“तुझे अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है”
“यह दूसरी [आज्ञा] है, ‘तुझे अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है।’”—मत्ती 22:39.
1, 2. (क) यीशु के मुताबिक दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा क्या है? (ख) हम इस लेख में किन सवालों के जवाब देखेंगे?
एक बार यीशु को परखने के लिए एक फरीसी ने उससे पूछा: “गुरु, परमेश्वर के कानून में सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है?” जैसा कि हमने पिछले लेख में देखा था, यीशु ने उसे जवाब दिया कि “सबसे बड़ी और पहली आज्ञा” है: “तुझे अपने परमेश्वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना है।” फिर यीशु ने यह भी बताया कि दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा क्या है। उसने कहा: “तुझे अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है।”—मत्ती 22:34-39.
2 यीशु ने कहा कि हमें अपने पड़ोसी से प्यार करना चाहिए। मगर हमारा पड़ोसी कौन है? हम यीशु की आज्ञा कैसे मान सकते हैं? इस लेख में हम इन सवालों के जवाब देखेंगे। साथ ही, हम देखेंगे कि अपने पड़ोसी से प्यार करने से हम यहोवा को कैसे खुश कर सकते हैं और इससे सभी को कैसे फायदा पहुँच सकता है।
असल में हमारा पड़ोसी कौन है?
3, 4. (क) अपने पड़ोसी से प्यार करने का क्या मतलब है यह बताने के लिए यीशु ने कौन-सी मिसाल दी? (ख) सामरी ने ज़ख्मी आदमी की मदद कैसे की? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
3 हम अकसर सोचते हैं कि हमारा पड़ोसी वही है जो हमारे घर के पास रहता है। (नीति. 27:10) पर जब एक आदमी ने यीशु से पूछा: “असल में मेरा पड़ोसी कौन है?” तो जवाब में यीशु ने एक सामरी की मिसाल दी, जिसने एक ज़रूरतमंद इंसान की मदद की। (लूका 10:29-37 पढ़िए।) इस मिसाल में एक आदमी को लूटा गया, उसे मारा-पीटा गया और सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया गया। तभी एक इसराएली याजक और लेवी वहाँ से गुज़रे। उन्हें एक अच्छे पड़ोसी की तरह उसकी मदद करनी चाहिए थी, मगर वे उसे देखकर भी अनदेखा करके चले गए। आखिर में, एक सामरी ने उसकी मदद की। उस ज़माने में यहूदी सामरियों से नफरत किया करते थे।—यूह. 4:9.
4 सामरी ने उस ज़ख्मी आदमी के घावों पर तेल और दाख-मदिरा लगायी, ताकि उसके घाव जल्दी भर जाएँ। फिर वह उसे एक सराय में ले गया और सरायवाले को दो दीनार दिए। दो दीनार की कीमत दो दिन की मज़दूरी के बराबर थी। (मत्ती 20:2) जब हम इस बारे में सोचते हैं कि उस सामरी ने एक ज़ख्मी आदमी की मदद करने के लिए कितना कुछ किया, तो इससे साफ ज़ाहिर हो जाता है कि वही उसका सच्चा पड़ोसी था। अगर हममें लोगों के लिए करुणा और प्यार होगा, तो हम भी उस सामरी की तरह अच्छे पड़ोसी साबित होंगे।
यहोवा के सेवक अपने पड़ोसी की मदद करने के लिए फौरन कदम उठाते हैं (पैराग्राफ 5 देखिए)
5. सैंडी नाम के तूफान के बाद, यहोवा के साक्षियों ने अपने पड़ोसियों को प्यार कैसे दिखाया?
5 आज के ज़माने में करुणा दिखानेवाले अच्छे पड़ोसी बहुत कम देखने को मिलते हैं। खासकर इन “आखिरी दिनों” में ज़्यादातर लोगों में मोह-ममता और भलाई से प्यार नहीं रहा और वे खूँखार होते जा रहे हैं। (2 तीमु. 3:1-3) इसकी एक मिसाल पर गौर कीजिए। अक्टूबर 2012 में सैंडी नाम के एक भयंकर तूफान ने न्यू यॉर्क सिटी के एक इलाके को तहस-नहस कर दिया था। कई लोगों के पास बिजली, साधन और ज़रूरत की दूसरी चीज़ें नहीं थीं। दुख की बात है कि लुटेरों ने उन लोगों को भी नहीं छोड़ा, जो पहले से ही तूफान की मार झेल रहे थे। लेकिन यहोवा के साक्षी उनसे बिलकुल अलग थे। उन्होंने अपने भाइयों और दूसरों की मदद करने के लिए ज़रूरी इंतज़ाम किए। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि सच्चे मसीही अपने पड़ोसी से प्यार करते हैं। अपने पड़ोसी को प्यार दिखाने के कुछ दूसरे तरीके क्या हैं?
