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  • “बहुत सा फल लाओ”
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2003
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2003
w03 2/1 पेज 18-23

“बहुत सा फल लाओ”

“बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे।”—यूहन्‍ना 15:8.

1. (क) चेला बनने के लिए यीशु ने अपने प्रेरितों को कौन-सी ज़रूरी माँग पूरी करने को कहा? (ख) हमें खुद से कौन-सा सवाल पूछना चाहिए?

यीशु की मौत से पहले की शाम थी। अपने प्रेरितों का हौसला बढ़ाने और उनसे खुलकर बात करने के लिए, यीशु ने काफी वक्‍त बिताया। आधी रात हो चुकी थी, फिर भी वह उनसे बातें करता रहा, क्योंकि उसे अपने अज़ीज़ दोस्तों से बेहद प्यार था। इस बातचीत के दौरान यीशु ने एक और माँग के बारे में बताया जो उसके चेलों को पूरी करनी है। उसने कहा: “मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे।” (यूहन्‍ना 15:8) यीशु का चेला बनने के लिए क्या हम इस माँग को पूरा कर रहे हैं? “बहुत सा फल लाओ” का मतलब क्या है? जवाब पाने के लिए आइए ध्यान दें कि उस रात यीशु और उसके चेलों के बीच क्या बातचीत हुई।

2. अपनी मौत से पहले की शाम को यीशु ने फल के बारे में कौन-सा दृष्टांत बताया?

2 यीशु ने प्रेरितों को फल लाने की जो सलाह दी, वह उस दृष्टांत का हिस्सा है जिसके बारे में यीशु ने बताया था। उसने दृष्टांत में कहा: “सच्ची दाखलता मैं हूं; और मेरा पिता किसान है। जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छांटता है ताकि और फले। तुम तो उस वचन के कारण जो मैं ने तुम से कहा है, शुद्ध हो। तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते। मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो . . . मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे। जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही मैं ने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो। यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे: जैसा कि मैं ने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूं।”—यूहन्‍ना 15:1-10.

3. फल लाने के लिए यीशु के चेलों को क्या करना ज़रूरी है?

3 इस दृष्टांत में बताया गया किसान यहोवा है, दाखलता यीशु है और डालियाँ वे प्रेरित हैं जिनसे यीशु बात कर रहा था। जब तक प्रेरित, यीशु ‘में बने रहने’ की कोशिश करते, तब तक वे फल लाते। इसके बाद, यीशु ने समझाया कि प्रेरित कैसे उसमें बने रह सकते हैं: “यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे।” बाद में, प्रेरित यूहन्‍ना ने अपने मसीही भाइयों को इसी से मिलती-जुलती एक बात लिखी: “जो [मसीह] की आज्ञाओं को मानता है, वह इस में . . . बना रहता है।”a (1 यूहन्‍ना 2:24; 3:24) यह आयत दिखाती है कि मसीह की आज्ञाओं का पालन करने के ज़रिए ही उसके चेले उसमें बने रहते हैं और इसी एकता की वजह से वे फल ला पाते हैं। तो फिर हमें किस किस्म के फल लाने की ज़रूरत है?

बढ़ोतरी की गुंजाइश

4. यहोवा हर उस डाली को “काट डालता है” जो नहीं फलती, इससे हमें क्या पता चलता है?

4 दाखलता के दृष्टांत के मुताबिक जब कोई डाली नहीं फलती, तो यहोवा उसे “काट डालता है।” इससे हमें क्या पता चलता है? यही कि चाहे उनके हालात या सीमाएँ जो भी हों, मसीह के चेलों से फल लाने की माँग की गयी है और यह भी कि वे फल लाने के काबिल हैं। अगर यह करना उनके बस के बाहर होता तो यहोवा का उन्हें “काट डालना” यानी उन्हें अयोग्य ठहराना उसके प्यार-भरे तौर-तरीकों के खिलाफ होता।—भजन 103:14; कुलुस्सियों 3:23; 1 यूहन्‍ना 5:3.

