यीशु का जीवन और सेवकाई
एक वाँछित अतिमानवीय शासक
जब यीशु हज़ारों को खिलाते हैं, लोगों को आश्चर्य होता है। वे कहते हैं, “वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला था निश्चय यही है।” वे न सिर्फ़ यह निष्कर्ष निकालते हैं कि यीशु वही भविष्यद्वक्ता है जो मूसा से बड़े होंगे, परन्तु यह कि वह एक बहुत अधिक वाँछनीय शासक बनते। तो वे उन्हें पकड़कर राजा बनाने की योजना बनाते हैं।
बहरहाल, यीशु को मालूम है कि वे कौनसी योजना बना रहे हैं। तो उन के द्वारा इस काम के लिए ज़ोर-ज़बरदस्ती से भरती कर दिए जाने से बचने के लिए, वह जल्दी से किसी और स्थान को जाते हैं। वह भीड़ों को विदा कर देते हैं, और अपने शिष्यों को बरबस नाव में बिठाकर वापस कफरनहूम लौटने को कहते हैं, और फिर उनसे अलग होकर प्रार्थना करने के लिए पहाड़ पर जाते हैं। उस रात यीशु वहाँ अकेले हैं।
भोर के कुछ ही समय पहले, यीशु अपने ऊँचे प्रेक्षण-स्थान से देखते हैं और ग़ौर करते हैं कि तेज़ हवा बहने के कारण समुन्दर पर लहरें उठ रही हैं। लगभग पूर्णिमाँ के चाँद की रोशनी में, चूँकि फसह का पर्ब्ब नज़दीक़ है, यीशु उस नाव को देखते हैं जिसमें उसके शिष्य बैठे हुए हैं और लहरों से लड़ते हुए आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। वे लोग अपना सारा बल लगाकर नाव को खे रहे हैं।
यह देखकर, यीशु पहाड़ से उतरते हैं और लहरों पर से नाव की ओर चलने लगते हैं। क़रीब तीन-चार मीलों का फ़ासला तय करके, वह अपने शिष्यों के पास पहुँच जाते हैं। परन्तु, वह इस प्रकार चलते ही रहते हैं मानो वह उन्हें छोड़कर आगे निकल जाने वाले हैं। जब वे उन्हें देखते हैं, वे चिल्ला उठते हैं: “एक आत्मा है!”
यीशु सान्त्वना देकर कहते हैं: “मैं हूँ, डरो मत।”
लेकिन पतरस कहता है: “हे प्रभु, यदि तू ही है, तो मुझे अपने पास पानी पर चलकर आने की आज्ञा दे।”
“आ!” यीशु उत्तर देते हैं।
इसके फ़ौरन बाद, पतरस नाव से उतरकर पानी पर से यीशु की ओर चलता है। लेकिन आँधी को देखकर, पतरस डर जाता है, और जब डूबने लगता है तो चिल्लाकर कहता है: “हे प्रभु, मुझे बचा!”
अपना हाथ तुरन्त बढ़ाकर, यीशु उसे यह कहकर पकड़ लेते हैं: “हे अल्प-विश्वासी, तू ने क्यों सन्देह किया?”
जब पतरस और यीशु नाव में चढ़ जाते हैं, तो हवा रुक जाती है, और शिष्य आश्चर्यचकित होते हैं। लेकिन उन्हें आश्चर्यचकित होने की क्या ज़रूरत है? अगर उन्होंने यीशु के कुछ ही घंटे पहले किए, सिर्फ़ पाँच रोटियों और दो मछलियों से हज़ारों को खिलाने के बड़े चमत्कार का महत्त्व समझकर “उन रोटियों” का मतलब समझा होता, तो यह इतनी आश्चर्यचकित बात नहीं लगी होगी कि वह पानी पर चल सकते और हवा को रोक सकते थे। बहरहाल, अब शिष्य उन्हें दण्डवत करते हैं और कहते हैं: “सचमुच तू परमेश्वर का पुत्र है।”
कुछ ही समय में वे गन्नेसरत पहुँच जाते हैं, जो कि कफरनहूम के पास एक खूबसूरत, उपजाऊ समतल भूमि है। वहाँ वे लंगर डालते हैं। लेकिन जब वे किनारे पर आते हैं, लोग यीशु को पहचान लेते हैं और आस-पास के इलाके में जाकर बीमारों को ढूँढ़ निकालते हैं। जब इन्हें उनके खाटों पर डालकर लाया जाता है और वे यीशु के बाहरी वस्त्र के झब्बे को छूते हैं, तब वे पूरी तरह से स्वस्थ होते हैं।
अगले दिन जिन लोगों ने प्रत्यक्षतः यीशु को हज़ारों को चमत्कारी रूप से खिलाते हुए देखा था, वे पाते हैं कि यीशु निकल चुके हैं। तो जब तिबिरियास से छोटी छोटी नावें आती हैं, वे उन पर चढ़ते हैं और यीशु को खोजने के लिए कफरनहूम की ओर रवाना होते हैं। जब वह उन्हें मिल जाते हैं, वे पूछते हैं: “हे रब्बी, तू यहाँ कब आया?” यीशु का उत्तर काफ़ी ज्ञान प्रदायक होगा। यूहन्ना ६:१४-२५; मत्ती १४:२२-३६; मरकुस ६:४५-५६.
◆ यीशु के चमत्कारी रूप से हज़ारों को खिलाने के बाद, लोग उन्हें क्या बनाना चाहते हैं?
◆ यीशु जिस पहाड़ पर अकेले गए हुए हैं, वहाँ से वह क्या देखते हैं, और उसके बाद वह क्या करते हैं?
◆ क्यों शिष्यों को इन बातों से इतना आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए?
◆ किनारे पर पहुँचने के बाद क्या होता है?
[पेज 9 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]