रूस और मुकुट की निशानी बहुत अज़ीज़ थी। मगर 1925 के बाद से मसीह के चेलों को क्रूस के बारे में धीरे-धीरे समझ मिलती गयी। सन्‌ 1928 में अमरीकी राज्य मिशिगन के डिट्रॉइट शहर में एक सम्मेलन हुआ। उस सम्मेलन को याद करते हुए भाई ग्रान्ट सूटर ने, जो बाद में शासी निकाय के सदस्य बने, कहा: “उस सम्मेलन में समझाया गया कि क्रूस और मुकुट के चिन्ह का प्रयोग करना न सिर्फ अनावश्‍यक है बल्कि गलत भी है।” अगले कुछ सालों के दौरान इस बारे में और भी जानकारी दी गयी। अब यह साफ हो गया था कि शुद्ध उपासना में क्रूस की कोई जगह नहीं है।

क्रूस के इस्तेमाल के बारे में बढ़ती समझ

एक आदमी ने अपने कोट के बैज पर क्रूस और मुकुट का ब्रूच लगाया है
  • क्रूस और मुकुट का ब्रूच लगाना न सिर्फ गैर-ज़रूरी है बल्कि गलत भी है।​—1928 में अमरीकी राज्य मिशिगन के डिट्रॉइट शहर में हुआ सम्मेलन।

  • क्रूस और मुकुट का ब्रूच एक मूर्ति है।​—1933 में प्रकाशित अँग्रेज़ी किताब तैयारी, पेज 239.

  • क्रूस गैर-ईसाई धर्म से निकला है।​—28 फरवरी, 1934 की स्वर्ण युग, पेज 336.

  • यीशु की मौत एक काठ पर हुई थी, न कि क्रूस पर।​—4 नवंबर, 1936 की स्वर्ण युग, पेज 72; 1936 में प्रकाशित अँग्रेज़ी किताब धन, पेज 27.

कई बाइबलों में यूनानी शब्द स्टौरोस  का अनुवाद “क्रूस” किया गया है। पर गौर कीजिए कि कुछ किताबों में इसका क्या मतलब बताया गया है:

  • ‘यूनानी शब्द [स्टौरोस] का सही मतलब है मामूली काठ।’​—साइक्लोपीडिया ऑफ बिब्लिकल, थियॉलाजिकल, एंड एक्लीसियास्टिकल लिट्रेचर।

  • “मोटे तौर पर इसका मतलब खंभा है, ‘क्रूस’ नहीं।”​—क्रूसिफिक्शन इन ऐंटिक्विटी।

  • “एक मज़बूत काठ, जैसे किसान खेत के चारों ओर बाड़ा बनाने के लिए गाड़ते हैं। इसका कोई और मतलब नहीं हो सकता।”​—हिस्ट्री ऑफ द क्रॉस।

  • “इस शब्द का मतलब दो  लट्ठे नहीं है जो आड़े-तिरछे लगाए जाते हैं। इसका मतलब एक ही लकड़ी है।”​—द कंपैनियन बाइबल।

  • ‘एक सीधा खंभा या काठ। इसका मतलब दो लकड़ियाँ नहीं है जो आड़े-तिरछे लगाए जाते हैं।’​—अ क्रिटिकल लेक्सीकन एंड कॉनकॉर्डन्स।

14. जब परमेश्‍वर के लोगों को क्रूस के बारे में समझ मिली तो उन्होंने क्या किया?

14 जब परमेश्‍वर के लोगों को क्रूस के बारे में साफ समझ मिली तो उन्होंने क्या किया? क्या वे क्रूस और मुकुट की निशानी को इस्तेमाल करते रहे जो उन्हें बहुत प्यारी थी? उस ज़माने की एक बहन लीला रॉबर्ट्‌स ने कहा, “जब हम समझ गए कि वह चिन्ह किसे सूचित करता है तो हमने उसका प्रयोग करना तुरंत छोड़ दिया।” अरसला सरेंको नाम की एक और वफादार बहन ने बताया कि ज़्यादातर लोगों ने कैसा महसूस किया था। बहन ने कहा, “हम समझ गए कि एक समय हम जिस वस्तु को हमारे प्रभु की मृत्यु और हमारी मसीही भक्‍ति का चिन्ह मानते थे, वह वास्तव में झूठे धर्म का चिन्ह है। नीतिवचन 4:18 के अनुसार हम आभारी थे कि हमारे मार्ग पर पहले से अधिक ज्योति चमक रही है।” मसीह के वफादार चेले ऐसा कोई भी अशुद्ध काम नहीं करना चाहते थे जिसका नाता झूठे धर्मों से था!

