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  • परमेश्‍वर पक्षपाती नहीं है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
w89 7/1 पेज 25-30

परमेश्‍वर पक्षपाती नहीं है

“परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उससे डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।”​—प्रेरितों के काम १०:३४, ३५.

१. प्राचीन एथन्स में, जाति के विषय में पौलुस ने कौनसी महत्त्वपूर्ण बात कही?

“जिस परमेश्‍वर ने पृथ्वी और उसकी सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता . . . उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं।” (प्रेरित १७:२४-२६, फिलिप्स) उन शब्दों को किस ने कहा? मार्स पहाड़ी पर या यूनान के, एथन्स में एरोपॅगस पर उनके प्रसिद्ध भाषण के दौरान मसीही प्रेरित पौलुस ने कहा।

२. जीवन को रंगीन और दिलचस्प बनाने के लिए क्या सहायक बनता है, और दक्षिण अफ्रीका की किस बात से एक जापानी दर्शक प्रभावित हुआ?

२ पौलुस का कथन हमें इस सृष्टि का प्रशंसनीय विविधता के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है। यहोवा परमेश्‍वर ने कितने विभिन्‍न प्रकार के मनुष्यों, जानवरों, पक्षियों, कीड़ों और पौधों की सृष्टि की है। जीवन कितना मन्द होता अगर वे सब समान होते! उनकी विविधता जीवन को रंगीन और दिलचस्प बनाती है। उदाहरणार्थ, दक्षिण अफ्रीका में यहोवा के गवाहों के एक सम्मेलन में उपस्थित एक जापानी दर्शक, वहाँ देखी गयी जाति और रंग की विविधता से प्रभावित हुआ। उन्होंने कहा कि यह जापान से कितना भिन्‍न था जहाँ अधिकांश लोगों में समान जातीय विशेषताएं हैं।

३. कुछ लोग एक अलग चर्म रंग को किस रीति से देखते हैं, जो क्या उत्पन्‍न करता है?

३ लेकिन जातियों में रंग की विविधता बहुधा गम्भीर समस्याओं को उत्पन्‍न करती हैं। कई उन लोगों को घटिया समझते हैं जिनके चर्म का एक अलग रंग है। यह विद्वेष, घृणा और जातीय पक्षपात की महाविपत्ति को भी उत्पन्‍न करती है। क्या हमारे सृष्टिकर्ता का यह इरादा था? क्या कुछ जातियाँ उसकी नज़रों में श्रेष्ठ हैं?

हमारे सृष्टिकर्ता​—पक्षपाती?

४-६. (अ) राजा यहोशापात ने पक्षपात के बारे में क्या कहा? (ब) दोनों मूसा और पौलुस ने यहोशापात के कथन की पुष्टि कैसे की? (क) कुछ लोग कौनसे प्रश्‍नों को उठाएंगे?

४ इतिहास में वापस कदम रखने के द्वारा हम, सम्पूर्ण मानव-जाति के विषय में, हमारे सृष्टिकर्ता के दृष्टिकोण का कुछ अनुमान लगा सकते हैं। राजा यहोशापात ने, जो सामान्य युग पूर्व ९३६ से ९११ तक यहूदा का शासन किया, कई सुधार किए और ईश्‍वरीय नियम के आधार पर न्यायिक व्यवस्था का सही कार्य-कारिणी का प्रबन्ध किया। उन्होंने न्यायियों को यह उत्कृष्ट सलाह दी: “सोचो कि क्या करते हो क्योंकि तुम जो न्याय करोगे, वह मनुष्य के लिए नहीं, यहोवा के लिए करोगे . . . चौकसी से काम करना क्योंकि हमारे परमेश्‍वर यहोवा में कुछ कुटिलता नहीं है, और न वह किसी का पक्ष करता है।”​—२ इतिहास १९:६, ७.

