यीशु का जीवन और सेवकाई
बहुत से चेले यीशु का पीछा करना छोड़ देते हैं
यीशु कफरनहूम के एक आराधनालय में उपदेश दे रहा है कि वह स्वर्ग से उतरी हुई सच्ची रोटी की भूमिका किस तरह पूरी करेगा। स्पष्ट रूप से उनकी यह बातचीत उसी चर्चा की एक अगली कड़ी है जो लोगों के साथ की गई थी जब उन लोगों ने उनको गलील झील के पूर्वी किनारे से आने पर पाया था, जहाँ उन्होंने आश्चर्यजनक तरिके से दी गई रोटी और मछलियाँ खाई थी।
यीशु अपनी बातचीत जारी रखते हुए कहता है: “जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिए दूंगा, वह मेरा माँस है।” हाल ही में दो वर्ष पहिले, सा.यु. ३० के वसन्त ऋतु के समय, यीशु ने नीकुदेमुस से कहा था कि परमेश्वर ने जगत से इतना प्रेम किया कि उसने अपने पुत्र को उद्धारक के रूप में भेजा है। सो, यीशु अब बतला रहा है कि मानवजाति में से कोई भी जो प्रतीकात्मक रूप से उनका माँस खाएगा, उनके जल्द करनेवाले बलिदान में विश्वास करके, वह अनन्त जीवन पा सकता है।
किन्तु लोग, यीशु के बातों से ठोकर खाते हैं। “यह मनुष्य कैसे हमें अपना माँस खाने को दे सकता है?” वे पूछते हैं। यीशु चाहता है कि उसके सुननेवाले समझे की उसका माँस खाना एक लाक्षणिक तरीके से सम्पन्न किया जाएगा। इस बात के महत्व को बतलाने के लिए वह कुछ ऐसी बात कहता है जिसे यदि शाब्दिक रूप से ले लिया जाए तो आपत्तिजनक ठहर सकती है।
यीशु कहता है “जब तक मनुष्य के पुत्र का माँस न खाओ और उसका लोहू न पीओ, तुमें जीवन नहीं। जो मेरा माँस खाता और मेरा लोहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अंतिम दिन फिर उसे जिला उठाउँगा; क्येंकि मरो माँस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लोहू वास्तव में पीने की वस्तु है। जो मेरा माँस खाता और मेरा लोहू पीता है, वह मुझ में स्थिर बना रहता है, और मैं उस में।”
सचमें, यदि यीशु यहाँ मानव को खाने और उसके लोहू को पीने का उपदेश दे रहा होता तो उसका उपदेश बहुत ही घृणाजनक जान पड़ता। किन्तु, निस्सन्देह, यीशु अक्षरशः रूप से माँस खाने या लोहू पीने का समर्थन नहीं कर रहा है। वह केवल इस बात का महत्त्व को बतला रहा है कि जो कोई अनन्त जीवन प्राप्त करना चाहता है उसे बलिदान में विश्वास करना होगा जो वह करनेवाला है जब वह अपना सिद्ध मानव देह और जीवन के लोहू को बलिदान के रूप में अर्पण कर देगा। फिर भी, बहुतेरे चेलों ने उनके उपदेश को समझने की कोशिश नहीं की और इसलिए विरोध करते हुए कहते हैं: “यह बात डरावनी है; इसे कौन सुन सकता है?”
यह जानते हुए कि अपने बहुत से चेले कुड़कुड़ाने लगे है, यीशु कहता है: “क्या इस बात से तुम्हें ठोकर लगती है? और यदि तुम मनुष्य के पुत्र को जहाँ पहिले था, वहाँ उपर जाते देखोगे, तो क्या होगा? . . . जो बातें मैं ने तुम से कही है वे आत्मा और जीवन भी है। परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते।”
यीशु अपनी बात को जारी रखते हुए कहता है: “इसी लिए मैं ने तुम से कहा था कि जब तक किसी को पिता की ओर से यह बरदान न दिया जाए, तब तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।” इस पर, उनके बहुत से चेले उनको छोड़ देते हैं और उनका पीछा नहीं करते। इसलिए, यीशु अपने १२ चेलों की तरफ मुड़ कर कहता है: “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?”
पतरस उत्तर देता है: “हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं; और हम ने विश्वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।” यह वफादारी का क्या ही उत्तम अभिव्यक्ति है, जब कि पतरस और दुसरे प्रेरितों ने यीशु के उपदेश को पूर्ण रूपसे समझा भी न होगा!
हालाँकि यीशु पतरस के उत्तर से प्रसन्न हुआ, फिर भी वह उनकी ओर ध्यान से देखकर कहता है: “क्या मैं ने तुम बारहों को नहीं चुन लिया? तो भी तुम में से एक व्यक्ति धोखा देनेवाला है।” वह यहूदाह इस्करियोती के बारे में कह रहा है। हो सकता है इस घड़ी यीशु ने यहूदाह में एक गलत मार्ग कि एक “शुरूआत” या प्रारंभ देख लिया है।
यीशु ने अभी-अभी लोगों को उन्हें राजा बनाने की कोशिश का विरोध किया, जिससे लोग निराश हो गए और अब वे सोच सकते हैं, कि “कैसे यह मसीह हो सकता है यदि वह मसीह का उचित पद ग्रहण न करेगा?” यह बात भी अब तक उनके मनों में तरोताजा हो सकती है। यूहन्ना ६:५१-७१; ३:१६.
◆ किन के लिए यीशु अपनी देह देता है, और कैसे वे उसका ‘मांस खाते हैं?’
◆ यीशु के किन और शब्दों के द्वारा लोग ठोकर खाते हैं और वह किस बात के महत्व को समझा रहा है?
◆ जब बहुतेरे यीशु के पीछे चलने से इन्कार करते हैं, पतरस क्या उत्तर देता है?