बाइबल का दृष्टिकोण
परमेश्वर की नज़रों में आपका महत्त्व है!
“मेरी ज़्यादातर ज़िंदगी अयोग्यता की भावनाओं से जूझते हुए बीती है,” एक मसीही स्त्री ने लिखा। “चाहे मैं यहोवा से कितना भी प्रेम क्यों न करूँ या उसकी सेवा करने के लिए कितनी भी मेहनत क्यों न करूँ, मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि कुछ कमी रह गयी है।”
क्या आप किसी को जानते हैं जो असमर्थता या अयोग्यता की गहरी भावनाओं से जूझ रहा है? या क्या खुद आपके अंदर कभी-कभार ऐसी भावनाएँ उठती हैं? परमेश्वर के वफादार उपासकों में भी ऐसी भावनाएँ उठना कोई अजीब बात नहीं। कोई भी इस “कठिन समय” के प्रभावों से अछूता नहीं है। बहुतों ने उन लोगों के हाथ तिरस्कार और दुर्व्यवहार सहा है जो “असंयमी, कठोर, भले के बैरी” हैं—ऐसे दोष जो इन “अन्तिम दिनों” में बहुत बढ़ गये हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-५) इस तरह के दुःखद अनुभव व्यक्ति को भावात्मक रूप से गहरी चोट पहुँचा सकते हैं और उसमें यह भावना उत्पन्न कर सकते हैं कि वह किसी लायक नहीं।
दूसरों में नकारात्मक भावनाएँ इसलिए उत्पन्न हो जाती हैं क्योंकि वे अपने लिए बहुत ही ऊँचे मापदंड बना लेते हैं। और जब वे इन मापदंडों की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते तो उनके अंदर यह भावना आ जाती है कि वे कभी-भी कोई काम ठीक से नहीं कर सकते। कारण कुछ भी हो, जो लोग अयोग्यता की भावनाओं से जूझ रहे हैं उनके लिए यह समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर परमेश्वर और दूसरे लोग उनसे प्रेम क्यों करते हैं। असल में, वे तो यहाँ तक मान लेते हैं कि वे किसी का प्रेम पाने के काबिल नहीं।
लेकिन परमेश्वर ऐसा नहीं सोचता! अपने वचन में यहोवा हमें सावधान करता है कि उसके महाविरोधी, शैतान अर्थात इब्लीस की “धोखा देनेवाली चालों” से बचकर रहें। (इफिसियों ६:११, जूइश न्यू टॆस्टामॆंट) शैतान चाहता है कि हम परमेश्वर की उपासना छोड़ दें और इस कोशिश में वह धोखा देनेवाली चालें चलता है। वह हमारे अंदर ऐसी भावनाएँ भड़काता है कि हम निकम्मे हैं और यहोवा हमें कभी प्यार के काबिल नहीं समझेगा। लेकिन शैतान “झूठा है”—बरन “झूठ का पिता है।” (यूहन्ना ८:४४) इसलिए, हमें उसकी धोखा देनेवाली चालों में नहीं फँसना चाहिए! बाइबल में, यहोवा खुद हमें इस बात का विश्वास दिलाता है कि उसकी नज़रों में हमारा मोल है।
अपने महत्त्व के बारे में संतुलित दृष्टिकोण
बाइबल आगाह करती है कि निराशा का हम पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। नीतिवचन २४:१० कहता है: “यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्ति बहुत कम है।” यदि नकारात्मक भावनाएँ हमारे अंदर घर कर लें तो हमारी शक्ति घट सकती है, जिससे कि हम कमज़ोर पड़ सकते हैं और गिर सकते हैं। यह पक्का है कि शैतान इस बात को बड़ी अच्छी तरह जानता है। एक तो अयोग्यता की भावनाओं से जूझना वैसे ही मुश्किल होता है, उस पर जब शैतान इन भावनाओं का नाजायज़ फायदा उठाने की कोशिश करता है तो स्थिति और भी बदतर हो जाती है।
तो फिर, यह ज़रूरी है कि हम अपने महत्त्व के बारे में सही और संतुलित दृष्टिकोण रखें। प्रेरित पौलुस ने प्रोत्साहन दिया: “[मैं] तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर . . . सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।” (रोमियों १२:३) इसका दूसरा अनुवाद यूँ है: “मैं तुम में से हर एक से कहता हूँ कि अपने असली मोल से बढ़कर कोई भी अपने आपको न समझे, बल्कि अपना ठीक-ठीक मोल लगाये।” (चार्ल्स बी. विलियम्स) सो यह शास्त्रवचन हमें प्रोत्साहन देता है कि हम अपने बारे में संतुलित दृष्टिकोण रखें। एक तरफ हमें अहंकार से बचना है; और दूसरी तरफ हमें कोशिश करनी है कि कहीं उसका उलट न हो जाए, क्योंकि पौलुस के कहने का तात्पर्य यह है कि सुबुद्धि होने के लिए ज़रूरी है कि हम अपना कुछ मोल ज़रूर समझें। जी हाँ, परमेश्वर की ओर से प्रेरणा पाकर पौलुस बताना चाहता है कि यहोवा की नज़रों में हम में से हरेक का महत्त्व है।
