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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
w99 12/15 पेज 30

क्या आपको याद है?

क्या आपने पिछले महीनों की प्रहरीदुर्ग पत्रिकाओं को ध्यान से पढ़ा है? अगर हाँ, तो इन बातों की याद ताज़ा करना आपको अच्छा लगेगा:

◻ मंगनी करने से पहले एक मसीही लड़का और लड़की खुद से कौन-से सवाल पूछ सकते हैं?

‘क्या मुझे पक्का मालूम है कि मैं जिससे शादी करने की सोच रहा/रही हूँ, वह आध्यात्मिक बातों में कितनी/कितना मज़बूत है और परमेश्‍वर के लिए उसकी भक्‍ति कितनी है? क्या मुझे पक्का यकीन है कि यह व्यक्‍ति यहोवा की सेवा में मुझे ज़िंदगी भर साथ देगी/देगा? क्या हमने एक दूसरे की खूबियों और खामियों को अच्छी तरह जान लिया है? क्या मुझे पक्का विश्‍वास है कि हम हमेशा तक एक दूसरे का साथ निभा पाएँगे? क्या हम एक दूसरे की बीती ज़िंदगी और मौजूदा हालात से अच्छी तरह वाकिफ हैं?’—८/१५, पेज ३१.

◻ जब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि “तुम पृथ्वी के नमक हो” तो उसके कहने का मतलब क्या था? (मत्ती ५:१३)

यीशु के कहने का मतलब था कि जब वे परमेश्‍वर के राज्य के बारे में प्रचार करते तो इससे सुननेवालों की ज़िंदगी नाश होने से बचती। वाकई, जो यीशु की बात मानकर चलते वे समाज की नैतिक और आध्यात्मिक सड़न से बचाए जाते।—८/१५, पेज ३२.

◻ शादी से पहले की मुलाकातों में लड़का-लड़की कौन-से एहतियाती कदम उठा सकते हैं ताकि वे अनैतिक कामों में न फँसें?

अगर आप शादी के बारे में सोच रहे हैं और अपने साथी से मुलाकात करते हैं, तो उसके साथ आप कुछ जगहों में अकेले में मत रहिए। अच्छा होगा अगर आप तब मुलाकात करें जब कुछ और दोस्त भी आपके साथ हों या जहाँ बहुत-से लोग आस-पास हों। अपने प्यार का इज़हार करते समय कुछ बंदिशें रखिए, और ऐसा कुछ मत कीजिए जिससे दूसरे की भावनाओं और उसके विवेक को चोट पहुँचे।—९/१, पेज १७, १८.

◻ समझ का मतलब क्या है?

समझ का मतलब है, किसी मामले का पूरा-पूरा जायज़ा लेकर, उस पर विचार करके उसे अच्छी तरह जान लेना। (नीतिवचन ४:१)—९/१५, पेज १३.

◻ आज यहोवा हमसे क्या माँग करता है?

यहोवा हमसे यही माँग करता है कि हम उसके बेटे की सुनें, उसके आदर्श पर चलें और उसकी शिक्षाओं को मानें। (मत्ती १६:२४; १ पतरस २:२१)—९/१५, पेज २२.

◻ शांति सिर्फ किन लोगों को मिल सकती है?

सच्ची शांति सिर्फ यहोवा परमेश्‍वर ही दे सकता है क्योंकि वही “शान्ति का परमेश्‍वर” है। इसलिए शांति सिर्फ उन्हीं लोगों को मिल सकती है जो यहोवा परमेश्‍वर से प्रेम करते हैं और उसके धर्मी सिद्धांतों को मानते हैं। (रोमियों १५:३३)—१०/१, पेज ११.

◻ यूसुफ ने पोतीपर की पत्नी के साथ कुकर्म करने से बार-बार, हर दिन इनकार करने की हिम्मत कहाँ से पायी?

यूसुफ, यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को बहुत मूल्यवान समझता था और पल भर का बाकी कोई भी सुख उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था। हालाँकि परमेश्‍वर ने अब तक साफ-साफ कोई नियम नहीं दिए थे फिर भी उसे अच्छे-बुरे की सही समझ थी। (उत्पत्ति ३९:९)—१०/१, पेज २९.

◻ अपने भाइयों को माफ करना कितना ज़रूरी है?

अगर हम चाहते हैं कि परमेश्‍वर हमारे पापों को माफ करे तो ज़रूरी है कि पहले हम अपने भाइयों को माफ करें। (मत्ती ६:१२, १४; लूका ११:४)—१०/१५, पेज १७.

