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  • ज्योति वाहक—किस उद्देश्‍य के लिए

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  • ज्योति वाहक—किस उद्देश्‍य के लिए
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
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ज्योति वाहक—किस उद्देश्‍य के लिए

“मैं ने तुझे अन्यजातियों के लिये ज्योति ठहराया है।”—प्रेरितों १३:४७.

१. प्रेरितों १३:४७ में ज़िक्र की गयी आज्ञा ने प्रेरित पौलुस को कैसे प्रभावित किया?

“प्रभु ने हमें यह आज्ञा दी है; कि मैं ने तुझे अन्यजातियों के लिये ज्योति ठहराया है; ताकि तू पृथ्वी की छोर तक उद्धार का द्वार हो,” प्रेरित पौलुस ने कहा। (प्रेरितों १३:४७) उसने केवल इसे कहा ही नहीं बल्कि उसने इसकी गंभीरता को भी पहचाना। एक मसीही बनने के बाद, पौलुस ने उस आज्ञा को पूरा करने में अपना जीवन अर्पित कर दिया। (प्रेरितों २६:१४-२०) क्या वह आज्ञा हमें भी दी गई है? यदि ऐसा है, तो यह हमारे दिन में इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?

जब मानवजाति के लिए ‘ज्योति बुझ गई’

२. (क) जैसे ही जगत ने अपने अन्त के समय में प्रवेश किया, क्या घटित हुआ जिससे उसके आध्यात्मिक और नैतिक वातावरण में गम्भीर रूप से प्रभाव पड़ा? (ख) अगस्त १९१४ में जो घटित हो रहा था, उसको देखकर एक ब्रिटिश राजनेता ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई?

२ आज जीवित अधिकांश लोगों के पैदा होने से पहले, इस जगत ने अपने अन्त के समय में प्रवेश किया। मुख्य घटनाएं एक के बाद एक तेज़ी से घटित हुईं। आध्यात्मिक और नैतिक अन्धकार का मुख्य प्रोत्साहक, शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस को पृथ्वी पर गिरा दिया गया है। (इफिसियों ६:१२; प्रकाशितवाक्य १२:७-१२) मानवजाति को पहले से ही प्रथम विश्‍वयुद्ध में उलझा दिया गया था। अगस्त १९१४ के आरम्भ में, जब युद्ध निश्‍चित प्रतीत होता था, विदेशी कार्य के लिए ब्रिटिश राज्य सचिव, सर ऐडवर्ड ग्रे ने लंडन में अपने दफ़्तर की खिड़की पर खड़े होकर कहा: “पूरे यूरोप में दीपक बुझ रहे हैं; हम अपने जीवनकाल में उन्हें फिर से जलते हुए नहीं देख सकेंगे।”

३. मानवजाति के लिए भविष्य को उज्जवल करने की कोशिश में विश्‍व नेताओं को क्या सफलता प्राप्त हुई है?

३ इन ज्योतियों को वापस लाने की कोशिश में, १९२० में राष्ट्र-संघ शुरू किया गया। परन्तु ज्योतियों का झिलमिलाना नहीं के बराबर था। दूसरे विश्‍वयुद्ध के अन्त में, विश्‍व नेताओं ने फिर से कोशिश की, और इस बार उन्होंने संयुक्‍त राष्ट्र संघ को इस्तेमाल किया। एक बार फिर, ज्योति तेजस्विता से नहीं चमकी। तो भी, अधिक हाल की घटनाओं को देखते हुए, विश्‍व नेता “एक नयी विश्‍व-व्यवस्था” के बारे में बात कर रहे हैं। परन्तु यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि उनके बनाए गए किसी “नए विश्‍व” ने सच्ची शान्ति और सुरक्षा प्रदान की है। इसके विपरीत, सशस्त्र युद्ध, नृजातीय झगड़े, अपराध, बेरोज़गारी, ग़रीबी, पर्यावरण का प्रदूषण, और बीमारियाँ लोगों के जीवन के आनन्द को बिगाड़ रही हैं।

४, ५. (क) मानव परिवार के ऊपर कब और कैसे अन्धकार छा गया? (ख) राहत पहुँचाने के लिए किस चीज़ की आवश्‍यकता है?

