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  • सीडर से उद्धार तक
    प्रहरीदुर्ग—1991 | फरवरी 1
    • १३, १४. यीशु का लहू कैसे जीवन-रक्षक और उद्धार के लिए आवश्‍यक है? (इफिसियों १:१३)

      १३ आज भी, उद्धार में, लहू शामिल है—यीशु द्वारा बहाया गया लहू। ३२ सा.यु. में जब “यहूदियों के फ़सह का पर्व निकट था” तब यीशु ने एक बड़े जन समूह को कहा: “जो मेरा मांस खाता, और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है, क्योंकि मेरा मांस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है।” (यूहन्‍ना ६:४, ५४, ५५) सभी यहूदी श्रोताओं के मनों में भावी फसह पर्व होगा और यह कि मिस्र में मेम्ने के लहू का प्रयोग किया गया था।

      १४ उस समय यीशु, प्रभु संध्या भोज में प्रयोग किए जानेवाले चिन्हों की बात नहीं कर रहे थे। वह नया उत्सव तो एक साल बाद शुरू किया गया था, इसलिए, उन प्रेरितों को भी, जिन्होंने यीशु को ३२ सा.यु. में सुना था, उसके बारे में कुछ नहीं पता था। फिर भी यीशु यह दिखा रहे थे कि उनका लहू, अनन्त उद्धार के लिए आवश्‍यक था। पौलुस ने समझाया: “हम को उस में, उसके लहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात्‌ अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है।” (इफिसियों १:७) केवल, यीशु के लहू पर आधारित क्षमा द्वारा, हम सदा जीवित रह सकते हैं।

  • सीडर से उद्धार तक
    प्रहरीदुर्ग—1991 | फरवरी 1
    • १५. मिस्र के इब्रानियों के लिए कौनसा उद्धार और विशेषाधिकार सम्भव हुए, और कौनसे नहीं हुए? (१ कुरिन्थियों १०:१-५)

      १५ प्राचीन मिस्र में एक सीमित उद्धार ही शामिल था। मिस्र छोड़नेवालों में से किसी को भी निर्गमन के बाद, अनन्त जीवन दिए जाने की प्रत्याशा नहीं थी। यह सच है कि परमेश्‍वर ने लेवियों को राष्ट्र के याजक होने के लिए चुना, और यहूदा के गोत्र में से कुछ को अस्थायी राजाओं के लिए चुना, लेकिन इन सब को मरना था। (प्रेरितों के काम २:२९; इब्रानियों ७:११, २३, २७) यद्यपि “उनके बीच रहनेवाले परदेशियों” को जो मिस्र छोड़ आए थे, यह विशेषाधिकार प्राप्त नहीं थी, लेकिन वह इब्रानियों के साथ, प्रतिज्ञा किए हुए देश में पहुँचने की आशा रखते थे, और परमेश्‍वर की उपासना में एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते थे। परन्तु, फिर भी, यहोवा के मसीह पूर्व सेवकों के पास यह आशा करने का आधार था कि, समय आने पर वह, मनुष्यजाति के जीने का परमेश्‍वर के उद्देश्‍य के अनुसार इस पृथ्वी पर अनन्त जीवन का आनन्द उठा सकते है। यह, यूहन्‍न ६:५४ में यीशु द्वारा की गयी प्रतिज्ञा के अनुसार होगा।

      १६. परमेश्‍वर के प्राचीन सेवक, किस प्रकार के उद्धार की आशा कर सकते थे?

      १६ परमेश्‍वर ने अपने कुछ प्राचीन सेवकों को यह प्रेरणादायक शब्दों को लिखने के लिए उपयोग किया, कि पृथ्वी बसने के लिए सृजि गयी है और धर्मी उसपर सदा वास करेंगे। (भजन संहिता ३७:९-११; नीतिवचन २:२१, २२; यशायाह ४५:१८) परन्तु, सच्चे उपासक यदि मर जाते है, तो वह ऐसा उद्धार कैसे प्राप्त कर सकते हैं? परमेश्‍वर द्वारा उन्हें पृथ्वी पर पुनः जीवित कर देने से। उदाहरण के लिए, अय्यूब यह आशा व्यक्‍त करता था कि उसे याद किया जायेगा और दुबारा जीवन दिया जायेगा। (अय्यूब १४:१३-१५; दानिय्येल १२:१३) यह स्पष्ट है कि उद्धार का एक रूप है, पृथ्वी पर अनन्त जीवन।—मत्ती ११:११.

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