यीशु का जीवन और सेवकाई
साववें दिन और भी ज़्यादा शिक्षा
मण्डपों के पर्व का अंतिम दिन, सातवाँ दिन, अब भी प्रगमन है। यीशु मंदिर के “भण्डार घर” नामक भाग में उपदेश दे रहे हैं। यह प्रत्यक्षतः उस भाग में है जिसे स्त्रियों का चौक कहा जाता है जहाँ पर पेटियाँ रखी है जिन में लोग अपनी दान डालते हैं।
पर्व के समय प्रति रात मंदिर के इस भाग में एक विशेष प्रदीपन प्रदर्शन होता है। चार विशाल दीवटें यहाँ रखी जाती हैं, प्रत्येक पर तेल से भरे हुए चार बड़े कटोरे हैं। जलते हुए तेल के इन १६ कटोरों का प्रकाश इतना उज्जवल है कि रात में आसपास बहुत दूर तक सब कुछ प्रदीप्त हो जाता है। जो यीशु अब कहते हैं संभवतः उनके सुननेवालों को इस प्रदर्शन का स्मरण कराएगा। “जगत की ज्योति मैं हूँ,” यीशु घोषणा करते हैं। “जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अंधकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”
फरीसी विरोध करते हैं: “तू अपनी गवाही आप ही देता हैं; तेरी गवाही सच्ची नहीं।” (न्यू.व.)
उत्तर में यीशु कहते हैं: “यदि मैं अपनी गवाही आप देता हूँ, फिर भी मेरी गवाही सच्ची है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ।” वह आगे कहता है: “मैं आप अपनी गवाही देता हूँ, और पिता जिसने मुझे भेजा मेरी गवाही देता है।” (न्यू.व.)
“तेरा पिता कहाँ है?” फरीसी जानना चाहते हैं।
“न तुम मुझे जानते हो न मेरे पिता को,” यीशु उत्तर देते हैं। “यदि तुम मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।” यद्यपि फरीसी यीशु को अब भी गिरफ़तार करवाना चाहते हैं, कोई भी उन्हें हाथ नहीं लगाता।
“मैं जा रहा हूँ,” यीशु फिर कहते हैं। “जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।”
इस पर यहूदी अनुमान लगाने लगते हैं: “क्या यह अपने आप को मार तो नहीं डालेगा? क्योंकि यह कहता है ‘जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।’”
“तुम नीचे के क्षेत्र से हो,” यीशु स्पष्टिकरण करते हैं। “मैं ऊपर के क्षेत्र से हूँ। तुम इस संसार से हो; मैं इस संसार से नहीं हूँ।” फिर वह आगे कहता है: “यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वही हूँ, तो तुम अपने पापों में मरोगे।”
यीशु निस्संदेह, अपने पूर्व-मानवी अस्तित्व और अपने प्रतिज्ञात मसीहा, अथवा मसीह, होने की वास्तविकता का उल्लेख कर रहे हैं। यद्यपि, अवश्य अति अवहेलना के साथ, वे पूछते हैं: “तू कौन है?”
उनकी अस्वीकृति के बावजूद, यीशु उत्तर देते हैं: “मैं तुम से बोल ही क्यों रहा हूँ?” परन्तु वह आगे कहता है: “मेरा भेजनेवाला सच्चा है, और जो मैं ने उस से सुना है वही जगत से कहता हूँ।” (न्यू.व) यीशु आगे कहते हैं: “जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चढ़ा चुकोगे, तो जानोगे कि मैं वही हूँ, और कि मैं अपने आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसा पिता ने मुझे सिखाया है वैसे ही ये बातें कहता हूँ। और मेरा भेजनेवाला मेरे साथ है; उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा, क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूँ जिन से वह प्रसन्न होता है।”
जब यीशु यह बातें कहते हैं, तब अनेक लोग उन पर विश्वास करते हैं। इनको वह कहते हैं: “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे और सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।”
“हम तो इब्राहीम के वंश से हैं,” उनके विरोधी एक स्वर में कहते हैं, “और कभी किसी के दास नहीं हुए। फिर तू क्योंकर कहता है, ‘तुम स्वतंत्र हो जाओगे’?”
यद्यपि यहूदी प्रायः विदेशी शासन के आधीन रहे हैं, वे किसी भी तानाशाह को स्वामी स्वीकार नहीं करते। वे अपने आप को दास कहलाने से इनक़ार करते हैं। परन्तु यीशु ध्यान दिलाते हैं कि वे लोग वास्तव में दास हैं। किस रीति से? “मैं तुम से सच कहता हूँ,” यीशु कहते हैं, “जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है।”
पाप का दासत्व मानने से अस्वीकृति यहूदियों को एक संकटपूर्ण परिस्थिती में डाल देती है। “दास सदा घर में नहीं रहता,” यीशु स्पष्ट करते हैं। “पुत्र सदा रहता है।” चूँकि एक दास के कोई वंशागति अधिकार नहीं होते, वह किसी भी समय सेवा मुक्ति के खतरे में बना रहता है। केवल वास्तव में जन्मा अथवा गोद लिया हुआ पुत्र ही परिवार में “सदा,” अर्थात, जब तक वह जीवित रहता है, बना रहता है।
“सो यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा,” यीशु कहना जारी रखते हैं, “तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे।” इस प्रकार, वह सत्य जो लोगों को स्वतंत्र करता है उस पुत्र, यीशु मसीह, के विषय में सत्य है। केवल उनके सिद्ध मानवी जीवन के बलिदान के द्वारा ही किसी मनुष्य को प्राणनाशक पाप से स्वतंत्रता मिल सकती है। यूहन्ना ८:१२-३६.
◆ सातवें दिन यीशु कहाँ शिक्षा देते हैं? वहाँ पर रात को क्या घटित होता है, और इसका यीशु की शिक्षा से क्या सम्बन्ध है?
◆ यीशु अपने स्रोत के विषय में क्या कहते हैं, और इससे उनके पहचान के विषय में क्या प्रदर्शित होना चाहिए?
◆ यहूदी किस रीति से दास हैं, परन्तु किस तरह सत्य उन्हें स्वतंत्र करेगा?