15, 16. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमने लाक्षणिक मंदिर के आँगनों को शुद्ध बनाए रखने की ठान ली है?

15 आज हमने भी वैसा ही अटल फैसला किया है। मसीह ने विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास का इंतज़ाम किया है जो साफ देखा जा सकता है। हम मानते हैं कि इस दास के ज़रिए मसीह अपने लोगों को सिखा रहा है कि उन्हें उपासना के मामले में कैसे शुद्ध रहना चाहिए। इसलिए जब दास हमें निर्देश देता है कि फलाँ त्योहार, रिवाज़ या काम झूठे धर्मों से जुड़ा है तो हम फौरन उसे छोड़ देते हैं। मसीह की मौजूदगी के शुरूआती दौर के भाई-बहनों की तरह हमने भी ठान लिया है कि हम यहोवा के लाक्षणिक मंदिर के आँगनों को यानी धरती पर उसकी सच्ची उपासना को शुद्ध बनाए रखेंगे।

16 इन आखिरी दिनों में, मसीह ने यहोवा के लोगों की मंडली की हिफाज़त करने के लिए ऐसे कदम भी उठाए हैं जो साफ दिखायी नहीं देते। मसीह हमें ऐसे लोगों से बचाता आया है जो मंडली की उपासना को दूषित कर सकते हैं। मसीह कैसे हमें बचाता आया है? आइए देखें।

“दुष्टों को नेक जनों से” अलग किया जा रहा है

17, 18. मिसाल में बतायी इन बातों का क्या मतलब है: (क) बड़े जाल को समुंदर में डाला जा रहा है, (ख) ‘हर किस्म की मछलियाँ समेटी जा रही हैं,’ (ग) अच्छी मछलियों को बरतनों में इकट्ठा किया जा रहा है और (घ) बेकार मछलियों को फेंका जा रहा है?

17 राजा यीशु मसीह पूरी दुनिया में परमेश्‍वर के लोगों की मंडलियों पर नज़र रखे हुए है। मसीह और स्वर्गदूत आज लोगों को अलग करने का काम कर रहे हैं और वे यह काम ऐसे तरीकों से कर रहे हैं जिन्हें हम पूरी तरह नहीं समझ सकते। यीशु ने इस काम के बारे में एक बड़े जाल की मिसाल में बताया था। (मत्ती 13:47-50 पढ़िए।) इस मिसाल का क्या मतलब है?

मछुवारे मछलियों से भरा एक बड़ा जाल समुंदर से खींच रहे हैं

समुंदर में बड़ा जाल डालने का मतलब है, पूरी दुनिया के इंसानों को राज का प्रचार करना (पैराग्राफ 18 देखें)

18 ‘एक बड़े जाल को समुंदर में डाला जा रहा है।’ बड़ा जाल डालने का मतलब यह है कि समुंदर की तरह पूरी दुनिया में फैले इंसानी समाज को राज का प्रचार किया जा रहा है। ‘हर किस्म की मछलियाँ समेटी जा रही हैं।’ खुशखबरी सब किस्म के लोगों को आकर्षित करती है, उन लोगों को जो ज़रूरी कदम उठाकर सच्चे मसीही बनते हैं और उन लोगों को भी जो शुरू में दिलचस्पी दिखाते हैं, मगर सच्ची उपासना करने के लिए कोई कदम नहीं उठाते।e “अच्छी मछलियों को बरतनों में” इकट्ठा किया जा रहा है। इसका मतलब है कि नेकदिल लोगों को मंडलियों में इकट्ठा किया जा रहा है जहाँ वे यहोवा की शुद्ध उपासना कर पाते हैं। “बेकार मछलियों” को फेंका जा रहा है। इन आखिरी दिनों में मसीह और स्वर्गदूत “दुष्टों को नेक जनों से” अलग कर रहे हैं।f इसलिए जो लोग नेकदिल नहीं हैं यानी जो झूठी शिक्षाएँ और रीति-रिवाज़ छोड़ना नहीं चाहते, उन्हें मंडलियों में इकट्ठा नहीं किया जाता ताकि वे इन्हें दूषित न करें।g