हमारे अंदर कुछ हद तक आत्म-सम्मान की भावना होनी चाहिए, यह यीशु के इन शब्दों से भी देखा जा सकता है: “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (मत्ती २२:३९) “अपने समान,” ये शब्द दिखाते हैं कि हमारे अंदर आत्म-सम्मान या आत्म-गौरव की कुछ भावना तो होनी ही चाहिए। हाँ, यह सच है कि हमारे अंदर कमियाँ हैं और हम गलतियाँ करते हैं। लेकिन जब हम परमेश्वर को खुश करने की कोशिश करते हैं, गलती करने पर दुःखी होते हैं और परमेश्वर से माफी माँगते हैं तो हम कुछ हद तक आत्म-सम्मान रख सकते हैं। हमारा मन तो शायद हमें धिक्कारे, लेकिन याद रखिए कि “परमेश्वर हमारे मन से बड़ा है।” (१ यूहन्ना ३:२०) दूसरे शब्दों में, जिस नज़र से यहोवा हमें देखता है शायद उस नज़र से हम अपने आपको बिलकुल भी न देखते हों।
टूटे मन, कुचली भावनाएँ
भजनहार दाऊद ने लिखा: “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।” (भजन ३४:१८) इस आयत पर टिप्पणी करते हुए, मैथ्यू हॆन्रीज़ कॉमॆंट्री ऑन द होल बाइबल कहती है: “यह धर्मियों का स्वभाव है . . . कि पाप के कारण और आत्म-सम्मान न होने के कारण उनका मन टूट जाता है और भावनाएँ कुचल जाती हैं; वे अपनी ही नज़रों में गिर जाते हैं और अपनी योग्यता पर बिलकुल भरोसा नहीं करते।”
“टूटे मनवालों” और “पिसे हुओं” को शायद ऐसा लगे कि यहोवा बहुत दूर है और वे इतने तुच्छ हैं कि यहोवा को उनकी परवाह नहीं। लेकिन यह सच नहीं। दाऊद के शब्द हमें आश्वासन देते हैं कि यहोवा उन्हें नहीं त्यागता जो “अपनी ही नज़रों में गिर” गये हैं। हमारा करुणामय परमेश्वर जानता है कि ऐसे समय में हमें उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है और वह करीब रहता है।
एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। कुछ साल पहले एक माँ अपने दो साल के बेटे को लेकर अस्पताल भागी क्योंकि उसे बहुत बुरी खाँसी हो रही थी और उसकी साँस फूल रही थी। लड़के की जाँच करने के बाद, डॉक्टरों ने माँ को बताया कि लड़के को रात भर अस्पताल में रखना पड़ेगा। माँ ने रात कहाँ बितायी? वहीं अस्पताल में, अपने बेटे के बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठे-बैठे। उसका बच्चा बीमार था और वह उससे दूर रह ही नहीं सकती थी। और क्योंकि हम अपने प्रेममय स्वर्गीय पिता के स्वरूप में बने हैं तो हम यह उम्मीद रख सकते हैं कि वह हमारे लिए इससे भी ज़्यादा करेगा! (उत्पत्ति १:२६; यशायाह ४९:१५) भजन ३४:१८ के दिल छू लेनेवाले शब्द हमें आश्वासन देते हैं कि जब हमारा ‘मन टूट’ जाता है तो एक प्रेममय पिता की तरह यहोवा हमारे “समीप रहता है”—हमेशा चौकस रहता है, ध्यान रखता है और मदद करने के लिए तैयार रहता है।—भजन १४७:१, ३.
“तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो”
अपनी पार्थिव सेवकाई के दौरान, यीशु ने यहोवा के विचारों और भावनाओं के बारे में काफी कुछ बताया। उसने यह भी बताया कि अपने पार्थिव सेवकों के बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है। कई बार यीशु ने अपने चेलों को आश्वासन दिया कि यहोवा उनको मूल्यवान समझता है।—मत्ती ६:२६; १२:१२.