४ वास्तव में, १९१४ से काफ़ी पहले ही मानवजाति के लिए ज्योतियाँ बुझ चुकी थीं। कुछ ६,००० साल पहले अदन में यह घटित हुआ, जब हमारे प्रथम माता-पिता ने परमेश्‍वर की अभिव्यक्‍त इच्छा की परवाह न करते हुए ख़ुद निर्णय लेने का चुनाव किया। उस समय से मानवजाति के दुःखद अनुभव केवल उसके अंतर्गत घटनाएं हैं, जिसका ज़िक्र बाइबल “अन्धकार के वश” के तौर पर करती है। (कुलुस्सियों १:१३) शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस के प्रभाव के अंतर्गत ही प्रथम मानव, आदम ने जगत को पाप में डुबाया; और आदम से पाप और मृत्यु सारी मानवजाति में फैल गई। (उत्पत्ति ३:१-६; रोमियों ५:१२) इस प्रकार, मानवजाति ने ज्योति और जीवन के स्रोत, यहोवा की स्वीकृति खो दी।—भजन ३६:९.

५ मानवजाति में से किसी भी व्यक्‍ति के लिए ज्योति फिर से चमकने का केवल एक ही तरीक़ा हो सकता है यदि वह, मानवजाति के सृष्टिकर्ता, यहोवा परमेश्‍वर की स्वीकृति प्राप्त करे। तब, पाप के कारण वह दण्डाज्ञा, “जो पर्दा सब देशों के लोगों पर पड़ा है,” हटाई जा सकती है। यह कैसे संभव हो सकता है?—यशायाह २५:७.

वह व्यक्‍ति जिसे “अन्यजातियों के लिये ज्योति” के तौर पर दिया गया

६. यीशु मसीह के द्वारा यहोवा ने हमारे लिए कौनसी महान्‌ प्रत्याशाएं संभव बनाई हैं?

६ आदम और हव्वा का परादीस से निकाले जाने से भी पहले, यहोवा ने एक “वंश” के बारे में पूर्वबताया जो धार्मिकता के प्रेमियों का उद्धारक होगा। (उत्पत्ति ३:१५) उस प्रतिज्ञात वंश के मानवी जन्म के बाद, यहोवा ने यरूशलेम के मंदिर में बूढ़े शमौन द्वारा “अन्य जातियों को प्रकाश देने के लिये ज्योति” के तौर पर उसकी शनाख़्त करवाई। (लूका २:२९-३२) यीशु के परिपूर्ण मानवी जीवन के बलिदान पर विश्‍वास करने के द्वारा, मानव जन्मजात पाप के कारण घटित होनेवाली दण्डाज्ञा से मुक्‍त हो सकता है। (यूहन्‍ना ३:३६) यहोवा की इच्छा के सामंजस्य में, वे अब स्वर्गीय राज्य के भाग के तौर पर या परादीस पृथ्वी में इसकी प्रजा के तौर पर परिपूर्णता में अनन्त जीवन की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर सकते हैं। यह क्या ही शानदार प्रबन्ध है!

७. यशायाह ४२:१-४ में दी गई प्रतिज्ञाएं और उनकी पहली-सदी की पूर्ति दोनों हमें आशा से क्यों भर देती हैं?

७ ख़ुद यीशु मसीह इन महान्‌ प्रत्याशाओं की पूर्ति की गारण्टी है। यीशु का पीड़ित लोगों को चंगा करने के सम्बन्ध में, प्रेरित मत्ती ने यशायाह ४२:१-४ में लिखी हुई बातों को उस पर लागू किया। अंशतः, वह शास्त्रवचन कहता है: “मेरे दास को देखो जिसे मैं संभाले हूं, मेरे चुने हुए को, जिस से मेरा जी प्रसन्‍न है; मैं ने उस पर अपना आत्मा रखा है, वह अन्यजातियों के लिये न्याय प्रगट करेगा।” और क्या सभी राष्ट्र के लोगों को इसी की आवश्‍यकता नहीं? वह भविष्यवाणी आगे कहती है: “न वह चिल्लाएगा और न ऊंचे शब्द से बोलेगा, न सड़क में अपनी वाणी सुनायेगा। कुचले हुए नरकट को वह न तोड़ेगा और न टिमटिमाती बत्ती को बुझाएगा।” इसके सामंजस्य में, यीशु ने उन लोगों के साथ क्रूरतापूर्वक व्यवहार नहीं किया जो पहले से ही पीड़ित थे। उसने उन्हें दया दिखाई, यहोवा के उद्देश्‍यों के बारे में सिखाया, और उन्हें चंगा किया।—मत्ती १२:१५-२१.

