यहोवा की तरह दयावंत बनिए
“जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो।”—लूका ६:३६.
१. फरीसियों ने कैसे दिखाया कि उनमें ज़रा भी दया नहीं थी?
परमेश्वर के स्वरूप में बनाए जाने के बावजूद, इंसान अकसर उसकी तरह दया दिखाने से चूक जाते हैं। (उत्पत्ति १:२७) मिसाल के तौर पर फरीसियों पर ध्यान दीजिए। जब यीशु ने दया से भरकर सब्त के दिन एक मनुष्य के सूखे हाथ को चंगा किया तब उनकी टोली ने ज़रा भी खुशी ज़ाहिर नहीं की। इसके बजाय, उन्होंने आपस में यीशु के खिलाफ साज़िश की कि “उसे किस प्रकार नाश करें।” (मत्ती १२:९-१४) एक और मौके पर, यीशु ने ऐसे मनुष्य को चंगा किया जो जन्म से अंधा था। इस बार भी ‘कई फरीसियों’ को यीशु की करुणा से रत्ती भर भी खुशी नहीं हुई। इसके बजाय, वे कुड़कुड़ाकर कहने लगे: “यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं, क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता।”—यूहन्ना ९:१-७, १६.
२, ३. यीशु का क्या मतलब था जब उसने कहा कि “फरीसियों . . . के खमीर से चौकस रहना”?
२ फरीसियों की यह बेरहमी, इंसानियत के खिलाफ एक जुर्म था और परमेश्वर के खिलाफ पाप। (यूहन्ना ९:३९-४१) यीशु ने अपने चेलों को बिलकुल ठीक चेतावनी दी कि इन सफेदपोश लोगों और सदूकियों जैसे धर्मगुरुओं के “खमीर से चौकस रहना।” (मत्ती १६:६) बाइबल में खमीर का इस्तेमाल पाप या मिलावट को बताने के लिए किया जाता है। सो यीशु कह रहा था कि “शास्त्रियो, और फरीसियो” की शिक्षा सच्ची उपासना को अशुद्ध कर सकती है। कैसे? वो ऐसे कि इस शिक्षा ने लोगों को सिखाया कि फरीसियों के अपने मनमाने नियम और रिवाज़ ही परमेश्वर की व्यवस्था है, वहीं दया जैसी “गम्भीर बातों” के लिए इस शिक्षा में कोई जगह नहीं थी। (मत्ती २३:२३) रीति-रिवाज़ों से बने इस धर्म ने परमेश्वर की उपासना को ऐसा बोझ बना दिया जिसे उठाना नामुमकिन हो।
३ गुमराह बेटे की कहानी के दूसरे भाग में यीशु ने इन यहूदी धर्मगुरुओं की गंदी सोच की कलई खोल दी। इस कहानी का पिता जो यहोवा को सूचित करता है, अपने बेटे को माफ करने के लिए बेताब था क्योंकि बेटा अपने किए पर पछता रहा था। मगर इस लड़के का बड़ा भाई, जो ‘फरीसियों और शास्त्रियों’ को सूचित करता है, इस मामले में दूसरे ही ढंग से सोचता है।—लूका १५:२.
एक भाई का क्रोध
४, ५. गुमराह लड़के का भाई किस तरह “खो” चुका था?
४ “उसका जेठा पुत्र खेत में था: और जब वह आते हुए घर के निकट पहुंचा, तो उस ने गाने बजाने और नाचने का शब्द सुना। और उस ने एक दास को बुलाकर पूछा; यह क्या हो रहा है? उस ने उस से कहा, तेरा भाई आया है; और तेरे पिता ने पला हुआ बछड़ा कटवाया है, इसलिये कि उसे भला चंगा पाया है। यह सुनकर वह क्रोध से भर गया, और भीतर जाना न चाहा।”—लूका १५:२५-२८.