पड़ोसी के लिए प्यार दिखाने के कुछ तरीके
6. हम अपने पड़ोसी को बाइबल से मदद कैसे दे सकते हैं?
6 बाइबल से मदद दीजिए। प्रचार में हम अपने पड़ोसी को “शास्त्र से दिलासा” देते हैं। (रोमि. 15:4) जब हम बाइबल की मदद से उसे परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनाते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हम उससे प्यार करते हैं। (मत्ती 24:14) अपने पड़ोसी को यहोवा परमेश्वर की तरफ से आशा का यह पैगाम सुनाना हमारे लिए क्या ही बड़े सम्मान की बात है।—रोमि. 15:13.
7. (क) सुनहरा नियम क्या है? (ख) अगर हम उस पर अमल करें, तो इसका क्या नतीजा होगा?
7 सुनहरे नियम पर अमल कीजिए। यीशु ने सुनहरे नियम के बारे में इस तरह बताया: “जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो। दरअसल, मूसा के कानून और भविष्यवक्ताओं की शिक्षाओं का निचोड़ यही है।” (मत्ती 7:12) “मूसा के कानून” का मतलब है उत्पत्ति से लेकर व्यवस्थाविवरण तक की किताबें, और “भविष्यवक्ताओं की शिक्षाओं” का मतलब है इब्रानी शास्त्र में दर्ज़ भविष्यवाणी की किताबें। यहोवा ने अपने लोगों को इसलिए ‘मूसा का कानून’ और ‘भविष्यवक्ताओं की शिक्षाएँ’ दीं, क्योंकि वह उनसे प्यार करता था और चाहता था कि वे भी एक-दूसरे से प्यार करें। आज भी यहोवा हमसे यह उम्मीद करता है कि हम अपने पड़ोसी से प्यार करें। यशायाह के ज़रिए यहोवा ने कहा: “न्याय का पालन करो, और, धर्म के काम करो . . . क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो ऐसा ही करता” है। (यशा. 56:1, 2) अगर हम अपने पड़ोसी के लिए प्यार दिखाएँ और सुनहरे नियम पर अमल करें, तो हमें आशीष मिलेगी।
8. (क) हमें अपने दुश्मनों से प्यार क्यों करना चाहिए? (ख) अगर हम ऐसा करें, तो इसका क्या नतीजा हो सकता है?
8 अपने दुश्मनों से प्यार कीजिए। यीशु ने कहा: “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘तुझे अपने पड़ोसी से प्यार करना है और अपने दुश्मन से नफरत।’ लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ: अपने दुश्मनों से प्यार करते रहो और जो तुम पर ज़ुल्म कर रहे हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो। इस तरह तुम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के बेटे होने का सबूत दो।” (मत्ती 5:43-45) प्रेषित पौलुस ने इसी से मिलती-जुलती सलाह दी, जब उसने कहा: “अगर तेरा दुश्मन भूखा हो तो उसे खाना खिला। अगर वह प्यासा है तो उसे पानी पिला।” (रोमि. 12:20; नीति. 25:21) पुराने ज़माने के इसराएल में यहोवा ने अपने लोगों को मूसा का कानून दिया था, जिसमें उसने हिदायत दी थी कि उन्हें अपने दुश्मनों की, यहाँ तक कि अपने दुश्मनों के जानवरों की भी मदद करनी चाहिए। (निर्ग. 23:5) इस सलाह को लागू करके, कुछ लोग जो एक वक्त पर एक-दूसरे से नफरत करते थे, शायद अच्छे दोस्त बन गए हों। मसीही होने के नाते, अगर हम अपने दुश्मनों को प्यार दिखाएँ, तो हो सकता है उनका हमारी तरफ रवैया बदल जाए। उनमें से कुछ शायद यहोवा के सेवक भी बन जाएँ।
9. यीशु ने अपने भाई के साथ सुलह करने के बारे में क्या कहा था?
