यहोवा को उसके वचन के द्वारा जानिए
“और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।”—यूहन्ना १७:३.
१, २. (क) “जानना” और “ज्ञान” को जिस प्रकार शास्त्रवचनों में प्रयोग किया गया है उनका अर्थ क्या है? (ख) कौन-से उदाहरण इस अर्थ को स्पष्ट करते हैं?
किसी से केवल परिचित होना या किसी चीज़ के बारे में ऊपरी ज्ञान रखना, “जानना” और “ज्ञान” शब्दों के उस अर्थ से चूक जाते हैं, जिस अर्थ में शास्त्रवचन इन्हें प्रयोग करते हैं। बाइबल में इसके अर्थ में सम्मिलित है “अनुभव के द्वारा जानने की क्रिया,” ऐसा ज्ञान जो “व्यक्तियों के बीच विश्वास के सम्बन्ध” को व्यक्त करता है। (द न्यू इंटर्नेशनल डिक्शनरि ऑफ़ न्यू टेसटामेंट थिऑलजी) इसमें सम्मिलित है यहोवा के विशेष कार्यों पर विचार करने के द्वारा उसे जानना, जैसे कि यहेजकेल की पुस्तक में वे अनेक मामले, जिनमें परमेश्वर ने यह घोषणा करते हुए, पापियों के विरुद्ध न्याय कार्यान्वित किया: ‘तब तू जान लेगा कि मैं यहोवा हूं।’—यहेजकेल ३८:२३.
२ “जानना” और “ज्ञान” को जिन विविध तरीक़ों से प्रयोग किया जा सकता है, इन्हें कुछ उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। उसके नाम से कार्य करने का दावा करनेवाले अनेक लोगों से यीशु ने कहा, “मैं ने तुम को कभी नहीं जाना”; उसका अर्थ था कि उनके साथ उसका कभी कोई संबंध नहीं रहा था। (मत्ती ७:२३) दूसरा कुरिन्थियों ५:२१ कहता है कि मसीह “पाप से अज्ञात था।” इसका यह अर्थ नहीं था कि वह पाप के प्रति अवगत नहीं था, परन्तु, यह कि पाप में उसका कोई निजी भाग नहीं था। इसी तरह, जब यीशु ने कहा: “और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें,” तो इस में परमेश्वर और मसीह के बारे में केवल कुछ ज्ञान रखने से अधिक सम्मिलित था।—मत्ती ७:२१ से तुलना कीजिए.
३. क्या साबित करता है कि यहोवा सच्चे परमेश्वर की पहचान का चिह्न प्रदर्शित करता है?
३ उसके वचन, बाइबल द्वारा यहोवा के अनेक गुणों को जाना जा सकता है। इन में से एक गुण है उसकी यथार्थता से भविष्यवाणी करने की क्षमता। यह सच्चे परमेश्वर का एक चिह्न है: “वे उन्हें देकर हम को बताएं कि भविष्य में क्या होगा? पूर्वकाल की घटनाएं बताओ कि आदि में क्या क्या हुआ, जिस से हम उन्हें सोचकर जान सकें कि भविष्य में उनका क्या फल होगा; वा होनेवाली घटनाएं हम को सुना दो। भविष्य में जो कुछ घटेगा वह बताओ, तब हम मानेंगे कि तुम ईश्वर हो।” (यशायाह ४१:२२, २३) अपने वचन में, यहोवा पृथ्वी और इस पर के प्राणियों की सृष्टि के विषय में पूर्वकाल की बातें बताता है। उसने समय से बहुत ही पहले बताया कि आगे क्या-क्या होनेवाला था और ये बातें सच भी हुईं। और वह अब भी ‘होनेवाली घटनाएं हम को सुनाता है,’ ख़ासकर जो बातें इन “अन्तिम दिनों” में होंगी।—२ तीमुथियुस ३:१-५, १३; उत्पत्ति १:१-३०; यशायाह ५३:१-१२; दानिय्येल ८:३-१२, २०-२५; मत्ती २४:३-२१; प्रकाशितवाक्य ६:१-८; ११:१८.
४. यहोवा ने अपने शक्ति के गुण को कैसे प्रयोग किया है, और वह इसे आगे कैसे प्रयोग करेगा?