८. यहोवा ने यीशु को किस अर्थ में “प्रजा के लिये वाचा और जातियों के लिये प्रकाश” ठहराया है?

८ इस भविष्यवाणी का देनेवाला स्वयं को अपने सेवक, यीशु से संबोधित करके कहता है: “मुझ यहोवा ने तुझ को धर्म से बुला लिया है, मैं तेरा हाथ थाम कर तेरी रक्षा करूंगा; मैं तुझे प्रजा के लिये वाचा और जातियों के लिये प्रकाश ठहराऊंगा; कि तू अन्धों की आंखें खोले, बंधुओं को बन्दीगृह से निकाले और जो अन्धियारे में बठे हैं उनको कालकोठरी से निकाले।” (यशायाह ४२:६, ७) जी हाँ, यहोवा ने यीशु मसीह को एक वाचा के तौर पर, एक पवित्र प्रतिज्ञात्मक गारण्टी के तौर पर ठहराया है। यह कितना उत्साहवर्धक है! जब यीशु पृथ्वी पर था उसने मानवजाति के लिए सच्ची चिंता दिखाई; और उसने मानवजाति के लिए अपनी जान भी दे दी। इसी को यहोवा ने सब राष्ट्रों के ऊपर शासकत्व सौंपा है। यह कोई आश्‍चर्य की बात नहीं कि यहोवा ने उसका ज़िक्र अन्यजातियों के लिए ज्योति के तौर पर किया। यीशु ने स्वयं कहा: “जगत की ज्योति मैं हूं।”—यूहन्‍ना ८:१२.

९. उस समय की मौजूदा राजनीतिक रीति-व्यवस्था को सुधारने के लिए यीशु ने स्वयं को क्यों नहीं अर्पित किया?

९ किस उद्देश्‍य के लिए यीशु ने जगत की ज्योति की नाईं सेवा की? यह निश्‍चय ही किसी लौकिक या भौतिकवादी उद्देश्‍यों के लिए नहीं था। उसने उस समय की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था को सुलझाने की कोशिश करने से इन्कार किया और संसार के सरदार, शैतान से या लोगों से राजत्व स्वीकार नहीं किया। (लूका ४:५-८; यूहन्‍ना ६:१५; १४:३०) यीशु ने उन लोगों को बड़ी करुणा दिखाई जो पीड़ित थे और उन्हें ऐसे तरीक़ों से राहत पहुँचाई जो दूसरे नहीं पहुँचा सकते थे। लेकिन वह जानता था कि जन्मजात पाप के कारण ईश्‍वरीय दण्डाज्ञा के नीचे और अदृश्‍य दुष्ट आत्मिक सेनाओं द्वारा नियन्त्रित किए जा रहे मानव समाज की मूलभूत बनावट के भीतर स्थायी राहत नहीं मिल सकती। ईश्‍वरीय अंतर्दृष्टि के साथ, यीशु ने अपना सम्पूर्ण जीवन परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने पर केंद्रित किया।—इब्रानियों १०:७.

१०. किन तरीक़ों से और किस उद्देश्‍य के लिए यीशु ने जगत की ज्योति की नाईं सेवा की?

