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  • सुनहरा नियम संसार भर की मशहूर शिक्षा
    प्रहरीदुर्ग—2001 | दिसंबर 1
    • सुनहरा नियम संसार भर की मशहूर शिक्षा

      “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।”—मत्ती 7:12.

      ये शब्द, करीब दो हज़ार साल पहले यीशु मसीह ने अपने मशहूर पहाड़ी उपदेश में कहे थे। तब से लेकर आज तक इन सरल से शब्दों के बारे में काफी कुछ कहा और लिखा गया है। उदाहरण के लिए, इसकी तारीफ में कहा गया है कि “यह पूरे शास्त्र का निचोड़ है,” “अपने पड़ोसियों के प्रति मसीहियों के फर्ज़ का सार है” और “एक बुनियादी नैतिक उसूल है।” ये शब्द इतने जाने-पहचाने हो गए हैं कि इसे अकसर सुनहरा नियम कहा जाता है।

      सुनहरे नियम पर सिर्फ ईसाई लोग ही विश्‍वास नहीं करते। नैतिकता के इस बुनियादी सिद्धांत को यहूदी, बौद्ध और यूनानी धर्म के तत्त्वज्ञानों ने अलग-अलग तरीकों से समझाया है। एशियाई देशों में, जहाँ कनफ्यूशियस को सबसे महान संत और गुरू मानकर उसे आदर दिया जाता है, वहीं बहुत-से लोग उसकी एक बात से अच्छी तरह परिचित हैं। इस बात का कनफ्यूशियस की चार पुस्तकों की तीसरी किताब, दि एनेलॆक्ट्‌स में तीन बार ज़िक्र किया गया है। उसने दो अवसरों पर अपने चेलों के सवालों का जवाब देते हुए कहा: “जो कुछ तुम नहीं चाहते कि तुम्हारे साथ किया जाए, वह तुम दूसरों के साथ मत करो।” तीसरे अवसर पर ज़गॉन्ग नाम के उसके एक चेले ने यह शेखी मारी: “जो कुछ मैं नहीं चाहता कि मेरे साथ किया जाए, वही मैं दूसरों के साथ नहीं करना चाहता।” तब कनफ्यूशियस ने बड़ी गंभीरता से कहा: “हाँ, लेकिन ऐसा करने में अब तक तुम कामयाब नहीं हुए हो।”

      कनफ्यूशियस के इन शब्दों से हम समझ सकते हैं कि उसने जो बात कही, बाद में यीशु ने उसी बात को एक अलग तरीके से समझाया। उन दोनों के कथन में यह फर्क साफ नज़र आता है कि यीशु ने सुनहरे नियम में दूसरों की भलाई के लिए अच्छे काम करने की बात कही। अगर दुनिया के सभी लोग, यीशु की इस बात को लागू करके दूसरों की परवाह करेंगे, उनकी मदद करने के लिए कदम उठाएँगे, और इसी नियम को अपनी ज़िंदगी का उसूल बनाकर जीएँगे तो क्या यह दुनिया एक बेहतरीन जगह नहीं बनेगी? बेशक।

      सुनहरे नियम को चाहे अच्छे कामों को बढ़ावा देने या फिर गलत कामों की मनाही करने या फिर किसी और बात के लिए समझाया गया हो, इसकी खासियत यह है कि इस नियम पर अलग-अलग जगह और युग के लोगों की आस्था रही है, फिर चाहे उनकी परवरिश कैसे भी माहौल में क्यों न की गयी हो। इससे साफ ज़ाहिर है कि यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में जो बताया, वह संसार भर की मशहूर शिक्षा बन गयी है, जिसका असर युग-युग से लोगों की ज़िंदगी पर होता आया है।

      अब आप खुद से पूछिए: ‘क्या मैं चाहता हूँ कि दूसरे मेरे साथ आदर से पेश आएँ, पक्षपात और बेइमानी न करें? क्या मैं ऐसी दुनिया में रहना चाहूँगा जहाँ जाति-भेद, अपराध और युद्ध न हो? क्या मैं चाहता हूँ कि मेरे परिवार में सभी एक-दूसरे की भावनाओं की कदर करें और उनकी भलाई चाहें?’ सच पूछो तो कौन ऐसा नहीं चाहेगा? लेकिन यह एक कड़वा सच है कि आज बहुत कम लोग ऐसा अनुभव कर पाते हैं। ज़्यादातर लोग तो इसके बारे में ख्वाब में भी नहीं सोच सकते।