5. (क) यीशु ने किस तरह दिखाया कि हम ज़्यादा फल लाने की कोशिश कर सकते हैं? (ख) हम किन दो किस्म के फलों के बारे में चर्चा करेंगे?

5 यीशु के बताए दाखलता के दृष्टांत से यह भी पता चलता है कि चेले होने के नाते हम जो काम करते हैं, अपने हालात के मुताबिक हमें उनमें तरक्की करने के मौके ढूँढ़ने चाहिए। गौर कीजिए कि इस बारे में यीशु ने कहा: “जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छांटता है ताकि और फले।” (तिरछे टाइप हमारे।) (यूहन्‍ना 15:2) दृष्टांत के आखिर में, यीशु अपने चेलों को उकसाता है कि वे “बहुत सा फल” लाएँ। (आयत 8) इसका मतलब क्या है? चेलों की हैसियत से हम जितना करते हैं, उन्हीं में संतुष्ट नहीं रहना चाहिए। (प्रकाशितवाक्य 3:14, 15, 19) इसके बजाय, हमें और ज़्यादा फल लाने के तरीके ढूँढ़ने चाहिए। हमें किस तरह के फल ज़्यादा लाने की कोशिश करनी चाहिए? दो किस्म के फल हैं, (1) ‘आत्मा के फल’ और (2) राज्य के फल।—गलतियों 5:22, 23; मत्ती 24:14.

मसीही गुणों का फल

6. यीशु ने आत्मा के सबसे पहले फल की अहमियत पर किस तरह ज़ोर दिया?

6 ‘आत्मा के फलों’ में सबसे पहला है, प्रेम। परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा मसीहियों में यह प्रेम पैदा करती है, क्योंकि वे यीशु के उस आदेश को मानते हैं जो उसने फल लानेवाली दाखलता के दृष्टांत से पहले दिया था। उसने अपने प्रेरितों से कहा था: “मैं तुम्हे एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो।” (यूहन्‍ना 13:34) दरअसल, धरती पर अपनी ज़िंदगी की उस आखिरी रात की पूरी बातचीत में यीशु ने बार-बार प्रेरितों को याद दिलाया कि उनके लिए प्रेम का गुण दिखाना निहायत ज़रूरी है।—यूहन्‍ना 14:15, 21, 23, 24; 15:12, 13, 17.

7. प्रेरित पतरस ने किस तरह दिखाया कि फल लाना, मसीह जैसे गुण ज़ाहिर करने से जुड़ा हुआ है?

7 उस रात वहाँ मौजूद पतरस यह अच्छी तरह समझ गया कि मसीह के सच्चे चेलों को आपस में मसीह जैसा प्रेम और उससे जुड़े दूसरे गुण दिखाना ज़रूरी है। इसलिए सालों बाद भी, पतरस ने मसीहियों को उकसाया कि वे संयम, भाइचारे की प्रीति और प्रेम पैदा करें। उसने आगे बताया कि ऐसा करने से हम “निकम्मे और निष्फल” नहीं होंगे। (2 पतरस 1:5-8) हमारे हालात चाहे जो भी हों, आत्मा के फल दिखाना हमारे लिए मुमकिन है। तो फिर आइए हम प्रेम, कृपा, नम्रता और दूसरे मसीही गुणों को और भी बड़े पैमाने पर दिखाने की कोशिश करें, क्योंकि “ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं” है और ना ही कोई सीमा है। (गलतियों 5:23) जी हाँ, हमें ‘और फल लाने चाहिए।’—तिरछे टाइप हमारे।

राज्य का फल लाना

8. (क) आत्मा के फल और राज्य के फल के बीच क्या संबंध है? (ख) हमें किस सवाल पर ध्यान देना चाहिए?

