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प्रतिज्ञात देश से दृश्‍य

नासरत भविष्यद्वक्‍ता का नगर

“लोगों ने कहा: ‘यह गलील के नासरत का भविष्यद्वक्‍ता यीशु है!’” जी हाँ, यीशु की सेवकाई के दौरान उसका सिर्फ़ उल्लेख ही नासरत के अब प्रसिद्ध नगर की याद दिलाता था। इसलिए, जो लोग उसे गिरफ़्तार करने आए, उन्होंने नहीं कहा कि वे यीशु को, बल्कि कहा कि “यीशु नासरी” को ढूँढ़ रहे थे।—मत्ती २१:११; २६:७१; यूहन्‍ना १८:३-५; प्रेरितों २६:९.

ऊपर दी गयी तस्वीर से पता चलता है कि अगर आप नासरत को आज भेंट देंगे तो आपको वहाँ क्या दिखायी देगा। यह उस समय से तो ज़्यादा बड़ा है, जब एक स्वर्गदूत “गलील के नासरत नगर में” मरियम को यह बताने को आया कि वह परमेश्‍वर के पुत्र को जन्म देती। (लूका १:२६-३३) उस समय, नासरत सामनेवाले पृष्ठ पर दिखाए गाँव के ज़्यादा समान था, जहाँ ढाल पर वर्गाकार घर समूहित हैं। संभव है कि यूसुफ और मरियम ऐसे ही एक घर में रहते थे। लेकिन मरियम के प्रसव से कुछ समय पहले, उन्हें दक्षिण में बैतलहम जाना पड़ा, और वहीं यीशु का जन्म हुआ। वे बाद में मिस्र को भाग निकले ताकि बच्चे को हेरोद के हिंसक इरादों से बचाया जा सके। उसके बाद, वे “गलील में अपने नगर नासरत को फिर चले गए।”—लूका २:४, ३९; मत्ती २:१३-२३.

इस प्रकार, यीशु यरूशलेम या तिबिरियास जैसे व्यस्त शहर में नहीं, बल्कि एक शान्त जगह में बड़ा हुआ। नासरत नगर एक घाटी में था जिसकी चारों ओर निचले गलील इलाके की पहाड़ियाँ थीं, जहाँ अनाज, अँगूर, ज़ैतून और अंजीर फलते-फूलते थे। वहाँ सुखपूर्वक शीतल ग्रीष्म-ऋतु का मज़ा लिया जा सकता था, फिर भी वहाँ की सर्दियाँ इतनी कड़ी नहीं हुआ करती थीं जितना कि ऊपरी गलील इलाके में होती थीं।

यूसुफ एक बढ़ई का काम करके अपनी पत्नी, बेटे और बेटियों का भरण-पोषण करता था और, आधुनिक नासरत में इस दुकान की तरह शायद उसकी भी एक दुकान थी। उसने नगर के घरों के लिए शायद छत की कड़ियाँ और लकड़ी के दरवाज़े बनाए होंगे, या फिर मेज़ें, तिपाइयाँ और लकड़ी का अन्य सामान। हम जानते हैं कि यीशु ने देख-देखकर सीख लिया, इसलिए कि वह भी “बढ़ई” कहलाने लगा। (मरकुस ६:३; मत्ती १३:५५) नासरत के इर्द-गिर्द कृषि के काम से संभवतः उन्हें और भी काम मिला। शायद यीशु ने एक ऐसा जूआ बनाया जैसा कि इन पशुओं पर दिखायी देता है। उसी समय, यूसुफ शायद अपने औज़ारों को हल या जूए के पीछे-पीछे खिंची जानेवाली [बिना पहियों की] भूसी निकालने की गाड़ी बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहा था।—२ शमूएल २४:२२; यशायाह ४४:१३.