५ यह साफ है कि यीशु की कहानी में सिर्फ गुमराह बेटे में ही नुक्स नहीं था। एक किताब कहती है, “यहाँ बताए गए दोनों ही बेटे खो चुके थे, एक अपनी ही बुराई में फँसकर, और दूसरा अपनी ही अच्छाई के घमंड में चूर होकर।” गौर कीजिए कि गुमराह लड़के के भाई ने खुशी मनाने से न सिर्फ इनकार किया बल्कि वह “क्रोध से भर गया।” “क्रोध” के लिए यूनानी शब्द का मतलब सिर्फ एक वक्त गुस्सा भड़कना नहीं है इसके बजाय मन में लगातार बैर पालना है। ज़ाहिर है कि गुमराह लड़के के भाई के मन में नफरत ही नफरत थी, इसलिए उसे लगा कि ऐसे आदमी के लिए जश्न मनाने की कोई ज़रूरत नहीं थी जिसे असल में घर छोड़ना ही नहीं चाहिए था।
६. गुमराह लड़के का भाई किन लोगों को दर्शाता है और क्यों?
६ गुमराह लड़के का भाई उन लोगों को दर्शाता है जो पापियों के लिए यीशु की करुणा और उसकी परवाह से चिढ़ते थे। ये अपनी धार्मिकता के नशे में इतने चूर थे कि यीशु की दया का उन पर रत्ती भर भी असर नहीं हुआ; न ही उन्होंने वो खुशी ज़ाहिर की जो एक पापी के माफ किए जाने पर स्वर्ग में मनायी जाती है। इसके बजाय, यीशु की दया को देखकर वे आग-बबूला हो गए और वे अपने मन में “बुरे विचार” करने लगे। (मत्ती ९:२-४) एक मौके पर कुछ फरीसियों का गुस्सा इस कदर भड़का कि उन्होंने उस आदमी को बुलवा भेजा जिसे यीशु ने चंगा किया था और आराधनालय से “बाहर निकाल दिया,” ज़ाहिर है उसको बहिष्कृत कर दिया! (यूहन्ना ९:२२, ३४) गुमराह लड़के के भाई की तरह जिसने “भीतर जाना न चाहा,” यहूदी धर्मगुरुओं ने मौका मिलने पर भी “आनन्द करनेवालों के साथ आनन्द” नहीं किया। (रोमियों १२:१५) यीशु अपनी कहानी में आगे उनकी गंदी सोच का परदाफाश करता है।
सोच-विचार में खोट
७, ८. (क) किस तरह गुमराह लड़के का भाई, बेटा होने का सही मतलब समझा ही नहीं था? (ख) बड़ा बेटा अपने पिता से कैसे बिलकुल ही अलग था?
७ “उसका पिता बाहर आकर उसे मनाने लगा। उस ने पिता को उत्तर दिया, कि देख; मैं इतने वर्ष से तेरी सेवा कर रहा हूं, और कभी भी तेरी आज्ञा नहीं टाली, तौभी तू ने मुझे कभी एक बकरी का बच्चा भी न दिया, कि मैं अपने मित्रों के साथ आनन्द करता। परन्तु जब तेरा यह पुत्र, जिस ने तेरी संपत्ति वेश्याओं में उड़ा दी है, आया, तो उसके लिये तू ने पला हुआ बछड़ा कटवाया।”—लूका १५:२८-३०.
८ यह सब कहकर, गुमराह लड़के के भाई ने यह दिखा दिया कि उसने बेटा होने का सही मतलब समझा ही नहीं। वह अपने पिता की सेवा ऐसे कर रहा था मानो नौकरी कर रहा हो। उसने अपने पिता से कहा: “मैं इतने वर्ष से तेरी सेवा कर रहा हूं।” हाँ यह सही है कि यह बड़ा बेटा कभी घर छोड़कर नहीं गया, ना ही उसने कभी अपने पिता की कोई आज्ञा टाली थी। लेकिन क्या वह प्यार की वज़ह से अपने पिता की बात मानता था? क्या उसे अपने पिता की सेवा करने में सच्ची खुशी मिलती थी या इसके बजाय वह यह मानकर खुद को धोखा दे रहा था कि मैं बहुत अच्छा बेटा हूँ क्योंकि मैं “खेत में” अपना काम अच्छी तरह करता हूँ? अगर वह सचमुच एक वफादार बेटा था, तो फिर उसने अपने पिता जैसी समझ क्यों नहीं दिखायी? जब उसके पास अपने भाई को दया दिखाने का मौका था तो उसके दिल में दया क्यों नहीं आयी?—भजन ५०:२०-२२ से तुलना कीजिए।
९ .समझाइए कि कैसे यहूदी धर्मगुरु बड़े बेटे की तरह थे?