४ यहोवा का एक और गुण शक्ति है। आकाशमंडल में इसका प्रमाण मिलता है जहाँ तारे विशाल संलयन भट्ठियों की तरह कार्य करते हुए प्रकाश और ताप देते हैं। जब अनाज्ञाकारी मनुष्य या स्वर्गदूत यहोवा की सर्वसत्ता को चुनौती देते हैं, तब वह “योद्धा” के रूप में अपने अच्छे नाम और धार्मिक स्तरों की रक्षा करते हुए अपनी शक्ति का प्रयोग करता है। ऐसे अवसरों पर वह विनाशक रीति से शक्ति को प्रयोग करने से नहीं हिचकिचाता है, जैसे नूह के दिनों में जल-प्रलय, सदोम और अमोरा के विनाश, और इस्राएल को मुक्त करने के लिए लाल समुद्र से पार कराते समय। (निर्गमन १५:३-७; उत्पत्ति ७:११, १२, २४; १९:२४, २५) जल्द ही, परमेश्वर ‘शैतान को तुम्हारे पांवों से कुचलने’ के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करेगा।—रोमियों १६:२०.
५. शक्ति के साथ-साथ, यहोवा में और कौन-सा गुण है?
५ तो भी, इतनी असीमित शक्ति के बावजूद, उसमें विनम्रता है। भजन १८:३५, ३६ कहता है: “तेरी नम्रता ने महत्व दिया है। तू ने मेरे पैरों के लिये स्थान चौड़ा कर दिया।” परमेश्वर की विनम्रता के कारण वह “आकाश और पृथ्वी पर भी, दृष्टि करने के लिये झुकता है। वह कंगाल को मिट्टी पर से, और दरिद्र को घूरे पर से उठाकर ऊंचा करता है।”—भजन ११३:६, ७.
६. यहोवा का कौन-सा गुण प्राण-रक्षक है?
६ मनुष्य के साथ व्यवहार करने में यहोवा की दया प्राण-रक्षक है। जबकि मनश्शे ने भयानक अपराध किए थे, तो भी उसे क्या ही दया दिखाई गई थी जब उसे माफ़ किया गया! यहोवा कहता है: “जब मैं दुष्ट से कहूं, तू निश्चय मरेगा, और वह अपने पाप से फिरकर न्याय और धर्म के काम करने लगे, जितने पाप उस ने किए हों, उन में से किसी का स्मरण न किया जाएगा; उस ने न्याय और धर्म के काम किए और वह निश्चय जीवित रहेगा।” (यहेजकेल ३३:१४, १६; २ इतिहास ३३:१-६, १०-१३) यीशु यहोवा को प्रतिबिम्बित कर रहा था जब उसने ७७ बार, यहाँ तक कि एक दिन में ७ बार माफ़ करने के लिए आग्रह किया!—भजन १०३:८-१४; मत्ती १८:२१, २२; लूका १७:४.
परमेश्वर जिसमें भावनाएँ हैं
७. यूनानी देवताओं से यहोवा कैसे भिन्न है, और हमारे लिए क्या मूल्यवान विशेषाधिकार खुला है?
७ यूनानी तत्त्वज्ञ, जैसे कि इपिकूरी लोग, देवताओं में विश्वास करते थे लेकिन वे समझते थे कि ये पृथ्वी से इतने दूर हैं कि मनुष्य में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं और न ही वे मनुष्य की भावनाओं से प्रभावित होते हैं। यहोवा और उसके वफ़ादार गवाहों के बीच कितना ही भिन्न संबंध है! “यहोवा अपनी प्रजा से प्रसन्न रहता है।” (भजन १४९:४) जल-प्रलय के पूर्व दुष्ट लोगों के कारण उसे पछतावा हुआ और “वह मन में अति खेदित हुआ।” अपनी बेवफ़ाई के कारण इस्राएल ने यहोवा को दुःखी और खेदित किया। मसीही लोग अपनी अनाज्ञाकारिता से यहोवा की आत्मा को खेदित कर सकते हैं; परन्तु, अपनी वफ़ादारी से वे उसे आनन्दित कर सकते हैं। यह सोचकर कितना आश्चर्य होता है कि पृथ्वी पर तुच्छ मनुष्य विश्वमंडल के सृष्टिकर्ता को खेदित या आनन्दित कर सकता है! यह ध्यान में रखते हुए कि वह हमारे लिए कितना कुछ करता है, यह कितना अद्भुत है कि हमारे पास उसे सुख देने का मूल्यवान विशेषाधिकार है!—उत्पत्ति ६:६; भजन ७८:४०, ४१; नीतिवचन २७:११; यशायाह ६३:१०; इफिसियों ४:३०.
