गलत काम करने से इनकार करने के लिए हिम्मत जुटाना
तिमोथी कहता है, “जब मैं बस १५ साल का था, तब मैं किराने की एक दुकान पर काम करता था। एक दिन, मेरे साथ काम करनेवाले एक लड़के ने मुझे अपने घर बुलाया। उसने कहा कि उसके माँ-बाप घर पर नहीं होंगे और उसने कुछ लड़कियों को भी बुलाया है जिनके साथ वे रात बिता सकते हैं।” आज के कई जवान लोग ऐसे न्योते को फट से स्वीकार कर लेंगे। मगर तिमोथी ने क्या किया? उसने कहा, “मैंने उसी वक्त उसे बताया कि मैं नहीं आ सकता क्योंकि मेरा मसीही विवेक इस बात को स्वीकार नहीं कर सकता कि मैं किसी ऐसी स्त्री के साथ संबंध रखूँ जिसके साथ मेरा विवाह नहीं हुआ है।”
जब तिमोथी उस लड़के को न्योते से इनकार करने की वज़ह बता रहा था, तब उसी दुकान में काम करनेवाली एक स्त्री ने उनकी बातें सुन ली। उस स्त्री को विश्वास नहीं हुआ कि तिमोथी का अब तक किसी स्त्री के साथ संबंध नहीं रहा है। जल्द ही उस लड़की ने तिमोथी को बहकाने की कोशिश की मगर तिमोथी उसके जाल में नहीं फँसा। उसे कई बार उस लड़की को ‘ना’ कहना पड़ा जिसके बारे में हम आगे देखेंगे।
गलत काम करने का बार-बार लालच दिया जाना कोई नयी बात नहीं है, पुराने ज़माने में भी ऐसा होता था। कुछ ३,००० साल पहले राजा सुलैमान ने लिखा: “हे मेरे पुत्र, यदि पापी लोग तुझे फुसलाएं, तो उनकी बात न मानना। . . . उनकी डगर में पांव भी न धरना।” (नीतिवचन १:१०, १५) खुद यहोवा परमेश्वर ने इस्राएल की जाति को यह आज्ञा दी: “तू बुराई करने के लिए भीड़ के पीछे न हो लेना।” (निर्गमन २३:२, NHT) जी हाँ, ऐसा वक्त भी आता है जब हमें उन कामों के लिए हिम्मत से ‘ना’ कहना है, जो दुनिया की नज़रों में शायद गलत नहीं होते। मगर हमें ऐसे काम करने से खुद को रोकना है।
‘ना’ कहना आज खासकर ज़रूरी है
गलत काम करने से इनकार करना कभी भी आसान नहीं रहा है, और आजकल तो ‘ना’ कहना और भी मुश्किल हो सकता है क्योंकि हम ऐसे समय में जी रहे हैं जिसे बाइबल इस दुनिया का ‘अन्तिम दिन’ कहती है। जैसे बाइबल में कहा गया था, वैसा ही आज आम तौर पर लोग सुखविलास और हिंसा के चाहनेवाले हो गए हैं। उनमें आध्यात्मिकता और नैतिकता नाम की कोई चीज़ नहीं है। (२ तीमुथियुस ३:१-५) एक जेसुइट यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट ने कहा: “हमारे पास पहले स्तर और नियम हुआ करते थे मगर अभी हमें उसमें खामियाँ दिखती हैं या फिर अब उनका चलन नहीं रहा। ऐसा लगता है कि अब सही और गलत में भेद बताने के लिए कोई नियम नहीं है।” उसी तरह, एक सुपिरियर कोर्ट के जज ने कहा: “आजकल अच्छाई और बुराई के बीच कोई फर्क नहीं रह गया है। . . . बहुत ही कम लोगों को आज सही और गलत के बीच में फर्क करना आता है। आजकल, लोगों को पाप करने के डर से ज़्यादा पकड़े जाने का डर रहता है।”
प्रेरित पौलुस ने ऐसी मनोवृत्तिवाले लोगों के बारे में लिखा: “उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं। और वे सुन्न होकर, लुचपन में लग गए हैं, कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से किया करें।” (इफिसियों ४:१८, १९) लेकिन उनके लिए आगे खतरा ही खतरा है क्योंकि यशायाह ने कहा: “हाय उन पर जो बुरे को भला और भले को बुरा कहते, जो अंधियारे को उजियाला और उजियाले को अंधियारा ठहराते” हैं। (यशायाह ५:२०) ऐसे लोग तो वही काटेंगे जो उन्होंने बोया है, साथ ही बहुत जल्द उन पर “हाय” भी पड़ेगी यानी यहोवा उन्हें दंड देगा।—गलतियों ६:७.
