बाइबल की किताब नंबर 41—मरकुस
लेखक: मरकुस
लिखने की जगह: रोम
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 60–65
कब से कब तक का ब्यौरा: सा.यु. 29–33
जब यीशु को गतसमनी बाग में गिरफ्तार किया गया, तब सभी प्रेरित वहाँ से भाग खड़े हुए। लेकिन “एक नवयुवक [ने, जो] अपने नंगे शरीर पर केवल मलमल की चादर ओढ़े हुए” था, उसका पीछा किया। जब भीड़ ने उसे भी धर-दबोचना चाहा, तो “वह मलमल की चादर छोड़कर नंगा ही भाग निकला।” आम तौर पर माना जाता है कि यह नौजवान मरकुस था। उसे प्रेरितों की किताब में ‘यूहन्ना मरकुस’ कहा गया है। ऐसा मालूम होता है कि वह यरूशलेम के एक अमीर घराने से था, क्योंकि उसका अपना एक घर था और नौकर-चाकर भी थे। उसकी माँ, मरियम भी एक मसीही थी और पहली सदी के मसीही भाई-बहन उन्हीं के घर पर सभाओं के लिए इकट्ठे होते थे। एक मौके पर, जब स्वर्गदूत ने पतरस को जेल से छुड़ाया, तब पतरस सीधे मरकुस के घर गया और उसने वहाँ भाइयों को इकट्ठा पाया।—मर. 14:51, 52, NHT; प्रेरि. 12:12, 13.
2 कुप्रुस का रहनेवाला एक लेवी और मिशनरी बरनबास मरकुस का भाई लगता था। (प्रेरि. 4:36; कुलु. 4:10) यरूशलेम में अकाल पड़ने पर जब बरनबास और पौलुस भाइयों को राहत साम्रगी देने आए, तब इसी दौरान मरकुस की जान-पहचान पौलुस से हुई। इसमें कोई शक नहीं कि ऐसे भाइयों और दूसरी जगहों से आनेवाले जोशीले सेवकों की संगति में रहकर ही मरकुस के अंदर मिशनरी सेवा का जज़्बा पैदा हुआ। इसलिए हम पढ़ते हैं कि पौलुस और बरनबास की पहली मिशनरी यात्रा में मरकुस उनका साथी और सेवक बना। मगर किसी वजह से मरकुस पंफूलिया के पिरगा में उनका साथ छोड़कर वापस यरूशलेम लौट आया। (प्रेरि. 11:29, 30; 12:25; 13:5, 13) इसलिए पौलुस ने अपनी दूसरी मिशनरी यात्रा के लिए उसे साथ ले जाने से इनकार कर दिया। नतीजा, पौलुस और बरनबास की जोड़ी टूट गयी। पौलुस ने सीलास को अपना साथी चुना, जबकि बरनबास ने मरकुस को साथ लिया और वे जहाज़ से कुप्रुस के लिए रवाना हो गए।—प्रेरि. 15:36-41.
