पाठकों के प्रश्न
◼ क्यों यहोवा के गवाहों के इतने कम लोग प्रभु के संध्या भोज के वार्षिक समारोह पर रोटी और दाखमधु लेते हैं?
यह इसलिए है कि, ईसाईजगत की गिरजाओं के वैषम्य में, यहोवा के गवाह बाइबल के इस उपदेश को स्वीकार करते हैं कि मानवों की एक छोटी संख्या स्वर्गीय जीवन प्राप्त करेगी और परमेश्वर के बाक़ी के विश्वसनीय सेवक पृथ्वी पर अनंत जीवन से प्रतिफलित किए जाएँगे।
गिरजाओं ने बहुत समय से सिखाया है कि जो कोई परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं उनका प्रतिफल स्वर्ग है; बाक़ी ज्वलित नर्क में जाते हैं। बाइबल अन्य प्रकार से कहती है। धर्मशास्त्र स्पष्ट रूप से दिखाती है कि केवल कुछेक मानव, जैसे कि प्रेरित, मसीह के साथ स्वर्ग में राज करेंगे। यीशु ने कहा कि ये एक ‘छोटा झुंड’ हैं। बाइबल कहती है कि इनकी संख्या १,४४,००० है। (लूका १२:३२; प्रकाशितवाक्य १४:३, ४) अनेक, जिन्होंने यहोवा की सेवा विश्वसनीयता से की और जिन पर उसका अनुमोदन था, यीशु के स्वर्गीय जीवन का मार्ग खोलने से पहले मर गए। (मत्ती ११:११; इब्रानियों १०:१९-२१) और “छोटे झुंड” के चुनाव के बाद, अन्य करोड़ों लोग सच्चे मसीही बन गए हैं। इन सब वफ़ादार व्यक्तियों के लिए, जो “छोटे झुंड” के नहीं, बाइबल एक पुनःस्थापित पार्थिव प्रमोदवन में अंतहीन जीवन की प्रत्याशा पेश करती है। (भजन ३७:२०, २९; प्रकाशितवाक्य २१:४, ५) पर ऐसे लोग भी रोटी और दाखमधु क्यों नहीं लेते? यीशु ने संकेत किया कि प्रभु के संध्या भोज के दौरान चिह्नों का लेना सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए था, जिन्हें स्वर्ग में जीवन के लिए बुलाया गया है, और जो नए करार में भागी हैं।
बेशक, यीशु के बलिदान में विश्वास उन सब के लिए अत्यावश्यक है जो परमेश्वर की क्षमा और अनन्त जीवन प्राप्त करना चाहते हैं, चाहे वह स्वर्ग में का जीवन हो या एक प्रमोदवनीय पृथ्वी पर का जीवन। मसीह ने यह यूहन्ना ६:५१-५४ में दिखाया: “जीवंत रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा; और जो रोटी मैं [उद्धार्य मानवजाति के] जगत के लिए दूँगा, वह मेरा माँस है। . . . जो मेरा माँस खाता, और मेरा लोहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है।” (न्यू.व.)
फिर भी, यह उल्लेखनीय है कि यीशु ने उन शब्दों से अपने चेलों के अलावा और कईयों को संबोधित किया। उसके हज़ारों को चमत्कारिक रीति से खिलाने के बाद अगले दिन कफरनहूम के इलाके में यीशु के पास एक भीड़ आयी। इस भीड़ ने उसे उस बातचीत में व्यस्त रखा जिसमें यूहन्ना ६:५१-५४ पर उसके शब्द शामिल थे। तो यीशु प्रथमतः चेलों से बातचीत नहीं कर रहा था जब उसने कहा कि वही प्रतीकात्मक “रोटी” जो स्वर्ग से नीचे आया” था, जो कि वीराने में खाए मन्ना से ज़्यादा चिरस्थायी जीवन की प्रत्याशाएँ दे सकता है।—यूहन्ना ६:२४-३४.
