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  • क्या बाइबल स्वयं को खंडती है?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
w89 2/1 पेज 5-7

क्या बाइबल स्वयं को खंडती है?

“परमेश्‍वर का झूठ बोलना असंभव है,” बाइबल घोषित करती है। (इब्रानियों ६:१८, न्यू.व.) तो, उसकी किताब किस तरह सुस्पष्ट असंबद्धताओं और उल्लेखनीय असंगति से भरी होकर, फिर भी परमेश्‍वर का वचन कही जा सकेगी? नहीं। ‘तो, फिर, ये असंगति क्यों?’ आप पूछते हैं।

जैसे अपेक्षित हो सकता है, एक ऐसी किताब, जिसकी सदियों से हाथ से परिश्रमशीलता से प्रतिलिपि बनायी गयी और जिसे उस समय के लोकप्रिय भाषाओं में अनुवाद करना ज़रूरी था, उस में कुछेक लिपिकीय परिवर्तन धीरे-धीरे आ गए। पर उन में कोई ऐसे विस्तार और महत्त्व के नहीं कि पूरे बाइबल की प्रेरणा और अधिकार के विषय शंका उत्पन्‍न कर सके। ध्यानयुक्‍त जाँच से, यह दिखाया जा सकता है कि प्रतीयमान खंडन के सच्चे उत्तर हैं। अक़्सर, जो लोग यह दावा करते हैं कि बाइबल स्वयं को खंडती है, उन्होंने खुद एक संपूर्ण जाँच नहीं की है, लेकिन, जो लोग बाइबल पर विश्‍वास करना या उसके द्वारा नियंत्रित होना नहीं चाहते, इनके द्वारा उन पर लादे गए मत को बस स्वीकार कर लेते हैं। नीतिवचन १८:१३ पर बाइबल चिताती है कि “जो बिना बात सुने उत्तर देता है, वह मूढ़ ठहरता, और उसका अनादर होता है।”

कभी-कभी, कुछेक इस वास्तविकता के प्रति आपत्ति उठाते हैं कि यह नहीं लगता कि बाइबल लेखक आँकडों, घटना-क्रम, उद्धरण के शब्द-चयन, इत्यादि, से संबंधित मामलों पर हमेशा सहमत होते हैं। पर ग़ौर कीजिए: अगर आप किसी घटना के चश्‍मदीद गवाहों को, जो भी उन्होंने देखा उसे लिख लेने के लिए कहते, क्या सारे विवरण शब्द-चयन और विस्तार में संपूर्णतया मेल खाते? अगर उन में संपूर्णतया मेल होता, तो क्या आप शक्की न होते कि लेखकों के बीच साँठ-गाँठ है? उसी तरह, परमेश्‍वर ने बाइबल लेखकों को उनके खुद की विशेष शैली और भाषा रखने दिया, जब कि उस ने यह ध्यान रखा कि अपने विचार और प्रासंगिक बातें सही-सही संप्रेषित हों।

नए लेखक की ज़रूरतों और उद्देश्‍य को पूरा करने के लिए शुरु के लेखनों में के उद्धरण मौलिक कथनों से शायद कुछ-कुछ बदले जा सकते हैं, जबकि आधारभूत भाव और विचार को फिर भी सुरक्षित रखा जाता है। वही बात घटनाओं के समूहन के बारे में कही जा सकती है। एक लेखक शायद यथातथ्य कालानुक्रम के अनुसार लिखेगा, जबकि दूसरा शायद विचार साहचर्य के अनुसार घटनाओं को क्रमबद्ध करेगा। छूट, उसी तरह, लेखक के दृष्टिकोण और उसके विवरण के संक्षेपण के अनुसार होंगे। अतएव, मत्ती बोलता है कि यीशु ने दो अँधे आदमियों को स्वस्थ किया, जबकि मरकुस और लूका केवल एक का ही ज़िक्र करते हैं। (मत्ती २०:२९-३४; मरकुस १०:४६; लूका १८:३५) मत्ती का विवरण खंडनात्मक नहीं। वह सिर्फ संख्या के बारे में सुस्पष्ट हो रहा है, जबकि मरकुस और लूका उस एक आदमी पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिस की ओर यीशु ने अपनी बातचीत निर्दिष्ट की।