3 वक्त के गुज़रते मरकुस ने प्रचार काम में अपनी काबिलीयत का सबूत दिया। इस तरह वह न सिर्फ बरनबास के लिए, बल्कि आगे चलकर प्रेरित पतरस और पौलुस के लिए भी एक अनमोल मददगार साबित हुआ। वह उस दौरान पौलुस के साथ था (करीब सा.यु. 60-61) जब पौलुस को पहली बार रोम में कैद किया गया था। (फिले. 1, 24) फिर हम पढ़ते हैं कि मरकुस सा.यु. 62 और 64 के बीच पतरस के साथ बाबुल में था। (1 पत. 5:13) करीब सा.यु. 65 में, जब पौलुस को दोबारा रोम में कैद किया गया, तब उसने तीमुथियुस को खत लिखकर उसे आने को कहा। और अपने साथ मरकुस को भी लाने को कहा, क्योंकि उसका कहना था कि “सेवा के लिये वह मेरे बहुत काम का है।” (2 तीमु. 1:8; 4:11) बाइबल में यहाँ आखिरी बार मरकुस का ज़िक्र मिलता है।
4 सुसमाचार की चारों किताबों में मरकुस की किताब सबसे छोटी है और माना जाता है कि मरकुस ही इसका लेखक है। उसने यीशु के प्रेरितों के साथ सेवा की थी और अपनी पूरी ज़िंदगी सुसमाचार सुनाने के काम में लगा दी थी। लेकिन वह 12 प्रेरितों में से नहीं था और ना ही वह यीशु का करीबी साथी था। तो फिर उसे यीशु की सेवा के बारे में बारीक जानकारी कहाँ से मिली, जो उसके ब्यौरे को शुरू से लेकर आखिर तक जानदार बनाती है? पेपीअस, टर्टलियन और ऑरिजन का मानना था कि उसे यह जानकारी पतरस से मिली जिसके वह बहुत करीब था।a क्या पतरस ने उसे “मेरा पुत्र” नहीं कहा था? (1 पत. 5:13) मरकुस ने जो-जो घटनाएँ दर्ज़ कीं, पतरस करीब-करीब उन सभी घटनाओं का चश्मदीद गवाह था। इसलिए यह मुमकिन है कि मरकुस ने पतरस से ऐसी कई बातें सुनी और दर्ज़ की होंगी, जो सुसमाचार की दूसरी किताबों में नहीं पायी जातीं। जैसे, उसका उन “मज़दूरों” का ज़िक्र करना जो जब्दी के लिए काम करते थे; एक कोढ़ी का यीशु के ‘साम्हने घुटने टेकना’ और उससे बिनती करना; जिस आदमी में दुष्टात्माएँ समायी हुई थीं, उसका ‘अपने आपको पत्थरों से घायल करना’ और यीशु का “मंदिर के सामने” जैतून पर्वत पर बैठे यह भविष्यवाणी करना कि ‘मनुष्य का पुत्र बड़ी सामर्थ और महिमा के साथ आएगा।’—मर. 1:20, 40; 5:5; 13:3, 26.
5 पतरस एक ऐसा इंसान था, जिसमें गहरी भावनाएँ थीं। इसलिए वह यीशु की भावनाओं को बखूबी समझ सका और उन्हें मरकुस को भी बयान कर सका। तभी मरकुस अपनी किताब में अकसर यह बताता है कि यीशु के अंदर कैसी भावनाएँ उठीं और उसने क्या किया। इसकी कुछ मिसालें हैं: यीशु ने “उदास होकर, उन को क्रोध से चारों ओर देखा;” उसने “आह भरी;” और ‘अपनी आत्मा में गहरी आह भरी।’ (3:5; 7:34; 8:12, NHT) सिर्फ मरकुस ही बताता है कि यीशु ने एक जवान और अमीर शासक के लिए कैसा महसूस किया। वह लिखता है कि यीशु को उस पर “प्यार आया।” (10:21, NHT) इसके अलावा, एक मौके पर यीशु न सिर्फ एक बच्चे को अपने चेलों के बीच खड़ा करता है, बल्कि ‘उसके कंधों पर हाथ रखता है’ (NW) और एक दूसरे मौके पर वह ‘बच्चों को गोद में लेता है।’ इन ब्यौरों से हमें यीशु के प्यार की क्या ही ज़िंदा मिसाल मिलती है!—9:36; 10:13-16.
