यीशु का जीवन और सेवकाई
गलील की एक और प्रचार यात्रा
लगभग दो वर्ष के प्रबल प्रचार के बाद क्या यीशु अब इस कार्य को छोड़ देंगे या ढीले पड़ जायेंगे? इसके विपरीत, वह अपने प्रचार को गलील में फिर एक बार तीसरी यात्रा के द्वारा बढ़ाते हैं। वह उस क्षेत्र के सभी नगरों और गाँवों में जाते हैं, आराधनालयों में उपदेश देते और राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते हैं। इस यात्रा से उन्हें इस बात का यक़ीन होता है कि प्रचार कार्य को पहले से और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है।
यीशु मसीह, जहाँ कहीं भी जाते हैं, वह यह देखते हैं कि बहुत लोगों को आत्मिक रूप से चंगा किए जाने और सान्त्वना की आवश्यकता है। वे उन भेड़ों की नाईं, जिनका कोई चरवाहा न हो, व्याकुल और भटके हुये हैं, और उन्हें उनपर तरस आया। वह अपने शिष्यों को कहते हैं: “पक्के खेत तो बहुत हैं पर मज़दूर थोड़े हैं। इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मज़दूर भेज दे।”
यीशु के पास कार्य करने की एक योजना है। क़रीब एक वर्ष पहले चुने गये अपने बारह प्रेरितों को यीशु अपने पास बुलाते हैं। वह उन्हें जोड़ों में बाँट देते हैं, जिससे प्रचारकों के छः दल बन जाते हैं, और उन्हें निर्देशन देते हैं: “अन्यजातियों की ओर न जाना, और सामरियों के किसी नगर में प्रवेश न करना। परन्तु इस्राएल के घराने ही की खोई हुई भेड़ों के पास जाना। और चलते चलते प्रचार कर कहो कि ‘स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है’”।
जिस राज्य के विषय में उन्हें प्रचार करना है, वह वही है जिसके लिए यीशु ने उन्हें आदर्श प्रार्थना में विनती करने के लिए सिखाया था। राज्य निकट है, इसका अर्थ था कि परमेश्वर द्वारा नियुक्त राजा यीशु मसीह वहाँ उपस्थित थे। अपने शिष्यों को उस अलौकिक राज्य के प्रतिनिधि होने के प्रत्यय-पत्रों को प्रमाणित करने के लिये, यीशु उन्हें बिमारों को चंगा और मृतकों को जीवित करने की भी शक्ति देते हैं। वह उन्हें यह सेवाएं मुफ़्त में करने का निर्देशन देते हैं।
उसके बाद वह अपने शिष्यों को कहते हैं कि अपनी यात्रा के लिए भौतिक वस्तुओं की तैयारी न करें। “अपने पटुकों में न तो सोना और न रूपा और न ताँबा रखना। मार्ग के लिये न झोली रखो, न दो कुरते, न जूते और न लाठी लो, क्योंकि मज़दूर को उसका भोजन मिलना चाहिए।” इस संदेश का मूल्यांकन करनेवाले अनुक्रिया दिखायेंगे और उन्हें भोजन और रहने का स्थान देंगे। जैसे यीशु कहते हैं, “जिस किसी नगर या गाँव में जाओ, तो पता लगाओ कि वहाँ कौन योग्य है? और जब तक वहाँ से न निकलो, उसी के यहाँ रहो।”
फिर यीशु यह निर्देशन देते हैं कि किस तरह राज्य संदेश लेकर ग्रहस्वामीयों के पास जाना है। “जब तुम किसी घर में प्रवेश करते हो” उन्होंने कहा, “उस परिवार का अभिनन्दन करो; और यदि उस घर के लोग योग्य होंगे तो तुम्हारा कल्याण उन पर पहुँचेगा; परन्तु यदि वे योग्य न हों तो तुम्हारा कल्याण तुम्हारे पास लौट आयेगा। और जो कोई तुम्हें ग्रहण न करे, और तुम्हारी बातें न सुने, उस घर या उस नगर से निकलते हुये अपने पाँवों की धूल झाड़ डालो।” (न्यू.व.)
उस नगर के विषय में, जो उनके संदेश को अस्वीकार करेगा, यीशु कहते हैं: “न्याय के दिन उस नगर की दशा से, सदोम और अमोरा के देश की दशा अधिक सहने योग्य होगी।” इसका यह अर्थ नहीं कि सदोम के निवासी पुनरुत्थान पाएंगे। बल्कि, यीशु यहाँ ऐसे शहर के लोगों की निंदनीय स्थिति पर विशेष बल दे रहे थे, यह कहकर कि उस नगर से यह प्राचीन सदोम निवासियों के लिए अधिक सहनीय होगा जो कि, उसके इस्राएली श्रोतागण के अनुसार, न्याय के दिन में पुनरुत्थान के बिल्कुल अयोग्य थे। मत्ती ९:३५—१०:१५; मरकुस ६:६-१२; लूका ९:१-५.
◆ यीशु गलील की तीसरी प्रचार यात्रा कब शुरू करते हैं, और उस से उन्हें किस बात का यक़ीन होता है?
◆ अपने बारह प्रेरितों को प्रचार करने के लिए भेजते समय, यीशु उन्हें क्या निर्देशन देते हैं?
◆ शिष्यों का यह सिखाना कि राज्य निकट है, क्यों उचित था?
◆ अपने शिष्यों का संदेश अस्वीकार करने की गम्भीरता पर यीशु किस तरह विशेष बल देते हैं?