५ कई शतकों पहले, भविष्यवक्‍ता मूसा ने इस्राएल की जातियों से कहा था: “तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा . . . किसी का पक्ष नहीं करता।” (व्यवस्थाविवरण १०:१७) और रोमियों के लिए अपनी चिट्ठी में पौलुस ने चिताया: “क्लेश और संकट हर एक मनुष्य के प्राण पर जो बुरा करता है आएगा, पहिले यहूदी पर फिर यूनानी पर . . . क्योंकि परमेश्‍वर के कोई प्रीतिभजन नहीं है।”​—रोमियों २:९-११, न्यू इंग्लिश बाइबल।

६ लेकिन कुछ शायद पूछेंगे: ‘इस्राएलियों के बारे में क्या? क्या वे परमेश्‍वर के चुने हुए लोग नहीं थे? क्या वह उनकी ओर पक्षपाती नहीं था? क्या सम्पूर्ण इस्राएल से मूसा ने नहीं कहा था: “तू अपने परमेश्‍वर यहोवा की पवित्र प्रजा हैं, यहोवा ने पृथ्वी भर के सब देशों के लोगों में से तुझ को चुन लिया है कि तू उसकी प्रजा और निज धन ठहरे”?’​—व्यवस्थाविवरण ७:६.

७. (अ) जब यहूदियों ने मसीहा को अस्वीकार किया तब परिणाम क्या निकला? (ब) आज कौन परमेश्‍वर की ओर से अद्‌भुत आशीषों का आनन्द उठा सकेंगे और कैसे?

७ नहीं, एक विशेष उद्देश्‍य के लिए इस्राएलियों का उपयोग करने में परमेश्‍वर पक्षपाती नहीं था। एक ऐसे लोग को चुनने के लिए, जिनसे मसीहा को उत्पन्‍न करना था यहोवा ने विश्‍वासी इब्रानी कुलपतियों के वंशज को चुना था। लेकिन जब यहूदियों ने मसीहा, यीशु मसीह, को अस्वीकार किया, और उसका वध करवाया, उन्होंने परमेश्‍वर की कृपा खो दी। किन्तु, आज, वे जो किसी भी जाति या राष्ट्र के हैं, जो यीशु में विश्‍वास करते हैं, अद्‌भुत आशीषों का अनुभव कर सकेंगे और अनन्त जीवन की प्रत्याशा रख सकते हैं। (यूहन्‍ना ३:१६; १७:३) अवश्‍य, यह सिद्ध करता है कि परमेश्‍वर की ओर से कोई भी पक्षपात नहीं। इसके अतिरिक्‍त, यहोवा ने इस्राएलियों को “परदेशियों से प्रेम भाव रखने” और “उसको दुःख न देने” की आज्ञा दी थी, चाहे उसकी जाति या राष्ट्रीयता कुछ भी हो। (व्यवस्थाविवरण १०:१९; लेव्यव्यवस्था १९:३३, ३४) फिर तो, सचमुच ही स्वर्ग का हमारा प्रेममय पिता पक्षपाती नहीं है।

८. (अ) क्या सिद्ध करता है कि यहोवा ने इस्राएल की ओर पक्षपात नहीं दिखाया? (ब) यहोवा ने इस्राएल का किस रीति से उपयोग किया?

८ यह सच है कि इस्राएलियों ने खास विशेषाधिकारों का आनन्द उठाया। लेकिन उन पर एक भारी जिम्मेदारी भी थी। उन पर यहोवा के नियमों का पालन करने का दायित्व था, और वे जो उनका पालन करने में असफल होते एक शाप के अधीन हो जाते थे। (व्यवस्थाविवरण २७:२६) वस्तुतः, परमेश्‍वर की व्यवस्था की अवज्ञा करने के कारण इस्राएलियों को बार-बार दण्डित किया गया। इसलिए, यहोवा उनके साथ तरफ़दारी से पेश नहीं आया। बल्कि उस ने उन्हें भविष्यसूचक प्रतिरूपों को बनाने और चेतावनेवाले उदाहरणों को प्रस्तुत करने के लिए उपयोग किया। सौभाग्यवश, यह इस्राएल के द्वारा था, कि परमेश्‍वर ने सम्पूर्ण मानवजाति के स्वस्त्ययन के लिए उद्धारक, यीशु मसीह को उत्पन्‍न किया।​—गलतियों ३:१४; उत्पत्ति २२:१५-१८ से तुलना करें।

क्या यीशु पक्षपाती था?