6 पतरस स्वभाव से उतावला, ज़िंदादिल, जोशीला, फुर्तीला और बातों को ब्यौरेदार तरीके से समझानेवाला था। उसके यही कुछ गुण मरकुस के लिखने के अंदाज़ में देखे जा सकते हैं। मरकुस की किताब पढ़ने पर लगता है कि वह घटनाओं को जल्दी-जल्दी बताना चाहता है। मिसाल के लिए, उसने “तुरन्त” शब्द का कई बार इस्तेमाल किया और ऐसा करके कहानी को रोमांचक बनाया।
7 यह सच है कि अपनी किताब लिखते वक्त, मरकुस के पास मत्ती की किताब मौजूद थी और यह भी सच है कि मरकुस की किताब की सिर्फ 7 प्रतिशत जानकारी सुसमाचार की बाकी किताबों में नहीं दी गयी है। मगर यह मानना एक भूल होगी कि मरकुस ने मत्ती की किताब का निचोड़ लेकर और उसमें कुछेक जानकारी जोड़कर अपनी किताब तैयार की। मत्ती ने अपनी किताब में यीशु को वादा किया गया मसीहा और राजा बताया था, जबकि मरकुस एक दूसरे नज़रिए से यीशु की ज़िंदगी और उसके कामों की चर्चा करता है। वह यीशु को परमेश्वर के बेटे के तौर पर पेश करता है, जो बड़े-बड़े चमत्कार करता है। इतना ही नहीं, वह उसे जीत हासिल करनेवाले उद्धारकर्त्ता के तौर पर भी पेश करता है। मरकुस मसीह के उपदेशों और शिक्षाओं के बजाय उसके कामों पर ज़ोर देता है। उसकी किताब में यीशु के कुछेक दृष्टांत और उसका सिर्फ एक लंबा भाषण दर्ज़ है, जबकि पहाड़ी उपदेश का इसमें कहीं भी ज़िक्र नहीं है। यही वजह है कि बाकी सुसमाचार की किताबों के मुकाबले मरकुस की किताब छोटी है। लेकिन हाँ, उसमें उतनी ही सनसनीखेज़ घटनाएँ दी गयी हैं, जितनी कि दूसरी किताबों में हैं। इसमें कम-से-कम 19 चमत्कारों का खास ज़िक्र किया गया है।
8 मत्ती ने अपनी किताब यहूदियों के लिए लिखी थी, जबकि मरकुस ने खासकर रोमियों को ध्यान में रखकर अपनी किताब लिखी थी। यह हम कैसे जानते हैं? मरकुस की किताब में जहाँ बातचीत में मूसा की कानून-व्यवस्था का ज़िक्र आता है, वहाँ छोड़ और कहीं भी व्यवस्था के बारे में नहीं बताया गया है। इसके अलावा, इसमें यीशु की वंशावली भी नहीं दी गयी है। मसीह के बारे में सुसमाचार को पूरी दुनिया के लिए बहुत ही ज़रूरी समाचार बताया गया है। मरकुस यहूदी दस्तूरों और शिक्षाओं के बारे में ज़्यादा जानकारी देता है, जिससे शायद उसके पढ़नेवाले यानी गैर-यहूदी अनजान थे। (2:18; 7:3, 4; 14:12; 15:42) किताब में अरामी शब्दों का अनुवाद किया गया है। (3:17; 5:41; 7:11, 34; 14:36; 15:22, 34) मरकुस इस्राएल देश की नदियों, पहाड़ों, जंगलों और पेड़-पौधों के नाम देने के साथ-साथ उनके बारे में ज़्यादा जानकारी भी देता है। (1:5, 13; 11:13; 13:3) यहूदी सिक्कों की कीमत, रोमी पैसों में बतायी गयी है। (12:42, NHT फुटनोट) सुसमाचार के दूसरे लेखकों के मुकाबले वह ज़्यादा लातिनी शब्दों का इस्तेमाल करता है। जैसे, स्पेक्युलेटर (सिपाही), प्रीटोरियुम (राज्यपाल का महल), सेनचुरीओ (सूबेदार)।—6:27; 15:16, 39.