भजन ९२:७ कहता है, “दुष्ट जो घास की नाईं फूलते-फलते हैं, और सब अनर्थकारी जो प्रफुल्लित होते हैं, यह इसलिये होता है, कि वे सर्वदा के लिये नाश हो जाएं।” दूसरे शब्दों में इसका मतलब यह है कि दुष्ट लोगों की मौज-मस्ती हमेशा-हमेशा तक चलती न रहेगी, जिससे सबका जीना दूभर होता है। दरअसल, यीशु ने कहा कि जिस “पीढ़ी” में ये सारी बुराइयाँ होंगी, उसी पीढ़ी को परमेश्वर “भारी क्लेश” में नाश करनेवाला है। (मत्ती २४:३, २१, ३४) सो अगर हम उस भारी क्लेश से बचना चाहते हैं, तो हमें यह जानने की ज़रूरत है कि परमेश्वर के दर्जों के मुताबिक सही और गलत क्या है। साथ ही, किसी भी तरह की बुराई करने का लालच दिए जाने पर उसे इनकार करने की हिम्मत हममें होनी चाहिए। ऐसा करना आसान तो नहीं है, इसलिए यहोवा ने हमारा हौसला बढ़ाने के लिए बाइबल के समयों के और आज के लोगों के काफी प्रोत्साहक उदाहरण दिए हैं।
एक युवक से ‘ना’ कहना सीखना
व्यभिचार और परस्त्रीगमन से इनकार करना खासकर मुश्किल लग सकता है और मसीही कलीसिया में भी कुछ लोगों को यह मुश्किल लगता है। शुरू में बताए गए तिमोथी ने उत्पत्ति ३९:१-१२ में दी गयी नौजवान यूसुफ की मिसाल को ध्यान में रखा। मिस्र के हाकिम पोतीपर की पत्नी ने यूसुफ को बार-बार उसके साथ कुकर्म करने के लिए कहा, मगर यूसुफ ने साहस से गलत काम करने से इनकार किया। बाइबल में लिखा है कि यूसुफ ने उसके निमंत्रण को “अस्वीकार करते हुए . . . कहा, . . . मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं?”
यूसुफ ने पोतीपर की पत्नी के साथ कुकर्म करने से बार-बार, हर दिन इनकार करने की हिम्मत कहाँ से पायी? पहली बात, वह यहोवा के साथ अपने रिश्ते को बहुत मूल्यवान समझता था और पल भर का बाकी कोई भी सुख उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था। साथ ही, परमेश्वर ने अब तक साफ-साफ कोई नियम नहीं दिए थे (मूसा की व्यवस्था अब तक नहीं दी गयी थी) फिर भी उसे अच्छे-बुरे की सही समझ थी। वह जानता था कि पोतीपर की पत्नी बस उसके रूप पर फिदा हो गयी थी। उसके साथ व्यभिचार करने का मतलब था सिर्फ उसके पति के खिलाफ ही नहीं बल्कि परमेश्वर के खिलाफ भी पाप करना।—उत्पत्ति ३९:८, ९.
यूसुफ साफ-साफ जानता था कि अगर वह इस वासना की भूखी स्त्री को ज़रा-भी शह देगा, तो वासना के शोले भड़क सकते थे जिसे बुझाना बहुत ही मुश्किल होगा। मसीही अगर यूसुफ की मिसाल पर चलते हैं तो यह बुद्धिमानी की बात होगी। जुलाई १, १९५७ की अंग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग में यूँ लिखा था: “मसीही को अपनी कमज़ोरी पहचाननी चाहिए। उसे यह नहीं सोचना चाहिए कि वह बाइबल के सिद्धांतों के दायरे में रहते हुए अपनी अभिलाषाओं को पूरा करेगा और उस दायरे को पार नहीं करेगा। चाहे वह कुछ समय के लिए ऐसा करने में कामयाब हो भी जाए, लेकिन आखिर में वह पाप के खिंचाव में फँसकर उस हद को पार कर ही जाएगा। ऐसा ज़रूर होगा, क्योंकि जिन वासनाओं को दिल में पलने दिया जाता है वे जड़ पकड़कर मज़बूत हो जाती हैं और व्यक्ति को बुरी तरह अपनी गिरफ्त में कर लेती हैं। तब व्यक्ति के लिए ऐसी बातें अपने दिमाग से हटाना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसलिए पाप से दूर रहने का बेहतर तरीका यही है कि वह ऐसी भावनाओं को शुरू में ही जड़ से उखाड़ फेंके।”
लेकिन शुरू में ही ऐसी भावनाओं को उखाड़ फेंकना तब आसान होगा जब हम भले कामों के लिए प्यार और बुरे कामों के लिए नफरत पैदा करेंगे। (भजन ३७:२७) मगर ऐसा करने के लिए हमें कोशिश करते रहना होगा, इसमें लगे रहना होगा। अगर हम ऐसा करते हैं तो यहोवा की मदद से, हममें भले कामों के लिए प्यार और बुरे कामों के लिए नफरत और भी बढ़ती जाएगी। इसके साथ-साथ हमें चौकस भी रहना होगा और जैसे यीशु ने कहा था, हमें परीक्षाओं में नहीं पड़ने के लिए और बुरे लोगों से बचाए जाने के लिए प्रार्थना भी करते रहना होगा।—मत्ती ६:१३; १ थिस्सलुनीकियों ५:१७.