      सुनहरे नियम का फीका पड़ना

      पूरे इतिहास में इंसानियत के खिलाफ ऐसे अपराध किए गए जिनमें लोगों के अधिकार पूरी तरह छीन लिए गए थे। जैसे अफ्रीका में गुलाम व्यापार, नात्ज़ी मृत्यु शिविर, बाल-श्रम और कई जगहों पर जनसंहार। ऐसे भयानक हादसों की सूची बहुत लंबी होगी।

      आज, दुनिया में जहाँ हर काम मशीनों और नए-नए यंत्रों से किया जाता है, वहीं लोग सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं। ऐसे बहुत कम लोग मिलेंगे जो अपना सुख-चैन त्यागकर या अपने अधिकारों को दाँव पर लगाकर दूसरों की मदद करने को तैयार हों। (2 तीमुथियुस 3:1-5) लेकिन ज़्यादातर लोग क्यों इतने स्वार्थी, क्रूर, बेरुखे और मतलबी हो गए हैं? क्या इसकी वजह यह नहीं कि लोग, सुनहरे नियम को एक पुराना नैतिक उसूल मानकर इसे ताक पर रख देते हैं? और सोचते कि इस पर चलना नामुमकिन है जबकि यह नियम आज भी मशहूर है। अफसोस कि परमेश्‍वर को मानने का दावा करनेवाले भी ऐसा ही रवैया दिखा रहे हैं। और दुनिया का रुख देखकर ऐसा लगता है कि आगे चलकर लोग और भी मतलबी हो जाएँगे।

      इसलिए, अब हमारे सामने कुछ ऐसे अहम सवाल खड़े होते हैं, जिन पर हमें विचार करना होगा: सुनहरे नियम के मुताबिक जीने का मतलब क्या है? क्या आज भी इस नियम को माननेवाले हैं? और क्या कभी ऐसा समय आएगा जब दुनिया का हर इंसान, सुनहरे नियम के मुताबिक जीएगा? इन सवालों के सही-सही जवाब पाने के लिए कृपया अगला लेख पढ़िए।

      [पेज 3 पर तसवीर]

      कनफ्यूशियस और दूसरों ने सुनहरे नियम को अलग-अलग तरीकों से सिखाया

  • सुनहरा नियम इस पर चलना ज़रूर मुमकिन है
    प्रहरीदुर्ग—2001 | दिसंबर 1
    • सुनहरा नियम इस पर चलना ज़रूर मुमकिन है

      बहुत-से लोग मानते हैं कि सुनहरे नियम की नैतिक शिक्षा यीशु ने दी, मगर यीशु ने खुद कहा: “जो शिक्षा मैं देता हूं, वह मेरी ओर से नहीं, वरन्‌ मेरे भेजनेवाले की है।”—यूहन्‍ना 7:16, नयी हिन्दी बाइबिल।

      जी हाँ, यीशु की सिखायी हर बात, यहाँ तक कि सुनहरा नियम भी, सिरजनहार, यहोवा परमेश्‍वर की शिक्षा है जिसने यीशु को इस धरती पर भेजा था।

      शुरू में परमेश्‍वर का यह मकसद था कि सभी इंसान एक-दूसरे के साथ वैसा ही व्यवहार करें, जैसा वे खुद दूसरों से चाहते हैं। उसने इंसानों की जिस तरह सृष्टि की, उससे ज़ाहिर होता है कि दूसरों की भलाई करने में उसने सबसे बेहतरीन मिसाल कायम की: “परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्पन्‍न किया, नर और नारी करके उस ने मनुष्यों की सृष्टि की।” (उत्पत्ति 1:27) इसका मतलब है कि परमेश्‍वर इंसानों से प्यार करता है और उसने कुछ हद तक उन्हें अपने खास गुण दिए ताकि वे हमेशा के लिए एक-साथ मिलकर शांति और खुशी से ज़िंदगी बसर कर सकें। परमेश्‍वर ने उन्हें एक विवेक भी दिया, जिसे अगर सही तालीम दी जाए तो वे उसके मार्गदर्शन पर चलकर दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार कर सकते हैं जैसा वे खुद उनसे चाहते हैं।

