उन्होंने यहोवा की इच्छा पूरी की
मसीहा और राजा के रूप में यीशु का स्वागत किया जाता है!
निसान ९, सा.यु. ३३ में, यरूशलेम में प्रवेश करती एक कोलाहलपूर्ण भीड़ ने अनेक यहूदावासियों को चकित कर दिया। जबकि फसह से पहले लोगों को नगर में उमड़ते हुए देखना असाधारण नहीं था, फिर भी ये आगंतुक भिन्न थे। उनके बीच मुख्य व्यक्ति था वह मनुष्य जो एक गदही के बच्चे पर सवार था। वह मनुष्य था यीशु मसीह, और लोग उसके सामने कपड़े और खजूर की डालियाँ बिछा रहे थे और पुकार पुकारकर कह रहे थे: “दाऊद की सन्तान को होशाना; धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है, आकाश में होशाना।” उस भीड़ को देखकर, अनेक लोग जो पहले ही यरूशलेम में थे उस जलूस में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए।—मत्ती २१:७-९; यूहन्ना १२:१२, १३.
जबकि अभी उसका स्वागत किया जा रहा था, यीशु जानता था कि उसके सामने परीक्षाएँ आनेवाली हैं। बस पाँच दिन बाद ही, उसे इसी नगर में मार डाला जाएगा! जी हाँ, यीशु जानता था कि यरूशलेम विरोधी क्षेत्र था, और यही विचार मन में रखते हुए उसने नगर में इस प्रकार धूम से आने का प्रबन्ध किया।
एक प्राचीन भविष्यवाणी पूरी हुई
सामान्य युग पूर्व ५१८ में, जकर्याह ने यरूशलेम में यीशु के विजय प्रवेश के बारे में पूर्वबताया। उसने लिखा: “हे यरूशलेम जयजयकार कर! क्योंकि तेरा राजा तेरे पास आएगा; वह धर्मी और उद्धार पाया हुआ है, वह दीन है, और गदहे पर वरन गदही के बच्चे पर चढ़ा हुआ आएगा। . . . और वह अन्यजातियों से शान्ति की बातें कहेगा; वह समुद्र से समुद्र तक और महानद से पृथ्वी के दूर दूर के देशों तक प्रभुता करेगा।”—जकर्याह ९:९, १०.
सो निसान ९ को यरूशलेम में यीशु के प्रवेश ने बाइबल भविष्यवाणी पूरी की। यह कोई आकस्मिक घटना नहीं थी परन्तु ध्यान से सोची गयी थी। इससे पहले, जब वे यरूशलेम के निकट आ पहुँचे थे, यीशु ने अपने दो शिष्यों को निर्देश दिया था: “अपने साम्हने के गांव में जाओ, वहां पहुंचते ही एक गदही बन्धी हुई, और उसके साथ बच्चा तुम्हें मिलेगा; उन्हें खोलकर, मेरे पास ले आओ। यदि तुम से कोई कुछ कहे, तो कहो, कि प्रभु को इन का प्रयोजन है: तब वह तुरन्त उन्हें भेज देगा।” (मत्ती २१:१-३) लेकिन यीशु यरूशलेम में गदही पर सवार होकर क्यों जाना चाहता था, और भीड़ की प्रतिक्रिया का क्या महत्त्व था?
राजत्व के बारे में एक संदेश
प्रायः एक दृश्य घटना शाब्दिक वर्णन से अधिक शक्तिशाली होती है। अतः, कभी-कभी यहोवा ने अपने भविष्यवक्ताओं से उनके संदेश को अभिनय करके प्रस्तुत करने के लिए कहा ताकि उनका भविष्यसूचक संदेश और प्रबल हो जाए। (१ राजा ११:२९-३२; यिर्मयाह २७:१-६; यहेजकेल ४:१-१७) संचार के इस अति दृश्य माध्यम ने अति कठोर दर्शक के मन पर भी एक अमिट छाप छोड़ी। समान रीति से, यीशु ने यरूशलेम नगर में एक गदही पर सवार होकर आने के द्वारा एक शक्तिशाली संदेश को अभिनय करके प्रस्तुत किया। कैसे?
