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यीशु बहुत दुखी है और प्रार्थना करता हैयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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यीशु सबसे ज़्यादा इस बात से दुखी है कि उसे एक अपराधी की मौत दी जाएगी और इससे उसके पिता की बदनामी होगी। यहोवा अपने बेटे की प्रार्थना सुनता है और एक स्वर्गदूत को उसकी हिम्मत बँधाने भेजता है। इसके बाद भी यीशु अपने पिता से गिड़गिड़ाकर मिन्नतें करता रहता है। यीशु का दुख सच में बरदाश्त से बाहर है, क्योंकि उस पर बहुत भारी ज़िम्मेदारी है। यह उसकी और सभी इंसानों की ज़िंदगी का सवाल है। अगर वह वफादार रहेगा, तो उसे और उस पर विश्वास करनेवाले सब लोगों को हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। उसका मन दुख और चिंता से इतना छलनी हो जाता है कि ‘उसका पसीना खून की बूँदें बनकर ज़मीन पर गिरता है।’—लूका 22:44.
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