१० तो फिर, किन तरीक़ों से और किस उद्देश्‍य के लिए यीशु ने जगत की ज्योति की नाईं सेवा की? उसने परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करने के लिए अपने आपको अर्पित किया। (लूका ४:४३; यूहन्‍ना १८:३७) यहोवा के उद्देश्‍य के बारे में सच्चाई के प्रति गवाही देने के द्वारा, यीशु ने अपने स्वर्गीय पिता के नाम की भी महिमा की। (यूहन्‍ना १७:४, ६) इसके अतिरिक्‍त, जगत की ज्योति के तौर पर, यीशु ने धार्मिक झूठों का भेद खोला और इस प्रकार उन लोगों को आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्रदान की जो धार्मिक बंधन में बंद थे। उसने शैतान का परदाफ़ाश किया कि वही उन लोगों का अदृश्‍य नियंत्रक है जो स्वयं को उसके द्वारा प्रयोग होने देते हैं। यीशु ने अन्धकार के कामों की भी स्पष्ट रूप से शनाख़्त की। (मत्ती १५:३-९; यूहन्‍ना ३:१९-२१; ८:४४) विशिष्ट रूप से, अपने परिपूर्ण मानव जीवन को एक छुड़ौती के रूप में देने के द्वारा वह जगत की ज्योति प्रमाणित हुआ। इस प्रकार, जो लोग इस प्रबन्ध पर विश्‍वास करते हैं, उनके लिए पापों की क्षमा, परमेश्‍वर के साथ स्वीकृत सम्बन्ध, और यहोवा के सर्वसार्विक परिवार के भाग के तौर पर अनन्त जीवन की आशा का मार्ग खुल गया। (मत्ती २०:२८; यूहन्‍ना ३:१६) और अंततः, जीवनभर परिपूर्ण ईश्‍वरीय भक्‍ति को बनाए रखने के द्वारा, यीशु ने यहोवा की सर्वसत्ता का समर्थन किया और इब्‌लीस को झूठा प्रमाणित किया, और इस प्रकार धार्मिकता के प्रेमियों के लिए अनन्त लाभ संभव किया। लेकिन क्या यीशु को ही एकमात्र ज्योति वाहक होना था?

“तुम जगत की ज्योति हो”

११. यीशु के चेलों को ज्योति वाहक बनने के लिए, क्या करना था?

११ मत्ती ५:१४ में, यीशु ने अपने चेलों से कहा: “तुम जगत की ज्योति हो।” उन्हें उसके पदचिह्नों पर चलना था। उन्हें अपने जीवन शैली और अपने प्रचार दोनों के द्वारा, दूसरों को सच्चे ज्ञानोदय के स्रोत के तौर पर यहोवा की ओर निदेशन करना था। यीशु के अनुकरण में, उन्हें यहोवा के नाम को बताना था और उसकी सर्वसत्ता का समर्थन करना था। जैसे यीशु ने किया, वैसे ही उन्हें परमेश्‍वर के राज्य को मानवजाति के लिए एकमात्र आशा के तौर पर घोषित करना था। उन्हें धार्मिक झूठ का, अन्धकार के कामों का, और इन चीजों के पीछे उस दुष्ट व्यक्‍ति का भी परदाफ़ाश करना था। यीशु मसीह द्वारा उद्धार के लिए यहोवा के प्रेममय प्रबन्ध के बारे में यीशु के अनुयायियों को हर जगह लोगों को बताना था। जैसे यीशु ने आज्ञा दी, पहले यरूशलेम और यहूदिया में और फिर सामरिया में जाते हुए, प्रारंभिक मसीहियों ने इस कार्य-नियुक्‍ति को क्या ही जोश के साथ पूरा किया!—प्रेरितों १:८.

१२. (क) आध्यात्मिक प्रकाश को कहाँ तक फैलना था? (ख) यशायाह ४२:६ के बारे में, यहोवा की आत्मा ने पौलुस को क्या समझने की सामर्थ दी, और उस भविष्यवाणी को हमारे जीवन पर कैसा प्रभाव डालना चाहिए?

१२ फिर भी, सुसमाचार के प्रचार को उस क्षेत्र तक सीमित नहीं रहना था। यीशु ने अपने अनुयायियों को ‘सब जातियों के लोगों को चेला बनाने’ का अनुदेश दिया। (मत्ती २८:१९, तिरछे टाइप हमारे.) तरसुस के शाऊल के धर्म-परिवर्तन के समय, प्रभु ने विशेष रूप से बताया कि शाऊल (जो प्रेरित पौलुस बना) को केवल यहूदियों को ही नहीं बल्कि अन्यजातियों को भी प्रचार करना था। (प्रेरितों ९:१५) पवित्र आत्मा की सहायता से, पौलुस समझ गया कि उस में क्या सम्मिलित था। इस प्रकार, वह समझ गया कि यशायाह ४२:६ की भविष्यवाणी, जो यीशु मसीह में प्रत्यक्ष रूप से पूरी होती है, मसीह में विश्‍वास करनेवाले सभी जनों के लिए भी अंतर्निहित आज्ञा है। इसलिए, प्रेरितों १३:४७ में जब पौलुस ने यशायाह से उद्धृत किया, तब उसने कहा: “प्रभु ने हमें यह आज्ञा दी है; कि मैं ने तुझे अन्यजातियों के लिये ज्योति ठहराया है; ताकि तू पृथ्वी की छोर तक उद्धार का द्वार हो।” आपके बारे में क्या? क्या आपने ज्योति वाहक होने के इस दायित्व को गम्भीरता से लिया है? यीशु और पौलुस की तरह, क्या आप अपना जीवन परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने पर केंद्रित करते हैं?

