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एक असंभावनीय शिष्यप्रहरीदुर्ग—1990 | अप्रैल 1
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जैसे ही वह मनुष्य यीशु के पास आकर उसके पैरों पर पड़ता है, उसे नियंत्रित करनेवाले दुष्टात्मा उसे चिल्लाने पर मजबूर करते हैं: “हे यीशु, परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझे परमेश्वर की शपथ देता हूँ, कि मुझे पीड़ा न दे।”
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एक असंभावनीय शिष्यप्रहरीदुर्ग—1990 | अप्रैल 1
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“मेरा नाम सेना है; क्योंकि हम बहुत हैं,” जवाब आता है। दुष्टात्माएँ उन लोगों के दुःखभोग देखना पसंद करते हैं, जिन्हें वे आविष्ट कर सकते हैं, और प्रत्यक्षतः कायर उत्तेजित भीड़ भाव से उनके ख़िलाफ़ इकट्ठा होना बहुत पसंद करते हैं। यीशु के सम्मुख आकर, वे बिनती करते हैं कि उन्हें अथाह कुण्ड में न भेजा जाए। एक बार फिर हम यीशु की बड़ी शक्ति देखते हैं, जिस से वह विद्वेषपूर्ण दुष्टात्माओं को अधीन कर सका। इस से यह भी प्रकट होता है कि दुष्टात्माओं को मालूम है कि अपने अगुवा, शैतान इब्लीस, के साथ उन्हें अथाह कुण्ड में डालना, उन पर परमेश्वर का अन्तिम न्यायदण्ड है।
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