बाइबल समय में गदहा राजसी उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जाता था। उदाहरण के लिए, राजा के रूप में अभिषिक्त किए जाने के लिए सुलैमान अपने पिता के “खच्चर” पर चढ़कर गया, जो कि गदहे की संकर संतान होता है। (१ राजा १:३३-४०) सो यीशु का यरूशलेम में गदही पर चढ़कर आने का अर्थ होता कि वह अपने आपको एक राजा के रूप में प्रस्तुत कर रहा था।a भीड़ की प्रतिक्रिया ने इस संदेश को प्रबल किया। उस समूह ने, जिसमें निःसंदेह अधिकतर लोग गलीली थे, यीशु के सामने अपने कपड़े बिछाए—वह क्रिया जिसने येहू के राजत्व की जन घोषणा की याद दिलायी। (२ राजा ९:१३) उन्होंने यीशु को “दाऊद की सन्तान” कहा जिसने राजत्व के उसके वैध अधिकार पर ज़ोर दिया। (लूका १:३१-३३) और उन्होंने जो खजूर की डालियों का प्रयोग किया उसने प्रत्यक्षतः यह दिखाया कि वे उसके राजसी अधिकार के प्रति अधीन हैं।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १० से तुलना कीजिए।
सो निसान ९ को यरूशलेम में आए उस जलूस ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि यीशु परमेश्वर का नियुक्त मसीहा और राजा है। निःसंदेह, यीशु को इस ढंग से प्रस्तुत किया जाता देखकर सभी ख़ुश नहीं थे। ख़ासकर फरीसियों ने इस बात को एकदम अनुचित सोचा कि यीशु को ऐसा राजसी सम्मान दिया जाए। “हे गुरु,” उन्होंने माँग की, निःसंदेह क्रोध-भरी आवाज़ों में, “अपने चेलों को डांट।” यीशु ने उत्तर दिया: ‘मैं तुम से कहता हूं, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।’ (लूका १९:३९, ४०) जी हाँ, परमेश्वर का राज्य यीशु के प्रचार का मूल-विषय था। वह निडरता से इस संदेश की घोषणा करता, चाहे लोग इसे स्वीकार करते या नहीं।
हमारे लिए सबक़
भविष्यवक्ता जकर्याह द्वारा पूर्वबताए गए ढंग से यरूशलेम में प्रवेश करने के लिए यीशु को बड़े साहस की ज़रूरत पड़ी। वह जानता था कि ऐसा करने से वह अपने शत्रुओं का क्रोध भड़का रहा था। अपने स्वर्गारोहण से पहले, यीशु ने अपने अनुयायियों को यह कार्य-नियुक्ति दी कि परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करें और ‘सब जातियों के लोगों को चेला बनाएँ।’ (मत्ती २४:१४; २८:१९, २०) इस कार्य को पूरा करने के लिए भी साहस की ज़रूरत होती है। सभी इस संदेश को सुनने के लिए ख़ुश नहीं होते। कुछ इसके प्रति उदासीन हैं, और दूसरे इसका विरोध करते हैं। कुछ सरकारों ने प्रचार कार्य पर प्रतिबन्ध लगाए हैं या उसे पूरी तरह से निषिद्ध कर दिया है।
फिर भी, यहोवा के साक्षी समझते हैं कि परमेश्वर के स्थापित राज्य के सुसमाचार का प्रचार किया जाना अवश्य है, चाहे लोग सुनें या न सुनें। (यहेजकेल २:७) जैसे-जैसे वे इस जीवन-रक्षक कार्य को करते हैं, उन्हें यीशु की प्रतिज्ञा से आश्वासन मिलता है: “देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।”—मत्ती २८:२०.
[फुटनोट]
a मरकुस का वृत्तान्त यह भी बताता है कि गदही के उस बच्चे पर “कभी कोई नहीं चढ़ा।” (मरकुस ११:२) प्रत्यक्षतः, वह जानवर जो अब तक प्रयोग नहीं किया गया था पवित्र उद्देश्यों के लिए ख़ासकर उपयुक्त था।—गिनती १९:२; व्यवस्थाविवरण २१:३; १ शमूएल ६:७ से तुलना कीजिए।