८. इब्राहीम ने यहोवा के साथ अपने हियाव का कैसे प्रयोग किया?
८ परमेश्वर का वचन दिखाता है कि यहोवा का प्रेम हमें अत्यंत “हियाव” देता है। (१ यूहन्ना ४:१७) इब्राहीम के मामले पर ध्यान दीजिए जब यहोवा सदोम को नाश करने आया। इब्राहीम ने यहोवा से कहा: “क्या तू सचमुच दुष्ट के संग धर्मी को भी नाश करेगा? कदाचित् उस नगर में पचास धर्मी हों तो क्या तू सचमुच उस स्थान को नाश करेगा और उन पचास धर्मियों के कारण जो उस में हों न छोड़ेगा? यह तुझ से दूर रहे: क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे?” कितनी बड़ी बात कही उसने परमेश्वर से! फिर भी, यहोवा सहमत हुआ कि यदि सदोम में ५० धर्मी जन भी हुए तो वह उसे बचाए रखेगा। इब्राहीम बात करता गया और संख्या को ५० से २० तक ले आया। वह चिन्तित हो गया कि कहीं वह हद से ज़्यादा तो नहीं ज़ोर डाल रहा है। उसने कहा: “हे प्रभु, क्रोध न कर, मैं एक ही बार और कहूंगा: कदाचित् उस में दस मिलें।” एक बार फिर यहोवा ने रियायत दी: “तो मैं दस के कारण भी उसका नाश न करूंगा।”—उत्पत्ति १८:२३-३३.
९. यहोवा ने इब्राहीम को ऐसे बात क्यों करने दी, और इससे हम क्या सीख सकते हैं?
९ यहोवा ने क्यों इब्राहीम को इस प्रकार बात करने का हियाव पड़ने दिया? एक कारण यह था कि यहोवा इब्राहीम की व्यथित भावनाओं से अवगत था। वह जानता था कि इब्राहीम का भतीजा, लूत सदोम में रहता था, और इब्राहीम को उसकी सुरक्षा की चिन्ता थी। और, इब्राहीम परमेश्वर का मित्र भी था। (याकूब २:२३) जब कोई हम से कठोरता से बात करता है, क्या हम उसके उन शब्दों को उकसानेवाली भावनाओं को समझने की कोशिश करते हैं? क्या हम उसकी स्थिति को ध्यान में रखते हैं, ख़ासकर यदि वह एक मित्र है जो किसी प्रकार के भावात्मक दबाव में है? क्या यह देखकर सांत्वना नहीं प्राप्त होती कि जैसे इब्राहीम के मामले में था, वैसे ही यहोवा हमारे हियाव के प्रयोग को भी समझ सकेगा?
१०. हियाव हमें प्रार्थना में कैसे मदद करता है?
१० विशेषकर हमें तब ऐसे हियाव की चाह होती है जब हम उसे अपने “प्रार्थना के सुननेवाले” के तौर पर पुकारते हैं, ताकि हम उससे अपने हृदय की बात कह सकें, जब हम अत्यधिक व्यथित और भावात्मक रीति से परेशान होते हैं। (भजन ५१:१७; ६५:२, ३) ऐसे समयों पर भी जब हम कुछ कह नहीं पाते हैं, “आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर हैं, हमारे लिये बिनती करता है,” और यहोवा सुनता है। वह हमारे विचारों को जान सकता है: “तू . . . मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है। हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो।” तब भी, हमें मांगते रहना, ढूँढ़ते रहना, और खटखटाते रहना चाहिए।—रोमियों ८:२६; भजन १३९:२, ४; मत्ती ७:७, ८.
११. यह कैसे दिखाया गया है कि यहोवा वास्तव में हमारी परवाह करता है?