◻ मत्ती १८:१५-१७ में किस तरह के पाप का ज़िक्र किया गया है और यह हम कैसे जान सकते हैं?

जिस पाप के बारे में यीशु बता रहा था वह बहुत ही बड़ा रहा होगा। इतना बड़ा कि अपराधी अगर पछतावा न दिखाए तो उसे ‘अन्यजाति का और महसूल लेनेवाला’ कहा जा सकता था। यहूदी, गैर-यहूदियों के साथ मेल-जोल नहीं रखते थे और वे महसूल लेनेवालों से खुद को दूर रखते थे। इसलिए हम कह सकते हैं कि मत्ती १८:१५-१७ में जिन पापों का ज़िक्र किया गया है, वे काफी बड़े रहे होंगे, सिर्फ छोटी-मोटी नाराज़गियाँ नहीं जिन्हें आप माफी देकर भूल सकें। (मत्ती १८:२१, २२)—१०/१५, पेज १९.

◻ परमेश्‍वर के वचन से सच्चा प्यार करने में कौन-सी बात शामिल है?

परमेश्‍वर के वचन से प्यार करने का मतलब है अपनी पूरी ज़िंदगी परमेश्‍वर के वचन की माँगों के मुताबिक गुज़ारना। (भजन ११९:९७, १०१, १०५) और ऐसा करने के लिए एक व्यक्‍ति को लगातार अपने सोच-विचार और जीने के तरीके में फेरबदल करने की ज़रूरत पड़ती है।—११/१, पेज १४.

◻ इस दुनिया के मालिक यहोवा परमेश्‍वर की तरफ से ही सबको सब कुछ मिला है, तो फिर ऐसे दानवीर को दान में भला हम क्या दे सकते हैं?

बाइबल बताती है कि हम यहोवा को एक दान ज़रूर दे सकते हैं और वह अनमोल दान है, “स्तुतिरूपी बलिदान।” (इब्रानियों १३:१५) मगर यही क्यों? क्योंकि इस अंत के समय में यहोवा की सबसे बड़ी चिंता है लोगों की जान बचाना, जो कि आज दाँव पर लगी हुई है और इस अनमोल बलिदान के ज़रिए ही सबकी जान बचाई जा सकती है। (यहेजकेल १८:२३)—११/१, पेज २१.

◻ सुलैमान के इन शब्दों का मतलब क्या है: “बुद्धिमानों के वचन पैनों के समान होते हैं”? (सभोपदेशक १२:११)

जिन लोगों के पास परमेश्‍वर की बुद्धि होती है उनकी बातों को लोग जब पढ़ते या सुनते हैं तो वे उनके दिल को छू जाती हैं कि वे उनकी बुद्धि भरी बातों के मुताबिक काम भी करें।—११/१५, पेज २१.

◻ ईश्‍वरीय समझ का मतलब क्या है?

ईश्‍वरीय समझ ऐसी क्षमता है जो सही और गलत के बीच का फर्क बताती है और फिर सही मार्ग का चुनाव करने में मदद करती है। परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने और उसे अपने जीवन में लागू करने से ही हम ईश्‍वरीय समझ हासिल कर सकेंगे।—११/१५, पेज २५.

◻ ज़िम्मेदारी उठाने की इच्छा के अलावा भी और कौन-सी बात ज़रूरी है? (१ तीमुथियुस ३:१)

ज़िम्मेदारियाँ उठाने से पहले सोच-समझकर फैसला करना ज़रूरी है। एक मसीही को इतनी ज़िम्मेदारियाँ भी नहीं उठानी चाहिए कि यहोवा की सेवा में उसे खुशी ही न मिले। अपनी इच्छा से ज़िम्मेदारी उठाना वाकई काबिल-ए-तारीफ है लेकिन हमें ज़िम्मेदारी उठाते वक्‍त हमेशा नम्रता और ‘विवेक’ से काम लेना चाहिए। (तीतुस २:१२, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; प्रकाशितवाक्य ३:१५, १६)—१२/१, २८.

◻ बच्चों की परवरिश करने की चुनौती का सामना कैसे किया जा सकता है?

परमेश्‍वर माता-पिताओं को यह सलाह देता है कि वे बच्चों के लिए मिसाल बनें, उनके जिगरी दोस्त बनें, उनसे दिल खोलकर बात करें और उन्हें अच्छी शिक्षा दें। (व्यवस्थाविवरण ६:६, ७)—१२/१, पेज ३२.

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