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पाठकों के प्रश्नप्रहरीदुर्ग—1989 | फरवरी 1
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बेशक, यीशु के बलिदान में विश्वास उन सब के लिए अत्यावश्यक है जो परमेश्वर की क्षमा और अनन्त जीवन प्राप्त करना चाहते हैं, चाहे वह स्वर्ग में का जीवन हो या एक प्रमोदवनीय पृथ्वी पर का जीवन। मसीह ने यह यूहन्ना ६:५१-५४ में दिखाया: “जीवंत रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा; और जो रोटी मैं [उद्धार्य मानवजाति के] जगत के लिए दूँगा, वह मेरा माँस है। . . . जो मेरा माँस खाता, और मेरा लोहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है।” (न्यू.व.)
फिर भी, यह उल्लेखनीय है कि यीशु ने उन शब्दों से अपने चेलों के अलावा और कईयों को संबोधित किया। उसके हज़ारों को चमत्कारिक रीति से खिलाने के बाद अगले दिन कफरनहूम के इलाके में यीशु के पास एक भीड़ आयी। इस भीड़ ने उसे उस बातचीत में व्यस्त रखा जिसमें यूहन्ना ६:५१-५४ पर उसके शब्द शामिल थे। तो यीशु प्रथमतः चेलों से बातचीत नहीं कर रहा था जब उसने कहा कि वही प्रतीकात्मक “रोटी” जो स्वर्ग से नीचे आया” था, जो कि वीराने में खाए मन्ना से ज़्यादा चिरस्थायी जीवन की प्रत्याशाएँ दे सकता है।—यूहन्ना ६:२४-३४.
वीराने में उस प्रचीन अनुभव पर ग़ौर करने में, याद करें कि कौन कौन मिस्र से निकलकर वीराने में आए थे। यह ‘बालबच्चों को छोड़, इस्राएल के पुत्रों के कोई छः लाख पुरुष पैदल थे, और मिली जुली हुई एक भीड़’ थी। (निर्गमन १२:३७, ३८; १६:१३-१८) इस “मिली जुली हुई भीड़” में वे मिस्री थे, जिन्होंने इस्राएलियों से शादी की थी, और अन्य मिस्री, जिन्होंने अपना हिस्सा इस्राएलियों के साथ गिन लिया था। इस्राएली और “मिली जुली हुई भीड़,” दोनों को ज़िंदा रहने के लिए मन्ना की ज़रूरत थी। यद्यपि क्या “मिली जुली हुई भीड़” को इस्राएलियों के समान प्रत्याशाएँ थीं? नहीं, उन्हें समान प्रत्याशाएँ न थीं। हालाँकि वे इस्राएलियों के बीच उपासना कर सकते थे और वचन किए गए देश में प्रवेश कर सकते थे, वे व्यवस्था करार के अंतर्गत, राजा और याजक कभी नहीं बन सकते थे। तो वीराने में वास्तविक मन्ना खाने से सभी को वही प्रत्याशाएँ नहीं मिलीं।
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पाठकों के प्रश्नप्रहरीदुर्ग—1989 | फरवरी 1
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अवश्य, सभी सच्चे मसीही जो राज्य शासकत्व के अधीनस्थ, पृथ्वी पर अनन्त काल तक जीने की आशा रखते हैं, वे जानते हैं कि यह यीशु के बलिदान में विश्वास करने के द्वारा संभव है। जैसा यीशु ने भीड़ से कहा, वही “जीवंत रोटी” है “जो स्वर्ग से उतरी है।” (यूहन्ना ६:५१) फिर भी, उसका यह मतलब नहीं कि पार्थीव आशा रखने वाले लोगों को स्मरणार्थ के वास्तविक चिह्न लेने चाहिए, इसलिए कि वे “नई वाचा” में नहीं, और वे न ही यीशु के साथ ‘उसके राज्य में, सिंहासनों पर विराजमान’ होने के वाचा में हैं।
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