उदाहरण के तौर पर, यह दिखाने के लिए कि उसके हर चेले का अपना महत्त्व है, यीशु ने कहा: “क्या पैसे [एक सिक्के] में दो गौरैये नहीं बिकतीं? तौभी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उन में से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती। तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। इसलिये, डरो नहीं; तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो।” (मत्ती १०:२९-३१) सोचिए कि पहली सदी में सुननेवालों के लिए यीशु के इन शब्दों का क्या अर्थ रहा होगा।
लगता है कि गौरैया भोजन के काम आनेवाली एकदम ही सस्ती चिड़िया थी। इन छोटी चिड़ियों के पर उतारकर उन्हें लकड़ी के सीकचों पर लटकाकर कबाब की तरह भूना जाता था। यीशु ने बाज़ार में गरीब स्त्रियों को अपने पैसे गिनते और यह सोचते हुए ज़रूर देखा होगा कि उससे वे कितनी गौरैये खरीद सकती हैं। इन चिड़ियों को इतना सस्ता समझा जाता था कि एक छोटे-से सिक्के में (जिसे असैरिआँ कहते थे और जो दो रुपये से भी कम था) एक व्यक्ति दो गौरैये खरीद सकता था।
यीशु ने बाद में थोड़ा-सा बदलाव करके इसी दृष्टांत को दोहराया। लूका १२:६ के अनुसार, यीशु ने कहा: “क्या दो पैसे [सिक्कों] की पांच गौरैयां नहीं बिकतीं?” इस बारे में सोचिए। छोटे-से सिक्के में एक खरीदार को दो गौरैये मिलती थीं। लेकिन यदि वह दो सिक्के खर्च करने को तैयार होता, तो उसे चार नहीं बल्कि पाँच गौरैये मिलतीं। उस सौदे में पाँचवीं चिड़िया उसे मुफ्त मिल जाती मानो उसका कोई मोल न हो। “तौभी,” यीशु ने कहा, “परमेश्वर उन में से एक को भी नहीं भूलता [उसको भी नहीं जो मुफ्त मिली थी]।” इस दृष्टांत का निचोड़ देते हुए, यीशु ने अंत में कहा: “तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो।” (लूका १२:७) इन शब्दों से उसके सुननेवालों को कितना प्रोत्साहन मिला होगा!
क्या आपको यीशु के इस प्रोत्साहक दृष्टांत की मुख्य बात समझ आयी? यदि यहोवा की नज़रों में छोटी चिड़ियों का मोल है तो उसके पार्थिव सेवक उसे कितने ज़्यादा प्रिय होंगे! यहोवा हमें व्यक्तिगत रूप से जानता है। यहोवा हममें से हरेक को इतना मूल्यवान समझता है कि वह हमारी छोटी-से-छोटी बारीकी को भी ध्यान में रखता है—हमारे सिर का एक-एक बाल तक गिना हुआ है।
लेकिन शैतान चाहता है कि हम यहोवा की सेवा छोड़ दें इसलिए वह ‘धोखा देनेवाली चालें’ चलने से बाज नहीं आएगा और हमारी अयोग्यता की भावनाओं का नाजायज़ फायदा उठाने की कोशिश करता रहेगा। लेकिन शैतान को जीतने का मौका नहीं दीजिए! शुरूआत में जिस मसीही स्त्री का ज़िक्र किया गया था उसे याद कीजिए। उसे प्रहरीदुर्ग पत्रिका में छपे एक लेख से मदद मिली। उसमें बताया गया था कि हमारी भावनाओं का नाजायज़ फायदा उठाने के लिए शैतान कैसी कोशिशें करता है।a वह कहती है: “मुझे इसका एहसास नहीं था कि मुझे निरुत्साहित करने के लिए शैतान मेरी ही भावनाओं से खेलने की कोशिश करता है। यह जानने के बाद मुझे प्रेरणा मिली है कि मैं इन भावनाओं से लड़ूँ। अब मैं सिर ऊँचा करके शैतान के इन हमलों का सामना कर सकती हूँ।”
यहोवा “सब कुछ जानता है।” (१ यूहन्ना ३:२०) जी हाँ, वह जानता है कि आज हम क्या सह रहे हैं। वह यह भी जानता है कि हमने अतीत में क्या सहा है जिससे हमारा आत्म-सम्मान चूर हो गया है। याद रखिए, महत्त्व इस बात का है कि यहोवा हमें किस नज़र से देखता है! हम अपने आपको चाहे कितना भी तुच्छ या निकम्मा क्यों न समझें, यहोवा हमें आश्वासन देता है कि उसका हरेक सेवक उसके लिए मूल्यवान है। हम यहोवा की बातों पर भरोसा कर सकते हैं क्योंकि वह अपने महाविरोधी के जैसा नहीं। परमेश्वर “झूठ बोल नहीं सकता।”—तीतुस १:२.
[फुटनोट]
a प्रहरीदुर्ग के अप्रैल १, १९९५ अंक में पृष्ठ १०-१५ पर लेख “परमेश्वर की नज़रों में आप बहुमूल्य हैं!” देखिए।
[पेज 12 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
प्रेममय पिता की तरह, यहोवा टूटे मनवालों के करीब रहता है
[पेज 13 पर तसवीर]
यदि यहोवा गौरैये को नहीं भूलता, तो वह आपको कैसे भूल सकता है?
[चित्रों का श्रेय]
Lydekker
Illustrated Natural History