हमारी अगुआई करने के लिए परमेश्‍वर से प्रकाश और सच्चाई

१३. भजन ४३:३ के सामान्जस्य में, हमारी सच्ची प्रार्थना क्या है, और यह हमें किस चीज़ से बचाती है?

१३ यदि हम मानवजाति के लिए भविष्य को उज्जवल करने के लिए अपनी युक्‍तियों द्वारा ‘ज्योतियों को वापस लाने’ की कोशिश करें, तो हम गम्भीर रूप से परमेश्‍वर के प्रेरित वचन के उद्देश्‍य से चूक रहे होंगे। चाहे संसार आम तौर पर जो कुछ भी क्यों न करे, फिर भी सच्चे मसीही, ज्योति के सच्चे स्रोत के तौर पर यहोवा की ओर देखते हैं। उनकी प्रार्थना भजन ४३:३ में लिखित प्रार्थना की तरह है, जो कहती है: “अपने प्रकाश और अपनी सच्चाई को भेज; वे मेरी अगुवाई करें, वे ही मुझ को तेरे पवित्र पर्वत पर और तेरे निवास स्थान में पहुंचाएं!”

१४, १५. (क) इस समय यहोवा अपने प्रकाश और सच्चाई को किन तरीक़ों से भेज रहा है? (ख) हम कैसे दिखा सकते हैं कि परमेश्‍वर का प्रकाश और सच्चाई सचमुच हमारी अगुआई करते हैं?

१४ यहोवा अपने निष्ठावान्‌ सेवकों की वह प्रार्थना का उत्तर निरन्तर देता रहता है। अपना उद्देश्‍य घोषित करके, इसे समझने में अपने सेवकों को समर्थ करके, और फिर जो उसने घोषित किया है उसे पूरा करके, वह प्रकाश भेजता है। जब हम परमेश्‍वर से प्रार्थना करते हैं, तब यह सिर्फ़ पवित्रता का दिखावा करने के लिए मात्र तकल्लुफ़ नहीं है। हमारी सच्ची इच्छा है कि यहोवा से आनेवाला प्रकाश हमारी अगुआई करे, जैसे कि भजन कहता है। जो प्रकाश परमेश्‍वर प्रदान करता है, उसे प्राप्त करने के साथ आनेवाले ज़िम्मेदारी को भी हम स्वीकार करते हैं। प्रेरित पौलुस की तरह, हम समझते हैं कि यहोवा के वचन की पूर्ति के साथ-साथ इसमें विश्‍वास करनेवाले सभी जनों के लिए एक अंतर्निहित आज्ञा है। जब तक हम दूसरे लोगों को सुसमाचार न दे दें, जिसे परमेश्‍वर ने इसी उद्देश्‍य के लिए हमें सौंपा है, तब तक हम उनके कर्ज़दार की नाईं महसूस करते हैं।—रोमियों १:१४, १५.

१५ यहोवा द्वारा हमारे समय में भेजे हुए प्रकाश और सच्चाई स्पष्ट करते हैं कि यीशु मसीह सक्रिय रूप से अपनी स्वर्गीय राजगद्दी से शासन कर रहा है। (भजन २:६-८; प्रकाशितवाक्य ११:१५) यीशु ने पूर्वबताया कि उसकी शाही उपस्थिति के दौरान, राज्य के इस सुसमाचार को सारे जगत में गवाही के लिए प्रचार किया जाएगा। (मत्ती २४:३, १४) पृथ्वी की चारों ओर वह कार्य इस समय किया जा रहा है, और ज़ोरों से किया जा रहा है। यदि हम उस कार्य को अपने जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण काम बना रहे हैं, तब परमेश्‍वर का प्रकाश और सच्चाई हमारी अगुआई कर रहे हैं, जैसे कि भजनहार ने कहा था।

यहोवा का तेज उदय हुआ है

१६, १७. उन्‍नीस सौ चौदह में यहोवा ने अपने तेज को किस प्रकार अपने स्त्री-समान संगठन पर उदय किया, और यहोवा ने उसे क्या आज्ञा दी?