९. (अ) यहोवा और यीशु किस प्रकार समान है? (ब) यीशु के बारे में कौनसे प्रश्‍न उठते हैं?

९ चूँकि यहोवा के साथ कोई पक्षपात नहीं था, क्यों यीशु पक्षपाती हो सकता है? खैर, इस पर विचार कीजिए: यीशु ने एक बार कहा था: “मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूँ।” (यूहन्‍ना ५:३०) यहोवा और उसके प्रिय बेटे के बीच में परिपूर्ण एकता है, और यीशु हर बात में अपने पिता की इच्छा करता है। असल में, वे दृष्टि और उद्देश्‍य में इतने समान थे कि यीशु यह कह सका: “जिसने मुझे देखा है, उसने पिता को देखा है।” (यूहन्‍ना १४:९) ३३ से अधिक वर्षों से यीशु को एक मनुष्य के रूप में पृथ्वी में रहने का वास्तविक अनुभव था और बाइबल बताती है कि कैसे उसने सह-मनुष्यों के साथ बर्ताव किया। दूसरी जातियों की ओर उसकी क्या मनोवृत्ति थी? क्या वह पूर्वाग्रही या पक्षपाती था? क्या यीशु जातिवादी था?

१०. (अ) मदद के लिए एक कनानी औरत के अनुरोध का यीशु ने कैसे उत्तर दिया? (ब) क्या अन्य जातियों का “छोटे कुत्तों” के रूप में संकेत करने के द्वारा यीशु पक्षपात दिखा रहा था? (क) कैसे वह औरत इस आपत्ति पर विजयी हुई, और इसका परिणाम क्या निकला?

१० यीशु ने अपने पार्थिव जीवन के अधिकांश को यहूदी लोगों के साथ बिताया। लेकिन एक दिन, उसके पास एक कनानी औरत, एक गैर-यहूदी, आयी और उससे उसकी बेटी को चंगा करने के लिए प्रार्थना की। उत्तर में यीशु ने कहा: “इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों को छोड़ मैं किसी के पास नहीं भेजा गया।” फिर भी उस औरत ने विनती की: “हे प्रभु, मेरी सहायता कर।” तब उसने आगे कहा: “लड़कों की रोटी लेकर छोटे कुत्तों के आगे डालना अच्छा नहीं।” यहूदियों के लिए कुत्ते अपवित्र जानवर थे। इसलिए क्या अन्य जातियों का “छोटे कुत्तों” के रूप में संकेत करने के द्वारा यीशु पक्षपात दिखा रहा था? जी नहीं, क्योंकि उसने परमेश्‍वर से अर्पित ‘इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों’ की देख-भाल के विशेष कार्य के बारे में अभी-अभी कह चुका था। इसके अतिरिक्‍त, गैर-यहूदियों की तुलना जंगली कुत्तों से नहीं बल्कि “छोटे कुत्तों” से करने के द्वारा, यीशु ने इस तुलना को हलका कर दिया। निस्सन्देह, उसने जो कहा, वह उस औरत की परीक्षा की। इस आपत्ति पर विजय पाने के लिए निश्‍चित होने पर भी, नम्रतापूर्वक, उसने कार्यकुशलता से उत्तर दिया: “सत्य है प्रभु, पर छोटे कुत्ते भी वह चूरचार खाते हैं, जो उन के स्वामियों की मेज से गिरते हैं।” उस औरत के विश्‍वास से प्रभावित होने पर, यीशु ने उसकी बेटी को तुरन्त चंगा कर दिया।​—मत्ती १५:२२-२८, न्यू.व.

११. जैसे एक घटना के द्वारा चित्रित किया गया, जिस में यीशु अन्तर्ग्रस्त था, एक दूसरे की ओर, यहूदियों और सामरियों की क्या मनोवृत्ति थी?

११ कुछ सामरियों के साथ यीशु की भेंटों पर भी विचार कीजिए। यहूदियों और सामरियों के बीच में गहरा वैर-भाव था। एक अवसर पर, यीशु ने एक अमुक सामरी गाँव में, उसके लिए तैयारियाँ करने के लिए, संदेशवाहकों को भेजा। परन्तु, उन सामरियों ने “उसे उतरने न दिया, क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहा था।” यह याकूब और यूहन्‍ना को इतना परेशान कर दिया कि वे आकाश से आग गिराकर उन्हें नाश कर देना चाहते थे। लेकिन यीशु ने उन दो शिष्यों को फटकारा और वे सब एक अन्य गाँव चले गए।​—लूका ९:५१-५६.

