बाइबल का दृष्टिकोण
चर्च-मास के प्रति मसीहियों का क्या दृष्टिकोण होना चाहिए?
कैथोलिक भक्तजन पोप जॉन पॉल II से सहमत हैं, जिसने द न्यू यॉर्क टाइम्स के अनुसार हाल ही में “इस बात को दोहराया कि यदि एक कैथोलिक व्यक्ति चर्च-मास (मिस्सा) के लिए नहीं आता तो चर्च इसे पाप समझता है।” चर्च-मास क्या है? क्या चर्च और बाइबल इस विषय पर एकमत हैं?
कैथोलिकों से जो बातें पूछी जाती हैं (अंग्रेज़ी) पुस्तक में कैथोलिक पादरी मार्टिन जे. स्कॉट चर्च-मास की यह परिभाषा देता है: “चर्च-मास मसीह की देह और लहू का लहूरहित बलिदान है। कलवरी नामक स्थान पर मसीह का लहूसहित बलिदान चढ़ाया गया। चर्च-मास मूलतः वही बलिदान है जो क्रूस पर चढ़ाया गया। यह कोई अलंकार, लाक्षणिक भाषा या बढ़ा-चढ़ाकर कही गयी बात नहीं है।” उसका यह भी कहना है: “यह मान्यता है कि चर्च-मास परमेश्वर के पुत्र को हमारे ऑल्टर पर ले आती है और उसे परमेश्वर के सामने बलि चढ़ाती है।”
क्या चर्च-मास बाइबल अनुसार है?
निष्कपट कैथोलिक मानते हैं कि चर्च-मास बाइबल शिक्षा पर आधारित है। सबूत के तौर पर वे यीशु के उन शब्दों की ओर इशारा करते हैं जो उसने उस दौरान कहे जिसे आम तौर पर अंतिम भोज कहा जाता है। अपने प्रेरितों को रोटी और दाखमधु देते समय यीशु ने रोटी के बारे में कहा: “यह मेरी देह है।” दाखमधु के बारे में उसने कहा: “यह मेरा लहू है।” (मत्ती २६:२६-२८)a कैथोलिकों का मानना है कि जब यीशु ने ये शब्द कहे तो उस समय असल में उसने रोटी और दाखमधु को अपनी देह और लहू में बदल दिया। लेकिन, न्यू कैथोलिक एनसाइक्लोपीडिया (१९६७) सावधान करती है: “हमें ‘यह मेरी देह है’ या ‘यह मेरा लहू है’ को बहुत शाब्दिक अर्थ में नहीं लेना चाहिए। . . . क्योंकि ‘कटनी जगत का अंत है’ (मत्ती १३.३९) या ‘सच्ची दाखलता मैं हूँ’ (यूह १५.१) जैसे वाक्यांशों में [क्रिया “होना”] सिर्फ सूचित या चित्रित करने का अर्थ रखती है।” इसलिए, यह मान्य विश्वकोश भी स्वीकार करता है कि मत्ती २६:२६-२८ के शब्द यह साबित नहीं करते कि अंतिम भोज के समय रोटी और दाखमधु यीशु की असली देह और लहू में बदल गये थे।
शायद आपको याद हो कि यीशु ने एक बार कहा था: “जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी है वह मैं हूँ। . . . जो कोई मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है अनंत जीवन उसी का है।” (यूहन्ना ६:५१, ५४) कुछ लोगों ने यीशु की इन बातों का शाब्दिक अर्थ निकाला और हक्का-बक्का हो गये। (यूहन्ना ६:६०) लेकिन शायद हम यह पूछें, क्या यीशु ने उस अवसर पर सचमुच अपने मांस को रोटी में बदल दिया? निश्चित ही नहीं! वह लाक्षणिक अर्थ में बात कर रहा था। उसने अपनी तुलना रोटी से इसलिए की क्योंकि अपने बलिदान के द्वारा वह मानवजाति को जीवन प्रदान करता। यूहन्ना ६:३५, ४० साफ दिखाता है कि यह खाना और पीना यीशु मसीह में विश्वास रखने के द्वारा चित्रित होता।
क्योंकि चर्च-मास कैथोलिक चर्च का मुख्य अनुष्ठान है, तो व्यक्ति सोच सकता है कि बाइबल इसका समर्थन करती होगी। बाइबल इसका समर्थन नहीं करती। लेकिन द कैथोलिक एनसाइक्लोपीडिया (१९१३ संस्करण) ने इसका कारण बताया: “हमारे धर्म-सिद्धांत का मुख्य स्रोत . . . परंपरा है, जो शुरूआती समय से चर्च-मास के बलिदान का अनुनयपूर्ण [याचना-भरा] महत्त्व स्पष्ट करती है।” जी हाँ, रोमन कैथोलिक चर्च-मास परंपरा पर आधारित है, बाइबल पर नहीं।
एक परंपरा को चाहे कितनी भी निष्कपटता से माना जाता हो, लेकिन यदि वह बाइबल के विरुद्ध है तो वह परमेश्वर को स्वीकार्य नहीं है। यीशु ने अपने समय के धार्मिक अगुवों की निंदा की: “तुमने अपनी परंपरा के द्वारा परमेश्वर का वचन व्यर्थ कर दिया।” (मत्ती १५:६) यीशु ने परमेश्वर के वचन को महत्त्व दिया, इसलिए आइए पवित्र शास्त्र के प्रकाश में चर्च-मास की शिक्षा को जाँचें।
मसीह का बलिदान—कितनी बार?