      स्वार्थ की भावना हावी हो गयी

      जब इंसानों की इतनी बढ़िया शुरूआत हुई थी, तो फिर गड़बड़ी कहाँ पैदा हुई? साफ-साफ शब्दों में कहें तो इंसानों में स्वार्थ की भावना हावी हो गयी। हममें से ज़्यादातर लोग जानते हैं कि पहले मानव जोड़े ने क्या किया जो बाइबल की उत्पत्ति की किताब के तीसरे अध्याय में दर्ज़ है। परमेश्‍वर के धर्मी स्तरों के विरोधी, शैतान के बहकावे में आकर आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर की हुकूमत को ठुकरा दिया। वे आज़ाद होकर अपने फैसले खुद करना चाहते थे। इस तरह अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए जब वे परमेश्‍वर के खिलाफ गए तो इससे न सिर्फ उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा बल्कि उनकी होनेवाली संतानों को भी भयानक अंजाम भुगतने पड़े। यह दिखाता है कि जो शिक्षा बाद में सुनहरा नियम कहलायी, उसे न मानने का क्या ही भयंकार नतीजा होता है। इस तरह “एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।”—रोमियों 5:12.

      यहोवा ने इंसान के भले के लिए जो रास्ता दिखाया उसे हालाँकि ज़्यादातर लोगों ने ठुकरा दिया, फिर भी परमेश्‍वर ने उन्हें नहीं त्यागा। उदाहरण के लिए, यहोवा ने इस्राएल जाति को सही राह दिखाने के लिए अपनी व्यवस्था दी। इस व्यवस्था ने उन्हें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना सिखाया जैसा वे दूसरों से चाहते थे। व्यवस्था में बताया गया था कि उन्हें दासों, अनाथों और विधवाओं के साथ कैसे पेश आना है। इसमें समझाया गया कि हमले, अपहरण और चोरी जैसे मामलों को कैसे निपटाया जाना चाहिए। स्वच्छता के बारे में ऐसे कायदे-कानून दिए गए जिनको मानकर वे दूसरों के स्वास्थ्य की परवाह दिखाते। यहाँ तक कि लैंगिक संबंधों के बारे में भी नियम दिए गए थे। यहोवा ने अपनी व्यवस्था के सभी नियमों का सार इन शब्दों में दिया: “एक दूसरे से अपने ही समान प्रेम रखना।” बाद में यीशु ने भी इसी बात का हवाला दिया था। (लैव्यव्यवस्था 19:18; मत्ती 22:39,40) व्यवस्था में इस्राएलियों को यह भी बताया गया कि उन्हें अपने बीच रहनेवाले परदेशियों के साथ कैसा सलूक करना है। व्यवस्था में यह आज्ञा दी गयी थी: “परदेशी पर अन्धेर न करना; तुम तो परदेशी के मन की बातें जानते हो, क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे।” दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इस्राएलियों को दीन-दुखियों के साथ प्यार और हमदर्दी से पेश आना था।—निर्गमन 23:9; लैव्यव्यवस्था 19:34; व्यवस्थाविवरण 10:19.

      जब तक इस्राएल जाति, व्यवस्था का पालन करती रही तब तक उस जाति पर यहोवा की आशीष बनी रही। दाऊद और सुलैमान के शासनकाल में यह जाति काफी समृद्ध हो गयी, साथ ही लोगों की ज़िंदगी खुशी और संतोष भरी थी। एक ऐतिहासिक वृत्तांत बताता है: “यहूदा और इस्राएल के लोग बहुत थे, वे समुद्र के तीर पर की बालू के किनकों के समान बहुत थे, और खाते-पीते और आनन्द करते रहे। . . . सब यहूदी और इस्राएली अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले . . . निडर रहते थे।”—1 राजा 4:20,25.