१२. एक अमुक सामरी औरत यीशु के निवेदन पर आश्‍चर्यचकित क्यों हुई?

१२ क्या यीशु यहूदियों और सामरियों के बीच के वैर-भाव का भागी हुआ? खैर, एक और घटना में क्या हुआ, इस पर ध्यान दीजिए। यीशु और उसके शिष्य यहूदिया से गलील की ओर जा रहे थे और सामरिया से गुज़रना था। यात्रा से थक जाने पर यीशु विश्राम करने के लिए याकूब के कुए के पास बैठ गया, जब उसके शिष्य सूखार शहर में भोजन खरीदने गए थे। इस बीच, सामरी औरत पानी निकालने आयी। अब, यीशु खुद एक और अवसर पर सामरियों को “एक अन्य जाति” का होने के रूप में वर्गीकरण कर चुका था। (लूका १७:१६-१८ किंगडम इन्टरलीनियर ट्रान्सलेशन ऑफ द ग्रीक स्क्रिपचर्स) लेकिन उसने उससे कहा: “मुझे पानी पिला।” क्योंकि यहूदियों को सामरियों के साथ कुछ भी सम्पर्क नहीं था, उस आश्‍चर्यचकित औरत ने उत्तर दिया: “तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों माँगता है?”​—यूहन्‍ना ४:१-९.

१३. (अ) उस सामरी औरत के आक्षेप की ओर यीशु ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई, और उस औरत की क्या प्रतिक्रिया थी? (ब) अन्तिम परिणाम क्या था?

१३ लेकिन यीशु ने उस औरत की आपत्ति पर ध्यान नहीं दिया। इसके बदले, उसने इस अवसर को उसे एक गवाही देने के लिए उपयोग किया, यह भी स्वीकार करते हुए कि वही मसीहा है। (यूहन्‍ना ४:१०-२६) यह आश्‍चर्यचकित औरत अपने जल मर्तबान को कुए के पास छोड़कर, वापस शहर की ओर दौड़ चली, और जो हुआ था, उसके बारे में दूसरों से कहने लगी। हालाँकि, उसने अनैतिक जीवन बिताया था, उसने आध्यात्मिक विषयों में उसकी रुचि को यह कहने के द्वारा प्रकट की: “कहीं यही तो मसीह नहीं है?” अन्तिम परिणाम क्या था? उस औरत ने जो उत्कृष्ट गवाही दी थी, उसके कारण, स्थानीय लोगों में से बहुतों ने यीशु पर विश्‍वास करने लगे। (यूहन्‍ना ४:२७-४२) दिलचस्पी की बात है, कि अपने अ बिब्लिकल पर्सपेक्टीव ऑन द रेस प्रॉब्लम, इस पुस्तक में सामुदायिक धर्मविज्ञानी थॉमस ओ. फिगार्ट ने यह मत प्रकट किया: “अगर हमारे प्रभु ने यह महत्त्वपूर्ण समझा कि एक गुमराह जातीय रिवाज को एक दयामय कृत्य के द्वारा हटा देना है, तो हमें यह ध्यान देना है, कि हम जातिवाद की इस नदी में आज खो न जाए।”

१४. सुसमाचारक फिलिप्पुस की सेवकाई के दौरान यहोवा की निष्पक्षता का कौनसा प्रमाण प्रकट हुआ?

