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  • धार्मिकता मौखिक परंपराओं के ज़रिए नहीं
    प्रहरीदुर्ग—1991 | नवंबर 1
    • १२. (अ) अपने पर्वत के उपदेश में यीशु ने इब्रानी शास्त्रों के उल्लेखों को पेश करने में अपने सामान्य तरीक़े से कौनसा परिवर्तन किया, और क्यों? (ब) “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था,” इस अभिव्यक्‍ति के छठे प्रयोग से हम क्या सीखते हैं?

      १२ जब यीशु ने इस से पूर्व इब्रानी शास्त्रों में से उद्धरण किया था, उसने कहा: “लिखा है।” (मत्ती ४:४, ७, १०) लेकिन पर्वत के उपदेश में छः बार, “कहा गया था,” इन शब्दों से उसने ऐसी बातें पेश कीं जो इब्रानी शास्त्रों में से कथन लगते थे। (मत्ती ५:२१, २७, ३१, ३३, ३८, ४३) क्यों? इसलिए कि वह उन शास्त्रपदों का उल्लेख कर रहा था जिनका अर्थ फ़रीसियों की परंपराओं के अनुसार लगाया गया था, और जो परमेश्‍वर के आदेशों के विपरीत थे। (व्यवस्थाविवरण ४:२; मत्ती १५:३) यह इस श्रृंखला में यीशु के छठे और आख़री उल्लेख से ज़ाहिर होता है: “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि ‘अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।’” लेकिन मूसा की व्यवस्था में एक भी नियम ऐसा न था जिस में कहा गया, “अपने बैरी से बैर रखना।” यह शास्त्रियों और फ़रीसियों ने कहा था। वह उनकी अपने पड़ोसी से प्रेम रखने के नियम की व्याख्या थी—अपने यहूदी पड़ोसी से ही प्रेम रखना, और किसी से नहीं।

  • धार्मिकता मौखिक परंपराओं के ज़रिए नहीं
    प्रहरीदुर्ग—1991 | नवंबर 1
    • १४. यीशु हमें व्यभिचार में परिणत होनेवाले रास्ते पर शुरू ही न होने के लिए किस तरह सलाह देता है?

      १४ यीशु ने आगे कहा: “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, कि ‘व्यभिचार न करना।’ परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डालकर उसे देखता रहे जिस से उसके मन में कामवासना पैदा हो, वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।” (मत्ती ५:२७, २८, न्यू.व.) आप व्यभिचार नहीं करनेवाले हैं? तो फिर उस पर विचार करके उस रास्ते पर शुरू ही न हों। अपने मन की रक्षा करें, जो ऐसे विचारों का मूल स्रोत है। (नीतिवचन ४:२३; मत्ती १५:१८, १९) याकूब १:१४, १५ में चेतावनी दी गयी है: “प्रत्येक व्यक्‍ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर, और फँसकर परीक्षा में पड़ता है। फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्‍न करता है।” लोग कभी-कभी कहते हैं: ‘ऐसा कुछ भी शुरू ही न करो जिसे तुम पूरा न कर सको।’ लेकिन इस मामले में हमें कहना चाहिए: ‘ऐसा कुछ भी शुरू ही न करो जिसे तुम रोक न सको।’ कुछ लोग जो फायरिंग स्क्वॉड से मौत के घाट उतार दिए जाने के ख़तरे के सम्मुख भी विश्‍वसनीय रह चुके हैं, बाद में वे यौन-संबंधी अनैतिकता के कपटपूर्ण आकर्षण का शिकार हो गए हैं।

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