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सीडर से उद्धार तक

“मैं उद्धार का कटोरा उठाकर, यहोवा से प्रार्थना करूंगा।”—भजन संहिता ११६:१३.

१. सर्व-समय लोकप्रिय, कौनसा गीत आपके भविष्य को प्रभावित कर सकता है?

आप उस गीत का आनन्द कैसे उठायेंगे, जो आपके लम्बे, खुशहाल भविष्य में सम्बिन्धित हो। वास्तव में, ऐसा सर्व-समय हमेशा लोकप्रिय होता है। फिर भी, आप, दूसरों के बजाए, इस अर्थपूर्ण गीत को समझने और उसका आनन्द लेने के लिए बेहतर स्थिति में हैं। यहूदियों इसे हैलल (स्तुति) कहते हैं। भजन संहिता ११३ से ११८ तक रचित, यह गीत हमें “हल्लिलूय्याह” या “याह की स्तुति” गाने के लिए आग्रह करता है।

२. यह गीत कैसे प्रयोग किया जाता है, और यह सीडर से कैसे सम्बन्धित है?

२ यहूदी अपने फसह के पर्ब पर हैलल गाते हैं, यह गीत उस समय से चला आता है जब परमेश्‍वर का एक मन्दिर था जहाँ जानवरों की बलि दी जाती थी। आज इसे यहूदी घरों में फसह के पर्ब और उस खाने के समय जिसे सीडर कहते हैं गाया जाता है। लेकिन जितने लोग इसे अपने सीडर में गाते हैं उनमें से कुछ ही भजन संहिता ११६:१३ के, जो यह कहता है, “मैं उद्धार का कटोरा उठा कर, यहोवा से प्रार्थना करूंगा” का, वास्तविक अर्थ को समझते हैं। यद्यपि, उद्धार फसह से क्यों जुड़ा हुआ है, और क्या यह हो सकता है कि आप का उद्धार भी शामिल हो?

फसह—उद्धार का पर्ब

३. सीडर की पृष्ठभूमि क्या है?

३ याद करें कि इस्राएलियों को मिस्र में एक क्रूर फिरौन के अधीन गुलामी में रखा था। अन्त में, यहोवा ने मूसा को खड़ा किया कि लोगों को आज़ाद करके ले आए। परमेश्‍वर ने मिस्र पर नौ विपत्तियाँ भेजी, उसके बाद मूसा ने दसवीं विपत्ति की घोषणा की। यहोवा, मिस्र के हरेक घराने के पहिलोठे को मार डालेंगे। (निर्गमन ११:१-१०) मगर इस्राएलियों की जान बच सकती थी। कैसे? उनको एक मेम्ने को बलि करना था, उसका लोहू द्वार के दोनों अलंगों और चौखट के सिरे पर लगाना था, और उस मेम्ने को घर के अन्दर ही रहकर अखमीरी रोटी और कड़वे सागपात के साथ खाना था। उस सीडर के दौरान, परमेश्‍वर उनके पहिलौठो को मारे बिना “छोड़ते चले” जाएंगे।—निर्गमन १२:१-१३.

४, ५. फसह, किस तरह से बहुतों को उद्धार की ओर ले गया? (भजन संहिता १०६:७-१०)

४ इस दसवीं विपत्ति के जवाब में, फिरौन ने मूसा से कहा: “तुम इस्राएलियों समेत मेरी प्रजा के बीच से निकल जाओ, और अपने कहने के अनुसार जाकर यहोवा की उपासना करो।” (निर्गमन १२:२९-३२) इब्रानियों और सहानुभूति रखनेवाली “मिली जुली हुई एक भीड़” के निकल जाने के बाद, फिरौन ने अपना विचार बदल लिया और उनका पीछा किया। तब परमेश्‍वर ने अपने लोगों को लाल समुद्र में से गुजर जाने की चमत्कारी रूप से मदद करी, जहाँ फिरौन और उसकी सेना मर गई।—निर्गमन १२:३८; १४:५-२८; भजन संहिता ७८:५१-५३; १३६:१३-१५.