१४ यहोवा परमेश्‍वर की निष्पक्षता ने विभिन्‍न जातियों के लोगों को धर्मान्तरित यहूदियाँ बनने की अनुमति दी। १९ शतकों पहले यरूशलेम और अज्जाह के बीच के बंजर मार्ग में जो हुआ, उस पर भी विचार कीजिए। एक काला आदमी जो कूश की रानी की सेवा में था, अपने रथ में यशायाह की भविष्यवाणी को पढ़ते हुए यात्रा कर रहा था। यह अफ़सर एक धर्मान्तरित खतनावाला था, क्योंकि वह “भजन करने को यरूशलेम आया था।” यहोवा का दूत यहूदी सुसमाचारक फिलिप्पुस को प्रकट हुआ और उससे कहा: “निकट जाकर इस रथ के साथ हो ले।” क्या फिलिप्पुस ने ऐसे कहा: “ओह नहीं! वह तो एक और जाति का पुरुष है?” इसका विपरीत! क्यों, फिलिप्पुस तो रथ में चढ़ने, उसके साथ बैठा और यीशु मसीह के बारे में यशायाह की भविष्यवाणी को समझाने के लिए प्रसन्‍न था। जब वे जल का एक स्थान पर पहुँचे, तो उस कूशी ने पूछा: “मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है!” क्योंकि इसे रोकने के लिए कुछ भी बात नहीं थी, फिलिप्पुस ने खुश होकर उस कूशी को बपतिस्मा दिया और यहोवा ने उस प्रसन्‍न आदमी को उसका निष्पक्ष बेटा, यीशु मसीह के अभिषिक्‍त शिष्य के रूप में स्वीकार किया। (प्रेरित ८:२६-३९) लेकिन ईश्‍वरीय निष्पक्षता का अधिक प्रमाण जल्द ही अपने आप को प्रकट किया।

एक महान परिवर्तन

१५. यीशु के मरण के बाद कौनसा परिवर्तन हुआ और पौलुस यह कैसे स्पष्ट करता है?

१५ मसीह की मृत्यु ने सांसारिक जातीय पक्षपात को समाप्त नहीं किया। लेकिन उस बलि मृत्यु के द्वारा परमेश्‍वर ने यीशु के यहूदी शिष्यों का उसके गैर-यहूदी शिष्यों के साथ के सम्बन्ध को अवश्‍य बदल दिया। प्रेरित पौलुस ने इफिसुस के गैर-यहूदी मसीहियों को लिखते समय यह सूचित किया और कहा: “स्मरण करो कि तुम जो शारीरिक रीति से अन्यजाति हो . . . तुम लोग उस समय मसीह से अलग और इस्राएल की प्रजा के पद से अलग किए हुए, और प्रतिज्ञा की वाचाओं के भागी न थे, और आशाहीन और जगत में ईश्‍वररहित थे। पर अब तो मसीह के लोहू के द्वारा निकट हो गए हो। क्योंकि वही हमारा मेल है, जिसने दोनों को एक कर लिया, और अलग करनेवाली दीवार को जो बीच में थी ढा दिया।” वह “दीवार” या विभाजन का प्रतीक नियम वाचा की व्यवस्था थी जो यहूदियों और अन्य जातियों के बीच एक व्यवधान के रूप में कार्य की। वह मसीह के मरण के आधार पर समाप्त किया गया ताकि उसके द्वारा दोनों यहूदियों और अन्य जातियों को “एक आत्मा में पिता के पास पहुँच” हो सकती थी।”​—इफिसियों २:११-१८.

१६. (अ) राज्य की कुंजियाँ पतरस को क्यों दी गईं? (ब) कितनी कुंजियाँ थीं और उनके उपयोग से क्या परिणाम हुआ?

१६ इसके अतिरिक्‍त प्रेरित पतरस को “स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ” दी गयीं ताकि किसी भी जाति के लोग परमेश्‍वर के उद्देश्‍यों के बारे में सीख सकें, पवित्र आत्मा के साथ “नए सिरे से जन्म” ले सकें, और मसीह के साथ आत्मिक वारिस बन सकें। (मत्ती १६:१९; यूहन्‍ना ३:१-८) पतरस ने तीन प्रतीकात्मक कुंजियों का उपयोग किया। पहली कुंजी यहूदियों के लिए थी, दूसरी सामरियों के लिए, और तीसरी अन्य जातियों के लिए थी। (प्रेरित २:१४-४२; ८:१४-१७; १०: २४-२८, ४२-४८) इस तरह, निष्पक्ष परमेश्‍वर, यहोवा ने सभी जाति के चुने हुओं को यीशु के आध्यात्मिक भाई और राज्य के सह-वारिस होने का मार्ग खोल दिया।​—रोमियों ८:१६, १७; १ पतरस २:९, १०.