११ यहोवा परवाह करता है। वह अपने सृष्ट किए प्राणियों के लिए प्रबंध करता है। “सभों की आंखें तेरी ओर लगी रहती हैं, और तू उनको आहार समय पर देता है। तू अपनी मुट्ठी खोलकर, सब प्राणियों को आहार से तृप्त करता है।” (भजन १४५:१५, १६) हमें यह देखने के लिए निमंत्रण दिया जाता है कि वह कैसे झाड़ियों में पक्षियों को भोजन देता है। मैदान में सोसनों को देखिए, उन्हें वह कितने सुन्दर तरीक़े से वस्त्र पहनाता है। यीशु ने आगे कहा कि परमेश्वर जितना इनके लिए करता है उतना ही और उससे भी अधिक हमारे लिए करेगा। सो हम क्यों चिन्तित हों? (व्यवस्थाविवरण ३२:१०; मत्ती ६:२६-३२; १०:२९-३१) पहला पतरस ५:७ आपको निमंत्रण देता है कि “अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।”
“उसके तत्व की छाप है”
१२, १३. यहोवा को उसकी सृष्टि और बाइबल में लेखबद्ध उसके कार्यों के द्वारा देखने के साथ-साथ, हम और किन तरीक़ों से उसे देख और सुन सकते हैं?
१२ हम यहोवा परमेश्वर को उसकी सृष्टि के द्वारा देख सकते हैं; हम बाइबल में उसके कार्यों के बारे में पढ़कर उसे देख सकते हैं; हम यीशु मसीह के विषय में लेखबद्ध बातों और कार्यों द्वारा भी उसे देख सकते हैं। यीशु स्वयं यूहन्ना १२:४५ में ऐसा कहता है: “जो मुझे देखता है, वह मेरे भेजनेवाले को देखता है।” फिर, यूहन्ना १४:९ में: “जिस ने मुझे देखा है उस ने पिता को देखा है।” कुलुस्सियों १:१५ कहता है: “[यीशु] तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप है।” इब्रानियों १:३ घोषणा करता है: “[यीशु तो परमेश्वर की] महिमा का प्रकाश, और उसके तत्व की छाप है।”
१३ यहोवा ने अपने पुत्र को न केवल एक छुड़ौती देने के लिए बल्कि एक उदाहरण भी छोड़ने के लिए भेजा था, ताकि बातों और कामों दोनों में उसका अनुसरण किया जाए। यीशु ने परमेश्वर के वचन बोले। उसने यूहन्ना १२:५० में कहा: “मैं जो बोलता हूं, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूं।” उसने अपनी इच्छा पूरी नहीं की, बल्कि उसने वही किया जो परमेश्वर ने उसे करने को कहा। यूहन्ना ५:३० में उसने कहा: “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता।”—यूहन्ना ६:३८.
१४. (क) कौन-से दृश्य देखकर यीशु दया से प्रेरित हुआ? (ख) यीशु के बात करने के ढंग के कारण क्यों भीड़ पर भीड़ उसके पास आए?
१४ यीशु ने ऐसे लोगों को देखा जो कोड़ी, अपंग, बहरे, अंधे, और प्रेत द्वारा वश में किए हुए थे और ऐसे लोग जो अपने मरे हुओं के लिए शोक मना रहे थे। दया से प्रेरित होकर, उसने बीमारों को चंगा किया और मुरदों को जी उठाया। उसने लोगों की भीड़ को आध्यात्मिक रूप में संकट उठाते और ठोकर खाते हुए देखा, और उसने उन्हें बहुत-सी बातें सिखाना शुरू किया। उसने अपने हृदय से उन्हें न केवल सही शब्दों के द्वारा, बल्कि ऐसे मनपसंद शब्दों के द्वारा भी सिखाया जो सीधे दूसरों के हृदय तक पहुँचे, जिससे लोग उसकी ओर खिंचे आए, जिसके कारण वे भोर को तड़के मन्दिर में उसकी सुनने के लिए आए, जिसके कारण वे आनन्द से उसकी सुनने के लिए उसके पीछे चलते रहे। भीड़ पर भीड़ उसकी बातों को सुनने के लिए आए, यह घोषणा करते हुए कि “किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न कीं।” वे उसके उपदेश देने के ढंग से चकित हुए। (यूहन्ना ७:४६; मत्ती ७:२८, २९; मरकुस ११:१८; १२:३७; लूका ४:२२; १९:४८; २१:३८) और जब उसके शत्रुओं ने प्रश्नों से उसे फाँसने की कोशिश की, उसने बात को ऐसे घुमाया कि वे चुप हो गए।—मत्ती २२:४१-४६; मरकुस १२:३४; लूका २०:४०.