५ मूसा ने लाल समुद्र पर इस्राएलियों को कहा: “डरो मत, खड़े खड़े वह उद्धार का काम देखो, जो यहोवा आज तुम्हारे लिए करेगा।” बाद में उन्होंने गीत गया: “यहोवा मेरा बल और भजन का विषय है, और वही मेरा उद्धार भी ठहरा है, मरो परमेश्‍वर वही है, मैं उसी की स्तुति करूँगा।” (निर्गमन १४:१३; १५:२) जी हाँ, इस्राएल का, दसवीं विपत्ति और लाल समुद्र दोनों से बच निकलना, एक उद्धार था। भली प्रकार से भजनहारा, यहोवा परमेश्‍वर का ऐसे वर्णन कर सकता था, “पृथ्वी पर उद्धार के काम” करने वाले।—भजन संहिता ६८:६, २०; ७४:१२-१४; ७८:१२, १३, २२.

६, ७. फसह को क्यों आरम्भ किया गया, लेकिन क्यों अब इसे पहले फसह से भिन्‍न रूप मे मनाया जाता है?

६ इब्रानियों को उद्धार की यादगार के रूप में फसह को लगातार मनाते रहना था। परमेश्‍वर ने कहा: “वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरेगा, और तुम उसको यहोवा के लिए पर्व करके मानना; वह दिन तुम्हारी पीढ़ियों में सदा की विधि जानकर पर्व माना जाये।” (निर्गमन १२:१४) हर फसह के भोजन या सीडर के मौके पर, पिता अपने परिवार को उस उद्धार की याद ताज़ा कराता था। यहोवा ने निर्देशन दिया: “जब तुम्हारे लड़केबाले तुम से पूछे कि, ‘इस काम से तुम्हारा क्या मतलब है’? तब तुम उनको यह उत्तर देना कि, ‘यहोवा ने जो मिस्रियों के मारने के समय मिस्र में रहनेवाले हम इस्राएलियों के घरों को छोड़कर, हमारे घरों को बचाया इसी कारण उसके पर्ब का या बलिदान किया जाता है।’”—निर्गमन १२:२५-२७.

७ यहूदी लोग, आज के दिन तक फसह सीडर मनाते हैं, यह वास्तविकता उस वर्णन का ऐतिहासिक होने की पुष्टि करती है। हालाँकि उनकी कुछ रीतियाँ, परमेश्‍वर ने जो निर्देशन दिए, उनसे भिन्‍न थे। द ओरिजन्स ऑफ़ द सीडर कहती है: “बाइबल में फसह और अख़मीरी रोटी के पर्व का विस्तारपूर्वक विवाद है; फिर भी, यह वर्णन उस पर्व की बाद के रीतियों के समान नहीं है। विशेष रूप से बाइबल की रस्म फसह की बलि पर केन्द्रित होती है, जो कि बाइबल के बाद के साहित्य में केन्द्रीय स्थिति नहीं रखती।” एक विशेष कारण है कि यहूदियों के पास पशु बलि के लिए अब कोई मन्दिर नहीं है।

८. फसह पर ध्यान का हमारे पास कौनसा विशेष कारण है?

८ मसीही, लाभपूर्ण रीति से उन सभी पर्वों का जो परमेश्‍वर ने प्राचीन इस्राएल को दिए थे, अध्ययन कर सकते है,a लेकिन इस समय, फसह के कुछ पहलु हमारी विशेष ध्यान देने योग्य है। यीशु स्वयं एक यहूदी थे और फसह मनाते थे। अन्तिम बार जब उन्होंने ऐसा किया, तब उन्होंने मसीहियों के लिए केवल एक दैव्य उत्सव—प्रभु संध्या भोज, यीशु की मृत्यु के स्मारक की रूपरेखा दी। इसलिए यह मीसही उत्सव फसह से जुड़ा हुआ है।

फ़सह के मेम्ने से अधिक

९, १०. फसह का मेम्ना, कैसे एक विशेष, या अद्वितीय बलिदान था?

