‘विश्वासयोग्य दास’ परीक्षा में खरा उतरता है!
“वह समय आ पहुंचा है, कि पहिले परमेश्वर के घर का न्याय किया जाए।”—1 पतरस 4:17, फुटनोट।
1. जब यीशु ने “दास” के काम की जाँच की तो क्या पाया?
सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, यीशु ने अपने “नौकर चाकरों” को समय पर भोजन देने के लिए एक “दास” ठहराया था। सन् 1914 में यीशु को राजा बनाया गया और जल्द ही उस “दास” के काम को जाँचने का वक्त आ गया। यीशु ने अपनी जाँच में पाया कि “दास” के ज़्यादातर सदस्य “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान” थे। इसलिए उसने दास को “अपनी सारी संपत्ति पर सरदार” ठहराया। (मत्ती 24:45-47) लेकिन एक ऐसा दास भी था जो दुष्ट निकला। वह न तो विश्वासयोग्य था, ना ही बुद्धिमान।
“वह दुष्ट दास”
2, 3. “वह दुष्ट दास” कहाँ से निकला और यह सब कैसे हुआ?
2 “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के बारे में समझाने के फौरन बाद, यीशु ने दुष्ट दास के बारे में बताया। उसने कहा: “यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे, कि मेरे स्वामी के आने में देर है। और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खाए पीए। तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उस की बाट न जोहता हो। और ऐसी घड़ी कि वह न जानता हो, और उसे भारी ताड़ना देकर, उसका भाग कपटियों के साथ ठहराएगा: वहां रोना और दांत पीसना होगा।” (मत्ती 24:48-51) शब्द “वह दुष्ट दास” यीशु के पहले के शब्दों की तरफ हमारा ध्यान खींचते हैं जिसमें उसने विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास का ज़िक्र किया था। (तिरछे टाइप हमारे।) जी हाँ, “दुष्ट दास” विश्वासयोग्य दास से ही निकला था।a लेकिन कैसे?
3 सन् 1914 से पहले, विश्वासयोग्य दास वर्ग के बहुत-से सदस्यों ने बड़ी-बड़ी उम्मीदें बाँध रखी थीं। उन्होंने सोचा कि वे उसी साल दूल्हे से स्वर्ग में मिलेंगे, मगर उनकी यह उम्मीद पूरी नहीं हुई। इस वजह से और दूसरी कुछ तबदीलियों के कारण बहुत लोग निराश हो गए और कुछ का मन कड़वाहट से भर गया। इनमें से कुछ ज़बानी तौर पर उन लोगों को “पीटने लगे” जो पहले उनके भाई थे और उन्होंने “पियक्कड़ों” यानी ईसाईजगत के धार्मिक समूहों के संग हाथ मिला लिया।—यशायाह 28:1-3; 32:6.
4. यीशु उस “दुष्ट दास” के साथ कैसे पेश आया और वैसा ही रवैया दिखानेवाले दूसरों के साथ उसने क्या किया?
4 तो सच्चे मसीहियों में से ही कुछ लोग बाद में “दुष्ट दास” साबित हुए और यीशु ने उन्हें “भारी ताड़ना” के साथ दंड दिया। कैसे? उसने उन्हें ठुकरा दिया और उनकी स्वर्गीय आशा उनसे छीन ली। लेकिन उन्हें उसी वक्त नाश नहीं किया गया। पहले उन्हें कुछ वक्त के लिए मसीही कलीसिया के “बाहर अन्धियारे में” डाल दिया गया जहाँ उन्हें रोना और दाँत पीसना पड़ा। (मत्ती 8:12) उन शुरूआती दिनों के बाद से, कुछ और अभिषिक्त मसीहियों ने वैसा ही बुरा रवैया दिखाया और वे भी “दुष्ट दास” साबित हुए। इनके अलावा, ‘अन्य भेड़ों’ में से भी कुछ लोग इनकी देखा-देखी विश्वासघाती बन गए। (यूहन्ना 10:16, NW) मसीह के इन सभी दुश्मनों को दुष्ट दास की तरह “बाहर [आध्यात्मिक] अन्धियारे” में डाल दिया जाता है।
5. “दुष्ट दास” से बिलकुल अलग, विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास ने कैसा नज़रिया दिखाया?