8 रंगीन और रसीले फल पेड़ की खूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं। लेकिन ऐसे फलों से सिर्फ खूबसूरती ही नहीं बढ़ती बल्कि उनके बीजों से और भी नए पेड़ उगते हैं। उसी तरह आत्मा के फल सिर्फ हमारे मसीही व्यक्‍तित्व की शोभा ही नहीं बढ़ाते बल्कि प्रेम और विश्‍वास जैसे गुण हमें परमेश्‍वर के वचन में दिए राज्य के संदेश के बीज फैलाने के लिए उकसाते हैं। ध्यान दीजिए कि प्रेरित पौलुस ने इस ज़रूरी संबंध पर कैसे ज़ोर दिया। उसने कहा: “हम भी विश्‍वास [आत्मा का एक फल] करते हैं, इसी लिये बोलते हैं।” (2 कुरिन्थियों 4:13) पौलुस आगे बताता है कि इस तरह बोलकर हम ‘स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात्‌ उन होठों का फल चढ़ाते’ हैं यानी हम दूसरे किस्म का फल, राज्य का फल लाते हैं। (इब्रानियों 13:15) तो क्या हमारी ज़िंदगी में ऐसे कई मौके हैं जिनमें परमेश्‍वर के राज्य के प्रचारक के रूप में हम वाकई “बहुत सा फल” ला सकते हैं?

9. क्या फल लाने का मतलब चेला बनाना है? समझाइए।

9 इस सवाल का सही जवाब पाने के लिए हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि राज्य के फल में क्या-क्या शामिल है। क्या यह कहना सही होगा कि फल लाने का मतलब चेले बनाना है? (मत्ती 28:19) हम जो फल लाते हैं क्या वह खासकर उन लोगों को दर्शाता है जिनको हमने यहोवा के बपतिस्मा प्राप्त उपासक बनने में मदद दी है? नहीं। अगर ऐसा होता तो उन प्यारे भाई-बहनों के लिए यह निराशा की बात होती जो वफादारी से ऐसी जगहों पर सालों से राज्य का संदेश सुना रहे हैं, जहाँ बहुत कम लोग संदेश सुनते हैं। सचमुच हम जो राज्य के फल लाते हैं, अगर वे सिर्फ नए चेलों को दर्शाते, तो यीशु के दृष्टांत के मुताबिक ये मेहनती साक्षी फल न लगनेवाली डालियाँ होते! मगर ऐसा कतई नहीं है। तो फिर हमारी सेवा में, राज्य का मुख्य फल क्या है?

राज्य का बीज बोने के ज़रिए फल लाना

10. यीशु ने बीज बोनेवाले और अलग-अलग तरह की भूमि का जो दृष्टांत बताया, उसके मुताबिक राज्य का फल क्या है और क्या नहीं?

10 इस सवाल का जवाब, बीज बोनेवाले और अलग-अलग किस्म की भूमिवाले दृष्टांत में दिया गया है। और इस जवाब से उन साक्षियों को भी बढ़ावा मिलता है जो ऐसे इलाकों में प्रचार करते हैं जहाँ ज़्यादा बढ़ोतरी नहीं हो रही है। यीशु ने कहा कि बीज परमेश्‍वर के वचन में पाया गया राज्य का संदेश है और भूमि इंसान का लाक्षणिक हृदय है। कुछ बीज ‘अच्छी भूमि पर गिरे, और उगकर फल लाए।’ (लूका 8:8) कैसा फल? दरअसल जब गेहूँ की बालें पक जाती हैं, तो उसमें फल लगता है। मगर ये फल छोटी-छोटी बालें नहीं बल्कि नए बीज होते हैं। उसी तरह जब एक मसीही फल लाता है, तो यह ज़रूरी नहीं कि फल नए चेले ही हों, यह राज्य का नया बीज भी हो सकता है।

11. राज्य का बीज क्या हो सकता है?

11 तो फिर, इस मामले में फल का मतलब ना तो नए चेले हैं और ना ही मसीही गुण। चूँकि बोया गया बीज राज्य का वचन है, इसलिए फल, उसी बीज से निकले बहुत-से बीज हैं यानी राज्य के बारे में कही बहुत-सी बातें। इस मायने में फल लाने का मतलब है, राज्य की गवाही देना। (मत्ती 24:14) क्या राज्य का ऐसा फल लाना यानी राज्य के सुसमाचार का प्रचार करना हमारे बस में है, फिर चाहे हमारे हालात जो भी हों? जी हाँ, यह हमारे बस में है! उसी दृष्टांत में यीशु ने बताया कि ऐसा क्यों है।