१७. (अ) पतरस को कौनसा असाधारण दर्शन दिया गया और क्यों? (ब) कुछ पुरुषों ने पतरस को किस के घर ले गए और वहाँ उनकी प्रतीक्षा कौन कर रहे थे? (क) पतरस ने उन गैर-यहूदियों को किस विषय का स्मरण दिलाया और फिर भी परमेश्‍वर ने स्पष्ट रूप से उसे क्या सिखाया था?

१७ पतरस को तीसरी कुंजी​—अन्य जातियों के लिए​—उपयोग करने के लिए तैयार करने के उद्देश्‍य से उसे अपवित्र जानवरों का एक असाधारण दर्शन दिया गया और कहा गया: “हे पतरस उठ, मार और खा।” सबक यह था: “जो कुछ परमेश्‍वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे अशुद्ध मत कह।” (प्रेरित १०:९-१६) पतरस इस दर्शन के अर्थ के सम्बन्ध में बड़ी परेशानी में था। लेकिन जल्द ही, वहाँ, कैसरिया में स्थित एक रोमी सेना अफ़सर, कुरनेलियुस, के घर ले जाने के लिए तीन मनुष्य पहुँच गए। क्योंकि वह शहर यहूदिया में रोमी सेना का मुख्यालय था, कुरनेलियुस के लिए इस जगह में अपना घर होना स्वाभाविक था। पतरस के लिए, उस बहुत ही गैर-यहूदी वातावरण में, कुरनेलियुस, उसके रिश्‍तेदारों और घनिष्ठ मित्रों के साथ इंतज़ार कर रहा था। उस प्रेरित ने उन्हें स्मरण दिलाया: “तुम जानते हो, कि अन्यजाति की संगति करना या उसके यहाँ जाना यहूदी के लिए अधर्म है, परन्तु परमेश्‍वर ने मुझे बताया है, कि किसी मनुष्य को अपवित्र या अशुद्ध न कहूँ, इसलिए मैं जब बुलाया गया, तो बिना कुछ कहे चला आया।”​—प्रेरित १०:१७-२९.

१८. (अ) कुरनेलियुस और उनके मेहमानों के सामने पतरस ने कौनसी महत्त्वपूर्ण घोषणा की? (ब) यीशु के बारे में पतरस की गवाही के बाद, कौन-सी प्रभावशाली घटना घटित हुई (क) उन विश्‍वासी गैर-यहूदियों के सम्बन्ध में कौनसा कदम उठाया गया?

१८ कुरनेलियुस, विषयों के बारे में परमेश्‍वर के निर्देशन को स्पष्ट करने के बाद, पतरस ने कहा: “अब मुझे निश्‍चय हुआ, कि परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरित १०:३०-३५) फिर, जैसे प्रेरित यीशु मसीह के बारे में गवाही देने लगा कुछ असाधारण घटित हुई! “पतरस ये बातें कह ही रहा था, कि पवित्र आत्मा वचन के सब सुननेवालों पर उतर आया।” पतरस के यहूदी साथियाँ “चकित हुए, कि अन्य जातियों पर भी पवित्र आत्मा का दान उंड़ेला गया है। क्योंकि उन्होंने उन्हें भांति भांति की भाषा बोलते और परमेश्‍वर की बड़ाई करते सुना।” पतरस ने जवाब दिया: “क्या कोई जल की रोक कर सकता है, कि ये बपतिस्मा न पाएं, जिन्हों ने हमारी नाईं पवित्र आत्मा पायी हैं?” कौन विरोध कर सकता था, क्योंकि स्वर्ग के निष्पक्ष परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा उन विश्‍वासी गैर-यहूदियों पर उंडेला गया था। इसलिए पतरस ने आदेश दिया कि उन्हें “मसीह के नाम में बपतिस्मा दिया जाए।”​—प्रेरित १०:३६-४८.

“हर एक जाति से”

१९. जातीय विद्वेष क्यों बढ़ रहा है और किस कदर तक?