5 फिर भी “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” और “दुष्ट दास” को एक ही तरह की परीक्षाओं से गुज़रना पड़ा था। लेकिन “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के लोग, मन में कड़वाहट पालने के बजाय सिद्ध बनते गए यानी खुद में सुधार करते गए। (2 कुरिन्थियों 13:11) यहोवा और अपने भाइयों के लिए उनका प्यार और भी मज़बूत हुआ। इसीलिए आज के इन खतरनाक “अन्तिम दिनों” में वे “सत्य का खंभा, और नेव” बने हुए हैं।—1 तीमुथियुस 3:15; 2 तीमुथियुस 3:1.
बुद्धिमान और मूर्ख कुंवारियाँ
6. (क) यीशु ने अपने विश्वासयोग्य दास वर्ग की बुद्धिमानी के बारे में कैसे समझाया? (ख) सन् 1914 से पहले, अभिषिक्त मसीहियों ने किस संदेश का ऐलान किया?
6 “दुष्ट दास” के बारे में बताने के बाद यीशु ने दो दृष्टांत देकर समझाया कि क्यों कुछ अभिषिक्त मसीही, विश्वासयोग्य और बुद्धिमान साबित होंगे और कुछ नहीं।b बुद्धिमानी की अहमियत समझाने के लिए यीशु ने कहा: “स्वर्ग के राज्य की तुलना उन दस कुंवारियों से की जाएगी जो अपने दीपक लेकर दूल्हे से मिलने को निकलीं। उनमें से पांच मूर्ख और पांच बुद्धिमान थीं। क्योंकि मूर्खों ने जब दीपक लिए तो उन्होंने अपने साथ तेल नहीं लिया, परन्तु बुद्धिमानों ने अपने दीपकों के साथ कुप्पियों में तेल भी लिया।” (मत्ती 25:1-4, NHT) दस कुंवारियाँ हमें 1914 के पहले के अभिषिक्त मसीहियों की याद दिलाती हैं। उस वक्त उन्होंने हिसाब लगाया था कि दूल्हा, यीशु मसीह आने ही वाला है। इसलिए वे उससे ‘मिलने को निकल’ पड़े, यानी उन्होंने निडरता से यह ऐलान किया कि सन् 1914 में “अन्य जातियों का समय” खत्म हो जाएगा।—लूका 21:24.
7. आध्यात्मिक मायनों में अभिषिक्त मसीही कब और क्यों ‘सो गए’?
7 वे बिलकुल सही थे। सन् 1914 में अन्यजातियों का समय वाकई खत्म हुआ और मसीह यीशु के अधीन परमेश्वर के राज्य ने काम करना शुरू किया। लेकिन यह इंसानों की नज़रों से दूर स्वर्ग में हुआ। उस वक्त धरती पर जीनेवाले इंसानों पर वह “हाय” पड़ने लगी जिसकी भविष्यवाणी की गयी थी। (प्रकाशितवाक्य 12:10, 12) परीक्षाओं का एक दौर शुरू हुआ। इस हालात की सही-सही समझ न होने की वजह से अभिषिक्त मसीहियों ने सोचा कि ‘दूल्हा आने में देर’ कर रहा है। इस दुविधा में पड़ने और दुनिया की दुश्मनी झेलने की वजह से उनमें से ज़्यादातर सुस्त पड़ गए और संगठित तरीके से किया जानेवाला प्रचार काम करीब-करीब ठप्प पड़ गया। दृष्टांत की उन कुंवारियों की तरह वे आध्यात्मिक मायने में ‘ऊंघने लगे और सो गए,’ ठीक जैसे प्रेरितों की मौत के बाद, मसीही होने का दावा करनेवालों ने किया था।—मत्ती 25:5; प्रकाशितवाक्य 11:7, 8; 12:17.
8. “देखो, दूल्हा आ रहा है!” यह पुकार सुनायी पड़ने से पहले क्या हुआ और यह वक्त अभिषिक्त मसीहियों के लिए क्या करने का था?