१६ जिस रीति से ईश्‍वरीय ज्योति हर जगह के लोगों तक फैलाई जा रही है, शास्त्रवचन इसे भावपूर्ण भाषा में वर्णन करते हैं। यशायाह ६०:१-३, जो यहोवा की “स्त्री,” या उसके निष्ठावान सेवकों के स्वर्गीय संगठन को सम्बोधित करता है, यह कहता है: “उठ, प्रकाशमान हो; क्योंकि तेरा प्रकाश आ गया है, और यहोवा का तेज तेरे ऊपर उदय हुआ है। देख, पृथ्वी पर तो अन्धियारा और राज्य राज्य के लोगों पर घोर अन्धकार छाया हुआ है; परन्तु तेरे ऊपर यहोवा उदय होगा, और उसका तेज तुझ पर प्रगट होगा। और अन्यजातियां तेरे पास प्रकाश के लिये और राजा तेरे आरोहण के प्रताप की ओर आएंगे।”

१७ वर्ष १९१४ में यहोवा का तेज अपने स्वर्गीय स्त्री-समान संगठन पर उदय हुआ जब, एक लम्बी अवधि इन्तज़ार करने के बाद, उसने मसीहाई राज्य को जन्म दिया, जिस में यीशु मसीह राजा है। (प्रकाशितवाक्य १२:१-५) यहोवा का तेजस्वी प्रकाश स्वीकृति के साथ उस सरकार पर चमकता है कि यही पूरे पृथ्वी के लिए वैध सरकार है।

१८. (क) जैसे यशायाह ६०:२ में पूर्वबताया गया, पृथ्वी पर अन्धियारा क्यों छाया हुआ है? (ख) व्यक्‍तियों को पृथ्वी के अन्धकार से कैसे मुक्‍त किया जा सकता है?

१८ विषमता में, पृथ्वी पर अन्धियारा और राज्य-राज्य के लोगों पर घोर अन्धकार छाया हुआ है। क्यों? क्योंकि राष्ट्र मानव शासन के पक्ष में परमेश्‍वर के प्रिय पुत्र की सरकार को ठुकराते हैं। वे सोचते हैं कि एक प्रकार की मानव सरकार को हटाने से और दूसरी को अपनाने से, वे अपनी समस्याएं सुलझा लेंगे। परन्तु इससे उन्हें वह राहत नहीं मिलती जिसकी उन्हें आशा है। परदे के पीछे कौन आत्मिक क्षेत्र से राष्ट्रों को संचालित कर रहा है, यह वे नहीं समझ पाते हैं। (२ कुरिन्थियों ४:४) उन्होंने सच्ची ज्योति के स्रोत को ठुकराया है और इसलिए अन्धकार में हैं। (इफिसियों ६:१२) चाहे राष्ट्र जो कुछ भी क्यों न करे, फिर भी, व्यक्‍तियों को उस अन्धकार से मुक्‍त किया जा सकता है। किस तरीक़े से? परमेश्‍वर के राज्य में पूरा विश्‍वास रखने के द्वारा और उसके अधीन होने के द्वारा।

१९, २०. (क) यीशु के अभिषिक्‍त अनुयायियों के ऊपर यहोवा का तेज क्यों और कैसे चमका है? (ख) यहोवा ने अपने अभिषिक्‍त जनों को किस कारण ज्योति वाहक बनाया? (ग) जैसा पूर्वबताया गया था, किस प्रकार “राजा” और “अन्यजातियां” परमेश्‍वर-प्रदत्त प्रकाश की ओर खिंचे आए हैं?