9 मरकुस ने अपनी किताब रोमी लोगों के लिए लिखी थी, तो यह मुमकिन है कि उसने इसे रोम में लिखा हो। प्राचीन इतिहासकारों की राय और किताब में दी बातों से हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि इसे रोम में उस दौरान लिखा गया था, जब प्रेरित पौलुस को पहली या दूसरी बार कैद किया गया था। यानी सा.यु. 60-65 के सालों के दौरान। इन सालों में मरकुस कम-से-कम एक बार रोम गया था और शायद दूसरी बार भी गया हो। दूसरी और तीसरी सदी के सभी जाने-माने विद्वान पुख्ता करते हैं कि मरकुस ही इसका लेखक था। यही नहीं, दूसरी सदी के बीच के सालों में मरकुस की किताब मसीहियों में इस्तेमाल होने लगी थी। मसीही यूनानी शास्त्र की सभी प्राचीन सूचियों में मरकुस किताब का नाम आता था, जो साबित करता है कि उसकी किताब सच्ची है।
10 मूल भाषा में, मरकुस किताब का अध्याय 16 आयत 8 पर समाप्त होता है। कुछ बाइबलों में, जैसे कि हमारी हिंदी बाइबल में आयतें 9-20 जोड़ी गयी हैं। लेकिन इन आयतों को सच्चा नहीं माना जाता। क्यों? क्योंकि ज़्यादातर प्राचीन हस्तलिपियों में, जैसे कि साइनाइटिक और वैटिकन नं. 1209 में ये आयतें नहीं पायी जातीं। चौथी सदी के विद्वान यूसेबियस और जेरोम का भी मानना था कि मरकुस किताब का सच्चा रिकॉर्ड इन शब्दों से खत्म होता है: “क्योंकि डरती थीं।” इस तरह यह किताब अचानक से खत्म हो जाती है। शायद इसी वजह से इसमें दूसरी आयतों को जोड़ा गया था, ताकि इसकी समाप्ति पढ़ने में थोड़ी सही लगे।
11 मरकुस की किताब में दिया ब्यौरा सौ-फीसदी सच है। यह इस बात से देखा जा सकता है कि यह किताब, सुसमाचार की दूसरी किताबों और उत्पत्ति से लेकर प्रकाशितवाक्य तक, बाइबल की सभी किताबों से पूरी तरह मेल खाती है। यही नहीं, यीशु को बार-बार एक ऐसे शख्स के तौर पर पेश किया गया है जिसके पास अधिकार है। और यह अधिकार न सिर्फ उसकी बातों में देखा जा सकता था, बल्कि कुदरत की शक्तियों पर, शैतान और दुष्टात्माओं पर, बीमारियों पर, यहाँ तक कि मौत पर भी देखा जा सकता था। इसलिए मरकुस अपनी किताब की शुरूआत इन लाजवाब शब्दों से करता है: “परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के सुसमाचार का आरम्भ।” यीशु का इस धरती पर आना और उसकी सेवा वाकई एक “सुसमाचार” थी। इसलिए मरकुस की किताब का अध्ययन करने से सभी को फायदा होगा। अपनी किताब में उसने सा.यु. 29 के वसंत से लेकर सा.यु. 33 के वसंत तक की घटनाओं को दर्ज़ किया है।
क्यों फायदेमंद है
31 पहली सदी से लेकर आज तक जिस किसी ने यीशु के बारे में मरकुस का जीता-जागता ब्यौरा पढ़ा है, वे इसी नतीजे पर पहुँचे हैं कि मसीहा के बारे में इब्रानी शास्त्र में दी ढेरों भविष्यवाणियाँ पूरी हुई हैं। किताब के पहले हवाले, “देख, मैं अपने दूत को तेरे आगे भेजता हूं,” से लेकर यातना स्तंभ पर दर्द से तड़पते यीशु के इन शब्दों तक, “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?” मरकुस ने यीशु की जोश-भरी सेवा के बारे में जो भी लिखा, वह इब्रानी शास्त्र की भविष्यवाणियों से मेल खाता है। (मर. 1:2; 15:34; मला. 3:1; भज. 22:1) यही नहीं, यीशु के चमत्कार, उसकी खरी शिक्षा, ज़बरदस्त दलीलें देकर इलज़ामों को झूठा साबित करने की उसकी काबिलीयत, परमेश्वर के वचन और उसकी आत्मा पर उसका पूरा भरोसा और भेड़ों की प्यार-भरी देखभाल करना, ये सब बातें साबित करती हैं कि वह परमेश्वर का बेटा था और उसके पास अधिकार था। वह “अधिकार से” (NHT) लोगों को सिखाता था और यह अधिकार उसे यहोवा से मिला था। उसने “परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार” करने पर ज़ोर दिया। दूसरे शब्दों में कहें तो धरती पर उसका सबसे अहम काम यह ऐलान करना था कि “परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है।” यीशु की शिक्षाओं से उन सबको बेहिसाब फायदे हुए हैं, जिन्होंने उन शिक्षाओं को माना है।—मर. 1:14, 15, 22.
