सुनहरा नियम यह क्या है?
“देखिए, मैं अपने पड़ोसियों को तंग नहीं करता, जहाँ तक मेरा सवाल है, वे जो चाहे कर सकते हैं। पर हाँ, अगर वे कुछ कठिनाई में होते, तो उनकी मदद करने के लिए मेरे बस में जो होता, वह करता।” क्या ये आप के विचार हैं? जब कोई विपत्ति टूट पड़ती है, तब शायद दयालुता और निस्स्वार्थ के बहुत सारे कार्य किए जाएँगे, जिससे अनेक लोग आश्चर्यचकित होंगे। पर क्या यह काफ़ी है?
अगर आप एक माता या पिता हैं, तब आप ने बेशक अपने बच्चों को चेतावनी दी होगी, कि वे अपने साथियों को गुस्सा दिलाने से बचे रहें। हम में से अनेक लोग अपनी जवानी में मिले घावों के निशान अब भी लिए घूमते होंगे, जो कि दिखाते हैं कि उस आदेश की आनाकानी करना अपने पर प्रत्याक्रमण ले आता है। जी हाँ, हम ने उस कहावत की बुद्धिमत्ता सीखी है, जिसको पूर्वी दार्शनिक कॉन्फ्यूशियस ने निश्चित रूप दिया: “जो कुछ आप नहीं चाहते कि आप के साथ किया जाए, वह आप दूसरों के साथ न करें।” यद्यपि, क्या आप को अनुभूति है कि यह उस बात का बस एक निम्न, नकारात्मक रूप है, जो सुनहरे नियम के नाम से प्रसिद्ध है?
एक सकारात्मक नियम
वेब्स्टर्स न्यू कॉल्लीजिएट डिक्शनरी के अनुसार, “सुनहरे नियम” की परिभाषा इस प्रकार की गयी है कि यह “नीतिपरक आचरण का एक नियम है, जिसका ज़िक्र [मत्ती] ७:१२ और [लूका] ६:३१ में किया गया है, और जिस में बताया गया है कि किसी व्यक्ति को दूसरों के साथ उस तरह करना चाहिए जैसे वह चाहेगा कि वे उसके साथ करें।” इस पृष्ठ के निचले भाग में दिए बॉक्स को देखिए और ग़ौर कीजिए कि किस तरह मत्ती अध्याय ७, आयत १२, के विविध बाइबल अनुवाद इस मार्गदर्शक सिद्धान्त की प्रतिभा को चमकने देते हैं।
कृपया ग़ौर करें कि हालाँकि हर अनुवाद के शब्द अलग हैं, वह नियम सकारात्मक है। आख़िर, जैसा कि यीशु ने पहले ही अपने पहाड़ के उपदेश में तर्क किया था: “माँगते रहो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ते रहो, तो तुम पाओगे; खटखटाते रहो, तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है, और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है, और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा।” (मत्ती ७:७, ८, न्यू.व.) माँगना, ढूँढ़ना और खटखटाना, सभी सकारात्मक कार्य हैं। यीशु ने आगे कहा, “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।”—मत्ती ७:१२.
बाइबल दिखाती है कि यीशु के शिष्य भी इसी सिद्धान्त के अनुरूप जीने का समर्थन करते थे। (रोमियों १५:२; १ पतरस ३:११; ३ यूहन्ना ११) फिर भी, दुःख कि बात है कि मानवीय रिश्तों की मौजूदा स्थिति साक्ष्यांकित करती है कि लोग, चाहे वे नाम-मात्र के मसीही हों या नहीं, ज़्यादातर इसके अनुरूप नहीं चलते। क्या इसका यह मतलब है कि नीतिपरक आचरण का यह नियम अब और वैध नहीं? क्या शायद यह दिनातीत है?
[पेज 3 पर बक्स]
“दूसरे इन्सानों के साथ वह सब करो जो तुम चाहोगे कि वे तुम्हारे साथ करें।”—आर. ए. नॉक्स द्वारा अनुवादित, द होली बाइबल.
“दूसरों से ठीक वैसा बरताव करो जैसा तुम चाहोगे कि वे तुम से करें।”—जे. बी. फिलिप्स द्वारा, द न्यू टेस्टामेन्ट इन मॉडर्न इंग्लिश.
“जो कुछ तुम चाहते हो कि दूसरे तुम्हारे साथ और तुम्हारे लिए करें, वैसे ही तुम भी उनके साथ और उनके लिए करो।”—दी ॲमप्लिफाइड न्यू टेस्टामेन्ट.
“दूसरों के लिए वह सब कुछ करो जो तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे लिए करें।”—डब्ल्यू. एफ. बेक् द्वारा, द न्यू टेस्टामेन्ट इन द लॅन्गवेज ऑफ टुडे.
“तो फिर, हर संबंध में अपने संगी मनुष्यों से वैसा ही बरताव करना जैसा तुम चाहते हो कि वे तुमसे करें।”—ई. वी. रिऊ द्वारा अनुवादित, द फॉर गॉस्पेल्स.
“तुम दूसरों के साथ उसी तरह का व्यवहार करने की आदत डालो जैसा व्यवहार तुम पसंद करोगे कि वे तुम्हारे साथ करें।”—सी. बी. विलियम्स द्वारा, द न्यू टेस्टामेन्ट.