आपको दिलचस्पी क्यों लेनी चाहिए
‘दिलचस्पी किस बात में?’ मानवजाति के इतिहास में घटित होनेवाला सब से बड़ा परिवर्तन! परमेश्वर की रचना का एक सम्पूर्णतः नया शासन इस पार्थिव दृश्य को लेने ही वाला है। (दानिय्येल २:४४) यह अधीनीकरण हर पुरुष, स्त्री और बच्चे पर प्रभाव डालेगा—भलाई के लिए या बुराई के लिए। यह अनोखा परिवर्तन मत्ती २४:३४ में उल्लिखित पीढ़ी के अन्दर घटित होनेवाला है। अतः उस परिवर्तन के बारे में यह संदेश में सभी लोगों की निष्कपट और गम्भीर दिलचस्पी जरूरी है। सचमुच, ऐसे कहना गलत होगा कि, ‘मुझे दिलचस्पी नहीं।’
जब बहुतों ने दिलचस्पी नहीं दिखायी
हमारे आधुनिक दिन ही पहली बार नहीं जब कि ऐसा एक महत्त्वपूर्ण संदेश घोषित किया गया, जो उसे सुनने के लिए आमंत्रित किए हुओं में दिलचस्पी जागृत करना चाहिए था। नूह के दिन ऐसा एक समय था। उस समय मनुष्य का दुष्ट, अनैतिक, और हिंसात्मक व्यक्तित्व के कारण यहोवा परमेश्वर ने एक विश्व-प्रलय में मानव-जाति का नाश करने का निश्चय किया। (उत्पत्ति ६:५-७, १३) किन्तु अधर्मियों का नाश करने से पहले उस ने नूह के द्वारा, जो धार्मिकता का प्रचारक था, उन्हें आनेवाले जल-प्रलय के बारे में चिताने और बचे रहने के लिए आवश्यक रास्ता दिखाने की व्यवस्था की। वह संदेश जितना महत्त्वपूर्ण था उतना ही महत्त्व इस बात का है कि सामान्यतः लोगों ने जो उसे सुना उस पर “ध्यान नहीं दिया।” (मत्ती २४:३९, न्यू.व; लूका १७:२६, २७; २ पतरस २:५) वे निरुत्साही थे, भावशून्य थे—इच्छुक ही नहीं! इसके कारण, वे सब कुछ खो दिए।
लगभग यही अवस्था सदोम और अमोरा के कुख्यात अनैतिक नगरों के निवासियों के दिनों में थी। शायद वे इसके बारे में ज्यादा चिन्तित थे कि अगर वे दिलचस्पी दिखाएंगे तो उनके पड़ोसियाँ उनके बारे में क्या सोचेंगे। या शायद वे चिन्तित थे कि उन्हें उनकी जिन्दगियों में ऐसे परिवर्तन करने पड़ते जिसे करने के लिए वे अनिच्छुक थे। प्रत्यक्षतः, वे उनके स्वेच्छाचारी जीवन का आनंद उठा रहे थे। (यहूदा ७) इसलिए ठीक उस दिन तक जब उन पर नाशन आ गया, उन्हें किसी बात पर संदेह नहीं था और जो होने ही वाला था, उसे समझ भी नहीं पाए।
यीशु के दिन में दिलचस्पी नहीं रखनेवाले
जब परमेश्वर का पुत्र, यीशु मसीह, पृथ्वी पर था, वह अपने शिष्यों को परमेश्वर के स्वर्गीय सरकार के सुसमाचार घोषित करने के लिए भेजा। (मत्ती १०:७) वस्तुतः, उसने उसके शिष्यों को उस रीति के बारे में जिस के अनुसार उन्हें प्रत्येक घर में इस असाधारण और महत्त्वपूर्ण संदेश प्रस्तुत करना था और उन उपायों के बारे में सुशिक्षित किया जिसे जहाँ गृहस्वामियाँ वास्तविक दिलचस्पी नहीं दिखाते, लिया जाना चाहिए। उस पर ध्यान दो, जैसे वह अपने शिष्यों को सिखाने के लिए आगे बढ़ता है: “घर में प्रवेश करते हुए उस को आशीष देना। यदि उस घर के लोग योग्य होंगे तो तुम्हारे कल्याण उन पर पहुँचेगा परन्तु यदि वे योग्य न हों तो तुम्हारा कल्याण तुम्हारे पास लौट आएगा। और जो कोई तुम्हे ग्रहण न करें, और तुम्हारी बातें न सुने उस घर या उस नगर से निकलते हुए अपने पावों को धूल झाड़ डालो।”—मत्ती १०:१२-१४.