९ यहूदी धर्मगुरु भी इस बड़े बेटे की तरह थे। उनका मानना था कि वे परमेश्वर के वफादार लोग हैं क्योंकि वे सख्ती से नियमों को मानते हैं। यह सच है कि आज्ञा मानना बेहद ज़रूरी है। (१ शमूएल १५:२२) लेकिन कर्मों पर हद-से-ज़्यादा ज़ोर देकर उन्होंने परमेश्वर की उपासना को एक ढर्रा बना दिया था यानी ऐसी खोखली भक्ति जिसमें सच्ची आध्यात्मिकता का नामो-निशान तक नहीं था। अपनी परंपराओं के अलावा उन्हें कुछ नज़र नहीं आता था। उनके सीने में पत्थर का दिल था। और तो और, वे आम इंसान को अपने पैरों की धूल समझते थे और “स्रापित” लोग कहकर उनकी बेइज़्ज़ती करते थे। (यूहन्ना ७:४९) क्या परमेश्वर ऐसे धर्मगुरुओं के कामों से खुश हो सकता था जिनके मन उससे कोसों दूर थे?—मत्ती १५:७, ८.
१०. (क) “मैं बलिदान नहीं परन्तु दया चाहता हूं,” यह क्यों एक सही सलाह थी? (ख) दया की कमी का मामला कितना खतरनाक है?
१० यीशु ने फरीसियों से कहा कि “जाकर इस का अर्थ सीख लो, कि मैं बलिदान नहीं परन्तु दया चाहता हूं।” (मत्ती ९:१३; होशे ६:६) असली अहम बातों की उन्हें समझ नहीं थी, क्योंकि दया के बिना उनके सारे बलिदान बेकार थे। यह सचमुच एक खतरनाक बात थी, क्योंकि बाइबल कहती है कि ‘निर्दयी’ लोग उन लोगों में शामिल हैं जिन्हें परमेश्वर “मृत्यु के दण्ड के योग्य” समझता है। (रोमियों १:३१, ३२) इसलिए, हमें यीशु की यह बात सुनकर हैरानी नहीं होती कि इन धर्मगुरुओं के वर्ग का सदा के लिए नाश हो जाएगा। ज़ाहिर है कि ऐसी सज़ा के लिए उनकी निर्दयता ज़िम्मेदार थी। (मत्ती २३:३३) पर शायद इस वर्ग में से कुछ व्यक्तियों की मदद की जा सकती थी। इस कहानी के अंत में पिता ने अपने बड़े बेटे से जो कहा उन शब्दों के ज़रिये यीशु ने ऐसे यहूदियों के सोच-विचार को ठीक करने की कोशिश की। आइए देखें कैसे।
पिता की दया
११, १२. यीशु की कहानी का पिता कैसे अपने बड़े बेटे को समझाने की कोशिश करता है और पिता के ‘तेरा भाई’ कहने में खास बात क्या थी?
११ “उस ने उस से कहा; पुत्र, तू सर्वदा मेरे साथ है; और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है। परन्तु अब आनन्द करना और मगन होना चाहिए क्योंकि यह तेरा भाई मर गया था फिर जी गया है; खो गया था, अब मिल गया है।”—लूका १५:३१, ३२.
