वह चिन्ह केवल पूर्व इतिहास नहीं
मध्य पूर्व, यरूशलेम, में एक मोहक ऐतिहासिक स्थल है जो आज विचारशील लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। यह वह उन्नत स्थान है जहाँ एक समय, पहली सदी के रामी इतिहासकार टैकिटस के शब्दों मे, “असीम धन का एक मन्दिर खड़ा था।” मन्दिर के इमारतों का कोई भी अवशेष बचा नहीं है लेकिन चबूतरा अब भी है। वह एक भविष्यसूचक चिन्ह की सच्चाई का प्रमाण देता है जो आप पर प्रभाव डालता है।
पुरातत्त्वज्ञ मन्दिर के चबूतरे के दक्षिण की ओर बहुत शोध कर चुके हैं। जे. ए. थॉम्सन द बाइबल ॲन्ड आर्कियॉलॉजि में कहते हैं, “सब से अधिक रोचक प्राप्तियों में से एक, हेरोदी चिनाई के बड़े बड़े शिलाखण्ड हैं जो प्रत्यक्षतः सा. यू. ७० में यरूशलेम के नाशन के समय मन्दिर की दीवार के ऊपर से नीचे डाला गया था।”
यरुशलेम और उसके मन्दिर के नाशन के ३७ वर्ष पहले से ही उसकी भविष्यवाणी की गयी थी। तीन इतिहासकारों ने यीशु के इन शब्दों का अभिलेख किया कि “यहाँ किसी पत्थर पर पत्थर भी न छूटेगा, जो ढाया न जाएगा।” (लूका २१:६; मत्ती २४:१, २; मरकुस १३:१, २) बाद में एक ऐसा वार्तालाप हुआ जो आज सभों पर प्रभाव करता है जिस में आप भी हैं।
उसके शिष्यों ने उसस पूछा, “हे गुरू, ये बातें जब पूरी होने पर होंगी, तो उस समय का क्या चिन्ह होगा?” यीशु के अनुसार मन्दिर के नाशन की ओर जानेवाली कालावधि युध्द, भूकम्प, अकाल, और महामारियों से चिन्हित होंगी। उसने आगे कहा, “जब तक ये सब बातें न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का कदापि अन्त न होगा।”—लूका २१:७, १०, ११, ३२.
क्या उस पीढ़ी ने “चिन्ह” की पूर्ति देखी? जी हाँ। बाइबल एक “बड़ा अकाल” और तीन भूकम्प, जिन में से दो ‘बड़े भूकम्प’ थे, का उल्लेख करती है। (प्रेरितों के काम ११:२८; १६:२६; मत्ती २७:५१; २८:१, २) सांसारिक इतिहास के अनुसार, उस कालावधि के अन्दर अन्य भूकम्प और अकाल भी घटित हुए थे। वह काल युध्दों का भी था, जिन में से दो यरूशलेम के निवासियों के विरोध रोमी सेनाओं द्वारा लड़े गए थे। यरूशलेम की दूसरी घेराबन्दी के कारण भयानक अकाल और महामारी उत्पन्न हुए और जिस का अन्तिम परिणाम सा. यू. ७० में उस शहर और उसके मन्दिर का नाशन था। यरूशलेम का वह स्थल जहाँ वह मन्दिर खड़ा था उन पहली सदी की भयानक घटनाओं का एक मूक गवाह बनकर खड़ा है।
कोई ऐसे कह सकता है, ‘दिलचस्पी की बात है, लेकिन यह मुझ पर कैसे असर करता है?’ इस सम्बन्ध में यह चिन्ह केवल पूर्व इतिहास नहीं है। पहली सदी में यह केवल अंशतः पूर्ण हुआ था। उदाहरणार्थ, यीशु ने एक ऐसे समय की भविष्यवाणी की थी जब मानव जाति “सूरज और चान्द और तारों में चिन्ह” और “समुद्र के गरजने” के कारण बहुत भय में होंगे। उस चिन्ह का यह भाग “परमेश्वर के राज्य”—एक शासन जो विश्वा संकट से हमेशा का छुटकारा लानेवाला है— की निकटता को सूचित करता है।—लूका २१:२५-३१.
ऐसी बातें पहली सदी में नहीं हुई थी। आज, १,९०० वर्ष बाद भी, मानव जाति युध्दों, भूकम्पों, अकालों और महामारियों से मुक्ति की इन्तज़ार कर रही है। इसलिए, उस चिन्ह की एक दूसरी सम्पूर्ण पूर्ति अवश्य होना है। इस को साबित करते हुए प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में ऐसे भविष्यसूचक वर्णन हैं जो उस चिन्ह के अनुरूप हैं, और फिर भी यरूशलेम के नाशन के बाद में लिखा था। (प्रकाशितवाक्य ६:१-८) इस तरह, यह महत्त्वपूर्ण सवाल उठता है: क्या यह चिन्ह हमारे दिनों में भी देखा गया है?