वीराने में उस प्रचीन अनुभव पर ग़ौर करने में, याद करें कि कौन कौन मिस्र से निकलकर वीराने में आए थे। यह ‘बालबच्चों को छोड़, इस्राएल के पुत्रों के कोई छः लाख पुरुष पैदल थे, और मिली जुली हुई एक भीड़’ थी। (निर्गमन १२:३७, ३८; १६:१३-१८) इस “मिली जुली हुई भीड़” में वे मिस्री थे, जिन्होंने इस्राएलियों से शादी की थी, और अन्य मिस्री, जिन्होंने अपना हिस्सा इस्राएलियों के साथ गिन लिया था। इस्राएली और “मिली जुली हुई भीड़,” दोनों को ज़िंदा रहने के लिए मन्ना की ज़रूरत थी। यद्यपि क्या “मिली जुली हुई भीड़” को इस्राएलियों के समान प्रत्याशाएँ थीं? नहीं, उन्हें समान प्रत्याशाएँ न थीं। हालाँकि वे इस्राएलियों के बीच उपासना कर सकते थे और वचन किए गए देश में प्रवेश कर सकते थे, वे व्यवस्था करार के अंतर्गत, राजा और याजक कभी नहीं बन सकते थे। तो वीराने में वास्तविक मन्ना खाने से सभी को वही प्रत्याशाएँ नहीं मिलीं।
यह एक भिन्नता है जिसे याद रखना चाहिए जैसे आप उन बातों पर ग़ौर करते हैं जो यीशु ने यूहन्ना ६:५१-५४ में कहे शब्दों के क़रीब एक साल बाद अपने चेलों से कही थीं। इस बादवाले प्रसंग पर, यीशु एक नयी प्रथा का वर्णन कर रहा था, जिसमें वास्तविक रोटी और दाखमधु संबद्ध थे, जो कि उसके माँस और लोहु के प्रतीक होनेवाले थे। जब वह प्रभु के संध्या भोज का समारोह स्थापित कर रहा था, यीशु ने अपने क़रीब के अनुगामियों से कहा: “यह कटोरा मेरे उस लोहू में जो तुम्हारे लिए बहाया जाता है नई वाचा है।” प्रेरितों के उसी छोटे समूह से उसने आगे कहा: “परंतु तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे। और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिए एक राज्य ठहराया है वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिए ठहराता हूँ, ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज़ पर खाओ-पीओ; बरन सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो।”—लूका २२:२०, २८-३०.
इन बादवाले शब्दों से ध्यान दें कि जिन व्यक्तियों को यीशु के शरीर और लोहू को प्रतीक करनेवाले चिह्नों के तौर वास्तविक रोटी खानी और दाखमधु पीनी थी, वे “नई वाचा” में के चेले थे। ऐसे लोग एक और वाचा में भी होते, एक ऐसी वाचा जो यीशु ने उनके साथ की ताकि वे ‘उसके राज्य में’ शासकत्व में हिस्सा ले सकते थे। स्पष्ट रूप से, यीशु यहाँ उन लोगों का ज़िक्र कर रहा था जो ‘पृथ्वी पर राज्य करने के लिए, हमारे परमेश्वर के लिए एक राज्य और याजक बनाए जाते।’ (प्रकाशितवाक्य ५:१०) पहले शतक में, परमेश्वर ने उन १,४४,००० व्यक्तियों को चुनना शुरु किया, जो स्वर्गीय राज्य में हिस्सा लेते। कुरिन्थ के मसीही उस समूह के थे, इसलिए कि उनका वर्णन ऐसे लोगों के तौर से किया गया, जो “मसीह यीशु में पवित्र किए गए, और पवित्र होने के लिए बुलाए गए हैं।” (१ कुरिन्थियों १:२; तुलना रोमियों १:७; ८:१५-१७ से करें) ऐसे “पवित्र” लोगों को प्रभु का संध्या भोज में भाग लेना था, और क़दरदानी से चिह्नात्मक रोटी और दाखमधु भी लेना था, जिसका अर्थ “[उसके] लोहू में नई वाचा” था।—१ कुरिन्थियों ११:२३-२६.
आज पृथ्वी पर स्वर्गीय जीवन के लिए परमेश्वर से चुने गए लोगों में से सिर्फ एक छोटा अवशेष ज़िंदा है। सिर्फ यही लोग जो “नई वाचा” में हैं, वार्षिक स्मरणार्थ समारोह के दौरान, रोटी और दाखमधु, ये चिह्न लेने के लिए प्राधिकृत हैं।
अवश्य, सभी सच्चे मसीही जो राज्य शासकत्व के अधीनस्थ, पृथ्वी पर अनन्त काल तक जीने की आशा रखते हैं, वे जानते हैं कि यह यीशु के बलिदान में विश्वास करने के द्वारा संभव है। जैसा यीशु ने भीड़ से कहा, वही “जीवंत रोटी” है “जो स्वर्ग से उतरी है।” (यूहन्ना ६:५१) फिर भी, उसका यह मतलब नहीं कि पार्थीव आशा रखने वाले लोगों को स्मरणार्थ के वास्तविक चिह्न लेने चाहिए, इसलिए कि वे “नई वाचा” में नहीं, और वे न ही यीशु के साथ ‘उसके राज्य में, सिंहासनों पर विराजमान’ होने के वाचा में हैं।
फलस्परूप, पार्थीव आशा रखनेवाला यह बड़ा समूह, रोटी और दाखमधु, ये चिह्न नहीं लेते। पर यह किसी भी तरह यीशु के शरीर और लोहू के लिए क़दरदानी की कमी प्रतिबिंबित नहीं करती। वास्तव में, उसके बलिदान के लिए उनकी गहरी क़दरदानी और उनके सामने की आनन्ददायी पार्थीव प्रत्याशा के कारण, वे निश्चित रूप से प्रभु के संध्या भोज के समारोह पर आदरपूर्ण दर्शकों के तौर से उपस्थित होते हैं। इस रीति से, वे अपने खुद का विश्वास प्रतिबिंबित करते हैं और आनन्ददायी प्रमाण देते हैं कि “छोटे झुंड” के अवशेष और बहुसंख्यक “अन्य भेड़” स्नेहिल एकता में हैं।