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  • यहोवा की सेवा खुशी से करनेवाले

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  • यहोवा की सेवा खुशी से करनेवाले
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
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  • अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत का एहसास
  • शोक करनेवाले खुश कैसे हो सकते हैं
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
w04 11/1 पेज 8-13

यहोवा की सेवा खुशी से करनेवाले

“खुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं।”—मत्ती 5:3, NW.

1. सच्ची खुशी का मतलब क्या है, और यह क्या दिखाती है?

खुशी, यहोवा के लोगों को वरदान में मिली एक अनमोल विरासत है। इस बारे में भजनहार दाऊद ने कहा: “खुश हैं वे जिनका परमेश्‍वर यहोवा है!” (भजन 144:15, NW) खुशी का मतलब है, मन-ही-मन अच्छा महसूस करना। हमें सच्ची खुशी तब मिलती है जब हमें इस बात का एहसास रहता है कि यहोवा की आशीष हम पर है। (नीतिवचन 10:22) ऐसी खुशी दिखाती है कि स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के साथ हमारा करीबी रिश्‍ता है और हमें एहसास है कि हम उसकी मरज़ी पूरी कर रहे हैं। (भजन 112:1; 119:1, 2) दिलचस्पी की बात है कि यीशु ने खुश रहने की नौ वजहें बतायीं। इस लेख में और अगले लेख में हम इन वजहों पर चर्चा करेंगे जिससे हम समझ पाएँगे कि अगर हम वफादारी से अपने “आनंदित परमेश्‍वर” यहोवा की सेवा करते रहें, तो हमें कितनी खुशी मिलेगी।—1 तीमुथियुस 1:11, NW.

अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत का एहसास

2. यीशु ने किस मौके पर खुशी के बारे में भाषण दिया, और इसकी शुरूआत में उसने क्या कहा?

2 सामान्य युग 31 में यीशु ने एक ऐसा भाषण दिया जो अब तक के सबसे मशहूर भाषणों में से एक है। इसे पहाड़ी उपदेश कहा जाता है क्योंकि यीशु ने यह उपदेश गलील सागर के पास एक पहाड़ पर बैठकर दिया था। मत्ती नाम की सुसमाचार किताब कहती है: “जब [यीशु] ने भीड़ को देखा तो वह पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए; और वह अपना मुंह खोलकर उन्हें यह सिखाने लगा, ‘खुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।’” (मत्ती 5:1-3, NW)a यीशु के इस शुरूआती वाक्य का शाब्दिक अनुवाद यूँ होगा: “आत्मा के मामले में गरीब लोग खुश हैं” या “खुश हैं वे जो आत्मा की भीख माँगते हैं।” (किंगडम इंटरलीनियर; फुटनोट) टुडेज़ इंग्लिश वर्शन कहता है: “खुश हैं वे जो जानते हैं कि वे आध्यात्मिक मायने में गरीब हैं।”

3. नम्र स्वभाव का होने से हमें कैसे खुशी मिलती है?

3 अपने पहाड़ी उपदेश में यीशु ने कहा कि जिस इंसान को एहसास रहता है कि उसे आध्यात्मिक मदद की ज़रूरत है, वह दूसरों के मुकाबले ज़्यादा खुश रहता है। मसीही अच्छी तरह जानते हैं कि वे पापी हैं, और नम्रता की वजह से वे यीशु के छुड़ौती बलिदान की बिना पर यहोवा से माफी की भीख माँगते हैं। (1 यूहन्‍ना 1:9) इसलिए उन्हें मन की शांति और सच्ची खुशी मिलती है। “क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढांपा गया हो।”—भजन 32:1; 119:165.

4. (क) हम किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हमें अपनी और दूसरों की आध्यात्मिक ज़रूरतों का एहसास है? (ख) जब हम अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत रहते हैं, तो किस बात से हमारी खुशी दुगनी हो जाती है?