इस पर ध्यान दें कि यीशु ने अपने शिष्यों को आदेश दिया था कि वे, जब एक ऐसे घर या एक नगर से निकलेंगे जहाँ परमेश्वर के राज्य में दिलचस्पी की पूर्ण कमी थी, “अपने पाँवों की धूल झाड डालें।” इस सलाह से वह क्या सूचित कर रहा था? एक व्यक्ति के पाँवों से धूल झाड़ डालना, परमेश्वर के संदेश में दिलचस्पी की कमी के कारण एक गृहस्वामी को जिन परिणामों को बरदाश्त करना होगा, उनकी जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व को अस्वीकार करना सूचित करता है। इसका अर्थ यह था कि यीशु के शिष्य शांतिपूर्वक चले जा रहे थे और उस घर या नगर को उन परिणामों पर छोड़ रहे थे जो अन्ततः परमेश्वर से आएंगे।
दिलचस्पी दिखाइए—उस में आपको जीवन है!
यह देखना दिलचस्पी की बात है कि यीशु मसीह ने हमारे दिनों की प्रतिक्रियाओं को नूह और सदोम और अमोरा के दिनों की प्रतिक्रियाओं से तुलना की। (मत्ती २४:३७-३९; लूका १७:२६-३०) अनैतिकता और हिंसा दोनों नूह के दिनों में और लूत के दिनों में प्रचलित थे। सचमुच, वह धार्मिक पुरुष लूत सदोम और अमोरा के निवासियों का अधर्म और असयत आचरण में उनकी आसक्ति देखने से तंग और दुःखी हो गया था।—२ पतरस २:६-८.
फिर भी, जब यीशु नूह के दिन और लूत के दिन का उल्लेख करता है वह हमारे ध्यान को उन दिनों की अनैतिकता और हिंसा पर नहीं बल्कि दैनिक मामलों के विषयों पर केंद्रित किया—जैसे खाना, पीना, विवाह करना, खरीदना, बेचना, निर्माण करना और रोपण। उसने सूचित किया कि कई लोग परमेश्वर के राज्य के संदेश की ओर अनुक्रिया नहीं दिखाएंगे बल्कि जिन्दगी के प्रतिदिन मामलों में लवलीन रहेंगे और इस तरह यहोवा जो करने जा रहा है, उस में बिल्कुल दिलचस्पी नहीं दिखाएंगे। यह संदेश जीवन-या-मृत्यु का महत्त्व रखता है। सुनने में चूक महँगी पड़ेगी। ध्यान न देना या दिलचस्पी नहीं दिखाना एक गम्भीर पाप है।—मत्ती ६:३१, ३२ की तुलना करें।
ठीक कितना गम्भीर? यीशु आगे कहता है: “न्याय के दिन परमेश्वर सदोम और अमोरा की ओर से अधिक दया दिखाएगा” जिन्होंने नहीं सुनी या दिलचस्पी नहीं दिखायी। (मत्ती १०:१५, टुड़ेज़ इंग्लिश वर्शन) चाहे एक व्यक्ति अनैतिक या हिंसक हो अगर वह दिलचस्पी दिखाता है, सुनता है और संदेश पर विश्वास रखता है, तो वह अपने व्यक्तित्व को बदल सकता है और यहोवा की नज़रों में कृपा पा सकता है ताकि उस राज्य के एक नागरिक बनने की योग्यता मिले जैसे कि कुरिन्थ के प्राचीन मसीहियों ने किया।—१कुरिन्थियों ६:९-११.
अपने शिष्यों के साथ किए गए सभी वार्तालापों में यीशु मसीह ने उन्हें, सुनने, ध्यान देने, परमेश्वर के राज्य के महत्त्वपूर्ण संदेश में दिलचस्प दिखाने के लिए उत्तेजित किया। उनके ध्यान को उकसाने के लिए, जिन से वह बात करता था, वह चिताया: “चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो।” “जिस के पास सुनने के लिये कान हों वह सुन ले।” “तुम सब मेरी सुनो, और समझो।” “सुनो और समझो।”—लूका ८:१८; मरकुस ४:९; ७:१४; मत्ती १५:१०.
इसलिए, अगली बार जब यहोवा के गवाहों में से एक आप के घर आएंगे, तब ऐसे कहना आपके लिए लाभदायक होगा: ‘अन्दर आइए, मुझे दिलचस्पी है।’