8 फिर सन् 1919 में ऐसी घटना घटी जिसकी उम्मीद नहीं की गयी थी। हम पढ़ते हैं: “आधी रात को पुकार मची: ‘देखो, दूल्हा आ रहा है! उस से भेंट करने चलो!’ तब वे सब कुंवारियां उठ बैठीं और अपना अपना दीपक ठीक करने लगीं।” (मत्ती 25:6, 7, NHT) जब सबकुछ अंधकारमय लग रहा था, ठीक तभी फुर्ती से काम में जुट जाने की पुकार लगायी गयी! सन् 1918 में, “वाचा का वह दूत” यीशु, यहोवा के आत्मिक मंदिर में आ चुका था ताकि परमेश्वर की कलीसिया की जाँच करके उसे शुद्ध करे। (मलाकी 3:1) अब अभिषिक्त मसीहियों को चाहिए था कि वे धरती पर इस मंदिर के आँगन में उससे भेंट करने के लिए बाहर निकलें। उनके लिए यह “प्रकाशमान” होने का समय था।—यशायाह 60:1; फिलिप्पियों 2:14, 15.
9, 10. सन् 1919 में क्यों कुछ मसीही “बुद्धिमान” थे और कुछ “मूर्ख”?
9 लेकिन ठहरिए! इस दृष्टांत में कुछ कुंवारियों को समस्या थी। यीशु ने आगे बताया: “मूर्खों ने बुद्धिमानों से कहा, ‘हमें भी अपने तेल में से कुछ दो, क्योंकि हमारे दीपक बुझने पर हैं।’” (मत्ती 25:8, NHT) अगर तेल न हो तो दीपक से रोशनी नहीं मिल सकती। दीपक का तेल हमें परमेश्वर के सत्य वचन और उसकी पवित्र आत्मा की याद दिलाता है जिनसे सच्चे उपासकों को ज्योति फैलाने की ताकत मिलती है। (भजन 119:130; दानिय्येल 5:14) सन् 1919 से पहले, कुछ पल के लिए कमज़ोर पड़ जाने के बावजूद, बुद्धिमान अभिषिक्त मसीहियों ने परमेश्वर की मरज़ी जानने के लिए जी-तोड़ मेहनत की। इसलिए जब प्रकाशमान होने की पुकार मची तब वे तैयार थे।—2 तीमुथियुस 4:2; इब्रानियों 10:24, 25.
10 लेकिन कुछ अभिषिक्त मसीही, भले ही दूल्हे के साथ होने की दिली तमन्ना रखते थे, मगर वे किसी भी तरह की कुर्बानी देने या मेहनत करने के लिए तैयार नहीं थे। इसलिए जब राज्य का सुसमाचार सुनाने में दोबारा सरगर्म होने का वक्त आया तब वे तैयार नहीं थे। (मत्ती 24:14) यहाँ तक कि उन्होंने अपने जोशीले साथियों को भी सुस्त करने की कोशिश की। यह ऐसा था मानो वे उनकी कुप्पियों का थोड़ा तेल माँग रहे थे। यीशु के दृष्टांत की बुद्धिमान कुंवारियों ने इसका जवाब कैसे दिया? उन्होंने कहा: “यह हमारे लिए और तुम्हारे लिए पूरा न होगा। अच्छा है कि तुम दुकानदारों के पास जाकर अपने लिए मोल लो।” (मत्ती 25:9, NHT) उसी तरह सन् 1919 में वफादार अभिषिक्त मसीहियों ने ऐसा कोई भी काम करने से इनकार कर दिया जिससे ज्योति फैलाने की उनकी काबिलीयत कमज़ोर पड़ जाती। इसी वजह से वे इस जाँच में पास हो गए।
11. मूर्ख कुंवारियों का क्या हुआ?
11 यीशु ने दृष्टांत के आखिर में कहा: “जब [मूर्ख कुंवारियाँ] मोल लेने को जा रही थीं, तो दूल्हा आ पहुंचा, और जो तैयार थीं, वे उसके साथ ब्याह के घर में चली गईं और द्वार बन्द किया गया। इसके बाद वे दूसरी कुंवारियां भी आकर कहने लगीं, हे स्वामी, हे स्वामी, हमारे लिये द्वार खोल दे। उस ने उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच कहता हूं, मैं तुम्हें नहीं जानता।” (मत्ती 25:10-12) जी हाँ, इनमें से कुछ कुंवारियाँ दूल्हे का स्वागत करने के लिए तैयार नहीं थीं। इसलिए वे जाँच में खरी नहीं उतरीं और उन्होंने स्वर्गीय शादी की दावत में शामिल होने का मौका गँवा दिया। यह कितने दुःख की बात थी!