९ इब्रानियों १०:१ हमें बताता है कि, ‘व्यवस्था आने वाली वस्तुओं का प्रतिबिम्ब है’। ‘द साइक्लोपीडिया ऑफ़ बिबलिक्ल, थियोलोजिकल एण्ड इकलीज़ियास्टिकल लिटरेचर’, मैक्लिन्टॉक और स्ट्राँग द्वारा लिखित, में कहा गया: “व्यवस्था की आनेवाली अच्छी चीज़ों की छाया में से कोई भी पर्व, फसह के पर्व से बड़े होने का दावा नहीं कर सकता है।” विशेष कर फसह का मेम्ना, परमेश्‍वर ने कैसे पहलौठों को बचाया, और फिर सभी इब्रानियों को मिस्र की बन्धुवाई से उद्धार दिलाया, उसके स्मारक उत्सव से अधिक अर्थ रखता था।

१० कई कारणों से वह मेम्ना अद्वितीय था। उदाहरण के लिए, मूसा के नियम की बहुत सी पशु बलियाँ, एक ही व्यक्‍ति द्वारा, निजि पापों और अपराधों के लिए प्रस्तुत की जाती थी, और पशुओं के अंग, वेदी पर जलाए जाते थे। (लैव्यव्यवस्था ४:२२-३५) मेल बलि में से कुछ माँस, अधिकारिक याजक, या अन्य याजकों को दिया जाता था। (लैव्यव्यवस्था ७:११-३८) लेकिन पास्कल, या फसह के मेम्ना, को वेदी पर इस्तेमाल नहीं किया जाता था, और उसे लोगों के एक समूह, अधिकतर एक ही परिवार द्वारा भेंट चढ़ाया जाता था, और वे ही उसे खाते थे।—निर्गमन १२:४, ८-११.

११. फसह के मेम्ने के विषय में यहोवा का क्या दृष्टिकोण था, और यह किसकी ओर संकेत कर रहा था? (गिनती ९:१३)

११ यहोवा की नज़र में फ़सह का मेम्ना इतना मूल्यवान था कि वे उसे “मेरा बलिदान” कहते थे। (निर्गमन २३:१८; ३४:२५) विद्वानों ने कहा है कि “पास्कल बलिदान यहोवा की श्रेष्ठता का बलिदान था।” यह मेम्ना यीशु के बलिदान की ओर आखंडनीय रूप से संकेत करता था या उसका प्ररूप था। हम यह ऐसे जानते हैं क्योंकि प्रेरित पौलुस ने यीशु को “हमारा फसह (जो) बलिदान हुआ है” कहा। (१ कुरिन्थियों ५:७) यीशु को “परमेश्‍वर का मेम्ना” और “वद्य किया हुआ मेम्ना” कहकर पहचाना गया।—यूहन्‍ना १:२९; प्रकाशितवाक्य ५:१२; प्रेरितों के काम ८:३२.

जीवन बचाने वाला लहू

१२. पहले फसह में मेम्ने के लहू की क्या भूमिका थी?

१२ प्राचीन काल के मिस्र में, मेम्ने का लहू, उद्धार के लिए निर्णायक था। जब यहोवा ने पहिलौठों का वद्य किया, तो वह उन दरवाजों पर से गुज़र गए, जहाँ लहू था। इसके अतिरिक्‍त, इब्रानी लोग अपने पहिलौठों की मृत्यु पर शोक नहीं कर रहे थे, इसलिए वह, लाल समुद्र को पार करके, स्वतंत्रता की ओर बढ़ने के लायक थे।

१३, १४. यीशु का लहू कैसे जीवन-रक्षक और उद्धार के लिए आवश्‍यक है? (इफिसियों १:१३)