१२ ध्यान दीजिए कि पिता ने कहा, “तेरा भाई।” क्यों? याद कीजिए कि इससे पहले अपने पिता से बात करते वक्त इस बड़े लड़के ने अपने गुमराह भाई को ‘तेरा पुत्र’ कहा, “मेरा भाई” नहीं। मानो वह यह कहना चाह रहा हो कि उसका अपने भाई के साथ कोई रिश्ता ही नहीं। इसलिए पिता अपने बड़े बेटे से कह रहा था: ‘यह सिर्फ मेरा बेटा ही नहीं है। यह तेरा भाई भी है, सगा भाई। तुझे उसके लौटने पर खुशियाँ मनानी चाहिए!’ यीशु की बात यहूदी धर्मगुरुओं को साफ समझ में आनी चाहिए थी। जिन पापियों की उन्होंने बेइज़्जती की, असल में वे उनके “भाई” थे। बेशक, “पृथ्वी पर कोई ऐसा धर्मी मनुष्य नहीं जो भलाई ही करे और जिस से पाप न हुआ हो।” (सभोपदेशक ७:२०) तो फिर, इन ऊँचे पदवाले यहूदियों को पापियों के पछताने पर ज़रूर खुशियाँ मनानी चाहिए थीं।
१३. यीशु की कहानी के अचानक खत्म होने से हमारे सामने कौन-सा अहम सवाल आता है?
१३ पिता की इस बिनती के बाद कहानी अचानक खत्म हो जाती है। मानो यीशु अपने सुननेवालों को कहानी का अंत खुद लिखने के लिए कह रहा हो। बड़े बेटे ने चाहे जो भी जवाब दिया हो, हर सुननेवाले से एक सवाल पूछा गया था, ‘क्या आप भी वैसी ही खुशी मनाएँगे जैसी एक पापी के पछताने से स्वर्ग में मनायी जाती है?’ आज मसीहियों के पास भी इस सवाल का जवाब देने का मौका है। कैसे?
आज परमेश्वर की तरह दया दिखाना
१४. (क) इफिसियों ५:१ में पायी जानेवाली पौलुस की सलाह को हम दया के मामले में कैसे लागू कर सकते हैं? (ख) परमेश्वर की दया के बारे में कौन-सी गलतफहमी से हमें सावधान रहने की ज़रूरत है?
१४ पौलुस ने इफिसियों को सलाह दी: “प्रिय, बालको की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनो।” (इफिसियों ५:१) इसलिए, मसीहियों के नाते हमें परमेश्वर की दया की कदर करनी चाहिए, अपने दिल की गहराइयों में इसे समाना चाहिए और फिर दूसरों के साथ अपने व्यवहार में इस गुण को दिखाना चाहिए। लेकिन एक सावधानी बरतने की ज़रूरत है। परमेश्वर की दया का मतलब यह नहीं कि वह पाप को गंभीर बात नहीं समझता। मिसाल के तौर पर, कुछ लोग शायद बेफिक्र होकर कहें, ‘अगर मैं पाप करता भी हूँ, तो मैं जब चाहे परमेश्वर से माफी माँग सकता हूँ और वह मुझ पर ज़रूर दया करेगा।’ ऐसा नज़रिया रखने का मतलब होगा, ‘परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालना’ जैसे बाइबल लेखक यहूदा ने कहा। (यहूदा ४) हालाँकि यहोवा दयावंत है, फिर भी ढीठ पापियों का न्याय करते वक्त “दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा।”—निर्गमन ३४:७. यहोशू २४:१९; १ यूहन्ना ५:१६ से तुलना कीजिए।
१५. (क) खासकर प्राचीनों के लिए दया का संतुलित नज़रिया रखना ज़रूरी क्यों है? (ख) जहाँ एक तरफ प्राचीन जान-बूझकर किए गए पापों को बरदाश्त नहीं करते, वहीं उन्हें क्या करने की कोशिश करनी चाहिए और क्यों?
