स्वर्गीय नागरिकता वाले मसीही साक्षी
“परन्तु हमारी नागरिकता स्वर्ग की है।”—फिलिप्पियों ३:२०, NHT.
१. कुछ मनुष्यों के सम्बन्ध में यहोवा का क्या अद्भुत उद्देश्य है?
मनुष्यों के तौर पर जन्मे व्यक्ति स्वर्ग में राजाओं और याजकों के तौर पर शासन करेंगे—यहाँ तक कि स्वर्गदूतों पर भी। (१ कुरिन्थियों ६:२, ३; प्रकाशितवाक्य २०:६) यह क्या ही आश्चर्यजनक सच्चाई है! किन्तु, यह यहोवा का उद्देश्य था, और वह इसे अपने एकलौते पुत्र, यीशु मसीह के द्वारा पूरा करता है। हमारा सृष्टिकर्ता ऐसा कार्य क्यों करता है? और इस बात के ज्ञान का आज एक मसीही पर कैसा असर होना चाहिए? आइए देखें कि बाइबल इन सवालों का जवाब कैसे देती है।
२. यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने कौन-से नए कार्य की घोषणा की जो यीशु करता, और यह नया कार्य किससे सम्बन्धित था?
२ जब यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला यीशु के लिए मार्ग तैयार कर रहा था, उसने घोषणा की कि यीशु कुछ नया कार्य करेगा। अभिलेख कहता है: “[यूहन्ना] यह प्रचार करता था, कि मेरे बाद वह आने वाला है, जो मुझ से शक्तिमान है; मैं इस योग्य नहीं कि झुककर उसके जूतों का बन्ध खोलूं। मैं ने तो तुम्हें पानी से [के द्वारा, NW] बपतिस्मा दिया है पर वह तुम्हें पवित्र आत्मा से [के द्वारा, NW] बपतिस्मा देगा।” (मरकुस १:७, ८) इससे पहले, किसी भी व्यक्ति का पवित्र आत्मा के द्वारा बपतिस्मा नहीं हुआ था। यह एक नयी व्यवस्था थी जिसमें पवित्र आत्मा अंतर्ग्रस्त थी, और इसका सम्बन्ध मनुष्यों को स्वर्गीय शासन के लिए तैयार करने के यहोवा के उस उद्देश्य से था जो जल्द ही प्रकट होनेवाला था।
‘नये सिरे से जन्मे’
३. स्वर्ग के राज्य के बारे में कौन-सी नयी बातें यीशु ने नीकुदेमुस को समझायीं?
३ एक प्रमुख फरीसी के साथ एक गुप्त भेंट में, यीशु ने इस ईश्वरीय उद्देश्य के बारे में ज़्यादा बातें प्रकट कीं। फरीसी नीकुदेमुस यीशु के पास रात के समय आया और यीशु ने उससे कहा: “यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।” (यूहन्ना ३:३) नीकुदेमुस, जिसने एक फरीसी के तौर पर इब्रानी शास्त्र का अध्ययन किया होगा, परमेश्वर के राज्य की महान सच्चाई के बारे में थोड़ा-बहुत जानता था। दानिय्येल की किताब ने भविष्यवाणी की कि यह राज्य ‘मनुष्य के सन्तान से’ किसी व्यक्ति को और “परमप्रधान ही की प्रजा अर्थात् उसके पवित्र लोगों” को दिया जाता। (दानिय्येल ७:१३, १४, २७) इस राज्य को अन्य सभी राज्यों को ‘चूर चूर करना था, और उनका अन्त कर डालना था’ और सदा के लिए बने रहना था। (दानिय्येल २:४४) संभवतः, नीकुदेमुस का विचार था कि ये भविष्यवाणियाँ यहूदी जाति के सम्बन्ध में पूरी होतीं; लेकिन यीशु ने कहा कि राज्य को देखने के लिए, एक व्यक्ति को नए सिरे से जन्म लेना पड़ता। नीकुदेमुस को समझ नहीं आया, इसलिए यीशु ने आगे कहा: “जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।”—यूहन्ना ३:५.
४. पवित्र आत्मा से जन्म लेनेवालों के लिए, यहोवा के साथ उनका सम्बन्ध कैसे बदलता?
४ यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने पवित्र आत्मा के द्वारा बपतिस्मे की बात की थी। अब, यीशु आगे कहता है कि एक व्यक्ति को यदि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना है तो उसके लिए पवित्र आत्मा से जन्म लेना ज़रूरी है। इस अनोखे जन्म के द्वारा, अपरिपूर्ण पुरुष और स्त्रियाँ यहोवा परमेश्वर के साथ एक अति विशेष सम्बन्ध में आते हैं। वे उसकी दत्तक सन्तान बनते हैं। हम पढ़ते हैं: “जितनों ने [यीशु को] ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।”—यूहन्ना १:१२, १३; रोमियों ८:१५.
परमेश्वर के सन्तान
५. विश्वासी चेलों ने पवित्र आत्मा के द्वारा कब बपतिस्मा प्राप्त किया, और उसी समय पवित्र आत्मा की कौन-सी सम्बन्धित कार्यवाही हुई?
५ जब यीशु ने नीकुदेमुस से बात की, तब पवित्र आत्मा यीशु पर आ चुकी थी, उसे परमेश्वर के राज्य में उसके भावी राजत्व के लिए अभिषिक्त किया था और परमेश्वर ने सार्वजनिक रूप से यीशु को अपने पुत्र के तौर पर स्वीकार किया था। (मत्ती ३:१६, १७) सामान्य युग ३३ में पिन्तेकुस्त के दिन यहोवा ने और अधिक आत्मिक सन्तान उत्पन्न की। यरूशलेम में ऊपर के कमरे में एकत्रित विश्वासी चेलों ने पवित्र आत्मा के द्वारा बपतिस्मा प्राप्त किया। उसी समय, उन्होंने परमेश्वर के आत्मिक पुत्र बनने के लिए पवित्र आत्मा से नए सिरे से जन्म लिया। (प्रेरितों २:२-४, ३८; रोमियों ८:१५) इसके अतिरिक्त, उन्हें भावी स्वर्गीय मीरास के उद्देश्य से पवित्र आत्मा के द्वारा अभिषिक्त किया गया और उस स्वर्गीय आशा की निश्चितता के प्रमाणस्वरूप उन पर पहले-पहल पवित्र आत्मा के द्वारा मुहर लगायी गयी।—२ कुरिन्थियों १:२१, २२.
६. स्वर्गीय राज्य के सम्बन्ध में यहोवा का उद्देश्य क्या है, और यह उचित क्यों है कि इसमें मनुष्यों का भाग हो?
६ उस राज्य में प्रवेश करने के लिए परमेश्वर द्वारा चुने गए ये पहले अपरिपूर्ण मानव थे। अर्थात्, अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के बाद उन्हें उस स्वर्गीय राज्य संगठन का भाग बनना था। यह स्वर्गीय राज्य संगठन मनुष्यों और स्वर्गदूतों पर राज्य करता। यहोवा का उद्देश्य है कि इस राज्य के माध्यम से सारी सृष्टि के सम्मुख उसके महान नाम को पवित्र और उसकी सर्वसत्ता को दोषनिवारित किया जाए। (मत्ती ६:९, १०; यूहन्ना १२:२८) यह कितना उचित है कि उस राज्य में मनुष्यों का भाग है! अदन की वाटिका में यहोवा की सर्वसत्ता के विरुद्ध अपनी पहली चुनौती खड़ी करते वक़्त शैतान ने मनुष्य का प्रयोग किया, और अब यहोवा का उद्देश्य है कि मनुष्य उस चुनौती का जवाब देने में अंतर्ग्रस्त होंगे। (उत्पत्ति ३:१-६; यूहन्ना ८:४४) उस राज्य में शासन करने के लिए चुने गए व्यक्तियों को प्रेरित पतरस ने लिखा: “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद दो, जिस ने यीशु मसीह के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया। अर्थात् एक अविनाशी और निर्मल, और अजर मीरास के लिये। जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी है।”—१ पतरस १:३-५.
७. पवित्र आत्मा के द्वारा बपतिस्मा प्राप्त करनेवाले यीशु के साथ कौन-से अनोखे सम्बन्ध का आनन्द लेते हैं?