१९ मसीहीजगत ने परमेश्‍वर के राज्य में न तो विश्‍वास रखा है और न ही उसके अधीन हुए हैं। परन्तु यीशु मसीह के आत्मा-अभिषिक्‍त अनुयायी उसके अधीन हुए हैं। परिणामस्वरूप, यहोवा की स्वर्गीय स्त्री के इन दृश्‍य प्रतिनिधियों पर उसकी ईश्‍वरीय स्वीकृति की ज्योति चमकी है, और उसका तेज उन पर प्रकट हुआ है। (यशायाह ६०:१९-२१) वे ऐसी आध्यात्मिक ज्योति का आनन्द लेते हैं जिसे जगत की कोई भी राजनीतिक या आर्थिक स्थिति में परिवर्तन छीन नहीं सकती। बड़ी बाबुल से उन्होंने यहोवा का उद्धार अनुभव किया है। (प्रकाशितवाक्य १८:४) वे उसकी स्वीकृति का आनन्द लेते हैं क्योंकि उन्होंने उसके अनुशासन को स्वीकार किया है और निष्ठा के साथ उसकी सर्वसत्ता का समर्थन किया है। भविष्य के लिए उनके पास उज्ज्वल प्रत्याशाएं हैं, और वे उस आशा में आनन्द मनाते हैं जो उसने उनके आगे रखी है।

२० लेकिन किस उद्देश्‍य के लिए यहोवा ने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया? जैसे कि उसने स्वयं यशायाह ६०:२१ में कहा, यह इसलिए है ताकि उसकी “महिमा प्रगट हो,” ताकि उसके नाम का सम्मान हो और एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर के तौर पर उसकी ओर अन्य जन खिंचे आएं—और यह उनके अपने स्थायी लाभ के लिए होगा। इसके अनुकूल, १९३१ में सच्चे परमेश्‍वर के इन उपासकों ने यहोवा के गवाह नाम अपनाया। जैसे यशायाह ने भविष्यवाणी की, क्या उनकी गवाही के परिणामस्वरूप, “राजा” उनके प्रतिबिम्बित प्रकाश की ओर खिंचे आए? जी हाँ! पृथ्वी के राजनीतिक शासक नहीं, परन्तु मसीह के साथ उसके स्वर्गीय राज्य में राजा के तौर पर शासन करनेवाले शेष जन। (प्रकाशितवाक्य १:५, ६; २१:२४) और ‘अन्यजातियों’ के बारे में क्या? क्या वे प्रकाश की ओर आकर्षित हुए हैं? यक़ीनन हाँ! कोई व्यक्‍तिगत राजनीतिक राष्ट्र आकर्षित नहीं हुआ है, लेकिन सभी राष्ट्रों में से लोगों की एक बड़ी भीड़ ने परमेश्‍वर के राज्य के पक्ष में स्थिति अपनाई है, और वे उत्सुकता के साथ परमेश्‍वर की नई दुनिया में उद्धार पाने की प्रत्याशा कर रहे हैं। यह एक वस्तुतः नई दुनिया होगी जिसमें धार्मिकता प्रबल होगी।—२ पतरस ३:१३; प्रकाशितवाक्य ७:९, १०.

२१. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम यहोवा की अनर्जित कृपा के उद्देश्‍य से नहीं चूके हैं, जो उसने अपनी इच्छा की समझ प्रदान करके की है?

२१ क्या आप ज्योति वाहक की उस बढ़ती हुई भीड़ में से एक हैं? यहोवा ने हमें अपनी इच्छा की समझ इसलिए प्रदान की है ताकि हम, यीशु की तरह, ज्योति वाहक हो सकें। हमारे दिनों में जो कार्य यहोवा ने अपने सेवकों को सौंपा है, उसमें जोश प्रदर्शित करते हुए, आइए हम सब दिखाएं कि हम उस अनर्जित कृपा के उद्देश्‍य से नहीं चूके हैं जो परमेश्‍वर ने हमें दी है। (२ कुरिन्थियों ६:१, २) हमारे दिनों में और कोई कार्य इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है। और जो तेजस्वी प्रकाश यहोवा की ओर से आता है, उसे दूसरों तक प्रतिबिम्बित करके उसकी स्तुति करने से बढ़कर हमारे लिए और कोई विशेषाधिकार नहीं हो सकता है।

आप किस तरह जवाब देंगे?

▫ मानवजाति की दुःखद समस्याओं के मूल कारण क्या हैं?

▫ यीशु और उसके अनुयायी दोनों किन तरीक़ों से “जगत की ज्योति” हैं?

▫ यहोवा का प्रकाश और सच्चाई कैसे हमारी अगुआई कर रहे हैं?

▫ यहोवा ने अपने संगठन के ऊपर अपना तेज कैसे चमकाया है?

▫ यहोवा ने अपने लोगों को किस उद्देश्‍य के लिए ज्योति वाहक बनाया है?

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