१९ हम अपने आप को “अन्तिम दिनों” में पाते हैं और “कठिन समय” जीवन की एक वास्तविकता है। अन्य बातों के अलावा, लोग अपस्वार्थी, निन्दक, मयारहित, क्षमारहित, असंयमी, कठोर, ढीठ और घमण्डी है। (२ तीमुथियुस ३:१-५) ऐसे सामाजिक वातावरण में, यह कोई आश्‍चर्य की बात नहीं, कि जातीय विद्वेष और संघर्ष विश्‍व भर बढ़ रहा है। कई राष्ट्रों में भिन्‍न जाति या रंग के लोग एक दूसरे को तुच्छ समझते हैं या घृणा तक करते हैं। यह वास्तविक युद्ध की ओर और कुछ देशों में भयंकर क्रूरताओं की ओर ले गया है। कुछ तथाकथित ज्ञानसम्पन्‍न समाजों में भी, कई लोग इस जातीय पूर्वधारणा से निकलने में कठिनाई अनुभव कर रहे हैं। और यह बीमारी कुछ ऐसे क्षेत्रों में फैल रही है जहाँ कोई इस की अपेक्षा बिल्कुल नहीं करते, जैसे सागर के द्वीप जो कभी उनकी शान्ति के कारण करीब-करीब ग्रामीण प्रतीत होते थे।

२०. (अ) यूहन्‍ना ने कौनसा उत्प्रेरित दर्शन देखा? (ब) यह भविष्यसूचक दर्शन किस कदर तक पूर्ण हो रहा है? (क) कुछों को अब भी कौन-सी कठिनाई है जिससे पूर्ण रूप से निकलना है और एक समाधान के लिए उन्हें कहाँ खोज करनी है?

२० किन्तु, इस संसार के विभिन्‍न भागों में जातीय सामंजस्य के अभाव के बावजूद निष्पक्ष परमेश्‍वर, यहोवा ने सभी जातियों और राष्ट्रों से निष्कपट लोगों को एक विशिष्ट अन्तर्राष्ट्रीय एकता में लाने की भविष्यवाणी की थी। ईश्‍वरीय प्रेरणा के द्वारा प्रेरित यूहन्‍ना ने देखा कि यहोवा की स्तुति करते हुए “हर एक जाति, और कुल और लोग और भाषा में से एक बड़ी भीड़ जिसकी गणना करना असम्भव है, सिंहासन के सामने और मेम्ने के सामने खड़ी थी।” (प्रकाशितवाक्य ७:९, जेरूसलेम बाइबल) इस भविष्यवाणी की पूर्ति हो रही है। आज, २१२ देशों में, सभी राष्ट्रों और जातियों में से, ३५,००,००० से अधिक यहोवा के गवाह एकता और जातीय सामंजस्य का आनन्द उठा रहे हैं। लेकिन वे अब भी असम्पूर्ण हैं। इन में से कुछों को जातीय पूर्वधारणा से पूर्ण रूप से निकलने के लिए कठिनाई महसूस हो रही है, हालाँकि वे इस बात से अनजान होंगे। इस समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है? हम इस विषय की चर्चा अगले अंक में निष्पक्ष परमेश्‍वर यहोवा के उत्प्रेरित वचन के सहायक सलाहों के आधार पर करेंगे।

आप किस तरह जवाब देंगे?

◻ आप ऐसा क्यों कहेंगे कि यहोवा इस्राएलियों का उपयोग करने में पक्षपाती नहीं था?

◻ इसके लिए क्या प्रमाण है कि यीशु मसीह जातीय रूप से पूर्वाग्रही या पक्षपाती नहीं था?

◻ “परमेश्‍वर पक्षपाती नहीं है” यह जानने के लिए पतरस ने कैसे मदद प्राप्त की?

◻ इस संसार में जातीय सामंजस्य के अभाव के बावजूद एकता को सूचित करनेवाली कौनसी भविष्यवाणी अब पूर्ण हो रही है?

[पेज 25 पर तसवीरें]

प्रेरित पौलुस ने ऐथन्स के निवासियों से कहा कि “सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिए बनाई हैं”

[पेज 27 पर तसवीरें]

इसलिए कि यीशु पक्षपाती नहीं था, उसने सूखार के पास याकूब के कुए के निकट उस सामरी स्त्री को गवाही दी

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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