साथियों के दबाव में आने से इनकार करना
एक और तरीका जिससे हम गलत रास्ते पर चलना शुरू कर सकते हैं, वह है साथियों का दबाव। एक लड़की ने कहा: “मैं दोहरा जीवन जी रही हूँ—स्कूल पर एक तरह का और घर पर दूसरी तरह का। स्कूल में मैं ऐसे बच्चों के साथ घूमती-फिरती हूँ जो बस गालियों में ही बात करते हैं। मैं भी उनके रंग में रंगती जा रही हूँ। इसे रोकने के लिए मैं क्या करूँ?” इसे रोकने के लिए साथियों से अलग होने की हिम्मत होनी चाहिए और अगर आप यूसुफ जैसे परमेश्वर के वफादार सेवकों के बारे में दिए गए वृत्तांत बाइबल से पढ़ते और उन पर मनन करते हैं तो आप दुनिया के बाकी लोगों से अलग दिख सकते हैं। यूसुफ की तरह दूसरे कई युवाओं की भी अच्छी-अच्छी मिसालें हैं, जैसे दानिय्येल, शद्रक, मेशक और अबेदनगो। इन चार युवकों के पास अपने साथियों से अलग दिखने की हिम्मत थी।
ये चार युवा इस्राएली, दूसरे युवकों के साथ बाबुल के राज-दरबार में सिखाए जा रहे थे। उनकी ट्रेनिंग की एक माँग यह थी कि राजा ‘के भोजन में से उन्हें प्रतिदिन खाने-पीने को दिया जाए।’ खाने-पीने के बारे में परमेश्वर ने इस्राएलियों को कुछ नियम दिए थे। अगर ये युवक राजा के भोजन में से खाते-पीते तो वे नियम भंग हो जाते। इसलिए उन्होंने ऐसा करने से इनकार किया। मगर इनकार करने के लिए काफी हिम्मत की ज़रूरत थी क्योंकि जो भोजन उन्हें दिया गया था वह ‘राजा के भोजन में से’ था, इसलिए यकीनन ऐसे भोजन को देखकर मुँह में पानी आ जाता होगा। उसी तरह आज मसीहियों को भी बहुत ज़्यादा शराब पीने, ड्रग्स लेने या तंबाकू खाने का लालच दिया जाता है या फिर उन पर दबाव डाला जाता है। इस मामले में उन इस्राएली युवाओं ने सचमुच आज के मसीहियों के लिए कितनी बढ़िया मिसाल रखी!—दानिय्येल १:३-१७.
शद्रक, मेशक और अबेदनगो ने उस बात को भी सच्चा ठहराया जो यीशु मसीह ने बाद में कही थी: “जो थोड़े से थोड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है।” (लूका १६:१०) कौन-सा भोजन खाना है और कौन-सा नहीं, ऐसी छोटी-सी बात में भी वे हिम्मत से अपने विश्वास पर टिके रहे और इसके बदले में यहोवा ने उन्हें प्रतिफल दिया। इससे वे आगे आनेवाली बड़ी और गंभीर परीक्षा के लिए मज़बूत हुए। (दानिय्येल १:१८-२०) ये परीक्षा उन पर तब आयी जब उन्हें आज्ञा दी गयी थी कि वे एक मूरत को दंडवत करें, नहीं तो उन्हें आग के धधकते भट्ठे में झोंक दिया जाएगा। बड़ी हिम्मत से, ये तीनों युवक सिर्फ यहोवा की ही उपासना करने के अपने फैसले पर डटे रहे और यहोवा पर भरोसा करते हुए किसी भी अंजाम के लिए तैयार थे। एक बार फिर यहोवा ने उनके विश्वास और उनकी हिम्मत के लिए उन्हें आशीष दी। इस बार यहोवा ने उन्हें आग के शोलों से बचाया जब उन्हें सात गुना ज़्यादा तेज़ किए हुए भट्ठे में फेंक दिया गया था।—दानिय्येल ३:१-३०.