4 अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत का एहसास होने की वजह से हम रोज़ाना बाइबल पढ़ते हैं, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए “समय पर” मिलनेवाले आध्यात्मिक भोजन का पूरा फायदा उठाते हैं और बिना नागा मसीही सभाओं में हाज़िर होते हैं। (मत्ती 24:45; भजन 1:1, 2; 119:111; इब्रानियों 10:25) पड़ोसी के लिए प्यार हमें दूसरों की आध्यात्मिक ज़रूरतों का एहसास कराता है, इसलिए हमारा मन हमें पूरे जोश के साथ उन्हें राज्य की खुशखबरी सुनाने और इस बारे में सिखाने के लिए उकसाता है। (मरकुस 13:10; रोमियों 1:14-16) दूसरों को बाइबल की सच्चाइयाँ सिखाने से हमें खुशी मिलती है। (प्रेरितों 20:20, 35) जब हम राज्य की शानदार आशा और उसमें मिलनेवाली आशीषों पर मनन करते हैं, तो हमारी खुशी दुगनी हो जाती है। अभिषिक्‍त मसीहियों के “छोटे झुण्ड” के लिए राज्य की आशा का मतलब यह है कि वे स्वर्ग में अमर जीवन पाकर मसीह की सरकार का एक हिस्सा बनेंगे। (लूका 12:32; 1 कुरिन्थियों 15:50, 54) ‘अन्य भेड़ों’ के लिए राज्य की आशा यह है कि वे उसी सरकार के अधीन धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे।—यूहन्‍ना 10:16, NW; भजन 37:11; मत्ती 25:34, 46.

शोक करनेवाले खुश कैसे हो सकते हैं

5. (क) “जो शोक करते हैं,” इसका मतलब क्या है? (ख) ऐसे शोक करनेवालों को कैसे सांत्वना मिलती है?

5 यीशु ने खुशी की जो अगली वजह बतायी, वह शायद हमारे गले न उतरे। उसने कहा: “खुश हैं वे जो शोक करते हैं, क्योंकि उन्हें सांत्वना दी जाएगी।” (मत्ती 5:4) भला यह कैसे हो सकता है कि एक इंसान शोक करे और खुश भी रहे? यीशु के कहने का मतलब समझने के लिए हमें जानना होगा कि वह किस तरह के शोक की बात कर रहा था। शिष्य याकूब ने समझाया कि हमें अपनी पापी हालत की वजह से शोक मनाना चाहिए। उसने लिखा: “हे पापियो, अपने हाथ शुद्ध करो; और हे दुचित्ते लोगो अपने हृदय को पवित्र करो। दुखी होओ, और शोक करो, और रोओ: तुम्हारी हंसी शोक से और तुम्हारा आनन्द उदासी से बदल जाए। प्रभु के साम्हने दीन बनो, तो वह तुम्हें शिरोमणि बनाएगा।” (याकूब 4:8-10) जो लोग अपनी पापी हालत की वजह से सचमुच दुःखी होते हैं, उन्हें यह जानकर सांत्वना मिलती है कि वे पापों की माफी पा सकते हैं, बशर्ते वे यीशु के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास ज़ाहिर करें और यहोवा की इच्छा पूरी करके सच्चा पश्‍चाताप दिखाएँ। (यूहन्‍ना 3:16; 2 कुरिन्थियों 7:9, 10) ऐसा करने से वे यहोवा के साथ एक अनमोल रिश्‍ता कायम कर पाते हैं और हमेशा-हमेशा तक जीने, साथ ही उसकी सेवा और स्तुति करते रहने की आशा पाते हैं। इस वजह से उन्हें दिल की गहराई तक खुशी मिलती है।—रोमियों 4:7, 8.

6. किस मायने में कुछ लोग शोक मनाते हैं, और वे किस तरह सांत्वना पाते हैं?

