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  • थके हुए, पर हिम्मत नहीं हारते
    प्रहरीदुर्ग—2004 | अगस्त 15
    • 1, 2. (क) जो शुद्ध उपासना करना चाहते हैं, उन सभी को कौन-सा मनभावना न्यौता दिया गया है? (ख) क्या बात हमारी आध्यात्मिकता के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकती है?

      हम यीशु के चेले, उसके इस मनभावने न्यौते से बहुत अच्छी तरफ वाकिफ हैं: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। . . . क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।” (मत्ती 11:28-30) मसीहियों को यहोवा के “सन्मुख से विश्रान्ति के दिन” पाने का भी न्यौता मिलता है। (प्रेरितों 3:19) बेशक आपने खुद महसूस किया होगा कि बाइबल की सच्चाइयाँ सीखने, भविष्य के लिए एक उज्ज्वल आशा पाने और अपनी ज़िंदगी में यहोवा के सिद्धांतों को लागू करने से हम कितने तरोताज़ा हो जाते हैं।

      2 फिर भी, यहोवा के कुछ उपासकों को कभी-कभी मन की थकान आ घेरती है। कुछ मामलों में यह निराशा थोड़े वक्‍त के लिए रहती है, तो कई बार यह मायूसी लंबे अरसे तक कायम रहती है। जैसे-जैसे वक्‍त बीतता जाता है, कुछ भाई-बहनों को लगता है कि मसीही ज़िम्मेदारियों का भार उठाने से उन्हें विश्राम तो नहीं मिलता जैसा यीशु ने वादा किया था, इसके बजाय वे इस भार को उठाते-उठाते थक गए हैं। ऐसी गलत सोच, यहोवा के साथ एक मसीही के रिश्‍ते के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकती है।

  • थके हुए, पर हिम्मत नहीं हारते
    प्रहरीदुर्ग—2004 | अगस्त 15
    • मसीहियत बोझ नहीं डालती

      5. मसीह के चेले बनने के बारे में कौन-सी दो बातें एक-दूसरे को काटती हुई मालूम होती हैं?

      5 यह सच है कि मसीही जीवन जीने के लिए कड़ा संघर्ष करना ज़रूरी है। (लूका 13:24) यीशु ने तो यहाँ तक कहा था: “जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता।” (लूका 14:27) ऊपरी तौर पर, ऐसा लग सकता है कि यीशु के ये शब्द, उसका जूआ सहज और बोझ हलका होने की बात को काटते हैं। मगर, असल में ऐसा नहीं है।

      6, 7. यह क्यों कहा जा सकता है कि हमारा उपासना का तरीका थकानेवाला नहीं है?

      6 कड़ा संघर्ष और मेहनत-मशक्कत हमारे शरीर को ज़रूर थका देती है, मगर किसी अच्छे काम के लिए की गयी मेहनत से हमें संतोष और ताज़गी मिल सकती है। (सभोपदेशक 3:13, 22) और दूसरों को बाइबल की शानदार सच्चाइयाँ बताने से अच्छा काम भला और क्या हो सकता है? यही नहीं, परमेश्‍वर के उच्च नैतिक स्तरों के मुताबिक जीने की हमारी जद्दोजेहद, उन आशीषों के मुकाबले कुछ भी नहीं जो हमें इससे मिलती हैं। (नीतिवचन 2:10-20) सताए जाने पर भी, परमेश्‍वर के राज्य की खातिर दुःख झेलने को हम बड़े सम्मान की बात मानते हैं।—1 पतरस 4:14.

      7 यीशु का जूआ वाकई हमें तरोताज़ा करता है, खासकर जब हम देखते हैं कि झूठे धर्म के जूए से दबे रहनेवाले लोग कैसे आध्यात्मिक अंधकार में हैं। परमेश्‍वर हमसे प्यार करता है और ऐसी कोई माँग नहीं करता जिसे हम पूरा न कर पाएँ। यहोवा की “आज्ञाएं कठिन नहीं” हैं। (1 यूहन्‍ना 5:3) बाइबल में बतायी सच्ची मसीहियत हम पर बोझ नहीं डालती। जी हाँ, हमारा उपासना का तरीका थकाने और मायूस करनेवाला नहीं है।

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