      मगर अफसोस, इस्राएल जाति की शांति और सुरक्षा ज़्यादा दिन तक कायम नहीं रही। हालाँकि इस्राएलियों के पास परमेश्‍वर की व्यवस्था थी, मगर उन्होंने उस पर चलना छोड़ दिया; स्वार्थ ने उन्हें इस कदर गुमराह कर दिया कि उन्होंने दूसरों की परवाह तक करनी छोड़ दी। और-तो-और वे धर्मत्यागी बन गए जिससे हर इस्राएली और पूरी जाति पर कहर टूट पड़ा। आखिरकार, यहोवा ने उन्हें बाबुलियों के हवाले कर दिया। सा.यु.पू. 607 में बाबुल आकर यहूदा के राज्य, उसके नगर यरूशलेम, यहाँ तक कि वहाँ के शानदार मंदिर को भी खाक में मिला दिया। ऐसा क्यों हुआ? “तुम ने जो मेरे वचन नहीं माने, इसलिये सुनो, मैं उत्तर में रहनेवाले सब कुलों को बुलाऊंगा, और अपने दास बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर को बुलवा भेजूंगा; और उन सभों को इस देश और इसके निवासियों के विरुद्ध और इसके आस पास की सब जातियों के विरुद्ध भी ले आऊंगा; और इन सब देशों का मैं सत्यानाश करके उन्हें ऐसा उजाड़ दूंगा कि लोग इन्हें देखकर ताली बजाएंगे; वरन ये सदा उजड़े ही रहेंगे, यहोवा की यही वाणी है।” (यिर्मयाह 25:8,9) यहोवा की शुद्ध उपासना से मुँह मोड़ने का उन्हें कितना बुरा सिला मिला!

      ऐसी मिसाल जिस पर हमें चलना चाहिए

      मगर, यीशु मसीह उन इस्राएलियों से एकदम अलग था। उसने सुनहरे नियम के बारे में न सिर्फ लोगों को सिखाया बल्कि उसके मुताबिक चलने में सबसे बेहतरीन मिसाल भी कायम की। उसे सचमुच दूसरों की परवाह थी। (मत्ती 9:36; 14:14; लूका 5:12,13) एक बार, नाईन नगर के पास यीशु ने एक दुखियारी विधवा को देखा जो अपने इकलौते बेटे की शवयात्रा में जा रही थी। बाइबल कहती है: “जब प्रभु ने उसे देखा तो उसे उस पर बहुत दया आयी।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) (लूका 7:11-15) वाइन्स्‌ एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ ओल्ड एण्ड न्यू टेस्टामेंट वड्‌र्स्‌ के मुताबिक “बहुत दया आयी” का मतलब है “दिल की गहराइयों से प्रेरित होना।” यीशु ने उस विधवा के दिल के दर्द को महसूस किया, इसलिए उसका दर्द दूर करने के लिए उसने कदम उठाया। जब यीशु ने मरे हुए लड़के को दुबारा ज़िंदा करके “उसे उस की मां को सौंप दिया” तो माँ को कितनी खुशी हुई!

      आखिर में यीशु ने परमेश्‍वर का मकसद पूरा करते हुए हँसकर दुःख सहा और अपना जीवन छुड़ौती के तौर पर दे दिया ताकि इंसानों को पाप और मौत के दासत्व से छुड़ाया जा सके। इस तरह यीशु ने सुनहरे नियम के मुताबिक जीने की सबसे उत्तम मिसाल रखी।—मत्ती 20:28; यूहन्‍ना 15:13; इब्रानियों 4:15.

      वे लोग जो सुनहरे नियम पर चलते हैं

      क्या हमारे समय में ऐसे लोग हैं जो सचमुच सुनहरे नियम के मुताबिक जीते हों? बेशक, और वे सिर्फ उस वक्‍त इस नियम को नहीं मानते हैं जब उनके लिए ऐसा करना आसान होता है। उदाहरण के लिए, दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान जब जर्मनी में नात्ज़ी सरकार की हुकूमत थी, तब यहोवा के साक्षियों ने परमेश्‍वर पर अपना विश्‍वास और पड़ोसियों के लिए अपना प्यार बरकरार रखा, साथ ही उन्होंने सुनहरे नियम के खिलाफ जाने से साफ इंकार कर दिया। नात्ज़ी सरकार ने सभी यहूदियों के विरोध में भेद-भाव और नफरत की आग भड़कायी मगर साक्षी इस नियम पर चलने से पीछे नहीं हटे। यहाँ तक कि यातना शिविरों में भी उन्होंने दूसरों के लिए परवाह दिखायी। हालाँकि खुद उनके पास खाने के लिए बहुत कम होता था, मगर फिर भी वे भूख से तड़प रहे दूसरे लोगों के साथ मिल-बाँटकर खाते थे, फिर चाहे वे यहूदी हों या गैर-यहूदी। इतना ही नहीं, जब सरकार ने उन्हें दूसरों का कत्ल करने के लिए हथियार उठाने को कहा तो उन्होंने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया, ठीक वैसे ही जैसे वे खुद दूसरों के हाथों नहीं मारे जाना चाहते थे। आखिर, वे उन लोगों की हत्या कैसे कर सकते थे, जिनसे उन्हें अपने समान प्रेम करने की आज्ञा दी गयी थी? हथियार उठाने से इंकार करने की वजह से बहुतों को न सिर्फ यातना शिविरों में भेजा गया बल्कि उन्हें मार डाला गया।—मत्ती 5:43-48.