9 “सब लोगों के साथ शांति बनाए रखने में लगे रहो।” (इब्रा. 12:14) अगर हमें सब लोगों के साथ शांति बनाए रखने में लगे रहना है, तो सोचिए हमारे लिए अपने भाइयों के साथ शांति बनाए रखना और भी कितना ज़रूरी है। यीशु ने कहा: “इसलिए, अगर तू मंदिर में वेदी के पास अपनी भेंट ला रहा हो और वहाँ तुझे याद आए कि तेरे भाई को तुझसे कुछ शिकायत है, तो तू अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई के साथ सुलह कर और जब तू लौट आए तब अपनी भेंट चढ़ा।” (मत्ती 5:23, 24) जब कभी किसी भाई के साथ हमारी अनबन हो जाती है, तो हम जल्द-से-जल्द उसके साथ सुलह करने की कोशिश करके उसके लिए प्यार दिखा सकते हैं। जब हम जल्द-से-जल्द सुलह कर लेते हैं, तो इससे यहोवा को बहुत खुशी होगी।
10. हमें दूसरों में नुक्स क्यों नहीं निकालने चाहिए?
10 दूसरों में नुक्स मत निकालिए। यीशु ने कहा, “दोष लगाना बंद करो ताकि तुम पर दोष न लगाया जाए। इसलिए कि जैसे तुम दोष लगाते हो, वैसे ही तुम पर भी दोष लगाया जाएगा। जिस नाप से तुम नापते हो, वे भी उसी नाप से तुम्हारे लिए भी नापेंगे। तो फिर, तू क्यों अपने भाई की आँख में पड़े तिनके को देखता है, मगर अपनी आँख में पड़े लट्ठे के बारे में नहीं सोचता? या तू अपने भाई से यह कैसे कह सकता है, ‘आ मैं तेरी आँख का तिनका निकाल दूँ,’ जबकि देख! तेरी अपनी ही आँख में एक लट्ठा पड़ा है? अरे कपटी! पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब तू साफ-साफ देख सकेगा कि अपने भाई की आँख से तिनका कैसे निकालना है।” (मत्ती 7:1-5) सबक यह है कि हमें दूसरों में नुक्स नहीं निकालने चाहिए, क्योंकि हम खुद कितनी सारी गलतियाँ करते हैं।
प्यार दिखाने का एक खास तरीका
11, 12. अपने पड़ोसी को प्यार दिखाने का एक अहम तरीका क्या है?
11 अपने पड़ोसी के लिए प्यार दिखाने के कई तरीके हैं। मगर यीशु ने हमें सिखाया कि ऐसा करने का सबसे खास तरीका है, राज की खुशखबरी का प्रचार करना। (लूका 8:1) उसने अपने चेलों से कहा: “सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।” (मत्ती 28:19, 20) जब हम यीशु की आज्ञा मानते हैं, तो हम अपने पड़ोसी को विनाश की तरफ ले जानेवाले चौड़े और खुले रास्ते को छोड़कर, जीवन की तरफ ले जानेवाले तंग रास्ते पर चलने में मदद देते हैं। (मत्ती 7:13, 14) हम जानते हैं कि हमारी इस मेहनत से यहोवा को बहुत खुशी मिलती है।
12 यीशु ने बहुत-से लोगों को यह समझने में मदद दी कि उन्हें यहोवा के मार्गदर्शन की ज़रूरत है। (मत्ती 5:3) जब हम लोगों को “परमेश्वर की खुशखबरी” सुनाते हैं, तब हम यीशु की मिसाल पर चल रहे होते हैं। (रोमि. 1:1) हम उन्हें सिखाते हैं कि यीशु के फिरौती बलिदान की बदौलत, उन्हें यहोवा की मंज़ूरी मिल सकती है और वे उसके दोस्त बन सकते हैं। (2 कुरिं. 5:18, 19) खुशखबरी का प्रचार करना, अपने पड़ोसी को प्यार दिखाने का वाकई एक अहम तरीका है।
13. जब आप लोगों को यहोवा के बारे में सिखाते हैं, तो आपको कैसा लगता है?
13 जब हम अपनी वापसी भेंट और बाइबल अध्ययन के लिए अच्छी तैयारी करते हैं, तब हम लोगों को यहोवा की आज्ञा मानना सिखा पाते हैं। कुछ लोगों को शायद अपनी ज़िंदगी में कई बदलाव करने पड़ें। (1 कुरिं. 6:9-11) यह देखकर हमें कितनी खुशी होती है कि कैसे यहोवा ‘हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन रखनेवालों’ को ज़रूरी बदलाव करने और उसके दोस्त बनने में मदद देता है। (प्रेषि. 13:48) जब वे बाइबल का अध्ययन करते हैं, तो जिन लोगों के पास कोई आशा नहीं थी, उन्हें सच्ची खुशी मिलती है। और चिंता में डूबे रहने के बजाय, वे यहोवा पर भरोसा करने लगते हैं। इस खास काम के ज़रिए अपने पड़ोसी को प्यार दिखाना हमारे लिए वाकई एक सम्मान की बात है।
पौलुस ने बताया कि प्यार क्या है और क्या नहीं है
14. पौलुस ने 1 कुरिंथियों 13:4-8 में प्यार के बारे में कैसे समझाया?
