यीशु का जीवन और सेवकाई
दुष्टात्मा-ग्रस्त लड़के को स्वस्थ किया गया
जब यीशु, पतरस, याकूब और यूहन्ना बाहर गए हुए होते हैं, संभवतः हेर्मोन् पहाड़ के एक पर्वत-स्कंध पर, दूसरे शिष्यों के सामने एक समस्या खड़ी होती है। अपनी वापसी पर, यीशु फ़ौरन देखते हैं कि कुछ गड़बड़ है। उसके शिष्यों के इर्द-गिर्द एक भीड़ जमा हो गयी है, और शास्त्री उनके साथ बहस कर रहे हैं। यीशु को देखते ही, लोगों को बहुत ही आश्चर्य होता है और वे दौड़कर उसे नमस्कार करते हैं। “तुम इनसे क्या विवाद कर रहे हो?” वह पूछता है।
भीड़ में से बाहर निकलकर, एक आदमी यीशु के सामने घुटने टेकता है और समझाने लगता है: “हे गुरु, मैं अपने पुत्र को, जिस में गूंगी आत्मा समाई है, तेरे पास लाया था, जहाँ कहीं वह उसे पकड़ती है, वहीं पटक देती है: और वह मुँह में फेन भर लाता, और दांत पीसता, और सूखता जाता है: और मैं ने तेरे चेलों से कहा था कि वे उसे निकाल दें परन्तु वह निकाल न सके।”
प्रत्यक्ष रूप से, शास्त्री इस लड़के को ठीक कर देने में शिष्यों की विफ़लता का पूरा-पूरा फ़ायदा उठा रहे हैं, और वे शायद उनके प्रत्यनों की ठट्ठा करते हैं। इस नाज़ुक स्थिति में, यीशु आ जाते हैं। “हे अविश्वासी पीढ़ी,” वह कहता है, “मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? और कब तक तुम्हारी सहूँगा?”
ऐसा प्रतीत होता है कि यीशु अपनी बातें वहाँ उपस्थित सभी लोगों को संबोधित कर रहा है, लेकिन इस में कोई शक नहीं कि ये ख़ास तौर से शास्त्रियों को संबोधित हैं, जो कि उसके शिष्यों के लिए परेशानी खड़ा कर रहे हैं। इसके आगे, यीशु उस लड़के के बारे में कहता है: “उसे मेरे पास लाओ।” पर जैसे ही वह लड़का यीशु के पास आ जाता है, उसे ग्रसित करनेवाली दुष्टात्मा उसे ज़मीन पर गिराती है और उसे सख़्त मरोड़ होने लगते हैं। लड़का ज़मीन पर लोटता है और उसके मुँह में से फेन बहता है।
“इसकी यह दशा कब से है?” यीशु पूछते हैं।
“बचपन से,” पिता जवाब देता है। “[दुष्टात्मा] ने इसे नाश करने के लिए कभी आग और कभी पानी में गिराया।” फिर पिता बिनती करता है: “यदि तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खाकर हमारा उपकार कर।”
पिता, शायद बरसों से मदद की खोज में रहा है। और अब, यीशु के शिष्यों की विफ़लता के कारण वह बहुत ही निराश हो गया है। उस आदमी की निराशोन्मत्त बिनती को लेकर, यीशु प्रोत्साहक रूप से कहते हैं: “वह अभिव्यक्ति, ‘यदि तू कर सकता है’! विश्वास करनेवाले के लिए सब कुछ हो सकता है।”
“मैं विश्वास करता हूँ!” पिता फ़ौरन बोल उठता है, लेकिन गिड़गिड़ाता है: “मेरे विश्वास में जहाँ कमी है, उसका उपाय कर!”
यह ग़ौर करते हुए कि लोग दौड़कर भीड़ लगा रहे हैं, यीशु दुष्टात्मा को डाँटता है: “हे गूंगी और बहरी आत्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ, उस में से निकल आ, और उस में फिर कभी प्रवेश न कर।” जैसे दुष्टात्मा निकलती है, यह फिर से लड़के को चिल्लाने के लिए प्रेरित करती है और उसे बहुत मरोड़ होने लगते हैं। फिर लड़का ज़मीन पर अचल पड़ा रहता है, जिस से कि अधिकांश लोग बोलने लगते हैं: “वह मर गया!” लेकिन यीशु लड़के का हाथ पकड़ता है, और वह उठ जाता है।
इस से पहले, जब शिष्यों को प्रचार करने के लिए भेजा गया था, उन्होंने दुष्टात्माओं को निकाल दिया था। इसलिए अब, जब वे किसी घर में प्रवेश करते हैं, वे एकान्त में यीशु से पूछते हैं: “हम उसे क्यों न निकाल सके?”
यह सूचित करते हुए कि यह उन में विश्वास की कमी के कारण था, यीशु जवाब देते हैं: “यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती।” इस मामले में जो ख़ास तौर से शक्तिशाली दुष्टात्मा संबद्ध थी, उसे निकालने के लिए प्रत्यक्ष रूप से तैयारी की आवश्यकता थी। पक्के विश्वास की ज़रूरत थी, और साथ ही ऐसी प्रार्थना की, जिस में परमेश्वर की समर्थ करनेवाली सहायता के लिए बिनती की जाती है।
फिर यीशु कहते हैं: “क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी हो, तो इस पहाड़ से कह सकोगे, कि ‘यहाँ से सरककर वहाँ चला जा,’ तो वह चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिए अन्होनी न होगी।”
विश्वास कितना ताक़तवर हो सकता है! यहोवा की सेवा में होनेवाली प्रगति में बाधा डालनेवाली रुकावटें और कठिनाइयाँ, प्रतीयमान रूप से एक वास्तविक बड़े पहाड़ के जैसे अलंघ्य और स्थिर लगती होंगी। फिर भी, यीशु दिखा रहे हैं कि अगर हम अपने दिलों में विश्वास विकसित करेंगे, उसे सींचेंगे, और उसे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करेंगे, तो यह परिपक्व होने तक बढ़ जाएगा और हमें ऐसी पहाड़-समान रुकावटों और कठिनाइयों पर विजय करने के लिए सामर्थ बनाएगा। मरकुस ९:१४-२९; मत्ती १७:१९, २०; लूका ९:३७-४३.
◆ हेर्मोन् पहाड़ से लौटने पर यीशु वहाँ कौनसी परिस्थिति पाते हैं?
◆ दुष्टात्मा-ग्रस्त लड़के के पिता को यीशु ने क्या प्रोत्साहन दिया?
◆ शिष्य दुष्टात्मा को क्यों निकाल न सके थे?
◆ यीशु दिखाते हैं कि विश्वास कितना ताक़तवर बन सकता है?