6 यीशु की बात उन लोगों पर भी लागू होती है जो दुनिया में हो रहे घिनौने कामों को देखकर शोकित हैं। यीशु ने यशायाह 61:1, 2 की इस भविष्यवाणी को खुद पर लागू करते हुए कहा: “प्रभु यहोवा का आत्मा मुझ पर है; क्योंकि यहोवा ने सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया और मुझे इसलिये भेजा है कि खेदित मन के लोगों [और] सब विलाप करनेवालों को शान्ति दूं।” आज धरती पर मौजूद अभिषिक्‍त मसीहियों पर भी यह ज़िम्मेदारी है, और वे अपने साथियों यानी ‘अन्य भेड़ों’ की मदद से इस ज़िम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं। एक तरह से वे सभी ‘उन मनुष्यों के माथों’ पर चिन्ह लगाने का काम कर रहे हैं जो ‘[धर्मत्यागी यरूशलेम, यानी ईसाईजगत] में किए जानेवाले सब घृणित कामों के कारण सांसें भरते और दु:ख के मारे चिल्लाते हैं।’ (यहेजकेल 9:4) जो लोग इस तरह शोक मनाते हैं, उन्हें ‘राज्य का सुसमाचार’ सुनने पर सांत्वना मिलती है। (मत्ती 24:14) उन्हें यह जानकर बड़ी खुशी होती है कि शैतान का यह दुष्ट संसार बहुत जल्द मिटा दिया जाएगा और उसकी जगह यहोवा की धार्मिकता की नयी दुनिया आएगी।

खुश हैं वे जो नर्मदिल हैं

7. “नर्मदिल” होने का क्या मतलब नहीं है?

7 यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में आगे कहा: “खुश हैं वे जो नर्मदिल हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के वारिस होंगे।” (मत्ती 5:5) नर्मदिली को कभी-कभी कमज़ोरी माना जाता है। लेकिन यह कमज़ोरी नहीं है। बाइबल में जिस शब्द का अनुवाद, “नर्मदिल” किया गया है, उसका मतलब एक बाइबल विद्वान ने इस तरह समझाया: “एक [नर्म स्वभाव के] इंसान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपनी भावनाओं पर पूरी तरह काबू रखता है। नर्मदिल होने का मतलब यह नहीं कि उसमें रीढ़ की हड्डी नहीं होती, वह जज़्बाती होता है या चुपचाप सब कुछ देखता रहता है, किसी काम से मतलब नहीं रखता। नर्मदिली कोई कमज़ोरी नहीं बल्कि ताकत है। मगर एक नर्मदिल इंसान खुद को काबू में रखता है।” यीशु ने खुद के बारे में कहा: “मैं नम्र और मन में दीन हूं।” (मत्ती 11:29) पर साथ ही उसमें धर्मी सिद्धांतों के पक्ष में खड़े रहने की हिम्मत भी थी।—मत्ती 21:12, 13; 23:13-33.

8. नर्मदिली का किस गुण के साथ गहरा नाता है, और दूसरों के साथ अच्छा रिश्‍ता बनाए रखने के लिए यह गुण क्यों ज़रूरी है?

8 यह दिखाता है कि नर्मदिली का संयम से गहरा नाता है। प्रेरित पौलुस ने जब ‘आत्मा के फलों’ की सूची दी तो उसमें नम्रता यानी नर्मदिली और संयम का ज़िक्र एक-साथ किया। (गलतियों 5:22, 23) नर्मदिली ऐसा गुण है जिसे पैदा करने के लिए पवित्र आत्मा की मदद बेहद ज़रूरी है। यह ऐसा मसीही गुण है जिसकी वजह से हम बाहरवालों और कलीसिया के लोगों के साथ शांति बनाए रख पाते हैं। पौलुस ने लिखा: “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। . . . एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।”—कुलुस्सियों 3:12, 13.

9. (क) नर्मदिल होने का सिर्फ यह मतलब क्यों नहीं है कि हम दूसरे इंसानों के साथ अच्छा रिश्‍ता कायम रखें? (ख) किस तरह नर्मदिल लोग “पृथ्वी के वारिस बनेंगे”?