७ परमेश्वर के दत्तक पुत्रों के तौर पर, ये चुने हुए मसीही, यीशु मसीह के भाई बन गए। (रोमियों ८:१६, १७; ९:४, २६; इब्रानियों २:११) चूँकि यीशु इब्राहीम को प्रतिज्ञा किया गया वंश साबित हुआ, ये आत्मा-अभिषिक्त मसीही उस वंश का सहायक अथवा गौण भाग हैं, जो विश्वासी मानवजाति को आशीष देता। (उत्पत्ति २२:१७, १८; गलतियों ३:१६, २६, २९) कौन-सी आशीष? पाप से मुक्त करवाए जाने का और परमेश्वर से मेल-मिलाप करवाए जाने का तथा अब और अनन्तकाल तक उसकी सेवा करने का अवसर। (मत्ती ४:२३; २०:२८; यूहन्ना ३:१६, ३६; १ यूहन्ना २:१, २) पृथ्वी पर अभिषिक्त मसीही अपने आत्मिक भाई यीशु मसीह और अपने दत्तकी पिता, यहोवा परमेश्वर के बारे में गवाही देने के द्वारा सच्चे दिल के लोगों को इस आशीष की ओर निर्देशित करते हैं।—प्रेरितों १:८; इब्रानियों १३:१५.
८. परमेश्वर के आत्मा से उत्पन्न पुत्रों का ‘प्रगट होना’ क्या है?
८ बाइबल परमेश्वर के इन आत्मा से उत्पन्न पुत्रों के “प्रगट होने” का ज़िक्र करती है। (रोमियों ८:१९) यीशु के साथ संगी राजाओं के तौर पर राज्य में प्रवेश करने के कारण, वे शैतान के संसार की रीति-व्यवस्था को नष्ट करने में भाग लेते हैं। उसके बाद, एक हज़ार वर्ष तक, वे मनुष्यजाति तक छुड़ौती बलिदान के लाभों को पहुँचाने में मदद करते हैं और इस प्रकार मानवजाति को उस परिपूर्णता तक उठाते हैं जिसे आदम ने खोया। (२ थिस्सलुनीकियों १:८-१०; प्रकाशितवाक्य २:२६, २७; २०:६; २२:१, २) यह सब उनके प्रगट होने में शामिल है। यह ऐसी बात है जिसका इंतज़ार विश्वासी मानव सृष्टि उत्सुकता से करती है।
९. बाइबल अभिषिक्त मसीहियों के विश्वव्यापी निकाय का उल्लेख कैसे करती है?
९ अभिषिक्त मसीहियों का विश्वव्यापी निकाय “उन पहिलौठों की साधारण सभा और कलीसिया है जिन के नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं।” (इब्रानियों १२:२३) यीशु के छुड़ौती बलिदान से लाभ प्राप्त करनेवाले वे पहले व्यक्ति हैं। वे “मसीह की देह” भी हैं, जो एक दूसरे के साथ और यीशु के साथ उनके घनिष्ठ सम्बन्ध को दिखाता है। (१ कुरिन्थियों १२:२७) पौलुस ने लिखा: “जिस प्रकार देह तो एक है, और उसके अंग बहुत से हैं, और उस एक देह के सब अंग, बहुत होने पर भी सब मिलकर एक ही देह हैं, उसी प्रकार मसीह भी है। क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या यूनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्र, एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया।”—१ कुरिन्थियों १२:१२, १३; रोमियों १२:५; इफिसियों १:२२, २३; ३:६.
‘परमेश्वर का इस्राएल’
१०, ११. प्रथम शताब्दी में, नए इस्राएल की ज़रूरत क्यों पड़ी, और यह जाति किन लोगों से बनी थी?
१० यीशु के प्रतिज्ञात मसीहा के तौर पर आने से पहले १,५०० से भी अधिक वर्षों तक, शारीरिक इस्राएल जाति यहोवा के ख़ास लोग थे। निरन्तर अनुस्मारकों के बावजूद, एक जाति के तौर पर वे अविश्वासी साबित हुए। जब यीशु आया, तो उस जाति ने उसे अस्वीकार किया। (यूहन्ना १:११) अत:, यीशु ने यहूदी धार्मिक अगुओं से कहा: “परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा; और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा।” (मत्ती २१:४३) उस ‘[राज्य] का फल लानेवाली जाति’ को पहचानना उद्धार के लिए अनिवार्य है।
११ यह नयी जाति अभिषिक्त मसीही कलीसिया है, जो सा.यु. ३३ में पिन्तेकुस्त के दिन जन्मी थी। इसके पहले सदस्य यीशु के यहूदी शिष्य थे जिन्होंने उसे अपने स्वर्गीय राजा के तौर पर स्वीकार किया। (प्रेरितों २:५, ३२-३६) लेकिन, वे अपने यहूदी वंश के आधार पर नहीं, बल्कि यीशु में विश्वास के आधार पर परमेश्वर की नयी जाति के सदस्य थे। अतः, यह नया परमेश्वर का इस्राएल अनोखा था—एक आत्मिक जाति। जब अधिकांश यहूदियों ने यीशु को स्वीकार करने से इनकार किया, नयी जाति का भाग होने का आमंत्रण सामरियों और फिर अन्यजातियों के लोगों को भी दिया गया। इस नयी जाति को ‘परमेश्वर का इस्राएल’ कहा गया।—गलतियों ६:१६.
