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  • यीशु बहुत दुखी है और प्रार्थना करता है
    यीशु—राह, सच्चाई, जीवन
    • यीशु सबसे ज़्यादा इस बात से दुखी है कि उसे एक अपराधी की मौत दी जाएगी और इससे उसके पिता की बदनामी होगी। यहोवा अपने बेटे की प्रार्थना सुनता है और एक स्वर्गदूत को उसकी हिम्मत बँधाने भेजता है। इसके बाद भी यीशु अपने पिता से गिड़गिड़ाकर मिन्‍नतें करता रहता है। यीशु का दुख सच में बरदाश्‍त से बाहर है, क्योंकि उस पर बहुत भारी ज़िम्मेदारी है। यह उसकी और सभी इंसानों की ज़िंदगी का सवाल है। अगर वह वफादार रहेगा, तो उसे और उस पर विश्‍वास करनेवाले सब लोगों को हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। उसका मन दुख और चिंता से इतना छलनी हो जाता है कि ‘उसका पसीना खून की बूँदें बनकर ज़मीन पर गिरता है।’—लूका 22:44.

  • यीशु बहुत दुखी है और प्रार्थना करता है
    यीशु—राह, सच्चाई, जीवन
    • पसीना खून की बूँदें बनकर गिरा

      वैद्य लूका ने अपनी किताब में बताया कि यीशु का पसीना “खून की बूँदें” बनकर गिरने लगा। (लूका 22:44) लेकिन उसने यह नहीं बताया कि यह कैसे हुआ। शायद इसका यह मतलब था कि यीशु का पसीना किसी ज़ख्म से बहनेवाले खून जैसा दिख रहा था। लेकिन डॉक्टर विलियम डी. ऐडवर्ड्‌स का कहना है कि वे सच में खून की बूँदें भी हो सकती थीं। उन्होंने अपनी किताब अमरीकी चिकित्सीय संस्था की पत्रिका (अँग्रेज़ी) में लिखा कि “जब एक व्यक्‍ति हद-से-ज़्यादा तनाव में होता है, तो उसकी धमनियाँ फट सकती हैं और उसका खून पसीने की ग्रंथियों में मिल सकता है। त्वचा फट सकती है और पसीना खून की बूँदें बनकर गिर सकता है। हालाँकि ऐसा बहुत कम होता है, लेकिन यह मुमकिन है।”

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