बाइबल का दृष्टिकोण
क्या मसीही एकता में विविधता की गुंजाइश है?
मसीही कलीसिया में एकता अत्यावश्यक है। धर्मसैद्धांतिक विश्वास में मतभेद होने से बहुत झगड़े, फूट और दुश्मनी तक हो सकती है। (प्रेरितों २३:६-१०) बाइबल कहती है कि “परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्त्ता है।” (१ कुरिन्थियों १४:३३) इसलिए, मसीहियों को सलाह दी गयी है कि एक ही बात कहें और एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहें।—१ कुरिन्थियों १:१०.
क्या ये शब्द और ऐसे ही बाइबल परिच्छेद मसीहियों के बीच हर विषय में सख्त एकरूपता का प्रोत्साहन दे रहे हैं? (यूहन्ना १७:२०-२३; गलतियों ३:२८) क्या बाइबल में वर्णित सच्ची मसीहियत विविधता का समर्थन नहीं करती, जब अलग-अलग व्यक्तित्व की बात आती है? क्या सभी मसीहियों से किसी किस्म के सख्त साँचे में ढलने की अपेक्षा की जाती है?
परमेश्वर हमारे अलग-अलग व्यक्तित्व को आकर्षित करता है
कुछ लोगों का यह दृढ़ विश्वास है कि बाइबल जनता पर निरंकुश नियंत्रण रखने का एक और औज़ार भर है। माना, कुछ पंथों ने इस प्रकार बाइबल का प्रायः दुरुपयोग किया है। लेकिन, यीशु ने शास्त्र और उसके रचनाकार, परमेश्वर की एकदम अलग छवि प्रस्तुत की। उसने परमेश्वर का वर्णन एक ऐसे व्यक्ति के रूप में किया जिसे अपनी हरेक सृष्टि में अत्यधिक दिलचस्पी है।
यूहन्ना ६:४४ में यीशु ने समझाया: “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले।” यहाँ प्रयुक्त क्रिया यह नहीं सुझाती कि परमेश्वर लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध घसीटता है। इसके बजाय, परमेश्वर कोमलता से आकर्षित करता है, हृदय को मोह लेता है। जैसा एक बाइबल विद्वान ने कहा, ‘परमेश्वर की ओर से एक प्रभाव है जो विश्वास करने के लिए मन को कायल करता है।’ सृष्टिकर्ता मानव परिवार को एक व्यक्तित्वहीन जनसमूह नहीं समझता। वह व्यक्तियों को जाँचता है और कोमलता से उनको अपनी ओर खींचता है जिनका मनोभाव सही है।—भजन ११:५; नीतिवचन २१:२; प्रेरितों १३:४८.
ध्यान दीजिए कि प्रेरित पौलुस कितना सुनम्य था। उसने व्यक्तियों की खास ज़रूरतों को पहचाना। उसने स्वीकार किया कि अमुक सोच-विचार कुछ राष्ट्रों या पृष्ठभूमियों के लोगों में सामान्य होते हैं। फिर उसने अपने रवैये को उसी प्रकार ढाला। उसने लिखा: “मैं यहूदियों के लिये यहूदी बना कि यहूदियों को खींच लाऊं, . . . मैं निर्बलों के लिये निर्बल सा बना, कि निर्बलों को खींच लाऊं, मैं सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बना हूं, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊं।”—१ कुरिन्थियों ९:२०-२२.