१२, १३. यह कैसे स्पष्ट हो गया कि नया इस्राएल यहूदी धर्म का सिर्फ़ एक पंथ नहीं था?
१२ प्राचीन इस्राएल में, जब ग़ैर-यहूदी यहूदी-मतधारक बने, उन्हें मूसा की व्यवस्था के अधीन होना पड़ता था, और पुरुषों को ख़तना कराने के द्वारा इसे चिन्हित करना पड़ता था। (निर्गमन १२:४८, ४९) कुछ यहूदी मसीहियों का मानना था कि परमेश्वर के इस्राएल में ग़ैर-यहूदियों पर वही बात लागू होनी चाहिए। लेकिन, यहोवा के मन में कुछ और था। पवित्र आत्मा ने प्रेरित पतरस को अन्यजाति के कुरनेलियुस के घर की ओर निर्देशित किया। जब कुरनेलियुस और उसके परिवार ने पतरस के प्रचार के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखायी, तो पानी में बपतिस्मा दिए जाने से पहले ही उन्हें पवित्र आत्मा प्राप्त हुई। इससे साफ़ ज़ाहिर हुआ कि यहोवा ने यह माँग किए बग़ैर कि ये अन्यजाति के लोग मूसा की व्यवस्था के अधीन हों, इन्हें परमेश्वर के इस्राएल के सदस्यों के तौर पर स्वीकार किया था।—प्रेरितों १०:२१-४८.
१३ कुछ विश्वासियों को यह बात स्वीकार करना मुश्किल लगा, और जल्द ही पूरे मामले पर यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों को चर्चा करनी पड़ी। इस अधिकारपूर्ण निकाय ने उस गवाही को सुना जिसमें विवरण दिया गया कि कैसे ग़ैर-यहूदी विश्वासियों पर पवित्र आत्मा सक्रिय रही थी। बाइबल के शोध ने दिखाया कि यह उत्प्रेरित भविष्यवाणी की पूर्ति में हुआ। (यशायाह ५५:५; आमोस ९:११, १२) सही निर्णय लिया गया: ग़ैर-यहूदी मसीहियों को मूसा की व्यवस्था के अधीन नहीं होना था। (प्रेरितों १५:१, ६-२९) अतः, आत्मिक इस्राएल वाक़ई एक नयी जाति था और यहूदी धर्म का सिर्फ़ एक पंथ नहीं था।
१४. याकूब का मसीही कलीसिया को ‘वे बारह गोत्र जो तित्तर बित्तर होकर रहते हैं’ कहने से क्या सूचित होता है?
१४ इसके सामंजस्य में, प्रथम शताब्दी के अभिषिक्त मसीहियों को लिखते वक़्त, शिष्य याकूब ने अपनी पत्री “उन बारहों गोत्रों” के नाम लिखी “जो तित्तर बित्तर होकर रहते हैं।” (याकूब १:१; प्रकाशितवाक्य ७:३-८) निःसंदेह, नए इस्राएल के नागरिक विशिष्ट गोत्रों में नियुक्त नहीं किए गए थे। आत्मिक इस्राएल में १२ भिन्न गोत्रों का विभाजन नहीं था जैसे शारीरिक इस्राएल में था। इसके बावजूद, याकूब की उत्प्रेरित अभिव्यक्ति सूचित करती है कि यहोवा की नज़रों में परमेश्वर के इस्राएल ने पूरी तरह शारीरिक इस्राएल के १२ गोत्रों का स्थान ले लिया था। यदि एक जन्म-जात यहूदी नयी जाति का भाग बना, तो उसके शारीरिक वंश का—चाहे वह यहूदा या लेवी के गोत्र का क्यों न हो—कोई महत्त्व नहीं था।—गलतियों ३:२८; फिलिप्पियों ३:५, ६.
एक नयी वाचा
१५, १६. (क) परमेश्वर के इस्राएल के ग़ैर-यहूदी सदस्यों को यहोवा किस नज़र से देखता है? (ख) किस क़ानूनी आधार पर नया इस्राएल स्थापित किया गया?