परमेश्‍वर की महिमा करने के लिए अपना सर्वोत्तम देना

12. क्या राज्य का फल लाना हर मसीही के बस में है? समझाइए।

12 यीशु ने कहा: ‘जो अच्छी भूमि में बोया गया, वह फल लाता है, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना।’ (मत्ती 13:23) खेत में बोए गए बीज से हालात के मुताबिक अलग-अलग फसल पैदा होती है। ठीक उसी तरह हमारे हालात अलग-अलग होते हैं, इसलिए सुसमाचार के प्रचार में हम सब एक जैसा काम नहीं करते हैं। और यीशु की बातों से पता चलता है कि वह भी इस बात को अच्छी तरह जानता था। कई लोगों को शायद ज़्यादा मौके मिलें, तो दूसरे सेहतमंद और फुर्तीले हो सकते हैं। इसलिए दूसरों की तुलना में, हम या तो कम सेवा करते हैं या ज़्यादा। लेकिन अगर यही हमारा सर्वोत्तम है, तो यहोवा इससे खुश होता है। (गलतियों 6:4) अगर हमारी उम्र ढल गयी है या हम बीमार हैं और उस वजह से प्रचार काम में ज़्यादा हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं, तब भी हम यकीन रख सकते हैं कि हमारा दयालु पिता यहोवा हमें ‘बहुत सा फल लानेवालों’ में गिनेगा। ऐसा क्यों? क्योंकि ‘जो कुछ हमारा है,’ वह सब हम उसे देते हैं यानी हम उसकी तन-मन से सेवा करते हैं।b—मरकुस 12:43, 44; लूका 10:27.

13. (क) राज्य का ‘फल लाते रहने’ की हमारे पास सबसे खास वजह क्या है? (ख) जिन इलाकों में लोग हमारे संदेश पर ज़्यादा कान नहीं देते, वहाँ भी फल लाते रहने में क्या बात हमारी मदद करेगी? (पेज 21 पर बक्स देखिए।)

13 हम चाहे जितना भी राज्य का फल लाएँ, अगर हम ध्यान में रखें कि हम ऐसा क्यों कर रहे हैं, तो हममें और भी ‘फल लाते रहने’ की प्रेरणा जागेगी। (यूहन्‍ना 15:16) यीशु ने इसकी सबसे खास वजह बतायी: “मेरे पिता की महिमा इसी से होती है कि तुम बहुत सा फल लाओ।” (यूहन्‍ना 15:8) जी हाँ, हमारे प्रचार काम से सारी मानवजाति के सामने यहोवा के नाम की महिमा होती है। (भजन 109:30) एक वफादार साक्षी ऑनर जिसकी उम्र करीब 75 है, कहती है: “जहाँ पर लोग संदेश पर ज़्यादा कान नहीं देते हैं, वहाँ भी परमप्रधान के नाम से गवाही देना एक बड़े सम्मान की बात है।” क्लॉडियो सन्‌ 1974 से जोश के साथ प्रचार करता आया है और जब उससे पूछा गया कि उसने क्यों यह काम जारी रखा, तो उसने यूहन्‍ना 4:34 का हवाला दिया जहाँ पर हम यीशु के शब्द पढ़ते हैं: “मेरा भोजन यह है कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।” क्लॉडियो ने आगे कहा: “यीशु की तरह मैं राज्य प्रचारक के तौर पर अपना काम सिर्फ शुरू ही नहीं करना चाहता, मगर उसे पूरा भी करना चाहता हूँ।” (यूहन्‍ना 17:4) संसार-भर में यहोवा के सभी साक्षी, क्लॉडियो की तरह ही महसूस करते हैं।—पेज 21 पर बक्स ‘धीरज से फल कैसे लाएँ’ देखिए।

प्रचार करना और सिखाना

14. (क) यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले और यीशु ने कौन-से दो काम किए? (ख) आज मसीही जो काम कर रहे हैं, उसके बारे में आप क्या कहेंगे?