१३ आज भी, उद्धार में, लहू शामिल है—यीशु द्वारा बहाया गया लहू। ३२ सा.यु. में जब “यहूदियों के फ़सह का पर्व निकट था” तब यीशु ने एक बड़े जन समूह को कहा: “जो मेरा मांस खाता, और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है, क्योंकि मेरा मांस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है।” (यूहन्‍ना ६:४, ५४, ५५) सभी यहूदी श्रोताओं के मनों में भावी फसह पर्व होगा और यह कि मिस्र में मेम्ने के लहू का प्रयोग किया गया था।

१४ उस समय यीशु, प्रभु संध्या भोज में प्रयोग किए जानेवाले चिन्हों की बात नहीं कर रहे थे। वह नया उत्सव तो एक साल बाद शुरू किया गया था, इसलिए, उन प्रेरितों को भी, जिन्होंने यीशु को ३२ सा.यु. में सुना था, उसके बारे में कुछ नहीं पता था। फिर भी यीशु यह दिखा रहे थे कि उनका लहू, अनन्त उद्धार के लिए आवश्‍यक था। पौलुस ने समझाया: “हम को उस में, उसके लहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात्‌ अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है।” (इफिसियों १:७) केवल, यीशु के लहू पर आधारित क्षमा द्वारा, हम सदा जीवित रह सकते हैं।

कौनसा उद्धार और कहाँ?

१५. मिस्र के इब्रानियों के लिए कौनसा उद्धार और विशेषाधिकार सम्भव हुए, और कौनसे नहीं हुए? (१ कुरिन्थियों १०:१-५)

१५ प्राचीन मिस्र में एक सीमित उद्धार ही शामिल था। मिस्र छोड़नेवालों में से किसी को भी निर्गमन के बाद, अनन्त जीवन दिए जाने की प्रत्याशा नहीं थी। यह सच है कि परमेश्‍वर ने लेवियों को राष्ट्र के याजक होने के लिए चुना, और यहूदा के गोत्र में से कुछ को अस्थायी राजाओं के लिए चुना, लेकिन इन सब को मरना था। (प्रेरितों के काम २:२९; इब्रानियों ७:११, २३, २७) यद्यपि “उनके बीच रहनेवाले परदेशियों” को जो मिस्र छोड़ आए थे, यह विशेषाधिकार प्राप्त नहीं थी, लेकिन वह इब्रानियों के साथ, प्रतिज्ञा किए हुए देश में पहुँचने की आशा रखते थे, और परमेश्‍वर की उपासना में एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते थे। परन्तु, फिर भी, यहोवा के मसीह पूर्व सेवकों के पास यह आशा करने का आधार था कि, समय आने पर वह, मनुष्यजाति के जीने का परमेश्‍वर के उद्देश्‍य के अनुसार इस पृथ्वी पर अनन्त जीवन का आनन्द उठा सकते है। यह, यूहन्‍न ६:५४ में यीशु द्वारा की गयी प्रतिज्ञा के अनुसार होगा।

१६. परमेश्‍वर के प्राचीन सेवक, किस प्रकार के उद्धार की आशा कर सकते थे?

१६ परमेश्‍वर ने अपने कुछ प्राचीन सेवकों को यह प्रेरणादायक शब्दों को लिखने के लिए उपयोग किया, कि पृथ्वी बसने के लिए सृजि गयी है और धर्मी उसपर सदा वास करेंगे। (भजन संहिता ३७:९-११; नीतिवचन २:२१, २२; यशायाह ४५:१८) परन्तु, सच्चे उपासक यदि मर जाते है, तो वह ऐसा उद्धार कैसे प्राप्त कर सकते हैं? परमेश्‍वर द्वारा उन्हें पृथ्वी पर पुनः जीवित कर देने से। उदाहरण के लिए, अय्यूब यह आशा व्यक्‍त करता था कि उसे याद किया जायेगा और दुबारा जीवन दिया जायेगा। (अय्यूब १४:१३-१५; दानिय्येल १२:१३) यह स्पष्ट है कि उद्धार का एक रूप है, पृथ्वी पर अनन्त जीवन।—मत्ती ११:११.

१७. बाइबल, कौनसे विभिन्‍न उद्धार के बारे में दर्शाती है, जो दूसरे पा सकते हैं?