स्पष्टतः, पौलुस ने लोगों को एक ही साँचे में नहीं ढाला अथवा सभी के साथ एक ही ढंग से व्यवहार नहीं किया। उसने उन्हें यह प्रोत्साहन दिया: “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।” (कुलुस्सियों ४:६) जी हाँ, पौलुस और अन्य मसीहियों को यह स्वीकार करने और इसका आदर करने की ज़रूरत थी कि हर व्यक्ति अनोखा है ताकि वे व्यक्ति की मदद कर सकें।
परमेश्वर का मूल उद्देश्य
एक व्यक्ति के प्रति यह उचित आदर तब भी बना रहता है जब वह मसीही कलीसिया का भाग बन जाता है। अधिकारवालों की पसंद के गुलाम बनकर परमेश्वर के लोग पूर्ण एकरूपता और पूर्ण अनुरूपता के सागर में डूब नहीं जाते। इसके बजाय, वे विविध प्रकार के व्यक्तित्वों का आनंद लेते हैं और उनकी अलग-अलग क्षमताएँ, आदतें, और विचार होते हैं। हरेक व्यक्ति के व्यक्तित्व को उलझन या परेशानी नहीं समझा जाता है। यह परमेश्वर के मूल उद्देश्य का भाग है।
अतः, धर्मियों के लिए बाइबल में प्रतिज्ञा किये गये नये संसार में, मनुष्यों के बीच परिपूर्णता बड़ी विविधता की गुंजाइश छोड़ेगी। (२ पतरस ३:१३) शीर्षक “परिपूर्णता” के नीचे, बाइबल कोश शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्टिa (अंग्रेज़ी) उपयुक्त ही यह टिप्पणी करता है: “परिपूर्णता का अर्थ विविधता का अंत नहीं, जबकि लोग प्रायः ऐसा समझते हैं। पशु जगत, जो यहोवा के ‘सिद्ध काम’ का फल है (उत्प[त्ति] १:२०-२४; व्यव[स्थाविवरण] ३२:४, NHT), विविधता से भरा हुआ है।”
अंतर्दृष्टि में आगे कहा गया है: “इसी तरह पृथ्वी गृह की परिपूर्णता विविधता, बदलाव, या विषमता से असंगत नहीं; इसमें सरल और जटिल, सादे और भड़कीले, खट्टे और मीठे, ऊबड़-खाबड़ और समतल, मैदान और जंगल, पहाड़ और घाटी की गुंजाइश है। इसमें नयी वसंत-ऋतु की तन-मन जगानेवाली ताज़गी, खुला आसमान और ग्रीष्म-ऋतु की गरमी, शरद्-ऋतु के रंगों की मोहकता, ताज़ी गिरती बर्फ की निर्मल सुंदरता, सभी सम्मिलित हैं। (उत्प[त्ति] ८:२२) अतः परिपूर्ण मनुष्य एकसमान व्यक्तित्व, कौशल और क्षमताओं के एक ही साँचे में नहीं ढले होंगे।”
दूसरों की चिंता
लेकिन, सच्ची मसीहियत इसका पक्ष नहीं लेती कि हम आत्म-केंद्रित बनकर अपने आस-पास के लोगों के प्रति हीनभाव रखें। प्रेरित पौलुस ने अपने जीवन और चाल-चलन के हर पहलू पर कड़ा ध्यान रखा ताकि दूसरों को ठोकर न खिलाए। कुरिन्थ की कलीसिया को अपनी पत्री में उसने कहा: “हम किसी बात में ठोकर खाने का कोई भी अवसर नहीं देते, कि हमारी सेवा पर कोई दोष न आए।” (२ कुरिन्थियों ६:३) कभी-कभी, हमें अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं पर काबू रखने और दूसरों की ज़रूरतों को अपनी खुद की पसंद से आगे रखने की ज़रूरत होती है। उदाहरण के लिए, पौलुस ने रोम के मसीहियों को लिखा: “भला तो यह है, कि तू न मांस खाए और न दाख रस पीए, न और कुछ ऐसा करे, जिस से तेरा भाई ठोकर खाए।”—रोमियों १४:२१.
इसी तरह आज, हो सकता है कि एक व्यक्ति उस व्यक्ति के सामने शराब न पीने का चुनाव करे जो शराब पीने पर काबू नहीं रख पाता। (१ कुरिन्थियों १०:२३, २४) यह दूसरे के जैसा बनने की बाध्यता के कारण नहीं, बल्कि कृपालुता और प्रेम की भली भावना से किया जाता है। “मसीह ने अपने आप को प्रसन्न नहीं किया।” यीशु एक व्यक्ति था, लेकिन उसने दूसरों की भावनाओं को कुचलते हुए अपनी पसंद को नहीं मनवाया।—रोमियों १५:३.
फिर भी, सच्ची मसीहियत का एक अति स्फूर्तिदायी पहलू है कि यह बाइबल के सिद्धांतों की सीमा में व्यक्तियों की आज़ादी और पसंद-नापसंद के लिए आदर दिखाती है। यह सिखाती है कि परमेश्वर ने हमें अलग और अनोखा बनाया है। पहला कुरिन्थियों २:११ में हम पढ़ते हैं: “मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता है, केवल मनुष्य की आत्मा जो उस में है?” हम दूसरों को ज़्यादा-से-ज़्यादा समझने की कोशिश करते हैं। लेकिन यह आयत सूचित करती है कि हम सभी में एक अनोखापन है जिसे केवल हम और हमारा सृष्टिकर्ता समझता है। हमारा एक “छिपा हुआ और गुप्त मनुष्यत्व” होता है जिसे हम अपनी इच्छानुसार प्रकट करते हैं।—१ पतरस ३:४.