१५ इसके अलावा, हमें दूसरी हद को पार करने से भी चौकस रहना चाहिए, यानी जिन लोगों ने सच्चा पछतावा ज़ाहिर किया है और अपने पापों के लिए परमेश्वर-भक्ति का शोक किया है उनसे सख्ती से व्यवहार करने और उन पर दोष लगाने से खबरदार रहना चाहिए। (२ कुरिन्थियों ७:११) क्योंकि प्राचीनों को यहोवा की भेड़ों की देखभाल करने का काम सौंपा गया है, इसलिए बेहद ज़रूरी है कि वे संतुलित नज़रिया रखें, खासकर न्याय के मामलों में। मसीही कलीसिया को हर हाल में शुद्ध रखा जाना चाहिए और बहिष्कार के ज़रिये “कुकर्मी को . . . निकाल” देना बाइबल के मुताबिक सही है। (१ कुरिन्थियों ५:११-१३) वहीं, जब दया दिखाने का अच्छा कारण होता है तब दया दिखानी चाहिए। सो जहाँ प्राचीन जान-बूझकर किए गए पापों को बरदाश्त नहीं करते, वहीं वे न्याय की सीमा के अंदर प्यार भरे और दयावंत तरीके से काम करने की पूरी कोशिश करते हैं। वे बाइबल के इस उसूल को हमेशा मन में रखते हैं: “जिस ने दया नहीं की, उसका न्याय बिना दया के होगा: दया न्याय पर जयवन्त होती है।”—याकूब २:१३; नीतिवचन १९:१७; मत्ती ५:७.
१६. (क) बाइबल से दिखाइए कि कैसे यहोवा दिल से चाहता है कि राह से भटक जानेवाले उसके पास लौट आएँ। (ख) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम भी पछतावा दिखानेवाले पापियों के लौटने से खुश हैं?
१६ गुमराह बेटे की कहानी यह साफ दिखाती है कि यहोवा दिल से चाहता है कि राह से भटक जानेवाले उसके पास लौट आएँ। असल में, यहोवा उन्हें तब तक आवाज़ देता रहता है जब तक उनके बदलने की ज़रा-सी भी उम्मीद बाकी होती है। (यहेजकेल ३३:११; मलाकी ३:७; रोमियों २:४, ५; २ पतरस ३:९) गुमराह बेटे के पिता की तरह, यहोवा उन लोगों को पूरी इज़्ज़त देता है जो लौट आते हैं और उन्हें पूरी तरह से अपने परिवार का सदस्य मानता है। क्या आप इस मामले में यहोवा जैसे हैं? पहले बहिष्कृत किए गए एक संगी विश्वासी को जब बहाल किया जाता है तब आपका रवैया क्या होता है? यह तो हमने जान लिया है कि ‘स्वर्ग में आनन्द’ मनाया जाता है। (लूका १५:७) लेकिन क्या इस पृथ्वी पर, आपकी कलीसिया में, खुद आपके दिल में आनंद होता है? या कहानी के बड़े बेटे की तरह, क्या अब भी मन में बैर बरकरार रहता है मानो ऐसा आदमी स्वागत करने के लायक नहीं जिसे परमेश्वर के झुंड को छोड़कर जाना ही नहीं चाहिए था?
१७. (क) पहली सदी के कुरिन्थ में कैसे हालात पैदा हो गए थे और इस मामले को सुलझाने के लिए पौलुस ने कलीसिया के लोगों को क्या सलाह दी? (ख) पौलुस की सलाह काम की क्यों थी और हम आज इसे कैसे लागू कर सकते हैं? (बक्स भी देखिए।)
१७ इस मामले में खुद अपनी जाँच करने के लिए, ध्यान दीजिए कि लगभग सा.यु. ५५ में कुरिन्थ में क्या हुआ। वहाँ, एक आदमी को कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया गया था, लेकिन अब वह बदचलनी का मार्ग छोड़ चुका था। भाइयों को क्या करना चाहिए था? क्या उन्हें उसके पछतावे पर शक करना चाहिए था और उससे दूर-दूर रहना चाहिए था? इसके बजाय, पौलुस ने कुरिन्थियों से आग्रह किया: “उसका अपराध क्षमा करो; और शान्ति दो, न हो कि ऐसा मनुष्य बहुत उदासी में डूब जाए। इस कारण मैं तुम से बिनती करता हूं, कि उस को अपने प्रेम का प्रमाण दो।” (२ कुरिन्थियों २:७, ८) पछतावा दिखानेवाले पापी अकसर शर्मिंदा महसूस करते हैं और निराश हो जाते हैं। इसलिए, उन्हें इस बात का यकीन दिलाना ज़रूरी है कि उनके संगी मसीही और यहोवा उनसे प्रेम करते हैं। (यिर्मयाह ३१:३; रोमियों १:१२) यह बेहद ज़रूरी है। क्यों?