१५ यहोवा की नज़रों में, इस नयी जाति के ग़ैर-इस्राएली सदस्य पूर्ण आत्मिक यहूदी हैं! प्रेरित पौलुस ने समझाया: “वह यहूदी नहीं, जो प्रगट में यहूदी है; और न वह खतना है, जो प्रगट में है, और देह में है। पर यहूदी वही है, जो मन में है; और खतना वही है, जो हृदय का और आत्मा में है; न कि लेख का: ऐसे की प्रशंसा मनुष्यों की ओर से नहीं, परन्तु परमेश्वर की ओर से होती है।” (रोमियों २:२८, २९) अन्यजातियों के अनेक लोगों ने परमेश्वर के इस्राएल का भाग होने के आमंत्रण के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखायी, और इस विकास से बाइबल भविष्यवाणी पूरी हुई। उदाहरण के लिए, भविष्यवक्ता होशे ने लिखा: “जिस पर दया नहीं हुई मैं उस पर दया करूंगा, तथा जो मेरी प्रजा नहीं उस से कहूंगा ‘तू मेरी प्रजा है!’ और वह कहेगी, ‘तू मेरा परमेश्वर है’।”—होशे २:२३, NHT; रोमियों ११:२५, २६.
१६ यदि आत्मिक इस्राएली मूसा की व्यवस्था वाचा के अधीन नहीं थे, तो किस आधार पर वे नयी जाति का भाग थे? यहोवा ने यीशु के ज़रिए इस आत्मिक जाति के साथ एक नयी वाचा बाँधी। (इब्रानियों ९:१५) जब यीशु ने सा.यु. ३३ में निसान १४ के दिन अपनी मृत्यु के स्मारक का प्रारंभ किया, उसने ११ प्रेरितों को रोटी और दाखमधु दिया और कहा कि वह दाखमधु ‘वाचा के लोहू’ को चिन्हित करता था। (मत्ती २६:२८; यिर्मयाह ३१:३१-३४) जैसे लूका के वृत्तान्त में बताया गया है, यीशु ने कहा कि दाखमधु का कटोरा “नई वाचा” को चिन्हित करता है। (लूका २२:२०) यीशु के शब्दों की पूर्ति में, जब पिन्तेकुस्त के दिन आत्मा उँडेली गयी और परमेश्वर के इस्राएल का जन्म हुआ, तो शारीरिक इस्राएल से राज्य ले लिया गया और नयी, आत्मिक जाति को दिया गया। शारीरिक इस्राएल के बजाय, यह नयी जाति अब यहोवा की दास थी, उसके साक्षियों से बनी थी।—यशायाह ४३:१०, ११.
‘नया यरूशलेम’
१७, १८. अभिषिक्त मसीहियों को जो महिमा मिलनेवाली है उसके कौन-से वर्णन प्रकाशितवाक्य की किताब में दिए गए हैं?
१७ स्वर्गीय बुलावे के विशेषाधिकार में भाग लेनेवालों को क्या ही महिमा मिलनेवाली है! और जिन आश्चर्यों का वे अनुभव करेंगे, उसके बारे में सीखना क्या ही हर्ष की बात है! प्रकाशितवाक्य की किताब हमें उनकी स्वर्गीय मीरास की रोमांचक झलक देती है। उदाहरण के लिए, प्रकाशितवाक्य ४:४ में हम पढ़ते हैं: “[यहोवा के] सिंहासन के चारों ओर चौबीस सिंहासन हैं; और इन सिंहासनों पर चौबीस प्राचीन श्वेत वस्त्र पहिने हुए बैठे हैं, और उन के सिरों पर सोने के मुकुट हैं।” ये २४ प्राचीन अभिषिक्त मसीही हैं, जिन्हें पुनरुत्थित किया गया है और जो अब उस स्वर्गीय स्थान पर विराजमान हैं जिसकी प्रतिज्ञा यहोवा ने उनसे की थी। उनके मुकुट और सिंहासन हमें उनकी राजसत्ता का स्मरण कराते हैं। यहोवा के सिंहासन के चारों ओर सेवा करने के उनके अद्भुत रूप से उच्च विशेषाधिकार के बारे में भी सोचिए!