१७ बाइबल स्वर्गीय जीवन के उद्धार के बारे में भी बताती है, जहाँ यीशु मसीह अपने पुनरूत्थान के बाद गए। “वह स्वर्ग पर जाकर, परमेश्‍वर के दहिने ओर बैठ गया; और स्वर्गदूत और अधिकारी और सामर्थी उसके आधीन किये गये हैं।” (१ पतरस ३:१८, २२; इफिसियों १:२०-२२; इब्रानियों ९:२४) परन्तु स्वर्ग ले जानेवालों में, यीशु अकेला मानव नहीं है। परमेश्‍वर ने यह निश्‍चय किया है, कि वह, पृथ्वी पर से एक छोटी संख्या में अन्यों को भी लेंगे। यीशु ने प्रेरितों को कहा: “मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं . . . मैं तुम्हारे लिए जगह तैयार करने जाता हूँ, और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिए जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहा तुम भी रहो।”—यूहन्‍ना १४:२, ३.

१८. स्वर्गीय जीवन के उद्धार पर ध्यान देने का हमारे पास अब कौनसा कारण है?

१८ यीशु के साथ स्वर्गीय जीवन का उद्धार, पहले फसह के सीमित उद्धार से निश्‍चय ही कहीं अधिक बेहतर है। (२ तिमुथियुस २:१०) अन्तिम, मान्य सीडर, या फसह भोज, की शाम को, यीशु ने अपने अनुयायियों के लिए उस नए उत्सव को आरम्भ किया, जो स्वर्गीय जीवन के उद्धार पर केन्द्रित था। उन्होंने प्रेरितों से कहा: “मेरे स्मरण के लिए यही किया करो।” (लूका २२:१९) यह जानने से पहले कि, मसीहियों को इस उत्सव को कैसे मनाना चाहिए, आइये इस बात पर ध्यान दें कि हमें यह कब मनाना चाहिए।

एक “नियुक्‍त समय”

१९. फसह को प्रभु संध्या भोज से जोड़ना क्यों तर्क संगत है?

१९ यीशु ने कहा था: “मुझे बड़ी लालसा थी, कि दुख भोगने से पहले यह फ़सह तुम्हारे साथ खाऊँ।” (लूका २२:१५) उसके बाद उन्होंने प्रभु संध्या भोज का रूपरेखा दी, जो उनके शिष्यों को, उनकी मृत्यु के स्मारण के रूप में मनाना था। (लूका २२:१९, २०) फसह, वर्ष में एक बार मनाया जाता था, इसलिए, प्रभु संध्या भोज का, वार्षिक होना तर्क संगत था। कब? तार्किक रूप से, फसह के वसन्त ऋतु के समय। इसके अर्थ है जब १४ निसान (यहूदी कैलेन्डर) पड़ता है, बजाय इसके कि हमेशा शुक्रवार को ही मनाया जाए, क्योंकि वह उस सप्ताह का दिन था, जब यीशु की मृत्यु हुई थी।

२०. यहोवा के गवाह निसान १४ में क्यों रुचि रखते हैं?

२० इसलिए १४ निसान ही वह तारीख होगी जो पौलुस के मन में थी जब उसने लिखा: “क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते, और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आये, प्रचार करते हो।” (१ कुरिन्थियों ११:२६) अगली दो शताब्दियों तक, बहुत से मसीही १४ निसान को मनाते रहे और ‘क्वॉरटोडेसिमन्स’ कहलाए गए जो कि लतिनी भाषा में “चौंदहवें” को प्रदर्शित करता है। मैक्लिन्टॉक और स्ट्राँग ने कहा: “एशिया माइनर के चर्च, प्रभु की मृत्यु का दिन, निसान महीने के चौदहावें दिन के अनुरूप मनाते थे, सम्पूर्ण प्राचीन चर्च के अनुसार उस दिन क्रूसारोपण हुआ था।” आज यहोवा के गवाह, १४ निसान के अनुरूप, तिथि को प्रभु संध्या भोज मनाते हैं। परन्तु कुछ लोगों ने यह ध्यान दिया कि, यह तिथि, यहूदीयों के फसह से फर्क हो सकती है। क्यों?