9 लेकिन नर्मदिल होने का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम दूसरे इंसानों के साथ अच्छा रिश्‍ता कायम रखें। जब हम तहेदिल से यहोवा की हुकूमत के अधीन रहते हैं, तो हम दिखा रहे होते हैं कि हम नर्मदिल हैं। इस मामले में सबसे उम्दा मिसाल यीशु मसीह की है, जो धरती पर रहते वक्‍त दूसरों के साथ नर्मी से पेश आया और पूरी तरह अपने पिता की इच्छा पर चला। (यूहन्‍ना 5:19, 30) जो नर्मदिल लोग पृथ्वी को विरासत में पाएँगे, उनमें सबसे पहला यीशु है, क्योंकि उसे इसका राजा ठहराया गया है। (भजन 2:6-8; दानिय्येल 7:13, 14) अपनी यह विरासत वह 1,44,000 ‘संगी वारिसों’ के साथ बाँटता है जो “पृथ्वी पर राज्य” करने के लिए “मनुष्यों में से” चुने गए हैं। (रोमियों 8:17; प्रकाशितवाक्य 5:9, 10; 14:1, 3, 4; दानिय्येल 7:27) मसीह और उसके संगी राजा मिलकर, लाखों भेड़ समान लोगों पर हुकूमत करेंगे। इन लोगों पर भजन में दी गयी यह भविष्यवाणी पूरी होगी: “नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।”—भजन 37:11; मत्ती 25:33, 34, 46.

खुश हैं वे जो धार्मिकता के भूखे हैं

10. एक तरीका क्या है जिससे “धार्मिकता के भूखे और प्यासे” लोग संतुष्ट किए जा सकते हैं?

10 यीशु ने गलील की उस पहाड़ी पर उपदेश में खुशी की जो अगली वजह बतायी, वह यह थी: “खुश हैं वे जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे संतुष्ट किए जाएँगे।” (मत्ती 5:6) मसीहियों के लिए धार्मिकता का स्तर यहोवा तय करता है। इसका मतलब यह है कि जो धार्मिकता के भूखे-प्यासे हैं, वे असल में परमेश्‍वर का मार्गदर्शन पाने के लिए बेताब हैं। उन्हें अपने पाप और अपनी असिद्धता का पूरा एहसास रहता है और वे यहोवा की नज़रों में धर्मी ठहराए जाने के लिए तरसते हैं। जब वे परमेश्‍वर के वचन से सीखते हैं कि पश्‍चाताप करने और मसीह के छुड़ौती बलिदान के आधार पर माफी माँगने से वे परमेश्‍वर की नज़रों में धर्मी ठहरेंगे, तो वे कितने खुश होते हैं!—प्रेरितों 2:38; 10:43; 13:38, 39; रोमियों 5:19.

11, 12. (क) अभिषिक्‍त मसीही किस तरह धर्मी ठहराए जाते हैं? (ख) अभिषिक्‍त जनों के साथियों की धार्मिकता की प्यास कैसे बुझायी जाती है?

11 यीशु ने कहा कि ऐसे लोग इसलिए खुश होंगे क्योंकि वे “संतुष्ट किए जाएँगे।” (मत्ती 5:6) मसीह के साथ स्वर्ग में “राज्य” करने के लिए बुलाए गए अभिषिक्‍त मसीहियों को “जीवन के निमित्त धर्मी” ठहराया जाता है। (रोमियों 5:1, 9, 16-18) यहोवा उन्हें आध्यात्मिक बेटों के नाते गोद लेता है। इसलिए वे मसीह के संगी वारिस बन जाते हैं और उसके स्वर्गीय राज्य में राजाओं और याजकों की हैसियत से सेवा करते हैं।—यूहन्‍ना 3:3; 1 पतरस 2:9.

12 अभिषिक्‍त जनों के साथियों को अब तक जीवन के लिए धर्मी करार नहीं दिया गया है। फिर भी यहोवा उन्हें कुछ हद तक धर्मियों में गिनता है क्योंकि वे मसीह के बहाए लहू पर विश्‍वास करते हैं। (याकूब 2:22-25; प्रकाशितवाक्य 7:9, 10) उन्हें यहोवा के दोस्तों के नाते धर्मी समझा जाता है जो आनेवाले “बड़े क्लेश” से ज़िंदा बचेंगे। (प्रकाशितवाक्य 7:14) “नए आकाश” के अधीन धार्मिकता के लिए उनकी प्यास और भी अच्छी तरह बुझेगी, क्योंकि तब वे उस नयी पृथ्वी का एक हिस्सा बन जाएँगे जिसमें “धार्मिकता बास करेगी।”—2 पतरस 3:13; भजन 37:29.

खुश हैं वे जो दयालु हैं

13, 14. किन कारगर तरीकों से हमें दूसरों पर दया दिखानी चाहिए, और इससे हमें क्या फायदा होगा?