तोड़ों का दृष्टांत
12. (क) विश्वासयोग्य होने के बारे में यीशु ने कौन-सा दृष्टांत बताया? (ख) “परदेश” जानेवाला मनुष्य कौन था?
12 बुद्धिमानी की ज़रूरत समझाने के बाद यीशु ने विश्वासयोग्य होने के बारे में एक दृष्टांत बताया। उसने कहा: “यह उस मनुष्य की सी दशा है जिस ने परदेश को जाते समय अपने दासों को बुलाकर, अपनी सम्पत्ति उन को सौंप दी। उस ने एक को पांच तोड़, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उस की सामर्थ के अनुसार दिया, और तब परदेश चला गया।” (मत्ती 25:14, 15) इस दृष्टांत में बताया गया मनुष्य खुद यीशु है जो सा.यु. 33 में “परदेश” यानी स्वर्ग गया। लेकिन जाने से पहले वह “अपनी सम्पत्ति” विश्वासयोग्य चेलों के हवाले कर गया। कैसे?
13. यीशु ने काम करने के लिए कैसे एक बड़ा खेत तैयार किया और अपने “दासों” को लेन-देन करने का हुक्म दिया?
13 धरती पर अपनी सेवा के दौरान, यीशु ने पूरे इस्राएल देश में राज्य का सुसमाचार प्रचार करके एक बहुत बड़ा खेत तैयार किया था। (मत्ती 9:35-38) “परदेश” जाने से पहले, उसने अपने विश्वासयोग्य चेलों को इस खेत की ज़िम्मेदारी सौंपते हुए कहा: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” (मत्ती 28:18-20) ऐसा कहकर यीशु ने अपने “दासों” को यह हुक्म दिया कि वे ‘अपनी सामर्थ के अनुसार’ लेन-देन करते रहें।
14. सभी से एक समान लेन-देन करने की उम्मीद क्यों नहीं की गयी?
14 “हर एक को उस की सामर्थ के अनुसार,” ये शब्द दिखाते हैं कि पहली सदी के सभी मसीहियों के एक जैसे हालात या संभावनाएँ नहीं थीं। पौलुस और तीमुथियुस जैसे कुछ लोगों के हालात ऐसे थे कि वे प्रचार करने और चेला बनाने में ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा ले सकते थे। दूसरों के लिए ऐसा करना मुमकिन नहीं था। मिसाल के लिए कुछ मसीही, दास थे, कुछ बीमार और कुछ बूढ़े-बुज़ुर्ग थे और कुछ पर परिवार की ज़िम्मेदारियाँ थीं। और हाँ, कलीसिया में कुछ ज़िम्मेदारियाँ सभी के लिए नहीं थीं। अभिषिक्त स्त्रियों और कुछ अभिषिक्त पुरुषों ने कलीसिया में सिखाने का काम नहीं किया था। (1 कुरिन्थियों 14:34; 1 तीमुथियुस 3:1; याकूब 3:1) फिर भी मसीह के अभिषिक्त चेलों के हालात चाहे जो भी रहे हों, मगर उन सभी स्त्री-पुरुषों को लेन-देन करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी, यानी उन्हें मसीही सेवा में मिले हर मौके और हालात का अच्छा इस्तेमाल करना था। हमारे दिनों में भी मसीह के चेले ऐसा ही करते हैं।
जाँच का समय शुरू होता है!
15, 16. (क) लेखा लेने का समय कब आया? (ख) विश्वासयोग्य दासों को ‘लेन देन करने’ के कौन-से नए मौके दिए गए?