समय की संगणना करने के भी अलग-अलग विधियाँ थीं। यहूदी जाति दो तिथि-पत्र इस्तेमाल करते थे​—पवित्र तिथि-पत्र और धर्मनिर्पेक्ष, या कृषिक तिथि-पत्र​—प्रत्येक जो वर्ष के अलग-अलग समय पर शुरु होता था। जो लेखक महीने और दिन के मामले में भिन्‍न होते हैं, शायद अलग तिथि-पत्र ही इस्तेमाल कर रहे हों। चूँकि पूर्वी लेखक भिन्‍न विरले ही इस्तेमाल करते थे, वर्ष के अंश पूरे वर्ष के तौर से गिने जाते थे। उनको समीपस्थ पूर्ण संख्या बनाया जाता था। उदाहरणार्थ, इसे उत्पत्ति अध्याय ५ में पाए गए वंशावलिक अभिलेखों में ग़ौर कीजिए।

“खंडनों” को सुसंगत बनाना

पर क्या बाइबल में ऐसे मूलपाठ नहीं जो दूसरे मूलपाठों से बिल्कुल विपरीत बात कहते हैं? आइए, बाइबल के समालोचकों द्वारा उल्लेख किए गए कुछेकों पर ग़ौर करें।

यूहन्‍ना ३:२२ में हम पढ़ते हैं कि यीशु “बपतिस्मा देने लगा,” जबकि ज़रा आगे, यूहन्‍ना ४:२ में, अभिलेख कहता है कि ‘यीशु आप बपतिस्मा नहीं देता था।’ पर जैसे मूलपाठ का बाक़ी हिस्सा संकेत करता है, ये यीशु के चेले थे जिन्होंने उसके नाम से और उसके निर्देशन में वास्तविक बपतिस्मा किए। यह उसी स्थिति के समान है जहाँ एक व्यापारी और उसका सचिव दोनों कोई विशेष चिट्ठी लिखने का अधिकार जता सकते हैं।

फिर उत्पत्ति २:२ में वह मूलपाठ है, जिस में रिकार्ड किया गया है कि परमेश्‍वर ने “अपने किए हुए सारे काम से” विश्राम किया। इसके वैषम्य में यूहन्‍ना ५:१७ में यीशु का टीका है, जहाँ वह कहता है कि परमेश्‍वर “अब तक काम करता आया है।” (न्यू.व.) पर जैसे संदर्भ दिखाता है, उत्पत्ति का अभिलेख विशेष रूप से परमेश्‍वर की भौतिक सृष्टि के कार्यों के विषय बोल रहा है, जबकि यीशु परमेश्‍वर के उन कार्यों का उल्लेख कर रहा था जो मानवजाति के लिए उसके दैवी मार्गदर्शन और देख-रेख से संबंधित थे।

निर्गमन ३४:७ को यहेजकेल १८:२० से तुलना करके एक और प्रतीयमान खंडन मिलता है। पहला मूलपाठ कहता है कि परमेश्‍वर “पितरों के अधर्म का दण्ड उनके बेटों वरन पोतों को भी” देगा, जबकि बादवाला मूलपाठ कहता है कि ‘पुत्र पिता के अधर्म का भार न उठाएगा।’ ये मूलपाठ खंडनात्मक प्रतीत क्यों होते हैं? इसलिए कि इन्हें संदर्भ के अनुकूल नहीं लिया गया है। संबंधित विषय और अवस्थान की जाँच कीजिए। तब यह सुस्पष्ट हो जाता है कि जब परमेश्‍वर ने दण्ड को, न केवल पिताओं पर, लेकिन बेटों और पोतों पर भी आते हुए बताया, वह इस विषय बोल रहा था कि अगर इस्राएली उसके विरुद्ध पाप करते और क़ैद में लिए जाते, तो उन पर एक जाति के तौर से क्या नतीजा होता। दूसरी ओर, जब वह उस बेटे का ज़िक्र कर रहा था, जो अपने पिता के अधर्म के लिए उत्तरदायी न होता, वह निजी जवाबदेही के विषय बोल रहा था।

भिन्‍नताएँ तो बेशक पायी जा सकती हैं, उदाहरणार्थ यीशु के जन्म के विवरण में, जैसा कि मत्ती १:१८-२५ और लूका १:२६-३८ में लेखबद्ध है। पर क्या वे खंडन सूचित करते हैं?