13 यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में आगे कहा: “खुश हैं वे जो दयालु हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।” (मत्ती 5:7) कानूनी तौर पर दया का मतलब होता है एक न्यायी का मुजरिम पर रहम खाना और उसे पूरी सज़ा न देकर माफ कर देना। लेकिन बाइबल में जिन मूल शब्दों का अनुवाद “दया” किया गया है, उनका ज़्यादातर मतलब है मुसीबत के मारों पर कृपा दिखाना या उन पर तरस खाकर उन्हें राहत पहुँचाना। यह दिखाता है कि एक दयालु इंसान दूसरों पर करुणा करके उनकी खातिर भले काम करता है। यीशु के दृष्टांत में बताया अच्छा सामरी, एक ऐसे इंसान की बढ़िया मिसाल है जो ज़रूरतमंदों पर ‘तरस खाकर’ उनकी मदद करता है।—लूका 10:29-37.

14 दया दिखाने पर जो खुशी मिलती है उसे महसूस करने के लिए हमें ज़रूरतमंदों की खातिर भले काम करने चाहिए। (गलतियों 6:10) यीशु ने जब लोगों को देखा तो उसके दिल में करुणा जागी। उसने “उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा।” (मरकुस 6:34) यीशु जानता था कि इंसान की सभी ज़रूरतों में से आध्यात्मिक ज़रूरत सबसे बड़ी है। उसी तरह, हम भी अगर लोगों की सबसे खास ज़रूरत पूरी करेंगे, यानी उन्हें ‘राज्य का सुसमाचार’ सुनाएँगे, तो हम करुणा और दया ज़ाहिर कर रहे होंगे। (मत्ती 24:14) इसके अलावा, हम बुज़ुर्ग मसीहियों, विधवाओं और अनाथों की भी मदद कर सकते हैं और “हताश प्राणियों को सांत्वना” दे सकते हैं। (1 थिस्सलुनीकियों 5:14, NW; नीतिवचन 12:25; याकूब 1:27) ऐसा करने से हमें न सिर्फ खुशी मिलेगी, बल्कि हम भी यहोवा की दया पा सकेंगे।—प्रेरितों 20:35; याकूब 2:13.

शुद्ध मन के और शांति कायम करनेवाले

15. किस तरह हम शुद्ध मन के और शांति कायम करनेवाले बन सकते हैं?

15 यीशु ने खुशी की छठी और सातवीं वजह इन शब्दों में बतायी: “खुश हैं वे जो शुद्ध मन के हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर को देखेंगे। खुश हैं वे जो शांति कायम करते हैं, क्योंकि वे ‘परमेश्‍वर के पुत्र’ कहलाएँगे।” (मत्ती 5:8, 9) शुद्ध मन उसे कहते हैं जो न सिर्फ नैतिक मायने में साफ होता है, बल्कि आध्यात्मिक मायने में भी बेदाग रहता और यहोवा की भक्‍ति में एक-चित्त होता है। (1 इतिहास 28:9; भजन 86:11) ‘शांति कायम करनेवालों’ के लिए मूल यूनानी शब्द का शाब्दिक अर्थ है, “शांति बनानेवाले।” शांति कायम करनेवाला एक इंसान अपने मसीही भाइयों के साथ, और जहाँ तक हो सके अपने पड़ोसियों के साथ भी शांति से रहता है। (रोमियों 12:17-21) वह ‘मेल मिलाप को ढूंढ़ता और उसके यत्न में रहता है।’—1 पतरस 3:11.

16, 17. (क) अभिषिक्‍त मसीहियों को “परमेश्‍वर के पुत्र” क्यों कहा गया है, और किस मायने में वे ‘परमेश्‍वर को देखते’ हैं? (ख) ‘अन्य भेड़’ वर्ग के लोग किस तरह ‘परमेश्‍वर को देखते’ हैं? (ग) कब और किस तरह ‘अन्य भेड़’ वर्ग के लोग, हर मायने में “परमेश्‍वर के पुत्र” बनेंगे?