14 अगर हम अपने पड़ोसी से वैसे प्यार करें, जैसे पौलुस ने समझाया था, तो हम यहोवा के दिल को खुश करेंगे, हमें कम समस्याएँ होंगी, और हम खुश रहेंगे। (1 कुरिंथियों 13:4-8 पढ़िए।) आइए अब हम चर्चा करें कि पौलुस ने प्यार के बारे में क्या कहा और देखें कि हम उसके शब्दों को अपने पड़ोसी के साथ अपने रिश्ते पर कैसे लागू कर सकते हैं।
15. (क) हमें दूसरों को सब्र और कृपा क्यों दिखानी चाहिए? (ख) हमें जलन या घमंड से दूर क्यों रहना चाहिए?
15 “प्यार सहनशील और कृपा करनेवाला होता है।” हम सभी असिद्ध हैं, इसके बावजूद यहोवा सहनशील है, यानी सब्र से पेश आता है और सभी को कृपा दिखाता है। इसलिए जब दूसरे गलतियाँ करते हैं, तो हमें भी सब्र से पेश आना चाहिए और कृपा दिखानी चाहिए। हमें ऐसा तब भी करना चाहिए जब दूसरे हमें ठेस पहुँचाते हैं या फिर हमारे साथ बेरुखी से पेश आते हैं। बाइबल कहती है कि “प्यार जलन नहीं रखता।” हो सकता है कुछ भाइयों को मंडली में ज़िम्मेदारियाँ मिली हों या उनके पास कुछ ऐसी चीज़ें हों, जो हमारे पास नहीं हैं। पर अगर हम वाकई अपने भाइयों से प्यार करते हैं, तो हम उनसे जलन नहीं रखेंगे। साथ ही, हम डींगें नहीं मारेंगे, न ही घमंड से फूलेंगे। बाइबल हमें बताती है कि यहोवा उनसे नफरत करता है जिनकी “चढ़ी आंखें” और “घमण्डी मन” है।—नीति. 21:4.
16, 17. पहला कुरिंथियों 13:5, 6 में पड़ोसी को प्यार दिखाने के कौन-कौन-से तरीके बताए गए हैं?
16 प्यार “बदतमीज़ी से पेश नहीं आता।” अगर हम अपने पड़ोसी से प्यार करते हैं, तो हम उससे झूठ नहीं बोलेंगे, उसकी कोई चीज़ नहीं चुराएँगे, या ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, जिससे यहोवा का मन दुखी हो। साथ ही, हम स्वार्थी नहीं होंगे, क्योंकि प्यार “सिर्फ अपने फायदे की नहीं सोचता।” हम हमेशा वही करेंगे जिसमें हमारे पड़ोसी की भलाई हो।—फिलि. 2:4.
17 प्यार “भड़क नहीं उठता। यह चोट का हिसाब नहीं रखता।” अगर कोई हमें ठेस पहुँचाता है, तो हम फौरन भड़क नहीं उठते। न ही हम इस बात का हिसाब रखते हैं कि दूसरों ने हमें कितनी बार ठेस पहुँचायी है। (1 थिस्स. 5:15) अगर हम अपने दिल में नाराज़गी पाले रखेंगे, तो हम अपने गुस्से की आग को हवा दे रहे होंगे, जिससे खुद हमें और दूसरों को भी नुकसान पहुँच सकता है। (लैव्य. 19:18) इसके बजाय, हम दूसरों को माफ करेंगे और उनकी गलतियों को भूल जाएँगे। प्यार “बुराई से खुश नहीं होता।” अगर कोई व्यक्ति हमसे नफरत करता है, और उसके साथ कोई नाइंसाफी होती है, तो हम उसे तकलीफ में देखकर खुश नहीं होते।—नीतिवचन 24:17, 18 पढ़िए।
18. हम 1 कुरिंथियों 13:7, 8 से प्यार के बारे में क्या सीखते हैं?