परमेश्वर के वचन, बाइबल में ऐसे और भी कई लोगों की मिसालें दी गयी हैं जिन्होंने गलत काम के लिए ‘ना’ कही। मूसा ने “फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने” से इनकार किया, जबकि उसे मिस्र में “पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने” का बढ़िया मौका मिलता। (इब्रानियों ११:२४-२६) भविष्यवक्ता शमूएल ने अपने अधिकार का नाजायज़ फायदा नहीं उठाया और ना ही किसी से घूस ली। (१ शमूएल १२:३, ४) यीशु मसीह के प्रेरितों को जब प्रचार कार्य बंद करने की आज्ञा दी गयी तो उन्होंने बड़े साहस से ‘ना’ कहा। (प्रेरितों ५:२७-२९) खुद यीशु ने भी तो बड़ी दृढ़ता से गलत काम करने से इनकार किया था। अपनी ज़िंदगी की अंतिम घड़ियों में जब उसे प्यास बुझाने के लिए नशा बढ़ानेवाला “मुर्र मिला हुआ दाखरस” दिया गया, तब भी उसने इसे पीने से इनकार ही किया। अगर वह इसे पी लेता तो इससे उस नाज़ुक घड़ी में उसका संकल्प कमज़ोर पड़ सकता था।—मरकुस १५:२३; मत्ती ४:१-१०.
‘ना’ कहना—ज़िंदगी और मौत का सवाल
यीशु ने कहा: “सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और चाकल है वह मार्ग जो विनाश को पहुंचाता है; और बहुतेरे हैं जो उस से प्रवेश करते हैं। क्योंकि सकेत है वह फाटक और सकरा है वह मार्ग जो जीवन को पहुंचाता है, और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।”—मत्ती ७:१३, १४.
चौड़ा मार्ग सबको पसंद आता है क्योंकि उसमें चलना बड़ा ही आसान होता है। इस पर चलनेवालों को कुछ भी करने की छूट होती है, उनका सोच-विचार और तौर-तरीका दुनिया की तरह होता है क्योंकि वे शैतान की दुनिया से अलग नहीं, बल्कि उसमें शामिल होना चाहते हैं। परमेश्वर के नियम और सिद्धांत उन्हें बंधन-से लगते हैं। (इफिसियों ४:१७-१९) मगर, यीशु ने एकदम साफ-साफ कहा था कि चौड़ा मार्ग “विनाश को पहुंचाता है।”
पर यीशु ने ऐसा क्यों कहा कि सिर्फ थोड़े-से लोग ही सकरे मार्ग पर चलना पसंद करेंगे? खासकर इसलिए कि ज़्यादातर लोग परमेश्वर के नियमों और सिद्धांतों को अपने जीवन में लागू करना नहीं चाहते हैं, ना ही वे इनकी मदद से अपने चारों तरफ हो रहीं बुराइयों से दूर रहना चाहते हैं। और तो और, ज़्यादातर लोग शरीर की अभिलाषाओं को रोकना, साथियों के दबाव का विरोध करना और सकरे मार्ग पर चलने की वज़ह से मज़ाक उड़ाए जाने के डर का सामना करना नहीं चाहते।—१ पतरस ३:१६; ४:४.
सकरे मार्ग पर चलनेवाले लोग पौलुस की भावनाओं को अच्छी तरह समझ सकते हैं जब वो पाप को ‘ना’ कहने की अपनी लड़ाई के बारे में बता रहा था। आज की दुनिया की तरह ही पौलुस के ज़माने के रोमी और यूनानी समाज ने लोगों को चौड़े मार्ग पर चलने और हर प्रकार के गलत काम करने की छूट दे रखी थी। पौलुस ने समझाया कि उसका मन उसके शरीर के खिलाफ ‘लड़ाई’ लड़ता रहता था। क्योंकि उसका मन तो सही-गलत समझता है, मगर उसका शरीर बुराई करने के लिए तैयार रहता है। (रोमियों ७:२१-२४) जी हाँ, पौलुस जानता था कि अगर उसके शरीर की अभिलाषाएँ उस पर प्रबल हो जाएँगी तो उसका झुकाव बुराई करने की ओर होगा। इसीलिए उसने शरीर की अभिलाषाओं को ‘ना’ कहना सीखा। उसने लिखा: “मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं।” (१ कुरिन्थियों ९:२७) उसने यह कैसे किया? सिर्फ अपनी ताकत से नहीं बल्कि परमेश्वर की आत्मा की मदद से। क्योंकि उसकी अपनी शक्ति से यह काम हो ही नहीं सकता था।—रोमियों ८:९-११.