16 जो लोग शुद्ध मन के हैं और शांति कायम करते हैं, उनसे वादा किया गया है कि वे “‘परमेश्‍वर के पुत्र’ कहलाएंगे” और “परमेश्‍वर को देखेंगे।” अभिषिक्‍त मसीही, आत्मा से जन्मे हैं और उनके धरती पर रहते वक्‍त ही यहोवा उन्हें अपने ‘पुत्रों’ के तौर पर गोद ले लेता है। (रोमियों 8:14-17) जब स्वर्ग में मसीह के साथ रहने के लिए उनका पुनरुत्थान होता है, तो वे यहोवा की मौजूदगी में सेवा करते हैं और सचमुच उसे देखते हैं।—1 यूहन्‍ना 3:1, 2; प्रकाशितवाक्य 4:9-11.

17 शांति कायम करनेवाले ‘अन्य भेड़’ (NW) वर्ग के लोग अपने अच्छे चरवाहे यीशु मसीह के अधीन रहकर यहोवा की सेवा करते हैं। यीशु उनका “अनन्तकाल का पिता” बन जाता है। (यूहन्‍ना 10:14, 16; यशायाह 9:6) इनमें से जो लोग मसीह के हज़ार साल के राज्य के बाद आखिरी परीक्षा को पार करेंगे, उन्हें यहोवा अपने इंसानी बेटों के नाते गोद लेगा और वे ‘परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे।’ (रोमियों 8:21; प्रकाशितवाक्य 20:7, 9) आज वे उस दिन की आस लगाते हुए यहोवा को पिता कहकर बुलाते हैं, क्योंकि उन्होंने उसे अपना जीवन-दाता मानकर अपनी ज़िंदगी उसे समर्पित कर दी है। (यशायाह 64:8) पुराने ज़माने के अय्यूब और मूसा की तरह, वे विश्‍वास की आँखों से ‘परमेश्‍वर को देख’ सकते हैं। (अय्यूब 42:5; इब्रानियों 11:27) ‘अपने मन की आंखों’ से और परमेश्‍वर के बारे में सही ज्ञान पाकर, वे यहोवा के मनभावने गुणों को देखते और उसकी मरज़ी पूरी करने के ज़रिए उसके जैसा बनने की कोशिश करते हैं।—इफिसियों 1:18; रोमियों 1:19, 20; 3 यूहन्‍ना 11.

18. यीशु ने खुशी पाने की जो पहली सात वजहें बतायीं, उनके मुताबिक आज कौन सच्ची खुशी पा रहा है?

18 अब तक हमने देखा कि जिन्हें अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों का एहसास रहता है, जो शोक मनाते हैं, नर्मदिल के हैं, धार्मिकता के भूखे-प्यासे और दयालु हैं, शुद्ध मन के और शांति कायम करनेवाले हैं, उन्हें यहोवा की सेवा में सच्ची खुशी मिलती है। लेकिन ऐसे लोगों को शुरू से ही विरोध, और यहाँ तक कि ज़ुल्मों का भी सामना करना पड़ा है। तो क्या इस वजह से उनकी खुशी छिन जाती है? इस सवाल पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी।

[फुटनोट]

a मत्ती 5:3-11 में इस्तेमाल किए गए यूनानी शब्द मेकारी का अनुवाद हिंदी बाइबलों में “धन्य” किया गया है, जबकि न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन बाइबल में इसका अनुवाद “खुश” किया गया है, जो कि सही है। इसलिए इस लेख में और अगले लेख में इन आयतों का हवाला न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन बाइबल से दिया गया है।

दोबारा विचार करने के लिए सवाल

• जिन्हें अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों का एहसास रहता है, उन्हें कैसी खुशी मिलती है?

• शोक करनेवालों को किन तरीकों से सांत्वना मिलती है?

• हम किस तरह दिखा सकते हैं कि हम नर्मदिल के हैं?

• हमें क्यों दयालु, शुद्ध मन के और शांति कायम करनेवाले होना चाहिए?

[पेज 10 पर तसवीर]

“खुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं”

[पेज 10 पर तसवीर]

“खुश हैं वे जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं”

[पेज 10 पर तसवीर]

“खुश हैं वे जो दयालु हैं”

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