१८, १९. (क) कुरिन्थ के भाइयों ने पहले हद-से-ज़्यादा नरमी कैसे दिखायी? (ख) निर्दयता की वज़ह से कुरिन्थ के लोगों पर कैसे ‘शैतान का दाँव चल’ सकता था?
१८ कुरिन्थ के भाइयों को माफ करने का गुण पैदा करने का प्रोत्साहन देते वक्त पौलुस ने एक वज़ह यह बतायी कि “शैतान का हम पर दांव न चले, क्योंकि हम उस की युक्तियों से अनजान नहीं।” (२ कुरिन्थियों २:११) उसका क्या मतलब था? पौलुस को कुरिन्थ की कलीसिया को पहले इसलिए ताड़ना देनी पड़ी क्योंकि वे बुराई के मामले में हद-से-ज़्यादा नरमी से पेश आ रहे थे। उन्होंने पहले इसी आदमी को कोई सज़ा नहीं दी थी बल्कि पाप करते रहने दिया था। ऐसा करके, कलीसिया—खासकर उसके प्राचीन—शैतान के हाथों की कठपुतली बन रहे थे, क्योंकि अगर कलीसिया की बदनामी होती तो उसे बहुत ज़्यादा खुशी होती।—१ कुरिन्थियों ५:१-५.
१९ अब अगर वे इसकी दूसरी हद पार कर जाते और पछतानेवाले को माफी नहीं देते तो दूसरे तरीके से शैतान का इन पर दाँव चल जाता। कैसे? वह उनके कठोर और निर्दयी होने का फायदा उठा सकता था। अगर पछतानेवाला पापी “उदासी में डूब जाए”—या जैसे टुडेज़ इंग्लिश वर्शन कहता है, “इतना उदास हो जाए कि सबकुछ छोड़ बैठे”—तो यहोवा को जवाब देने के लिए प्राचीनों पर कितनी भारी ज़िम्मेदारी आ पड़ती! (यहेजकेल ३४:६; याकूब ३:१ से तुलना कीजिए।) इसीलिए, यीशु ने अपने चेलों को “इन छोटों में से किसी एक को” ठोकर न खिलाने की चेतावनी देने के बाद कहा: “सचेत रहो; यदि तेरा भाई अपराध करे तो उसे समझा, और यदि पछताए तो उसे क्षमा कर।”a (तिरछे टाइप हमारे।)—लूका १७:१-४.
२०. एक पापी के पछताने पर किस तरह स्वर्ग और पृथ्वी दोनों में आनंद मनाया जाता है?