कैथोलिक चर्च सिखाता है कि जितनी बार चर्च-मास की जाती है उतनी बार यीशु का बलिदान चढ़ाया जाता है। लेकिन चर्च का मानना है कि यीशु असल में नहीं मरता और यह बलिदान लहूरहित होता है। क्या बाइबल इस विचार से सहमत है? इब्रानियों १०:१२, १४ पर ध्यान दीजिए: “[यीशु] ने पापों के बदले एक ही बलिदान चढ़ाया और फिर वह सर्वदा के लिए परमेश्वर के दाहिने हाथ जा बैठा। उसने एक ही चढ़ावे के द्वारा उन सभी को जो पवित्र किये जाते हैं, सर्वदा के लिए सिद्ध कर दिया है।”
लेकिन एक निष्कपट कैथोलिक शायद यह आपत्ति उठाए: ‘क्या यीशु के लिए ज़रूरी नहीं कि अपने आपको बार-बार चढ़ाए? हम सभी बार-बार पाप करते हैं।’ बाइबल का उत्तर इब्रानियों ९:२५, २६ में लिखा है: “[मसीह] के लिए ज़रूरी नहीं कि अपने आपको बार-बार चढ़ाए। . . . अंतिम युग के अंत में वह एक ही बार प्रगट हुआ कि अपने बलिदान के द्वारा पाप को मिटा दे।” इस पर ध्यान दीजिए: मसीह के लिए “ज़रूरी नहीं कि अपने आपको बार-बार चढ़ाए।” रोमियों ५:१९ में प्रेरित पौलुस इसका कारण समझाता है: “जैसा एक मनुष्य [आदम] के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहराए गये, वैसे ही एक मनुष्य [यीशु] के न्याय के काम से बहुत लोग धर्मी ठहराए जाएँगे।” आदम ने अवज्ञा का एक काम करके हम सबको मृत्यु का दास बना दिया; यीशु ने छुटकारा दिलाने का एक काम करके हम सब के लिए जो उस बलिदान में विश्वास करते हैं, इसका आधार रखा कि आज हम अपने पापों की क्षमा माँग सकें और भविष्य में अनंत जीवन का आनंद ले सकें।
चाहे यीशु का बलिदान एक बार चढ़ाया गया चाहे बार-बार चढ़ाया जाए, इससे क्या फर्क पड़ता है? यह कदरदानी की बात है, यीशु के बलिदान के महत्त्व के लिए कदरदानी। उससे बड़ा वरदान कभी नहीं दिया गया—वह इतना अनमोल, इतना सिद्ध वरदान है कि उसे दोहराने की ज़रूरत कभी नहीं होगी।
निश्चित ही यीशु का बलिदान इस योग्य है कि उसे याद किया जाए। लेकिन एक घटना को याद करने और उसे दोहराने में फर्क है। उदाहरण के लिए, शादी की रस्म को असल में दोहराए बिना, दंपति अपनी शादी की सालगिरह मनाकर अपनी शादी का दिन याद कर सकते हैं। हर साल, यहोवा के साक्षी यीशु की मौत की सालगिरह मनाते हैं, और इसे यीशु की आज्ञा के अनुसार मनाते हैं—उसके “स्मरण के लिए,” बलिदान के लिए नहीं। (लूका २२:१९) इसके अलावा, ये मसीही साल के सभी दिन यीशु मसीह के द्वारा यहोवा परमेश्वर के साथ एक स्नेही संबंध बनाने की कोशिश करते हैं। और इसके लिए वे अपने जीवन, अपने कार्यों और अपने विश्वासों को पवित्र शास्त्र के अनुसार ढालते हैं।
अकसर, इसका अर्थ होता है अपने सोच-विचार में बदलाव लाना। लेकिन साक्षी यह ज्ञान पाकर खुश हैं कि यदि वे मानव परंपरा के बजाय वफादारी से परमेश्वर के वचन का पालन करें तो उन्हें आशिष मिलेगी। और यदि वे यीशु के बलिदान-रूपी लहू में विश्वास रखें, जो उसने करीब दो हज़ार साल पहले एक ही बार सर्वदा के लिए बहाया, तो उससे उनके सारे पाप धुल जाएँगे।—१ यूहन्ना १:८, ९.
[फुटनोट]
a इस लेख में सभी शास्त्रीय उद्धरण कैथोलिक न्यू जरूसलॆम बाइबल (अंग्रेज़ी) से हैं।
[पेज 18 पर तसवीर]
सेंट जाइल्स चर्च में मास (एक चित्र)
[चित्र का श्रेय]
Erich Lessing/Art Resource, NY