14 सुसमाचार की किताबों में जिस पहले राज्य प्रचारक का ज़िक्र किया गया है, वह यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला है। (मत्ती 3:1, 2; लूका 3:18) उसका मुख्य मकसद था, ‘गवाही देना।’ और उसने गवाही देने का काम पूरे विश्‍वास और इस आशा से किया कि “सब उसके द्वारा विश्‍वास लाएं।” (यूहन्‍ना 1:6, 7) और-तो-और, यूहन्‍ना ने जिन लोगों को प्रचार किया था, उनमें से कुछ मसीह के चेले भी बने। (यूहन्‍ना 1:35-37) इसलिए यूहन्‍ना सिर्फ एक प्रचारक ही नहीं बल्कि चेला बनानेवाला भी था। यीशु भी एक प्रचारक और सिखानेवाला था। (मत्ती 4:23; 11:1) तो फिर इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि यीशु ने अपने चेलों को सिर्फ राज्य का संदेश सुनाने को ही नहीं कहा, मगर जो उसे कबूल करते हैं उन्हें चेला बनने में मदद करने को भी कहा था। (मत्ती 28:19, 20) आज हमारे काम में प्रचार करना और सिखाना, दोनों शामिल हैं।

15. सामान्य युग पहली सदी और आज के प्रचार काम में लोग जो रवैया दिखाते हैं, उनमें क्या समानता है?

15 सामान्य युग की पहली सदी में, जिन लोगों ने पौलुस को प्रचार करते और सिखाते हुए सुना, उनमें से “कितनों ने उन बातों को मान लिया, और कितनों ने प्रतीति न की।” (प्रेरितों 28:24) आज भी लोग इसी तरह का रवैया दिखाते हैं। दुःख की बात है कि राज्य के ज़्यादातर बीज ऐसी ज़मीन पर गिर रहे हैं जहाँ वे उग नहीं पाते। फिर भी, जैसा यीशु ने बताया था कि कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरते हैं, जड़ पकड़ते हैं और उनका अंकुर फूटता है। दरअसल, पूरे संसार में साल के हर हफ्ते औसतन 5,000 लोग मसीह के सच्चे चेले बन रहे हैं। ये नए चेले कही हुई ‘बातों को मानते’ हैं, जबकि ज़्यादातर लोग इन्हें अनसुना कर देते हैं। किस बात ने चेलों के दिल को राज्य का संदेश कबूल करने के लिए तैयार किया है? अकसर साक्षी जिन लोगों को गवाही देते हैं उनमें निजी दिलचस्पी दिखाते हैं। यही बात लोगों के दिल को छू जाती है और इसके ज़रिए बोए गए नए बीज को पानी देते हैं। (1 कुरिन्थियों 3:6) ऐसी ही दो मिसालों पर गौर कीजिए।

निजी दिलचस्पी दिखाने से फर्क पड़ता है

16, 17. हम प्रचार में जिन लोगों से मिलते हैं, उनमें निजी दिलचस्पी दिखाना क्यों ज़रूरी है?

16 बेलजियम की एक जवान साक्षी कैरोलीन ने एक बार अपनी साथी बहन के साथ, एक बुज़ुर्ग महिला से मुलाकात की। उस महिला ने राज्य संदेश में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी। मगर जब उन्होंने उस महिला के हाथ में पट्टी बंधी हुई देखी, तो उसकी मदद करनी चाही। मगर उस महिला ने इनकार कर दिया। दो दिन बाद कैरोलीन और वही बहन फिर से उस महिला के घर गयीं और उसकी तबियत के बारे में पूछा। कौरोलीन बताती है: “इससे बड़ा फर्क पड़ा। वह महिला यह देखकर दंग रह गयी कि हमें वाकई उसमें निजी दिलचस्पी है। उसने हमें घर के अंदर बुलाया और उसी दिन बाइबल अध्ययन शुरू हो गया।”

