यीशु का जीवन और सेवकाई
अपने अनुगामियों के लिए एक उच्च स्तर
धार्मिक अगुआ यीशु को परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघनकर्ता समझते हैं और हाल में उन्होंने उसे मार डालने का षड्यंत्र भी किया है। तो जैसे यीशु अपना पहाड़ी उपदेश आगे बढ़ाता है, वह समझाता है: “यह न समझो कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूँ। लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ।”
यीशु परमेश्वर की व्यवस्था के प्रति अत्यधिक मान रखता है और दूसरों को भी ऐसा करने को प्रोत्साहित करता है। वास्तव में, वह कहता है: “इसलिए, जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सब से छोटा कहलाएगा,” यानी कि ऐसे व्यक्ति को राज्य में बिल्कुल प्रवेश करने न दिया जाता।
परमेश्वर की व्यवस्था की अवहेलना करना तो दूर, यीशु उन अभिवृत्तियों की भी निंदा करता है जो उसे भंग करने में सहायक होती हैं। यह ग़ौर करने के बाद कि व्यवस्था कहती है “हत्या न करना,” यीशु आगे कहता है: “परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई अपने भाई से क्रुद्ध रहेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।”
चूँकि अपने सहयोगी से अति क्रोधित रहना इतना गंभीर मामला है, जिस से शायद हत्या भी परिणत हो, यीशु यह चित्रित करता है, कि किसी व्यक्ति को शांति पाने के लिए किस हद तक जाना चाहिए। वह उपदेश करता है: “इसलिए, यदि तू अपनी [बलिदान संबंधी] भेंट वेदी पर लाए, और वहाँ तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, तो अपनी भेंट वही वेदी के सामने छोड़ दे; और जाकर पहले अपने भाई से मेल-मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।”
दस आज्ञाओं की सातवीं आज्ञा की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए, यीशु आगे कहता है: “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, कि व्यभिचार न करना।” परन्तु, यीशु व्यभिचार की ओर एक सुस्थित अभिवृत्ति की भी निंदा करता है। “मैं तुम से यह कहता हूँ कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डालकर देखता रहे ताकि उस के प्रति कामवेग उत्पन्न हो, तो वह अपने मन में उस से व्सभिचार कर चुका।”
यीशु यहाँ एक क्षणिक अनैतिक विचार के विषय नहीं, पर ‘देखते ही रहने’ के विषय बोल रहा है। ऐसा सतत देखना कामोत्तेजक वासना को जगाता है, जो यदि मौक़ा मिले, व्यभिचार में प्रतिफलित हो सकता है। कोई व्यक्ति ऐसा होना कैसे रोक सकता है? यह चित्रित करके कि कठोर उपाय किस तरह शायद ज़रूरी हों, यीशु कहता है: “यदि तेरी वह दहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर अपने पास से फेंक दे। . . . और, यदि तेरा दहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाए, तो उस को काटकर अपने पास से फेंक दे।”
लोग अक़्सर अपनी जान बचाने के लिए एक वास्तविक हाथ या पैर को त्यागने के लिए तैयार हो जाते हैं। पर यीशु के अनुसार, यह और भी ज़्यादा अत्यावश्यक है कि हम कुछ भी, यहाँ तक कि एक आँख या एक हाथ जैसे अनमोल चीज़ भी, ‘फेंक दें,’ ताकि अनैतिक विचारणा और कार्यकलाप से बच सकें। वरना, यीशु समझाता है कि, ऐसे लोग गेहेना (यरूशलेम के क़रीब कचरे का एक जलता हुआ ढेर) में डाले जाएँगे, जो कि अनंत विनाश का प्रतीक होता है।
हानि और नाराज़गी उत्पन्न करनेवाले लोगों से किस तरह निपटे, इस विषय भी यीशु विचार-विमर्श करता है। उसकी सलाह है, “बुरे (व्यक्ति) का सामना न करना। परन्तु, जो कोई तेरे दहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी ओर दूसरा भी फेर दे।” यीशु का यह मतलब नहीं कि अगर किसी व्यक्ति या उसके परिवार पर हमला हो, तो उसे अपनी और उनकी रक्षा नहीं करनी चाहिए। एक थप्पड़ शारीरिक रूप से चोट पहुँचाने के लिए नहीं, पर उलटे, अपमान करने के लिए दिया जाता है। तो यीशु यह कह रहा है कि अगर कोई, या तो वास्तविक रूप से थप्पड़ मारकर या फिर अपमानजनक शब्दों से जलाकर, झगड़ा या विवाद उकसाने की कोशिश करे, तो प्रतिकार करना ग़लत होगा।
परमेश्वर के अपने पड़ोसी से प्रेम रखने के नियम की ओर ध्यान आकृष्ट करने के बाद, यीशु कहता है: “परन्तु, मैं तुम से यह कहता हूँ: कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना करो।” ऐसा करने के लिए एक प्रभावशाली कारण देते हुए, वह आगे कहता है: “[जिस से] तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है।”
यीशु झिड़की देकर अपने उपदेश का यह हिस्सा समाप्त करता है: “इसलिए चाहिए कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।” यीशु का यह अर्थ नहीं कि लोग परम भावार्थ से सिद्ध हो सकते हैं। बल्कि, परमेश्वर का अनुकरण करके, वे अपने प्रेम को, अपने शत्रुओं को भी समाहित करके, विस्तृत कर सकते हैं। लूका का समांतर विवरण यीशु के शब्दों को लिपिबद्ध करता है: “जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो।” मत्ती ५:१७-४८, न्यू.व.; लूका ६:३६
◆ यीशु ने परमेश्वर की व्यवस्था के लिए अत्यधिक आदर कैसे दिखाया?
◆ हत्या और व्यभिचार के कारणों को मूलोच्छेदित करने के लिए यीशु ने कौनसा उपदेश दिया?
◆ जब यीशु दूसरा गाल फेरने के बारे में बोला, तो उसका क्या अर्थ था?
◆ जैसे परमेश्वर सिद्ध है, वैसे ही हम किस तरह सिद्ध हो सकते हैं?