यीशु का जीवन और सेवकाई
घमंडी और नम्र
यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के सद्गुणों का उल्लेख करने के बाद, यीशु उसके चारों ओर के उन घमंडी, अस्थिर लोगों की ओर ध्यान देता है। “इस समय के लोग,” वह घोषित करता है, “उन बालकों के समान है, जो बाजारों में बैठे हुए एक दूसरे को पुकारकर कहते हैं कि ‘हम ने तुम्हारे लिए बांसली बजाई, और तुम न नाचे, हम ने विलाप किया, और तुम ने छाती नहीं पीटी।”
यीशु क्या सूचित कर रहा है? वह स्पष्ट करता है: “यूहन्ना न खाता आया न पीता, और वे कहते हैं कि उस में दुष्टात्मा है। मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया और वे कहते हैं कि देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, महसूल लेनेवालों और पापियों का मित्र।”
लोगों को संतुष्ट करना असंभव है। कुछ भी उन्हें प्रसन्न नहीं करता। यूहन्ना ने स्वर्गदूत की वह घोषणा के अनुसार कि वह “दाखरस और मदिरा कभी न पिएगा” एक नाज़ीर के रूप में आत्मत्याग का एक सादगी भरा जीवन बिताया है। और फिर भी लोग कहते हैं कि उस में दुष्टात्मा है। दूसरी ओर, बिना किसी सादगी के, यीशु अन्य मनुष्यों के समान जी रहा है, और उस पर असंयम का दोष लगाया गया है।
लोगों को संतुष्ट करना कितना मुश्किल है! वे ऐसे मित्रों के समान हैं, जिन में से कुछ जब दूसरे बच्चे बाँसुरी बजाते हैं तब नाचने के द्वारा और जब उनके साथी विलाप करते हैं तब दुःख के साथ प्रतिक्रिया नहीं दिखाते। तथापि यीशु कहता है: “ज्ञान अपने कामों से सच्चा ठहराया गया है।” जी हाँ, वह प्रमाण—वे कार्य—यह स्पष्ट करता है कि दोनों यूहन्ना और यीशु के विरुद्ध लगाए गए दोष गलत हैं।
यीशु निन्दा करने के लिए खुराजीन, बैतसैदा, और कफरनहूम के नगरों को चुन लेता है जहाँ उस ने उसके सर्वाधिक शक्तिशाली कार्यों को प्रदर्शित किए हैं यीशु कहता है कि अगर वह उन्हें सूर और सैदा के फीनीकी नगरों में करता, तो वे टाट ओढ़कर और राख बैठकर मन फिरा लेते। कफरनहूम की निन्दा करते हुए, जो स्पष्टतः उसकी सेवकाई के दौरान उसका मूल-केंद्र था, यीशु कहता है: “न्याय के दिन तेरी दशा से सदोम के देश की दशा अधिक सहने योग्य होगी।
यीशु इससे क्या सूचित करता है? स्पष्टतः, वह यह सूचित कर रहा था कि सदोम नगर के निवासियों का पुनरुत्थान सम्भव न हो, साथ-साथ यीशु यहाँ कफरनहूम के लोगों की निन्दनीय दशा की गम्भीरता पर जोर दे रहा था, जब उसने यह कहा कि प्राचीन सदोम नगर के निवासियों की दशा ज्यादा सहनयोग्य होगी, क्योंकि इस्राएली श्रोतागण पूर्ण रूप से उनको न्याय के दिन पुनरुत्थान प्राप्त करने के योग्य नहीं समझते थे।
इसके बाद, यीशु अपने स्वर्गीय पिता की खुले आम स्तुति करता है। ऐसे करने के लिए यीशु इसलिए प्रेरित होता है, क्योंकि परमेश्वर बहुमूल्य आध्यात्मिक सच्चाइयों को अक्लमन्द और बुद्धिमान व्यक्तियों से छुपाया है परन्तु इन अद्भुत बातों को नम्र लोगों, मानो बच्चों के सामने प्रकट करता है।
अन्त में, यीशु यह आकर्षक निमंत्रण देता है: मेरा जुआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ, और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे क्योंकि मेरा जुआ सहज और मेरा बोझ हलका है।”
कैसे यीशु विश्रान्ति प्रदान करता है? वह उन दासतापूर्ण परम्पराओं से मुक्ति दिलाने के द्वारा जिन का उपयोग करके धार्मिक अगुए लोगों पर बोझ डालते हैं जिन में, उदाहरणार्थ सब्त पालन नियम भी शामिल थे। साथ ही, वह उन्हें राहत का मार्ग दिखाता है, जो राजनैतिक अधिकारियों के शासन का भारी बोझ महसूस कर रहे हैं और उन्हें भी जो एक पीड़ित अन्तःकरण का भार महसूस कर रहे हैं। वह ऐसे पीड़ित व्यक्तियों को बताते हैं कि कैसे उनके पापों को माफ किया जा सकेगा और कैसे वे परमेश्वर के साथ एक बहुमूल्य सम्बन्ध का आनन्द उठा सकेंगे।
यह सहज बोझ जो यीशु दे रहा है, वह परमेश्वर की ओर सम्पूर्ण समर्पण का बोझ है, हमारे सहानुभूतिशील और दयालु स्वर्गीय परमेश्वर की सेवा करने के योग्य बनना। और वह हलका बोझ जो यीशु उन्हें, जो उसके पास आते हैं, दे रहा है, वह जीवन के लिए परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार चलना है, उसकी ऐसी आज्ञाएं जो बिल्कुल बोझिल नहीं। मत्ती ११:१६-३०; लूका १:१५; ७:३१-३५; १ यूहन्ना ५:३.
◆ यीशु की पीढ़ी कैसे बच्चों के समान है?
◆ कैसे सदोम को यह कफरनहूम से अधिक सहनीय होगा?
◆ किस तरह लोगों पर बोझ है, और यीशु कौन-सी मुक्ति प्रदान करता है?