एकता और विविधता—कोमल संतुलन
प्रेरित पौलुस ने मसीही संतुलन का एक अच्छा उदाहरण रखा। जबकि उसके पास मसीह का प्रेरित होने के कारण अधिकार था, फिर भी उसने ध्यान रखा कि दूसरों पर अपना विचार न थोपे।
उदाहरण के लिए, इस अपरिपूर्ण संसार में अविवाहित अवस्था के फायदों के बारे में पौलुस का बड़ा पक्का मत था। यह लिखते समय वह स्वयं अकेला था: “ऐसों को [जो विवाह करते हैं] शारीरिक दुख होगा,” और “[एक विधवा] जैसी है यदि वैसी ही रहे, तो मेरे विचार में और भी धन्य है।” यह तथ्य कि उसके शब्द ईश्वरप्रेरित वचन का भाग बन गये, दिखाता है कि उसके विचार में कोई खराबी नहीं थी। लेकिन, उसने यह भी समझाया: “यदि तू ब्याह भी करे, तो पाप नहीं।”—१ कुरिन्थियों ७:२८, ४०.
प्रत्यक्षतः, अधिकतर प्रेरित विवाहित पुरुष थे, जैसा कि पौलुस ने इन शब्दों में स्वीकार किया: “क्या हमें यह अधिकार नहीं, कि किसी मसीही बहिन को ब्याह कर के लिए फिरें, जैसा और प्रेरित और प्रभु के भाई और कैफा करते हैं?” (१ कुरिन्थियों ९:५) मसीही जानते थे कि इस संबंध में वे पौलुस से भिन्न चुनाव कर सकते थे और वह फिर भी उनका आदर करता।
परमेश्वर के उपासकों को हमेशा से अपने अनोखे व्यक्तित्व के सामंजस्य में अपने विश्वास को व्यक्त करने की अनुमति दी गयी है। असल में, परमेश्वर ने बाइबल लेखकों तक को लिखने के लिए अपनी निजी शैली इस्तेमाल करने की अनुमति दी। उदाहरण के लिए, पूरी नम्रता के साथ नहेमायाह ने अपना वृत्तांत प्रथम पुरुष में लिखा। (नहेमायाह ५:६, १९) दूसरी ओर, मर्यादा के कारण प्रेरित यूहन्ना ने अपने सुसमाचार वृत्तांत में एक बार भी अपना नाम इस्तेमाल नहीं किया और एकाध बार ही अपना ज़िक्र किया। परमेश्वर ने दोनों शैलियों को स्वीकार किया और उन्हें बाइबल में सुरक्षित रखवाया।
संतुलन और कोमलता के ऐसे ही उदाहरण पूरे शास्त्र में मिलते हैं। स्पष्ट है, मसीही एकता में विविधता की गुंजाइश है। निःसंदेह, पृष्ठभूमियों और विचारों की भिन्नता फूट डाल सकती है जब आत्मिक गुणों की कमी होती है। (रोमियों १६:१७, १८) लेकिन जब हम “प्रेम को, जो एकता का सिद्ध बन्ध है, धारण कर” लेते हैं, तब हम दूसरों के अनोखे व्यक्तित्व को स्वीकार करना और उसका आनंद लेना सीखते हैं।—कुलुस्सियों ३:१४, NHT.
“इसलिये,” बाइबल कहती है, “जैसा मसीह ने भी परमेश्वर की महिमा के लिये तुम्हें ग्रहण किया है, वैसे ही तुम भी एक दूसरे को ग्रहण करो।” (रोमियों १५:७) परमेश्वर की आत्मा की मदद से, मसीही लोग कलीसिया में तरह-तरह के अनोखे व्यक्तित्वों का आनंद लेने के साथ-साथ एकता बनाए रखने का कोमल संतुलन बना सकते हैं।
[फुटनोट]
a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।
[पेज 14 पर तसवीर]
सृष्टिकर्ता मानव परिवार को व्यक्तित्वहीन जनसमूह नहीं समझता
[पेज 15 पर तसवीर]
हम सभी में एक अनोखापन है जिसे केवल हम और हमारा सृष्टिकर्ता समझता है