२१. फसह के मेम्ने को कब बलि किया जाना था, लेकिन आज यहूदी क्या करते है?

२१ इब्रानी दिन, सूर्यास्त (लगभग ६ बजे) से लेकर अगले सूर्यास्त तक होता था। परमेश्‍वर ने आज्ञा दी थी, कि फसह के मेम्ने को १४ निसान “दो शामों के बीच” मारा जाए। (निर्गमन १२:६) यह कब होता है? आधुनिक यहूदी, रब्बीयों के मत से जुड़े हैं कि, १४ निसान के अन्त में जब सूर्य ढलने लगे (लगभग ३ बजे) और वास्तविक सूर्यास्त के बीच के समय, मेम्ने को वद्य करना है। परिणामस्वरूप वह सूर्यास्त के बाद सीडर मनाते हैं, जब १५ निसान शुरू हो जाती है।—मरकुस १:३२.

२२. स्मारक तिथि, यहूदियों के फसह मनाने की तिथि से भिन्‍न होने का एक कारण क्या है? (मरकुस १४:१७; यूहन्‍ना १३:३०)

२२ लेकिन हमारे पास इस अभिव्यक्‍ति को दूसरी तरह से समझने के अच्छे कारण हैं। व्यवस्थाविवरण १६:६ ने इस्राएलियों को स्पष्ट रूप से कहा “फसह के बलिदान को, संध्या के समय, सूर्यास्त को वद्य करो।” (यहूदी तनख अनुवाद) इसका अर्थ है “दो शामों के बीच का समय” है, सांध्या प्रकाश का समय सूर्यास्त से (जो निसान १४ को आरम्भ होता है) लेकर वास्तविक अन्धकार तक। प्राचीन कैरेती यहूदीb और सामरीc आज तक इसे इसी तरह समझते हैं। फसह का मेम्ना को १४ निसान, और ना कि १५ निसान को, अर्थात “उसके नियत समय” पर, वद्य करके खाया गया, इस बात को स्वीकार करने से, यह एक कारण है कि हमारी स्मरण तिथि, कभी-कभी यहूदी तिथि से भिन्‍न होती है।—गिनती ९:२-५.

२३. इब्रानी कैलेन्डर में महीने क्यों जोड़े जाते है, और आधुनिक यहूदी इसे कैसे सम्भालते हैं?

२३ यहूदियों से हमारी तिथि के मेल न खाने का एक और कारण है, कि वह एक पूर्वनिर्धारित कैलेन्डर प्रयोग करते हैं, जिसकी प्रणाली चौथी शताब्दी, सा.यु. तक निश्‍चित नहीं की गयी थी। इसको प्रयोग करके वह निसान या पर्वों की तिथियाँ, दशकों या सदियों पहले से ही तय कर सकते हैं। इसके अतिरिक्‍त, प्राचीन चंद्र संबंधी कैलेन्डर में कभी-कभी एक तेरहवाँ महीना जोड़ने की आवश्‍यकता पड़ती थी ताकि कैलेन्डर ऋतुओं के साथ समकालिक हो। आधुनिक यहूदी कैलेन्डर में इस महीने को निश्‍चित समयों पर जोड़ा जाता है; एक १९ वर्ष के कालचक्र में यह ३, ६, ८, ११, १४, १७ और १९ वें वर्षों में जोड़ा जाता है।

२४, २५. (अ) यीशु के समय में, महीने कैसे निश्‍चित किए जाते थे और अतिरिक्‍त महीनों की आवश्‍कयता कैसे निर्धारित की जाती थी? (ब) यहोवा के गवाहों द्वारा, प्रभु संध्या भोज की तिथि कैसे निर्धारित की जाती है?