जब वह एक लड़का था, यीशु ने संभवतः नासरत के इर्द-गिर्द के इलाके में पैदल-सैर की होगी, जैसा कि आठ मील उत्तर की ओर, “गलील के काना” तक, जहाँ उसने बाद में अपना पहला चमत्कार किया। (यूहन्‍ना २:१-१२) यिज्रेल की तराई और मोरे की पहाड़ी की ओर लगभग छः मील दक्षिण-पूर्वी दिशा में चलकर, यीशु नाईन नाम के शहर में पहुँच जाता, जो कि पृष्ठ ११ पर दिखाया गया है।a (न्यायियों ६:३३; ७:१) याद करें कि अपनी पहली प्रचार यात्रा के दौरान, यीशु नाईन के पास एक शव-यात्रा से संयोगवश मिला। तरस खाकर, उसने एक विधवा के बेटे को पुनरुत्थित किया।—लूका ७:११-१६.

नासरत हालाँकि देश के किसी भी मुख्य मार्ग पर स्थित न था, फिर भी यहाँ से ऐसे रास्तों तक आसानी से पहुँच सकते थे। यह आप १९९० कॅलैंडर ऑफ जेहोवाज़ विट्‌नेसिज़ के आवरण नक़शे से देख सकते हैं, जिस में आज के नासरत की एक अधिक बड़ी तस्वीर भी छपी है। यिज्रेल की तराई के मध्य से जानेवाला पूरब-पश्‍चिम मार्ग, अक्को या पतुलिमयिस के बन्दरगाह को गलील सागर और यरदन की घाटी से जोड़ता था। उस मार्ग को काटता हुआ एक ऐसा मार्ग था, जो दमश्‍क से दक्षिण की ओर आता था और जो सामरिया से होकर यरूशलेम तक जाता था।

नासरत वासियों को उनका अपना आराधनालय था और अपनी सेवकाई के आरंभ में, यीशु वहाँ “अपनी रीति के अनुसार” गया। उसने यशायाह ६१:१, २ पढ़ा, और वे शब्द अपने पर लागू किए। नगरवासी किस तरह प्रतिक्रिया दिखाते, जिन में से कुछों ने उसे बड़ा होते देखा था और शायद बढ़ई के काम के लिए उसे मज़दूरी भी दी होगी? वे क्रोध से भर गए और उन्होंने उसे चोटी पर से गिरा देने की कोशिश की, लेकिन यीशु बच निकला। (लूका ४:१६-३०) प्रत्यक्षतः, जो उसने बाद में नाइन में और अन्य जगह किया, उसकी ख़बर नासरत पहुँच गयी, इसलिए कि जब उसने वापस आकर स्थानीय आराधनालय में सिखाया, किसी ने उसे जान से मार डालने की बात नहीं की। फिर भी, “उस ने वहाँ . . . बहुत सामर्थ के काम नहीं किए,” इसलिए कि नासरत में उसके जान-पहचानवालों ने उस पर एक भविष्यद्वक्‍ता के तौर से विश्‍वास नहीं किया।—मत्ती १३:५३-५८.

मरकुस यीशु की प्रतिक्रिया लिपिबद्ध करता है: “भविष्यद्वक्‍ता का अपने देश और अपने कुटुंब और अपने घर को छोड़ और कहीं भी निरादर नहीं होता।” कितनी बुरी बात है कि यह नासरत में कई लोगों के विषय में सच था। फिर भी, हम उस शहर को भविष्यद्वक्‍ता के नगर के तौर से याद कर सकते हैं, जिसकी हम आदर करना पसंद करते हैं।—मरकुस ६:४, न्यू.व.

[फुटनोट]

a १९९० कॅलैंडर ऑफ जेहोवाज़ विट्‌नेसिज़ के आवरण नक़शे पर नासरत दूसरा नम्बर है। मोरे की पहाड़ियाँ तीसरे नम्बर के चित्र के बिल्कुल नीचे दिखायी देती हैं।

[पेज 10 पर चित्र का श्रेय]

Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.

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