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  • यीशु को फँसाने की कोशिश नाकाम

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  • यीशु को फँसाने की कोशिश नाकाम
  • यीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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यीशु—राह, सच्चाई, जीवन
jy अध्या. 108 पेज 250-पेज 251 पैरा. 6
यीशु एक कर का सिक्का फरीसियों को दिखा रहा है और उनके सवालों का जवाब दे रहा है जो उसे फँसाने के लिए चालाकी से सवाल करते हैं

अध्याय 108

यीशु को फँसाने की कोशिश नाकाम

मत्ती 22:15-40 मरकुस 12:13-34 लूका 20:20-40

  • सम्राट की चीज़ें सम्राट को दो

  • क्या मरने के बाद ज़िंदा होनेवाले शादी करेंगे?

  • सबसे बड़ी आज्ञाएँ

यीशु का विरोध करनेवाले धर्म गुरु बहुत गुस्से में हैं। उसने अभी-अभी कुछ मिसालें बताकर उनकी दुष्टता का परदाफाश किया है। अब फरीसी उसे फँसाने की कोई तरकीब सोच रहे हैं। वे उससे कोई ऐसी बात कहलवाना चाहते हैं कि वे उस पर दोष लगाकर उसे रोमी राज्यपाल के हवाले कर सकें। वे अपने चेलों को कुछ पैसे देते हैं ताकि वे यीशु को फँसा दें।​—लूका 6:7.

उनके चेले यीशु से कहते हैं, “गुरु, हम जानते हैं कि तू सही-सही बोलता और सिखाता है और कोई भेदभाव नहीं करता, बल्कि तू सच्चाई के मुताबिक परमेश्‍वर की राह सिखाता है। हमें बता कि सम्राट को कर देना सही है या नहीं?” (लूका 20:21, 22) यीशु जानता है कि वे उसकी झूठी तारीफ कर रहे हैं और असल में वे उसे फँसाना चाहते हैं। अगर वह कहेगा कि कर नहीं देना चाहिए, तो वे उस पर इलज़ाम लगाएँगे कि वह रोमी सरकार से गद्दारी कर रहा है। लेकिन अगर वह कहेगा कि हाँ, कर देना चाहिए, तो लोग उस पर टूट पड़ेंगे, क्योंकि वे रोमी सरकार की गुलामी करते-करते तंग आ गए हैं। तो वह अब क्या जवाब देता है?

वह उनसे कहता है, “अरे कपटियो, तुम मेरी परीक्षा क्यों लेते हो? मुझे कर का सिक्का दिखाओ।” वे उसके पास एक दीनार लाते हैं। यीशु उनसे पूछता है, “इस पर किसकी सूरत और किसके नाम की छाप है?” वे कहते हैं, “सम्राट की।” वह उनसे कहता है, “इसलिए जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ, मगर जो परमेश्‍वर का है वह परमेश्‍वर को।”​—मत्ती 22:18-21.

क्या बात कही यीशु ने! विरोधी दंग रह जाते हैं। उनसे कुछ बोलते नहीं बनता और वे चले जाते हैं। लेकिन अभी दिन खत्म नहीं हुआ है। यीशु के विरोधी उसे फँसाने की फिर से कोशिश करते हैं। जब फरीसी नाकाम हो जाते हैं, तो सदूकी उसके पास आते हैं।

सदूकियों का कहना है कि जिनकी मौत हो गयी है, वे फिर कभी ज़िंदा नहीं होंगे। वे यीशु से कुछ पूछते हैं, “गुरु, मूसा ने कहा था, ‘अगर कोई आदमी बेऔलाद मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी से शादी करे और अपने मरे हुए भाई के लिए औलाद पैदा करे।’ हमारे यहाँ सात भाई थे। पहले ने शादी की और बेऔलाद मर गया। और अपने भाई के लिए अपनी पत्नी छोड़ गया। ऐसा ही दूसरे और तीसरे के साथ हुआ, यहाँ तक कि सातों के साथ यही हुआ। आखिर में वह औरत भी मर गयी। तो फिर जब मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे, तब वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि सातों उसे अपनी पत्नी बना चुके थे।”​—मत्ती 22:24-28.

यीशु सदूकियों को मूसा की लिखी किताबों से जवाब देता है, क्योंकि वे उन किताबों पर यकीन करते हैं। “तुम बड़ी गलतफहमी में हो, क्योंकि तुम न तो शास्त्र को जानते हो, न ही परमेश्‍वर की शक्‍ति को। क्योंकि जब मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे तो उनमें से न तो कोई आदमी शादी करेगा न कोई औरत, मगर वे स्वर्गदूतों की तरह होंगे। मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में, क्या तुमने मूसा की किताब में नहीं पढ़ा कि परमेश्‍वर ने झाड़ी के पास क्या कहा था, ‘मैं अब्राहम का परमेश्‍वर, इसहाक का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर हूँ’? वह मरे हुओं का नहीं बल्कि जीवितों का परमेश्‍वर है। तुम बड़ी गलतफहमी में हो।” (मरकुस 12:24-27; निर्गमन 3:1-6) यीशु का जवाब सुनकर लोग हैरान रह जाते हैं।

यीशु ने फरीसियों और सदूकियों, दोनों का मुँह बंद कर दिया। इसलिए अब ये दोनों गुट के लोग झुंड बनाकर फिर से यीशु के पास आते हैं। वे किसी तरह उसे फँसाना चाहते हैं। एक शास्त्री उससे पूछता है, “गुरु, कानून में सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है?”​—मत्ती 22:36.

यीशु कहता है, “सबसे पहली यह है: ‘हे इसराएल सुन, हमारा परमेश्‍वर यहोवा एक ही यहोवा है। और तू अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपने पूरे दिमाग और अपनी पूरी ताकत से प्यार करना।’ और दूसरी यह है: ‘तू अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तू खुद से करता है।’ और कोई आज्ञा इनसे बढ़कर नहीं।”​—मरकुस 12:29-31.

शास्त्री उससे कहता है, “गुरु, तूने बिलकुल सही कहा। तेरी बात सच्चाई के मुताबिक है, ‘परमेश्‍वर एक ही है, उसके सिवा और कोई परमेश्‍वर नहीं।’ और इंसान को अपने पूरे दिल से, पूरी समझ के साथ और पूरी ताकत से उससे प्यार करना चाहिए और अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना चाहिए जैसे वह खुद से करता है। यह सारी होम-बलियों और बलिदानों से कहीं बढ़कर है।” यीशु उससे कहता है, “तू परमेश्‍वर के राज से ज़्यादा दूर नहीं।”​—मरकुस 12:32-34.

तीन दिन (नीसान 9, 10 और 11) से यीशु मंदिर में सिखा रहा है। अभी-अभी जिस शास्त्री ने यीशु से बात की थी, उसके जैसे कई लोगों को यीशु की बातें सुनना अच्छा लगता है। मगर धर्म गुरुओं को बिलकुल अच्छा नहीं लगता। और वे उससे “और सवाल पूछने की हिम्मत नहीं” करते।

  • फरीसी यीशु को फँसाने के लिए उससे क्या पूछते हैं? मगर क्या होता है?

  • सदूकी कैसे यीशु को फँसाने की कोशिश करते हैं? यीशु कैसे उन्हें नाकाम कर देता है?

  • यीशु ने किन आज्ञाओं को सबसे खास आज्ञाएँ बताया?

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