१५. यीशु के प्रचार का मुख्य विषय क्या था, और इसे फैलाने में उसने अन्य लोगों को किस हद तक शामिल किया?
१५ उसने घोषणा की कि ‘स्वर्ग का राज्य निकट आ गया [था]’ और सुननेवालों से आग्रह किया कि वे ‘पहिले राज्य की खोज करें।’ उसने दूसरों को प्रचार करने के लिए कि “स्वर्ग का राज्य निकट आ गया [था],” और “पृथ्वी की छोर तक” मसीह के गवाह होने के लिए ‘सब जातियों के लोगों को चेले’ बनाने के लिए भेजा। आज तक़रीबन ४५ लाख यहोवा के गवाह उसके क़दमों पर चलते हुए वही कार्य कर रहे हैं।—मत्ती ४:१७; ६:३३; १०:७; २८:१९; प्रेरितों १:८.
१६. यहोवा के प्रेम के गुण का कठोर परीक्षण कैसे हुआ, लेकिन इससे मानवजाति के लिए क्या कार्य पूरा हुआ?
१६ पहला यूहन्ना ४:८ में हमें बताया जाता है, “परमेश्वर प्रेम है।” उसके इस उल्लेखनीय गुण का सबसे पीड़ादायक परीक्षण तब हुआ जब उसने अपने एकलौते पुत्र को पृथ्वी पर मरने के लिए भेजा। जो संताप इस प्रिय पुत्र ने सहा और जो निवेदन उसने अपने स्वर्गीय पिता से किए, यहोवा को बहुत ही भारी पड़े होगें, चाहे यीशु ने शैतान की इस चुनौती को झूठा ठहराया कि पृथ्वी पर यहोवा के कोई लोग हो नहीं सकते जो कठोर परीक्षण के समय उसके प्रति अपनी ख़राई बनाए रखेंगे। हमें यीशु के बलिदान की महत्ता का भी मूल्यांकन करना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर ने उसे यहाँ हमारे लिए मरने के लिए भेजा था। (यूहन्ना ३:१६) यह एक सरल, तुरंत मृत्यु नहीं थी। परमेश्वर और यीशु दोनों को क्या क़ीमत चुकानी पड़ी, इस बात का मूल्यांकन करने के लिए और इस प्रकार उनका हमारे लिए दिए बलिदान की महत्ता को समझने के लिए, आइए हम कार्यवाई के बारे में बाइबल विवरण की जाँच करें।
१७-१९. यीशु ने आगे आनेवाले कठिन परीक्षण का कैसे वर्णन किया?
१७ कम से कम चार बार, यीशु ने अपने प्रेरितों को वर्णन किया कि आगे क्या होनेवाला था। इसके होने के कुछ ही दिन पहले, उसने कहा: “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और मनुष्य का पुत्र महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा, और वे उस को घात के योग्य ठहराएंगे, और अन्य जातियों के हाथ में सौंपेंगे। और वे उस को ठट्ठों में उड़ाएंगे, और उस पर थूकेंगे, और उसे कोड़े मारेंगे, और उसे घात करेंगे।”—मरकुस १०:३३, ३४.
१८ आगे जो होनेवाला था, यीशु ने उस बात के दबाव को महसूस किया, यह समझ रखते हुए कि रोमी नियम के अनुसार कोड़े लगवाना कितना ही भयानक होता है। कोड़े लगवाने के लिए प्रयोग किए गए चाबुक के चमड़े के फ़ीतों में धातु के छोटे-छोटे टुकड़े और भेड़ की हड्डियाँ लगे होते थे; इसलिए जैसे-जैसे कोड़े लगते जाते, पीठ और टांगें लहूलुहान मांस की चिथड़े-चिथड़े हुई लकीरें बन जातीं। महीनों पहले, यीशु ने यह कहते हुए संकेत दिया कि आगे का कठिन परीक्षण उस में अत्यधिक भावात्मक तनाव पैदा कर रहा था, जैसे हम लूका १२:५० में पढ़ते हैं: “मुझे तो एक बपतिस्मा लेना है, और जब तक वह न हो ले तब तक मैं कैसी सकेती में रहूंगा!”