यही वज़ह थी कि असिद्ध होने के बावजूद, पौलुस आखिरी दम तक यहोवा के प्रति वफादार रहा। अपनी मौत से कुछ ही समय पहले वह यह लिख सका: “मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है।”—२ तीमुथियुस ४:७, ८.
हम अपनी असिद्धताओं से लड़ सकते हैं क्योंकि हमारे पास सिर्फ पौलुस की ही नहीं बल्कि उनकी भी मिसालें हैं जो पौलुस के लिए मिसाल थे, जैसे यूसुफ, मूसा, दानिय्येल, शद्रक, मेशक, अबेदनगो इत्यादि। वे भी तो असिद्ध इंसान थे मगर, इन सभी वफादार लोगों ने गलत काम करने से इनकार किया। क्यों? क्या इसलिए कि वे अड़ियल या ज़िद्दी थे? बिलकुल नहीं। उन्हें यहोवा की आत्मा की मदद से अच्छे-बुरे की समझ मिली थी, इसलिए उन्होंने इनकार किया। (गलतियों ५:२२, २३) वे आध्यात्मिक बातों में दिलचस्पी लेनेवाले पुरुष थे। वे यहोवा के मुख से निकलनेवाले एक-एक वचन को सुनने के लिए तरसते थे। (व्यवस्थाविवरण ८:३) उसका वचन उनके लिए मानो जीवन था। (व्यवस्थाविवरण ३२:४७, NHT) सबसे बढ़कर, वे यहोवा से प्यार करते थे और उसका भय मानते थे और उसकी मदद से वे आहिस्ते-आहिस्ते बुराई से नफरत करने लगे।—भजन ९७:१०; नीतिवचन १:७.
ऐसा हो कि हम भी उनकी मिसाल पर चलें। सचमुच, उनकी तरह ही हमें भी हर तरह की बुराई या गलत कामों को ‘ना’ कहते रहने के लिए यहोवा की आत्मा की मदद चाहिए। यहोवा दिल खोलकर हमें अपनी आत्मा देगा बशर्ते हम इसके लिए बिनती करें, उसका वचन पढ़ें, और मसीही सभाओं में बिना नागा हाज़िर हों।—भजन ११९:१०५; लूका ११:१३; इब्रानियों १०:२४, २५.
तिमोथी, जिसके बारे में शुरू में बताया गया था, उसे इस बात की खुशी है कि उसने अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ नहीं किया। उसके साथ काम करनेवाली उस लड़की ने तिमोथी और उसके साथी की बातें सुन ली थीं और उसे विश्वास नहीं हुआ था कि तिमोथी का अब तक किसी स्त्री के साथ संबंध नहीं रहा है। इसलिए उसे बहकाने की कोशिश में, उसने कुछ समय बाद चुपके से तिमोथी को अपने घर उस वक्त बुलाया जब उसका पति कहीं बाहर गया हुआ था। तिमोथी ने इनकार किया। मगर वो भी इतनी जल्दी कहाँ हार माननेवाली थी! उसने ठीक पोतीपर की पत्नी की तरह, कई बार तिमोथी को न्योता दिया। मगर हर बार, तिमोथी ने दृढ़ता से मगर विनम्रता से ‘ना’ ही कहा। उसने इस स्त्री को परमेश्वर के वचन, बाइबल से अच्छी साक्षी भी दी। वह दिल से यहोवा का शुक्रिया अदा करता है कि उसने उसे गलत काम करने से इनकार करने की ताकत दी। अब तिमोथी की शादी एक बहुत ही अच्छी संगी मसीही के साथ हो चुकी है और वो दोनों खुश हैं। सचमुच, जो भी व्यक्ति गलत काम करने से इनकार करके, यहोवा के प्रति वफादार बना रहना चाहता है, उसे यहोवा बहुत ही आशीष देता है और उसे खराई से चलते रहने के लिए और भी मज़बूत करता है।—भजन १:१-३.