18 पौलुस ने लिखा कि प्यार “सबकुछ बरदाश्त कर लेता है।” अगर कोई हमें चोट पहुँचाता है, लेकिन फिर हमसे माफी माँगता है, तो प्यार हमें उकसाएगा कि हम उसे माफ कर दें। पौलुस ने यह भी कहा कि प्यार “सब बातों पर यकीन करता है।” हम बाइबल से जो पढ़ते हैं, उस पर यकीन करते हैं और शुक्रगुज़ार हैं कि यहोवा का संगठन हमें आध्यात्मिक भोजन मुहैया कराता है। प्यार “सब बातों की आशा रखता है।” हमारे पास भविष्य की आशा है क्योंकि हम उन सभी बातों पर भरोसा रखते हैं, जिनका वादा यहोवा ने हमसे किया है। और क्योंकि हम लोगों से प्यार करते हैं, इसलिए हम उन्हें अपनी आशा के बारे में बताने के लिए अपना भरसक करते हैं। (1 पत. 3:15) जब हम किसी बहुत ही मुश्किल हालात का सामना करते हैं, तो हम प्रार्थना करते हैं और आशा करते हैं कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। पौलुस ने यह भी कहा कि प्यार “सबकुछ धीरज के साथ सह लेता है।” अगर कोई हमारे खिलाफ पाप करता है या हम पर ज़ुल्म ढाता है, तब भी हम उसे धीरज के साथ सह लेते हैं। आखिर में उसने कहा: “प्यार कभी नहीं मिटता।” जो यहोवा की आज्ञा मानते हैं, वे अपने पड़ोसियों को हमेशा-हमेशा तक प्यार दिखाते रहेंगे।
अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करते रहिए जैसे आप खुद से करते हैं
19, 20. कौन-सी आयतें सिखाती हैं कि हमें अपने पड़ोसी को प्यार दिखाते रहना चाहिए?
19 अगर हम बाइबल में दी सलाह के मुताबिक चलें, तो हम हमेशा अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करेंगे, जैसे हम खुद से करते हैं। (मत्ती 22:39) यहोवा और यीशु हमसे यही उम्मीद करते हैं। हमें हमेशा सब लोगों से प्यार करना चाहिए, फिर चाहे वे किसी भी देश या जाति के क्यों न हों। जब भी हमें अपने पड़ोसी के लिए प्यार दिखाना मुश्किल लगता है, तब हम यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं, और उसकी पवित्र शक्ति माँग सकते हैं। हम जानते हैं कि इससे यहोवा को खुशी मिलेगी और वह हमारी मदद भी करेगा।—रोमि. 8:26, 27.
20 अपने पड़ोसी से प्यार करने की आज्ञा इतनी ज़रूरी है कि इसे “शाही नियम” कहा गया है। (याकू. 2:8) मूसा के कानून में यहोवा ने अपने लोगों को ऐसी कई आज्ञाएँ दी थीं, जिनमें उन्हें अपने पड़ोसी से प्यार करना सिखाया गया था। बाद में, यहोवा ने पौलुस को यह लिखने के लिए प्रेरित किया: “इनके अलावा दूसरी जो भी आज्ञा है, उन सबका निचोड़ इस एक बात में पाया जाता है कि ‘तुझे अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है।’”—रोमि. 13:8-10.
21, 22. हमें परमेश्वर और अपने पड़ोसी से प्यार क्यों करना चाहिए?
21 यीशु ने हमें यह समझने में और भी मदद दी कि हमारा पड़ोसी कौन है, जब उसने कहा कि उसका पिता “अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोगों पर अपना सूरज चमकाता है और नेक और दुष्ट दोनों पर बारिश बरसाता है।” (मत्ती 5:43-45) यीशु हमें सिखा रहा था कि हमें सब लोगों को प्यार दिखाना चाहिए, फिर चाहे वे अच्छे हों या बुरे। जैसे पहले ज़िक्र किया गया था, अपने पड़ोसी को प्यार दिखाने का एक अहम तरीका है, उसे यहोवा और उसके राज के बारे में सिखाना। अगर हमारा पड़ोसी बाइबल से सीखी बातों को लागू करता है, तो उसे परमेश्वर का दोस्त बनने की सबसे बड़ी आशीष मिलेगी।
22 हम सीख चुके हैं कि हमें यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार क्यों करना चाहिए। हमने यह भी सीखा कि हम अपने पड़ोसी को प्यार कैसे दिखा सकते हैं। अगर हम यहोवा और अपने पड़ोसी से प्यार करें, तो हम दो सबसे बड़ी आज्ञाओं को मान रहे होंगे। सबसे बढ़कर, हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने प्यारे पिता यहोवा का दिल खुश कर रहे होंगे।