१९ जैसे-जैसे वह समय निकट आया वह तनाव बढ़ता गया। उसने इस विषय में अपने स्वर्गीय पिता से बात की: “अब मेरा जी व्याकुल हो रहा है। इसलिये अब मैं क्या कहूं? हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा? परन्तु मैं इसी कारण इस घड़ी को पहुंचा हूं।” (यूहन्ना १२:२७) अपने एकलौते पुत्र के इस निवेदन से यहोवा पर क्या ही असर पड़ा होगा! गतसमनी में, अपनी मृत्यु के चंद घंटों पहले, यीशु अत्यंत व्याकुल हुआ और पतरस, याकूब, और यूहन्ना से कहा: “मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरे प्राण निकला चाहते हैं।” इसके मिनटों बाद उसने इस विषय पर यहोवा को अपनी अंतिम प्रार्थना की: “हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो! और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था।” (मत्ती २६:३८; लूका २२:४२, ४४) शायद यह ऐसी दशा थी जिसे चिकित्सीय रूप से हीमाटिड्रोसिस (hematidrosis) कहा जाता है। यह विरल है लेकिन अत्यधिक भावात्मक स्थितियों में हो सकता है।
२०. अपने कठिन परीक्षण से पार होने में किस चीज़ ने यीशु की मदद की?
२० गतसमनी में इस समय के बारे में, इब्रानियों ५:७ कहता है: “उस ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई।” जबकि वह “जो उस को मृत्यु से बचा सकता था,” ने उसे मृत्यु से नहीं बचाया, तो उसकी प्रार्थनाएं किस प्रकार अनुकूल दृष्टि से सुनी गईं? लूका २२:४३ उत्तर देता है: “तब स्वर्ग से एक दूत उस को दिखाई दिया जो उसे सामर्थ देता था।” प्रार्थना इस प्रकार सुनी गई कि जिस स्वर्गदूत को परमेश्वर ने भेजा, उसने यीशु को उस कठिन परीक्षण को सहने के लिए सामर्थ दिया।
२१. (क) कौन-सी बात दिखाती है कि यीशु उस कठिन परीक्षण से विजयी निकला? (ख) जब हमारे संकट बढ़ते हैं, तब हम किस तरह बात करने की योग्यता रखना चाहेंगे?
२१ जो परिणाम हुआ, उससे यह बात स्पष्ट थी। जब उसका आंतरिक संघर्ष समाप्त हुआ, यीशु उठा, पतरस, याकूब, और यूहन्ना के पास लौटा, और कहा: “उठो, चलें।” (मरकुस १४:४२) एक तरह से वह कह रहा था, ‘चलो, मैं चुम्बन से अपना विश्वासघात करवाने, भीड़ द्वारा पकड़वाए जाने, ग़ैरक़ानूनी रीति से परखे जाने, अन्यायपूर्वक प्राण-दण्ड पाने के लिए जाऊं। चलो, मैं अपना हंसी ठट्ठा करवाने, थूके जाने, कोड़े लगवाने, और यातना स्तंभ पर ठोके जाने के लिए जाऊं।’ छः घंटों तक वह वहाँ, अत्यंत पीड़ा में, अंत तक सहन करते हुए लटका रहा। जैसे ही वह मरा, वह विजय से चिल्लाया: “पूरा हुआ।” (यूहन्ना १९:३०) वह स्थिर रहा था और यहोवा की सर्वसत्ता को ऊँचा रखने के लिए उसने अपनी ख़राई प्रमाणित की थी। जिस-जिस काम के लिए यहोवा ने उसे पृथ्वी पर भेजा था वह उसने पूरा किया था। जब हम मरें या जब अरमगिदोन आए, क्या हम यहोवा से मिले अपने नियुक्त-कार्य के विषय में कह सकेंगे: “पूरा हुआ”?
२२. क्या बात यहोवा के ज्ञान के फैलाव की हद को दिखाती है?
२२ कुछ भी हो, हम इतना विश्वास कर सकते हैं कि यहोवा के शीघ्रता से आते नियुक्त समय में, सारी “पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।”—यशायाह ११:९.
क्या आपको याद है?
▫ जानना और ज्ञान रखने का क्या अर्थ है?
▫ हमारे प्रति यहोवा की दया और क्षमा उसके वचन में कैसे दिखाई गई है?
▫ इब्राहीम ने यहोवा के साथ हियाव का प्रयोग कैसे किया?
▫ यीशु को देखकर हम क्यों उसमें यहोवा के गुण देख सकते हैं?