      सुनहरे नियम को एक दूसरे तरीके से भी लागू किया जा रहा है जिसका फायदा आप इस लेख को पढ़ने के ज़रिए पा रहे हैं। यहोवा के साक्षी अच्छी तरह जानते हैं कि आज ज़्यादातर लोग दुःख-तकलीफों के सागर में डूबते जा रहें हैं और उनकी नैया पार लगानेवाला कोई नज़र नहीं आता। इसलिए, यहोवा के साक्षी खुद आगे बढ़कर बाइबल में दी गयी आशा और कारगर निर्देशों के बारे में दूसरों को सीखने में मदद दे रहे हैं। यह दरअसल एक शिक्षा के काम का हिस्सा है जो आज संसार-भर में बड़े पैमाने पर चल रहा है। इसका नतीजा क्या हुआ है? जैसा कि यशायाह 2:2-4 में भविष्यवाणी की गयी थी ‘बहुत देशों के लोगों’ को ‘यहोवा के मार्ग सिखाए जाएँगे और वे उसके पथों पर चलेंगे।’ आज उन लोगों की गिनती साठ लाख से ज़्यादा हो गयी है। आध्यात्मिक अर्थ में उन्होंने “अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया” बनाना सीख लिया है। इन कठिन समयों में भी उन्होंने शांति और सुरक्षा पा ली है।

      आपके बारे में क्या?

      ज़रा इस बात पर गौर कीजिए कि अदन के बगीचे में शैतान ने जब बगावत की आग भड़कायी तब से सुनहरे नियम के खिलाफ जाने पर इंसानों को कितनी पीड़ा और दुःख सहना पड़ा है। मगर यहोवा ने बहुत जल्द हालात को बदलने की ठान ली है। वह यह कैसे करेगा? बाइबल कहती है: “परमेश्‍वर का पुत्र इसलिये प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे।” (1 यूहन्‍ना 3:8) यह काम परमेश्‍वर के राज्य में यीशु मसीह करेगा जिसके पास बुद्धि और सामर्थ है और जिसने सुनहरे नियम के बारे में सिखाया और उस पर अमल भी किया।—भजन 37:9-11; दानिय्येल 2:44.

      प्राचीन इस्राएल के राजा दाऊद ने कहा: “मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है। वह तो दिन भर अनुग्रह कर करके ऋण [“उदार होकर उधार देता है,” NHT] देता है, और उसके वंश पर आशीष फलती रहती है।” (भजन 37:25,26) क्या आप इस बात से सहमत नहीं होंगे कि आज आम तौर पर लोग ‘उदार होकर उधार देने’ के बजाय सिर्फ छीना-झपटी और बेईमानी से कुछ भी हड़पने की फिराक में रहते हैं? यह बात बिलकुल साफ है कि जो लोग सुनहरे नियम पर चलते हैं उन्हें सच्ची शांति और सुरक्षा मिल सकती है क्योंकि आज वे आशीषों का आनंद उठाते हैं और भविष्य में परमेश्‍वर के राज्य में भी उन्हें आशीषें मिलेंगी। परमेश्‍वर का राज्य धरती पर से स्वार्थ और दुष्टता का नामो-निशान मिटा देगा और आज की भ्रष्ट सरकारों की जगह परमेश्‍वर की बनायी एक नयी व्यवस्था लाएगा। तब सभी लोग सुनहरे नियम के मुताबिक चलकर ज़िंदगी का लुत्फ उठाएँगे।—भजन 29:11; 2 पतरस 3:13.

      [पेज 4, 5 पर तसवीर]

      यीशु ने न सिर्फ सुनहरा नियम सिखाया बल्कि उसके मुताबिक चलने में सबसे बेहतरीन मिसाल भी रखी

      [पेज 7 पर तसवीरें]

      सुनहरे नियम पर चलने से हमें सच्ची शांति और सुरक्षा मिलेगी

हिंदी साहित्य (1972-2025)
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