15 दृष्टांत में आगे बताया गया है: “बहुत दिनों के बाद उन दासों का स्वामी आकर उन से लेखा लेने लगा।” (मत्ती 25:19) सन् 1914 में, जो बेशक सा.यु. 33 से काफी लंबा समय था, मसीह यीशु की शाही उपस्थिति शुरू हुई। फिर इसके साढ़े तीन साल बाद, सन् 1918 में उसने परमेश्वर के आत्मिक मंदिर में आकर पतरस की इस भविष्यवाणी को पूरा किया: “वह समय आ पहुंचा है, कि पहिले परमेश्वर के घर का न्याय किया जाए।” (1 पतरस 4:17, फुटनोट; मलाकी 3:1) यह वक्त लेखा लेने का था।
16 दासों ने यानी यीशु के अभिषिक्त भाइयों ने उसके दिए ‘तोड़ों’ का क्या किया था? सा.यु. 33 से लेकर सन् 1914 से पहले के सालों तक, बहुत-से अभिषिक्त जन यीशु के वास्ते “लेन देन” के काम में कड़ी मेहनत कर रहे थे। (मत्ती 25:16) यहाँ तक कि पहले विश्व युद्ध के दौरान भी, उन्होंने स्वामी की सेवा करने की गहरी इच्छा दिखायी थी। इसलिए अब यह बिलकुल उचित था कि इन वफादार दासों को ‘लेन देन करने’ के और भी मौके दिए जाएँ। इस संसार के अंत का समय करीब आ पहुँचा था। पूरे जगत में सुसमाचार का प्रचार किया जाना था। “पृथ्वी की खेती” की कटनी की जानी थी। (प्रकाशितवाक्य 14:6, 7, 14-16) गेहूँ वर्ग के आखिरी सदस्यों को ढूँढ़ना था और अन्य भेड़ों की “बड़ी भीड़” को इकट्ठा करना था।—प्रकाशितवाक्य 7:9; मत्ती 13:24-30.
17. विश्वासयोग्य अभिषिक्त मसीही कैसे “अपने स्वामी के आनन्द में सम्भागी” हुए?
17 कटनी का समय खुशियों भरा होता है। (भजन 126:6) तो फिर यह बिलकुल सही था कि सन् 1919 में जब यीशु ने अपने विश्वासयोग्य अभिषिक्त भाइयों को ज़्यादा ज़िम्मेदारी सौंपी, तब उसने कहा: “तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊंगा अपने स्वामी के आनन्द में सम्भागी हो।” (तिरछे टाइप हमारे; मत्ती 25:21, 23) इसके अलावा, उनके स्वामी ने परमेश्वर के राज्य का नया-नया राजा बनने का जो आनंद पाया है, उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। (भजन 45:1, 2, 6, 7) विश्वासयोग्य दास वर्ग, धरती पर राजा का प्रतिनिधित्व करने और उसकी संपत्ति बढ़ाने के ज़रिए उस आनंद में भागी होता है। (2 कुरिन्थियों 5:20) उनकी खुशी यशायाह 61:10 की भविष्यवाणी में दर्ज़ इन शब्दों से ज़ाहिर होती है: “मैं यहोवा के कारण अति आनन्दित होऊंगा, मेरा प्राण परमेश्वर के कारण मगन रहेगा; क्योंकि उस ने मुझे उद्धार के वस्त्र पहिनाए।”
18. कुछ लोग जाँच में क्यों खरे नहीं उतरे और नतीजा क्या हुआ?
18 लेकिन अफसोस कि इनमें से कुछ लोग जाँच में खरे नहीं उतरे। हम पढ़ते हैं: “तब जिस को एक तोड़ा मिला था, उस ने आकर कहा; हे स्वामी, मैं तुझे जानता था, कि तू कठोर मनुष्य है: तू जहां कहीं नहीं बोता वहां काटता है, और जहां नहीं छींटता वहां से बटोरता है। सो मैं डर गया और जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया; देख, जो तेरा है, वह यह है।” (मत्ती 25:24, 25) इसी तरह, कुछ अभिषिक्त मसीहियों ने “लेन देन” का काम नहीं किया। सन् 1914 से पहले उन्होंने जोश के साथ दूसरों को अपनी आशा नहीं बतायी और सन् 1919 में भी वे यह काम शुरू नहीं करना चाहते थे। यीशु की इस तरह बेइज़्ज़ती करने की उन्हें क्या सज़ा मिली? यीशु ने उनकी सारी खास ज़िम्मेदारियाँ उनसे छीन लीं। उन्हें ‘बाहर के अन्धेरे में डाल दिया गया, जहां उन्हें रोना और दांत पीसना था।’—मत्ती 25:28, 30.