२० हर साल सच्ची उपासना की ओर लौटनेवाले हज़ारों लोग उस दया के लिए एहसानमंद हैं जो यहोवा ने उन पर दिखायी है। अपनी बहाली के बारे में एक मसीही बहन कहती है, “मुझे अपनी ज़िंदगी में कोई और घड़ी याद नहीं है जब मैं इतनी खुश थी।” बेशक, उसकी खुशी में स्वर्गदूतों ने भी खुशी मनायी है। ऐसा हो कि हम भी एक पापी के पछताने पर “स्वर्ग में . . . [होनेवाले] आनन्द” में शामिल हों। (लूका १५:७) ऐसा करके हम यहोवा की तरह दया दिखा रहे होंगे।
[फुटनोट]
a हालाँकि ऐसा लगता है कि कुरिन्थी कलीसिया में उस पापी मनुष्य को जल्द ही बहाल कर दिया गया था, फिर भी सभी बहिष्कृत लोगों को जल्दी बहाल करने के लिए इस मामले को एक आधार की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। हर मामला अलग होता है। कुछ पाप करनेवाले निकाले जाने के तुरंत बाद सच्चा पछतावा ज़ाहिर करने लगते हैं। दूसरे लोग शायद पछतावा दिखाने में कुछ देर लगाएँ। लेकिन, सभी मामलों में जो लोग बहाल किए जाते हैं उनके लिए परमेश्वर-भक्ति का शोक दिखाना ज़रूरी है और यह उनके कामों से नज़र आना चाहिए।—प्रेरितों २६:२०; २ कुरिन्थियों ७:११.
दोहराने के लिए
◻ यहूदी धर्मगुरु कैसे गुमराह लड़के के भाई की तरह थे?
◻ किस तरह गुमराह लड़के का भाई, बेटा होने का सही मतलब समझा ही नहीं था?
◻ जब परमेश्वर की तरह दया दिखाने की बात आती है, तब हमें किन दो हदों को पार करने से बचे रहना चाहिए?
◻ आज हम परमेश्वर की तरह दया कैसे दिखा सकते हैं?
[पेज 17 पर बक्स]
“उस को अपने प्रेम का प्रमाण दो”
पछतावा दिखानेवाले एक बहिष्कृत पापी के बारे में पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया से कहा: “मैं तुम से बिनती करता हूं, कि उस को अपने प्रेम का प्रमाण दो।” (२ कुरिन्थियों २:८) जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “प्रमाण दो” किया गया है वह कानून में इस्तेमाल होनेवाला एक शब्द है जिसका मतलब है “सबूत देना।” जी हाँ, पछतावा दिखानेवाले जिन लोगों को बहाल किया गया है उन्हें इस बात का एहसास मिलना चाहिए कि उनसे प्यार किया जाता है और कलीसिया के सदस्यों के नाते उनका फिर से स्वागत किया जाता है।
लेकिन, हमें यह याद रखना चाहिए कि कलीसिया के ज़्यादातर लोग उन हालात के बारे में नहीं जानते जिसकी वज़ह से एक व्यक्ति को बहिष्कृत किया गया या जिस वज़ह से उसे बहाल किया गया। इसके अलावा, कलीसिया में कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जिनके खिलाफ पछतावा दिखानेवाले व्यक्ति ने अपराध किया हो या जिन्हें ऐसी चोट पहुँचायी हो जिसका बहुत समय तक असर रहे। इसलिए, ऐसे मामलों में दूसरों की भावनाओं का लिहाज़ रखते हुए यह ठीक होगा कि जब किसी के बहाल होने की घोषणा की जाती है तब हम सबके सामने स्वागत करने के बजाय निजी तौर पर ऐसा करें।
बहाल किए जानेवाले लोगों का विश्वास यह जानकर कितना मज़बूत होता है कि दोबारा उन्हें मसीही कलीसिया के सदस्य होने की इज़्ज़त दी जा रही है! पछतावा दिखानेवाले ऐसे लोगों से बातचीत करके और राज्यगृह में, सेवकाई में और दूसरे सही मौकों पर उनके साथ संगति करके उन्हें प्रोत्साहित कर सकते हैं। इस तरह इन अज़ीज़ भाइयों के लिए अपने प्यार का प्रमाण या सबूत देने का यह मतलब नहीं कि हम उनके पापों को गंभीर नहीं समझते। इसके बजाय, स्वर्गदूतों के साथ-साथ हम भी इस बात से खुश होते हैं कि वे पाप की राह को छोड़कर यहोवा के पास लौट आए हैं।—लूका १५:७.
[पेज 15 पर तसवीर]
बड़े बेटे ने अपने भाई के लौटने पर खुशी मनाने से इनकार कर दिया