क्या आपने कभी एक ही प्रसिद्ध व्यक्‍ति की दो जीवन कथाएँ पढ़ी हैं? अगर पढ़ी हों, तो क्या आपने ग़ौर किया कि ये जीवन कथाएँ आवश्‍यक रूप से खंडनात्मक हुए बग़ैर, भिन्‍न होंगे? अक़्सर, यह लेखक के निजी विचार या उसके द्वारा इस्तेमाल किए गए सूचना-स्रोत की वजह से होता है। यह, लेखक अपनी प्रस्तुति में किस बात को बतलाना आवश्‍यक समझता है, किस दृष्टिकोण पर विस्तार दे रहा है, और किस दर्शकगण को ध्यान में रखता है, जिनके लिए यह लेख उद्दिष्ट है, उस पर भी निर्भर है। इस प्रकार, जो विवरण अन्यजातीय पाठकों को ध्यान में रखकर लिखे गए, वे उन से भिन्‍न होते जो यहूदी पाठकों के लिए थे, जो कि पहले ही से कुछ तथ्यों को समझते और स्वीकार करते थे।

ये बाइबल के लेखांशों के बस थोड़े ही उदाहरण हैं जो, ध्यानयुक्‍त विश्‍लेषण के बग़ैर, एक दूसरे को खंडन करते हुए प्रतीत होते हैं। लेकिन जब ध्यान से जाँच किए जाते हैं, लेखक का दृष्टिकोण और संदर्भ को नज़र में रखकर, ये खंडन बिल्कुल ही नहीं, पर मात्र ऐसे लेखांश हैं जो अतिरिक्‍त खोज आवश्‍यक करते हैं। परंतु, अधिकांश लोग यह ज़रूरी कोशिश करने में असमर्थ होते हैं, केवल यह कहना उससे कहीं आसान पाकर कि: “बाइबल खुद को खंडती है।”

हमारे भरोसे के योग्य

परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा ने बाइबल लेखकों को अपने विवरण लिखने में काफ़ी हद तक स्वातंत्र्य दिया। (प्रेरितों के काम ३:२१) इस प्रकार, वे जो भी देखते, उन बातों का एक रंगीन और सजीव चित्र पेश कर सकते थे। तथापि, उनकी असमानताएँ दरअसल उनकी विश्‍वसनीयता और सच्चाई को स्थापित करके, छल-कपट और साँठ-गाँठ का कोई आरोप लगने नहीं देती हैं। (२ पतरस १:१६-२१) जबकि लेखक अपनी प्रस्तुति के विधि में भिन्‍न थे, सभी एक ही दिशा में इशारा करते थे और उन सभों का एक ही उद्देश्‍य था: लोगों को यह दिखाना कि यहोवा परमेश्‍वर मानवों को आनंदित बनाने के लिए क्या करेगा और अपनी ओर से मानवों को परमेश्‍वर का अनुमोदन प्राप्त करने के लिए क्या करना पड़ेगा।​—नीतिवचन २:३-६, ९.

बाइबल एक ऐसी किताब है जो हमारी विवेक-शक्‍ति को अनुरोध करती है। यह पूरी तरह सुसंगत है। यह स्वयं को नहीं खंडती। सभी ६६ किताबें (किंग जेम्स्‌ वर्ज़न के अनुसार १,१८९ अध्याय या ३१,१७३ आयत) हमारे पूर्ण भरोसे के योग्य हैं। जी हाँ, आप बाइबल पर भरोसा रख सकते हैं!

[पेज 6 पर बक्स]

यदि आप को एक बाइबल “खंडन” मिले, तो क्या यह हो सकता है कि:

◆ आप कुछ ऐतिहासकि वास्तविकता या प्राचीन रिवाजों के विषय अनभिज्ञ हैं?

◆ आप संदर्भ पर ग़ौर करने में असमर्थ हुए हैं?

◆ आपने लेखक के दृष्टिकोण का नज़र अंदाज़ किया है?

◆ आप ग़लत धार्मिक विचारों को, उन बातों से, जो बाइबल सचमुच कहती है, मेल बैठाने की कोशिश कर रहे हैं?

◆ आप एक अयथार्थ या दिनातीत बाइबल अनुवाद इस्तेमाल कर रहे हैं?

[पेज 7 पर तसवीरें]

मत्ती ने कहा कि यीशु ने दो अँधों को स्वस्थ किया। मरकुस और लूका ने केवल एक का ही ज़िक्र किया। क्या यह एक खंडन है?

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