२४ फिर भी, इमिल, शूरर कहते हैं कि “यीशु के समय तक [यहूदियों] के पास कोई निर्धारित कैलेन्डर नहीं था, परन्तु केवल अनुभवसिद्ध अवलोकन के आधार पर, नए चाँद के दिखने पर, नया महीना शुरू करते थे और उसी अवलोकन के आधार पर” आवश्‍यकता पड़ने पर एक महीना जोड देते थे। “यदि . . . साल के अन्त में यह देखा जाए कि फसह, वसन्त विषुव (लगभग २१ मार्च) से पहले पड़ रहा है, तो निसान से पहले एक और महीना जोड़ने की आज्ञा दे दी जाती थी।” (द हिस्ट्री ऑफ द जुइश पीपल इन द ऐज ऑफ जीजस क्राइस्ट, खण्ड १) इस तरह से अतिरिक्‍त महिना, स्वाभाविक रूप से आ जाता है, स्वेच्छाचारिता से नहीं जोड़ा जाता है।

२५ यहोवा के गवाहों का शासी निकाय, प्रभु संध्या भोज की तिथि, प्राचीन तरीके से निर्धारित करता है। निसान १ की तिथि का निर्धारण तब होता है जब नया चाँद जो वसन्त विषुव के सबसे समीप हो उसको यरूशलेम से सूर्यास्त के समय अवलोकन किया जाए। उस दिन से १४ दिन आगे गिनने से १४ निसान तक पहुँच सकते हैं जो सामान्यतः पूरे चाँद के दिन पड़ता है। (द वॉचटावर, जून १५, १९७७, पृष्ठ ३८३-४ देखें) इस बाइबलीय विधि के अनुसार पूरी पृथ्वी पर यहोवा के गवाह को यह सूचित किया गया है कि इस वर्ष स्मारक दिवस ३० मार्च को सूर्यास्त के बाद मनाया जायेगा।

२६. प्रभु संध्या भोज के कौनसे अतिरिक्‍त पहलु हमारे ध्यान देने योग्य है?

२६ यह तिथि, १४ निसान के अनुरूप है, जब यीशु ने अन्तिम मान्य फ़सह मनायी थी। लेकिन, स्मारक के मनाए जाने से उस उद्धार पर ध्यान केन्द्रित होता है, जो यहूदी सीडर के उत्सव से कहीं अधिक है। हम सब को यह जानना है कि प्रभु संध्या भोज पर क्या होता है, उसका अर्थ क्या है, और कैसे हमारा उद्धार शामिल है।

[फुटनोट]

a फरवरी १५, १९८० की द वॉचटॉवर देखें, पृष्ठ ८-२४।

b मैक्लिन्टॉक एवं स्ट्राँग इनका वर्णन ऐसा करते हैं, “यहूदी महासभा के सबसे प्राचीन और उल्लेखनीय पंथों में से एक, जिनका विशिष्ट सिद्धान्त है, लिखित नियम से कड़े रूप से जुडे रहना।”

c “वह शाम को पशु का वद्य करते है . . . मध्यरात्री को प्रत्येक परिवार समूह उस माँस को खाते हैं . . . और सुबह होने से पहले, बचे हुए माँस और हड्डियों को जला देते हैं . . . कुछ विद्वानों ने कहा है कि सामरी धर्म, बाइबलीय धर्म से बहुत मिलता जुलता था, उस समय तक जबरब्बीमत वाले यहूदी धर्म ने बाइबलीय धर्म का आकार नहीं बिगाड़ा था।”—द ओरिजन्स ऑफ द सीडर।

आप कैसे उत्तर देंगे?

◻ फसह को उद्धार से उपयुक्‍त रूप से क्यों जोड़ा गया है?

◻ यीशु का बलिदान कैसे, फसह के मेम्ने से अधिक निष्पन्‍न कर सकता है?

◻ यीशु द्वारा कौनसा उद्धार उपलब्ध हो जाता है?

◻ यहोवा के गवाह, प्रभु संध्या भोज का सही समय कैसे निर्धारित कर सकते है?

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