जाँच जारी रहती है
19. किस तरह जाँच चलती रहती है और सभी अभिषिक्त मसीही क्या पक्का इरादा रखते हैं?
19 जी हाँ, जब यीशु ने सन् 1918 में जाँच शुरू की, तब तक बहुत-से लोगों का अभिषिक्त बनना बाकी था। क्या उन्होंने अपनी जाँच किए जाने का मौका गँवा दिया? ऐसी बात नहीं है। सन् 1918/19 में तो जाँच का काम बस शुरू हुआ था, जब विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास ने एक वर्ग के तौर पर यह परीक्षा पार कर ली थी। लेकिन हर अभिषिक्त मसीही की जाँच तब तक चलती रहती है जब तक कि उस पर आखिरी मुहर नहीं लग जाती। (प्रकाशितवाक्य 7:1-3) इसी बात को ध्यान में रखते हुए, मसीह के अभिषिक्त भाइयों ने अटल फैसला कर लिया है कि वे वफादारी से “लेन देन” का काम करते रहेंगे। उन्होंने ठान लिया है कि वे बुद्धिमान बने रहेंगे और अपने पास भरपूर मात्रा में तेल रखेंगे ताकि उनकी रोशनी कभी कम न हो। वे जानते हैं कि जब उनमें से हरेक अपनी मौत तक विश्वासयोग्य बना रहेगा, तो यीशु उसे अपने साथ स्वर्गीय निवास स्थान में ले लेगा।—मत्ती 24:13; यूहन्ना 14:2-4; 1 कुरिन्थियों 15:50, 51.
20. (क) अन्य भेड़ें क्या करने का पक्का इरादा रखती हैं? (ख) अभिषिक्त मसीहियों को किस बात का पूरा एहसास है?
20 अन्य भेड़ों की बड़ी भीड़ अपने अभिषिक्त भाइयों की मिसाल पर चली है। उन्हें एहसास है कि परमेश्वर के उद्देश्यों के बारे में जानने से उन पर भारी ज़िम्मेदारी आती है। (यहेजकेल 3:17-21) इसलिए यहोवा के वचन और पवित्र आत्मा की मदद से, वे अध्ययन करने और भाइयों के साथ संगति करने के ज़रिए अपने पास भरपूर मात्रा में तेल रखते हैं। साथ ही, प्रचार और सिखाने का काम करके वे भी अपनी रोशनी चमकाते हैं। इस तरह वे अपने अभिषिक्त भाइयों के साथ “लेन देन” के कारोबार में हिस्सा लेते हैं। लेकिन, अभिषिक्त मसीहियों को पूरा एहसास है कि तोड़े उनके हाथों में सौंपे गए थे। वे धरती पर प्रभु की संपत्ति की जिस तरीके से देख-रेख करते हैं, इसके लिए उन्हें खुद जवाब देना है। हालाँकि वे गिनती में बहुत थोड़े रह गए हैं, फिर भी वे बड़ी भीड़ को अपनी सारी ज़िम्मेदारियाँ सौंपकर अपने हाथ नहीं झाड़ सकते। इस बात को मन में रखते हुए, विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास राजा के कारोबार की देखभाल करने में अगुवाई करना जारी रखते हैं और बड़ी भीड़ के समर्पित सदस्यों के लिए एहसानमंद हैं कि वे इस काम में उनकी मदद कर रहे हैं। बड़ी भीड़ के लोग अपने अभिषिक्त भाइयों की ज़िम्मेदारियों को बखूबी जानते हैं और उनकी निगरानी में काम करना बड़े सम्मान की बात समझते हैं।
21. सन् 1919 के पहले से लेकर हमारे दिनों में भी कौन-सी सलाह हर मसीही पर लागू होती है?
21 हालाँकि ये दोनों दृष्टांत सन् 1919 में या उसी के आस-पास हुई घटनाओं पर रोशनी डालते हैं, लेकिन इनमें बताए गए सिद्धांत अंतिम दिनों में रहनेवाले हर सच्चे मसीही पर लागू होते हैं। इसलिए यीशु ने दस कुंवारियों के दृष्टांत के अंत में जो सलाह दी, वह भले ही सन् 1919 से पहले के अभिषिक्त मसीहियों के लिए थी, मगर उसके पीछे छिपा सिद्धांत आज भी हर मसीही पर लागू होता है। इसलिए आइए हम सभी यीशु के इन शब्दों पर चलें: “इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को।”—मत्ती 25:13.