१८ प्रकाशितवाक्य १४:१ में, हमें उनकी एक और झलक मिलती है: “फिर मैं ने दृष्टि की, और देखो, वह मेम्ना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चौआलीस हजार जन हैं, जिन के माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ है।” यहाँ हम इन अभिषिक्त जनों की सीमित संख्या देखते हैं—१,४४,०००। उनकी राजसी स्थिति इस बात से समझ में आती है कि वे यहोवा के सत्तारूढ़ राजा, ‘उस मेम्ने,’ अर्थात् यीशु के साथ खड़े हैं। और वे स्वर्गीय सिय्योन पहाड़ पर हैं। पार्थिव सिय्योन पहाड़, इस्राएल के राजसी नगर, यरूशलेम का स्थान था। स्वर्गीय सिय्योन पहाड़ यीशु और उसके संगी वारिसों की उन्नत स्थिति को सूचित करता है, जिनसे स्वर्गीय यरूशलेम बनता है।—२ इतिहास ५:२; भजन २:६.
१९, २०. (क) अभिषिक्त मसीही कौन-से स्वर्गीय संगठन का भाग होंगे? (ख) किस समयावधि के दौरान यहोवा ने उन व्यक्तियों को चुना जिनकी नागरिकता स्वर्ग की होती?
१९ इसके सामंजस्य में, अभिषिक्त जनों को उनकी स्वर्गीय महिमा में ‘नया यरूशलेम’ भी कहा गया है। (प्रकाशितवाक्य २१:२) पार्थिव यरूशलेम “महाराजा का नगर” था और मन्दिर का भी स्थान था। (मत्ती ५:३५) स्वर्गीय नया यरूशलेम वह राजसी राज्य संगठन है जिसके द्वारा महान सर्वसत्ताधारी, यहोवा और उसका नियुक्त राजा, यीशु अब राज्य करते हैं। और जब यहोवा के सिंहासन से भरपूर आशीषें मानवजाति की चंगाई के लिए निकलती हैं, तब इस स्वर्गीय नए यरूशलेम में याजकीय सेवा की जाती है। (प्रकाशितवाक्य २१:१०, ११; २२:१-५) एक और दर्शन में यूहन्ना सुनता है कि विश्वासी, पुनरुत्थित, अभिषिक्त मसीहियों का उल्लेख ‘मेम्ने की पत्नी’ के तौर पर किया गया है। यीशु के साथ वे जिस घनिष्ठता का आनन्द लेंगे, उसका और उसके प्रति उनकी स्वैच्छिक अधीनता का यह क्या ही हृदयस्पर्शी चित्र खींचता है! स्वर्ग में उस आनन्द की कल्पना कीजिए जब आख़िरकार उनमें से आख़री व्यक्ति को अपना स्वर्गीय प्रतिफल मिलता है। आख़िरकार, अब ‘मेम्ने का ब्याह’ हो सकता है! वह राजसी स्वर्गीय संगठन तब पूर्ण होगा।—प्रकाशितवाक्य १९:६-८.
२० जी हाँ, उन लोगों के लिए अद्भुत आशीषें रखी हैं जिनके बारे में प्रेरित पौलुस ने कहा: “परन्तु हमारी नागरिकता स्वर्ग की है।” (फिलिप्पियों ३:२०, NHT) क़रीब-क़रीब दो हज़ार वर्षों से, यहोवा अपनी आत्मिक सन्तान को चुनता रहा है और उन्हें एक स्वर्गीय मीरास के लिए तैयार करता रहा है। सारे सबूतों के अनुसार, चुनाव और तैयारी का यह काम लगभग पूरा हो चुका है। लेकिन और भी कुछ आना बाक़ी था जैसा कि यूहन्ना को प्रकाशितवाक्य अध्याय ७ में अभिलिखित उसके दर्शन में प्रगट किया गया था। सो अब, मसीहियों का एक और समूह हमारे ध्यान की माँग करता है, और हम इस समूह पर अगले लेख में विचार करेंगे।
क्या आपको याद है?
◻ स्वर्गीय मीरास के व्यक्तियों पर आत्मा की विभिन्न कार्यवाहियाँ क्या हैं?
◻ अभिषिक्त जन यहोवा के साथ, तथा यीशु के साथ कौन-से घनिष्ठ सम्बन्ध का आनन्द लेते हैं?
◻ बाइबल में अभिषिक्त मसीहियों की कलीसिया का वर्णन कैसे किया गया है?
◻ किस क़ानूनी आधार पर परमेश्वर का इस्राएल स्थापित किया गया?
◻ अभिषिक्त मसीहियों को कौन-से स्वर्गीय विशेषाधिकार मिलनेवाले हैं?
[पेज 10 पर तसवीरें]
क़रीब-क़रीब दो हज़ार वर्षों की अवधि के दौरान, यहोवा ने उन व्यक्तियों को चुना जो स्वर्गीय राज्य में शासन करते