17 अमरीका की एक साक्षी सैंडी भी उन लोगों में निजी दिलचस्पी दिखाती है जिन्हें वह गवाही देती है। वह अपने इलाके के अखबार से उन माता-पिताओं का नाम और पता लेकर उनसे मुलाकात करती है जिनका हाल ही में बच्चा हुआ होता है। साथ ही, वह उन्हें बाइबल कहानियों की मेरी पुस्तक देकर आती है।c अकसर बच्चे को जन्म देने के बाद माँ घर पर ही रहती है और जब मेहमान आते हैं, तो वह बड़े गर्व के साथ अपना बच्चा दिखाती है। सैंडी ऐसे मौकों का फायदा उठाकर माता-पिता से बातचीत शुरू करती है। सैंडी कहती है: “मैं माता-पिताओं को बताती हूँ कि पढ़ने के ज़रिए अपने नए जन्मे बच्चे के साथ एक करीबी रिश्‍ता कायम करना कितना ज़रूरी है। उसके बाद, आज की दुनिया में बच्चे की परवरिश करने में जो-जो समस्याएँ आती हैं, इस बारे में बात करती हूँ।” ऐसी ही एक मुलाकात की वजह से हाल ही में एक माँ और उसके छः बच्चों ने यहोवा की सेवा शुरू की है। अपनी सेवा में इस तरह पहल करने और निजी दिलचस्पी दिखाने से हमें अच्छे नतीजे और खुशी मिलती है।

18. (क) ‘बहुत सा फल लाने’ की माँग पूरी करना हम सब के बस में क्यों है? (ख) चेला बनने के लिए सुसमाचार की किताब, यूहन्‍ना में दी गयी ऐसी कौन-सी तीन माँगे हैं जिन्हें पूरी करने का आपने पक्का इरादा कर लिया है?

18 यह जानकर हमें कितना हौसला मिलता है कि ‘बहुत सा फल लाने’ की माँग पूरी करना हमारे बस में है! हम चाहे जवान हों या बुज़ुर्ग, हमारी सेहत अच्छी हो या खराब, हम ऐसे इलाके में प्रचार कर रहे हों जहाँ लोग अच्छी तरह सुनते हैं या सुनने से इनकार कर देते हैं, हम सब बहुत-सा फल ला सकते हैं। लेकिन कैसे? बड़े पैमाने पर आत्मा के फल ज़ाहिर करने के ज़रिए और जी-जान से परमेश्‍वर के राज्य का संदेश सुनाने के ज़रिए। साथ-ही-साथ, ‘यीशु के वचन में बने रहने’ और ‘आपस में प्रेम रखने’ की जी-तोड़ मेहनत करने के ज़रिए। जी हाँ, सुसमाचार की किताब, यूहन्‍ना में बताए चेले बनने के लिए इन तीन ज़रूरी माँगों को पूरा करने के ज़रिए हम यह साबित करते हैं कि हम वाकई ‘मसीह के चेले हैं।’—यूहन्‍ना 8:31; 13:35.

[फुटनोट]

a दृष्टांत में बतायी गयी दाखलता की डालियाँ, यीशु के प्रेरित और दूसरे मसीहियों को दर्शाती हैं जो परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य के वारिस होंगे, मगर इस दृष्टांत में ऐसी सच्चाइयाँ भी हैं जिनसे आज के सभी मसीहियों को फायदा हो सकता है।—यूहन्‍ना 3:16; 10:16.

b जो बुढ़ापे और बीमारी की वजह से कहीं आ-जा नहीं सकते, वे खतों के ज़रिए या फिर जहाँ इसकी इजाज़त हो, वहाँ टेलीफोन के ज़रिए गवाही दे सकते हैं। या फिर वे उन लोगों के साथ भी खुशखबरी बाँट सकते हैं जो उनसे मिलने आते हैं।

c इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

दोबारा विचार करने के लिए सवाल

• हमें कौन-सा फल ज़्यादा लाने की ज़रूरत है?

• ‘बहुत सा फल लाने’ के लक्ष्य को हासिल करना, हम सब के बस में क्यों है?

• हमने सुसमाचार की किताब, यूहन्‍ना में दर्ज़ यीशु के चेले बनने के लिए कौन-सी तीन ज़रूरी माँगों पर गौर किया है?