[फुटनोट]
a इसी तरह, प्रेरितों की मौत के बाद, “फाड़नेवाले भेड़िए” अभिषिक्त मसीही प्राचीनों में से निकले थे।—प्रेरितों 20:29, 30.
b यीशु के दृष्टांत पर एक और चर्चा के लिए “शांति के शासक” के अधीन विश्वव्यापी शांति (अँग्रेज़ी) किताब के अध्याय 5 और 6 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
क्या आप समझा सकते हैं?
• यीशु ने कब अपने चेलों की जाँच की और उसने क्या पाया?
• कुछ अभिषिक्त मसीहियों में “दुष्ट दास” के जैसा रवैया क्यों पैदा हुआ?
• हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम आध्यात्मिक मायने में बुद्धिमान हैं?
• यीशु के विश्वासयोग्य अभिषिक्त भाइयों की मिसाल पर चलते हुए, किन तरीकों से हम “लेन देन” करना जारी रख सकते हैं?
[पेज 16 पर बक्स]
यीशु कब आता है?
मत्ती के अध्याय 24 और 25 में, अलग-अलग मायनों में यीशु के ‘आने’ का ज़िक्र है। यीशु को ‘आने’ के लिए, शारीरिक रूप से एक जगह से दूसरी जगह जाने की ज़रूरत नहीं है। इसके बजाय, उसके ‘आने’ का मतलब है कि वह सारे जगत पर या अपने चेलों पर ध्यान देता है। वह ज़्यादातर उनका न्याय करने के लिए उन पर ध्यान देता है। सन् 1914 में वह राजा की हैसियत से अपनी उपस्थिति शुरू करने के लिए ‘आया’ था। (मत्ती 16:28; 17:1; प्रेरितों 1:11) सन् 1918 में यीशु वाचा का दूत बनकर ‘आया’ और उसने उन सभी का न्याय किया जो यहोवा की सेवा करने का दावा कर रहे थे। (मलाकी 3:1-3; 1 पतरस 4:17) हरमगिदोन में वह यहोवा के दुश्मनों को दंड देने के लिए ‘आएगा।’—प्रकाशितवाक्य 19:11-16.
मत्ती 24:29-44 और 25:31-46 में कई दफे जिस आने (या, आगमन) की बात की गयी है वह “बड़े क्लेश” के दौरान होगी। (प्रकाशितवाक्य 7:14) दूसरी तरफ, मत्ती 24:45 से 25:30 तक जहाँ यीशु के आने का कई बार ज़िक्र किया गया है उसका मतलब है कि सन् 1918 से वह उन लोगों का न्याय कर रहा है जो उसके चेले होने का दावा करते हैं। यह कहना सही नहीं कि विश्वासयोग्य दास को इनाम देना, मूर्ख कुंवारियों को दंड देना और अपने स्वामी का तोड़ा छिपानेवाले आलसी दास को सज़ा सुनाना, बड़े क्लेश में यीशु के ‘आने’ के वक्त होगा। ऐसा कहने का मतलब होगा कि उस वक्त कई अभिषिक्त मसीही विश्वासघाती साबित होंगे और उनकी जगह दूसरों को दी जाएगी। लेकिन प्रकाशितवाक्य 7:3 दिखाता है कि बड़े क्लेश के समय तक, मसीह के सभी अभिषिक्त दासों पर सदा के लिए “मुहर” लग चुकी होगी।
[पेज 14 पर तसवीर]
सन् 1919 में “दुष्ट दास” को कोई आशीष नहीं मिली
[पेज 15 पर तसवीर]
जब दूल्हा आया तब बुद्धिमान कुंवारियाँ उसके लिए तैयार थीं
[पेज 17 पर तसवीर]
विश्वासयोग्य दास ने “लेन देन” का काम किया है
आलसी दास ने नहीं किया
[पेज 18 पर तसवीर]
अभिषिक्त जन और “बड़ी भीड़” के लोग लगातार अपनी रोशनी चमका रहे हैं