19. मसीह ने शुद्ध उपासना को दूषित होने से बचाने के लिए जो कदम उठाए हैं, उनके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

19 क्या यह देखकर हमारा विश्‍वास मज़बूत नहीं होता कि हमारा राजा यीशु मसीह कैसे हमारी हिफाज़त करता है? क्या यह जानकर भी हमारा भरोसा नहीं बढ़ता कि सच्ची उपासना और सच्चे उपासकों को शुद्ध बनाए रखने के लिए उसके अंदर उतना ही जोश है जितना कि पहली सदी में था जब उसने मंदिर को शुद्ध किया था? हम कितने एहसानमंद हैं कि मसीह, परमेश्‍वर के लोगों की उपासना को शुद्ध बनाए रखने के लिए कदम उठाता आया है! हम भी झूठे धर्मों से पूरी तरह दूर रहकर अपने राजा और उसके राज का साथ दे सकते हैं।

a दूसरी जगहों से यरूशलेम आनेवाले यहूदियों को मंदिर का सालाना कर चुकाने के लिए एक खास किस्म का सिक्का देना होता था, साथ ही भेंट के लिए जानवर खरीदने पड़ते थे। पैसा बदलनेवाले सौदागर उन यहूदियों से अपने सिक्के बदलने के लिए फीस लेते थे और व्यापारी ऊँचे दाम पर जानवर बेचते थे। शायद इसी वजह से यीशु ने उन्हें ‘लुटेरे’ कहा।

b यहोवा के लोग उसके लाक्षणिक मंदिर के आँगनों में, यानी धरती पर उसकी उपासना करते हैं।

c इस लेख में बताया गया कि यह कहना कि यीशु का जन्म सर्दियों में हुआ था, “इस वृत्तांत से मेल नहीं खाता जो कहता है कि चरवाहे अपने झुंडों के साथ मैदानों में थे।”​—लूका 2:8.

d भाई फ्रेडरिक डब्ल्यू. फ्रांज़ ने 14 नवंबर, 1927 को एक चिट्ठी में यह लिखा था: “इस वर्ष हम क्रिसमस नहीं मनाएँगे। बेथेल परिवार ने निर्णय किया है कि वे फिर कभी क्रिसमस नहीं मनाएँगे।” कुछ महीनों बाद 6 फरवरी, 1928 को भाई फ्रांज़ ने एक और चिट्ठी में यह लिखा: “प्रभु हमें बैबिलोन अर्थात्‌ शैतान के संगठन की झूठी शिक्षाओं से स्वतंत्र करके धीरे-धीरे शुद्ध कर रहा है।”

e मिसाल के लिए, 2013 में प्रचारकों की गिनती 79,65,954 थी, इसके बावजूद कि स्मारक में 1,92,41,252 लोग हाज़िर थे।

f अच्छी मछलियों को बेकार मछलियों से अलग करना और भेड़ों को बकरियों से अलग करना, एक ही काम को नहीं  दर्शाता। (मत्ती 25:31-46) भेड़ों को बकरियों से अलग करना यानी उनका न्याय आनेवाले महा-संकट के दौरान होगा। इस बीच आज जो लोग बेकार मछलियों जैसे हैं वे यहोवा के पास लौट सकते हैं और उन्हें बरतनों यानी मंडलियों में इकट्ठा किया जा सकता है।​—मला. 3:7.

g जो बेकार मछलियों जैसे हैं उन्हें मानो आग की भट्ठी में डाल दिया जाएगा, यानी वे नाश हो जाएँगे।

परमेश्‍वर का राज आपके लिए कितना असली है?

  • किस इंतज़ाम के ज़रिए मसीह ने अपने चेलों को उपासना के मामले में शुद्ध बने रहने में मदद दी है?

  • मसीह ने विश्‍वासयोग्य दास के ज़रिए अपने चेलों को कैसे समझाया कि उन्हें क्रिसमस मनाना और क्रूस और मुकुट की निशानी का इस्तेमाल करना छोड़ देना चाहिए?

  • मसीह ने शुद्ध उपासना को दूषित होने से बचाने के लिए जो कदम उठाए हैं, उनके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

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