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  • पवित्र आत्मा—परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति
    क्या आपको त्रियेक में विश्‍वास करना चाहिए?
    • मत्ती २८:१९ में “पवित्रात्मा के नाम” का ज़िक्र किया गया है। लेकिन “नाम” शब्द का मतलब हमेशा ही एक वैयक्‍तिक नाम नहीं होता, न यूनानी में और न ही अँग्रेज़ी में। जब हम कहते हैं “क़ानून के नाम में,” तो हम किसी व्यक्‍ति का ज़िक्र नहीं कर रहे। हमारा मतलब है उस से जो क़ानून का प्रतीक है, उसके अधिकार से। रॉबर्टसन का वर्ड पिक्चर्स इन द न्यू टेस्टामेन्ट  कहता है: “यहाँ नाम (ओनोमा) का प्रयोग सेप्टुआजिन्ट और पपाइरस में सत्ता या अधिकार के लिए एक सामान्य प्रयोग है।” तो ‘पवित्र आत्मा के नाम से’ बपतिस्मा आत्मा के अधिकार को मानता है, कि यह परमेश्‍वर की ओर से है और ईश्‍वरीय इच्छा से काम करता है।

  • त्रियेक के “मत-पोषक पाठों” का क्या?
    क्या आपको त्रियेक में विश्‍वास करना चाहिए?
    • न्यू कैथोलिक एन्साइक्लोपीडिया  ऐसे तीन “मत-पोषक पाठ” देती है, पर यह भी क़बूल करती है: “पवित्र त्रियेक का धर्मसिद्धांत पु[राने] नि[यम] में नहीं सिखाया जाता। न[ए] नि[यम] में सबसे पुराना सबूत पौलुस की पत्रियों में है, ख़ास तौर पर २ कुरि. १३.१३ [कुछ बाइबलों में आयत १४], और १ कुरि. १२.४-६। सुसमाचार ग्रंथों में त्रियेक का सबूत स्पष्टतया सिर्फ़ मत्ती २८.१९ के बपतिस्मा के सूत्र में पाया जाता है।”

      उन आयतों में तीन “व्यक्‍ति” द न्यू जेरूसलेम बाइबल  में निम्नलिखित रीति से क्रमबद्ध हैं। द्वितीय कुरिन्थियों १३:१३ (१४) तीनों को इस तरह मिलाता है: “प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और परमेश्‍वर का प्रेम और पवित्र आत्मा की संगति तुम सब के साथ होती रहे।” प्रथम कुरिन्थियों १२:४-६ कहता है: “भेंट तो अनेक हैं, परन्तु आत्मा हमेशा एक ही है; और सेवा करने के भी कई प्रकार हैं, परन्तु प्रभु हमेशा वही है। और प्रभावशाली कार्य कई प्रकार के हैं, परन्तु परमेश्‍वर एक ही है, जो सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्‍न करता है।” और मत्ती २८:१९ में यह लिखा है: “इसलिए, जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; उन्हें पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो।”

      क्या वे आयत कहते हैं कि परमेश्‍वर, मसीह और पवित्र आत्मा एक त्रित्ववादी ईश्‍वरत्व बनते हैं, कि वे तीनों, तत्त्व, शक्‍ति और शाश्‍वतत्व में बराबर के हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं कहते, उसी तरह, जिस तरह तीन व्यक्‍ति, जैसे टॉम, डिक्‌ और हॅरी, को सूचीबद्ध करने का मतलब न होगा कि वे एक में तीन हैं।

      मर्क्लिटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया ऑफ बिब्लिकल, थिओलॉजिकल, ॲन्ड एक्लीज़िॲस्टिकल लिट्‌रेचर  स्वीकार करती है कि इस तरीक़े का हवाला “केवल यही साबित करता है कि नामोद्दिष्ट तीन ही कर्ता (विषय) हैं, . . . लेकिन यह, स्वयं में, साबित नहीं करता कि ज़रूरतन ये तीनों के तीन एक ही दैवी तत्त्व के हैं, और बराबर के दैवी आदर के स्वामी हैं।”

      हालाँकि यह त्रियेक का समर्थक है, वही सूत्र २ कुरिन्थियों १३:१३ (१४) के बारे में कहता है: “हम उचित रूप से इस नतीजे पर नहीं पहुँच सकते कि वे समान अधिकार,  या एक ही तत्त्व के स्वामी थे।” और मत्ती २८:१८-२० के विषय यह कहता है: “परन्तु, अगर इस शास्त्रपद को अकेले लिया जाए, तो यह ज़िक्र किए गए तीन कर्ताओं (विषयों) का न व्यक्‍तित्व, और न ही उनकी बराबरी  या दैवत्व  निश्‍चित रूप से साबित करेगा।”

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