[पेज 21 पर बक्स/तसवीर]

‘धीरज से फल कैसे लाएँ’

जिन इलाकों में ज़्यादातर लोग राज्य का संदेश सुनने से इनकार कर देते हैं, वहाँ वफादारी से प्रचार करते रहने में क्या बात आपकी मदद करती है? इस सवाल के यहाँ कुछ जवाब दिए गए हैं, जो आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं।

“प्रचार में लोग चाहे हमारी बातें सुनें या ना सुनें, मगर यह जानकर कि यीशु हमारे साथ है हममें उम्मीद जागती है और धीरज धरने में मदद मिलती है।”—हैरी, उम्र 72; बपतिस्मा सन्‌ 1946 में।

“दूसरे कुरिन्थियों 2:17 ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया है। यह आयत कहती है कि प्रचार में हम मानो ‘परमेश्‍वर को उपस्थित जानकर मसीह में बोलते हैं।’ प्रचार में मुझे अपने अज़ीज़ दोस्तों [यहोवा और यीशु] के साथ काम करने का मौका मिलता है।”—क्लॉडियो, उम्र 43; बपतिस्मा सन्‌ 1974 में।

“सच पूछो तो प्रचार का काम मेरे लिए एक चुनौती है। मगर फिर भी, मैं भजन 18:29 में लिखे शब्दों की सच्चाई अनुभव करता हूँ जो कहता है: ‘अपने परमेश्‍वर की सहायता से मैं शहरपनाह को लांघ जाता हूं।’”—गेराट, उम्र 79; बपतिस्मा सन्‌ 1955 में।

“जब मुझे प्रचार में किसी को बाइबल से कम-से-कम एक आयत पढ़कर सुनाने का मौका मिलता है, तो मुझे तसल्ली होती है कि मैंने उस व्यक्‍ति को बाइबल की मदद से अपने हृदय को जाँचने में मदद दी है।”—इलियेनर, उम्र 26; बपतिस्मा सन्‌ 1989 में।

“मैं अलग-अलग तरीके से बातचीत शुरू करने की कोशिश करता हूँ। मगर बातचीत शुरू करने के इतने सारे तरीके मौजूद हैं कि मैं अपनी बाकी की ज़िंदगी में भी सब-के-सब तरीकों को इस्तेमाल नहीं कर पाऊँगा।”—पॉल, उम्र 79; बपतिस्मा सन्‌ 1940 में।

“जब कोई संदेश सुनने से इनकार करता है या मेरे साथ ठीक से नहीं पेश आता, तो मैं बुरा नहीं मानता। मैं, लोगों के साथ दोस्ताना अंदाज़ में बात करने और उन्हें बातचीत में शामिल करने की कोशिश करता हूँ, साथ ही उनके विचार भी ध्यान से सुनता हूँ।”—डैनियल, उम्र 75; बपतिस्मा सन्‌ 1946 में।

“मैं ऐसे कई लोगों से मिला जिनका हाल ही में बपतिस्मा हुआ है और उन्होंने मुझे बताया कि मेरे प्रचार काम ने उन्हें साक्षी बनने में मदद दी है। मुझे इस बात की ज़रा भी खबर नहीं थी कि जिन्हें मैंने गवाही दी, बाद में किसी और ने उनके साथ बाइबल अध्ययन किया और सच्चाई में तरक्की करने में उनकी मदद की। यह जानकर मुझे बेहद खुशी हुई कि हमारी सेवा एक ऐसा काम है जिसे कामयाब बनाने में सबका हाथ होता है।”—जोअन, उम्र 66; बपतिस्मा सन्‌ 1954 में।

‘धीरज से फल लाने’ में किस बात ने आपकी मदद की है?—लूका 8:15.

[पेज 20 पर तसवीरें]

आत्मा के फल ज़ाहिर करने और राज्य का संदेश सुनाने के ज़रिए हम बहुत-सा फल लाते हैं

[पेज 23 पर तसवीर]

यीशु ने जब अपने प्रेरितों से कहा: “बहुत सा फल लाओ,” तो उसका क्या मतलब था?

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