32 यीशु ने अपने चेलों से कहा: “तुम को तो परमेश्वर के राज्य के भेद की समझ दी गई है।” मूल भाषा में, मरकुस ‘परमेश्वर का राज्य’ इन शब्दों का 14 बार इस्तेमाल करता है और ऐसे कई सिद्धांत बताता है, जिन पर चलकर लोग इस राज्य के ज़रिए जीवन पा सकेंगे। यीशु ने कहा: “जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे बचाएगा।” ज़िंदगी पाने के लिए यह ज़रूरी है कि हम अपने रास्ते में आनेवाली हर बाधा को दूर करें: “काना होकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना तेरे लिये इस से भला है, कि दो आंख रहते हुए तू नरक में डाला जाए।” यीशु ने आगे कहा, “जो कोई परमेश्वर के राज्य को बालक की नाई ग्रहण न करे, वह उस में कभी प्रवेश करने न पाएगा,” और “धनवानों को परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है!” यीशु ने कहा कि जिस इंसान ने यह समझ लिया कि दो सबसे बड़ी आज्ञाओं को मानना, होमों और बलिदानों से बढ़कर है वह इंसान “परमेश्वर के राज्य से दूर नहीं।” मरकुस की किताब में राज्य के बारे में इन शिक्षाओं के अलावा दूसरी शिक्षाओं में भी कई बढ़िया सिद्धांत दिए गए हैं, जिन्हें हम अपनी रोज़मर्रा ज़िंदगी में लागू कर सकते हैं।—4:11; 8:35; 9:43-48; 10:13-15, 23-25; 12:28-34.
33 “मरकुस रचित सुसमाचार” को एक ही बार में एक या दो घंटे में पढ़ा जा सकता है। इससे पढ़नेवाले को संक्षिप्त में यीशु की सेवा का रोमांचक और ज़बरदस्त ब्यौरा मिलेगा। ईश्वर-प्रेरणा से दर्ज़ इस किताब को सरसरी तौर पर पढ़ने, साथ ही उसका गहराई से अध्ययन करने और उस पर मनन करने से हमेशा फायदे ही होंगे। मरकुस की किताब से जिस तरह पहली सदी के मसीहियों को फायदा हुआ था, उसी तरह आज ज़ुल्म सहनेवाले मसीहियों को भी फायदा होता है। क्योंकि आज सच्चे मसीहियों को “कठिन समय” का सामना करना पड़ता है और ऐसे में उन्हें परमेश्वर से मदद की ज़रूरत होती है। यह मदद मरकुस की किताब में पायी जाती है, जिसमें हमारे आदर्श यीशु मसीह की दास्तान दर्ज़ है। इसलिए इसे पढ़िए, इसमें दी रोमांचक घटनाओं का लुत्फ उठाइए। साथ ही, इससे हौसला पाइए कि आप अपने विश्वास के कर्त्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु के नक्शेकदम पर चलेंगे। और ऐसा करते वक्त आप वही खुशी ज़ाहिर करेंगे, जो यीशु ने दिखायी थी और जिस खुशी को कोई उससे छीन नहीं सका था। (2 तीमु. 3:1; इब्रा. 12:2) जी हाँ, इस किताब को पढ़िए और देखिए कि यीशु कैसा जोशीला इंसान था। अपने अंदर उसके जैसा जोश पैदा कीजिए। और जिस तरह यीशु ने आज़माइशों और विरोध के दौरान हिम्मत दिखायी और अपनी खराई पर बना रहा, आप भी वैसा ही कीजिए। बाइबल की इस ईश्वर-प्रेरित किताब में दी अनमोल बातों से तसल्ली पाइए। ऐसा हो कि यह किताब हमेशा की ज़िंदगी पाने में आपकी मदद करें!
[फुटनोट]
a इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 2, पेज 337.