यीशु का जीवन और सेवकाई
पितृत्व का सवाल
सामान्य युग पूर्व वर्ष ३२ के मण्डपों के पर्ब्ब के दौरान, यहूदी अगुवों के साथ यीशु का विचार-विमर्श और भी तीव्र हो जाता है। “मैं जानता हूँ कि तुम इब्राहीम के वंश से हो,” यीशु क़बूल करता है, “तौभी मेरा वचन तुम्हारे हृदय में जगह नहीं पाता, इसलिए तुम मुझे मार डालना चाहते हो। मैं वही कहता हूँ जो अपने पिता के यहाँ देखा है, और तुम वही करते रहते हो जो तुमने अपने पिता से सुना है।”
हालाँकि वह उनके पिता की पहचान नहीं देता, यीशु यह स्पष्ट करता है कि उनका पिता उसके अपने पिता से अलग है। यह न जानकर कि यीशु किस के बारे में सोच रहा है, यहूदी अगुवे जवाब देते हैं: “हमारा पिता तो इब्राहीम है।” उन्हें लगता है कि उन्हें भी इब्राहीम जैसा विश्वास है, जो परमेश्वर का दोस्त था।
बहरहाल, यीशु उन्हें यह जवाब देकर धक्का देता है: “यदि तुम इब्राहीम की सन्तान हो, तो इब्राहीम के समान काम करो।” सचमुच, असली बेटा अपने पिता का अनुसरण करता है। “परन्तु अब तुम मुझ ऐसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो,” यीशु कहता है, “जिस ने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्वर से सुना, यह तो इब्राहीम ने नहीं किया था।” इसलिए यीशु एक बार फिर कहता है: “तुम अपने पिता के समान काम करते हो।”
फिर भी वे नहीं समझ पाते कि यीशु किस के बारे में बोल रहा है। वे दावा करते हैं कि वे इब्राहीम की जायज़ सन्तान हैं, यह कहकर कि “हम व्यभिचार से नहीं जन्मे।” इसलिए, इब्राहीम के जैसे सच्चे उपासक होने का दावा करके, वे दृढ़तापूर्वक कहते हैं: “हमारा एक पिता है, अर्थात् परमेश्वर।”
पर क्या परमेश्वर सचमुच ही उनके पिता हैं? “यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझ से प्रेम रखते; क्योंकि मैं परमेश्वर से निकल कर आया हूँ; मैं आप से नहीं आया, परन्तु उसी ने मुझे भेजा। तुम मेरी बात क्यों नहीं समझते?”
यीशु ने इन धार्मिक अगुवों को यह दिखाने की कोशिश की है कि उसे अस्वीकार करने का अंजाम क्या होगा। लेकिन अब वह स्पष्ट रूप से कहता है: “तुम अपने पिता इब्लीस से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो।” इब्लीस किस क़िस्म का पिता है? यीशु ने उसकी पहचान एक हत्यारे के तौर से दी और यह भी कहा: “वह झूठा है, बरन झूठ का पिता है।” तो यीशु आख़िर में कहता है: “जो परमेश्वर से होता है, वह परमेश्वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिए नहीं सुनते कि परमेश्वर की ओर से नहीं हो।”
यीशु की भर्त्सना से क्रोधित होकर, यहूदी जवाब देते हैं: “क्या हम ठीक नहीं कहते, कि तू सामरी है, और तुझ में दुष्टात्मा है?” “सामरी,” यह शब्द तिरस्कार और उलाहना की अभिव्यक्ति के तौर से इस्तेमाल किया जाता है, चूँकि सामरी ऐसे लोग हैं जिन से यहूदी घृणा करते हैं।
इस तिरस्कारपूर्ण लांछन की ओर ध्यान न देकर, यीशु जवाब देता है: “मुझ में दुष्टात्मा नहीं; परन्तु मैं अपने पिता का आदर करता हूँ, और तुम मेरा निरादर करते हो।” आगे कहकर, यीशु एक चौंका देनेवाला वादा करता है: “यदि कोई व्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्त काल तक मृत्यु को न देखेगा।” बेशक, यीशु का यह मतलब नहीं कि जो कोई उसके अनुयायी होंगे, वे अक्षरशः मृत्यु को कभी न देखेंगे। उलटा, उसका मतलब यह है कि वे कभी अनन्त विनाश, या “दूसरी मृत्यु” को न देखेंगे, जिस अवस्था में से कोई पुनरुत्थान नहीं होता।
बहरहाल, यहूदी यीशु के शब्दों का मतलब शाब्दिक रूप से लेते हैं। इसीलिए, वे कहते हैं: “अब हम ने जान लिया कि तुम में दुष्टात्मा है: इब्राहीम मर गया, और भविष्यद्वक्ता भी मर गए हैं और तू कहता है, कि यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा तो वह अनन्त काल तक मृत्यु का स्वाद न चखेगा। हमारा पिता इब्राहीम तो मर गया, क्या तू उस से बड़ा है? और भविष्यद्वक्ता भी मर गए, तू अपने आप को क्या ठहराता है?”
इस सारे विचार-विमर्श में, यह ज़ाहिर है कि यीशु इन आदमियों को उस तथ्य की ओर निर्दिष्ट कर रहा है कि वही प्रतिज्ञात मसीहा है। लेकिन अपनी पहचान के सवाल का सीधा-सीधा जवाब देने के बजाय, यीशु कहता है: “यदि मैं आप अपनी महिमा करूँ, तो मेरी महिमा कुछ नहीं, परन्तु मेरी महिमा करनेवाला मेरा पिता है, जिसे तुम कहते हो, कि वह हमारा परमेश्वर है। और तुम ने तो उसे नहीं जाना: परन्तु मैं उसे जानता हूँ; और यदि कहूँ कि मैं उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारी नाईं झूठा ठहरूँगा।”
आगे बढ़कर, यीशु यह कहते हुए विश्वसनीय इब्राहीम का ज़िक्र दोबारा करता है कि “तुम्हारा पिता इब्राहीम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था; और उस ने देखा, और आनन्द किया।” जी हाँ, विश्वास की नज़रों के साथ, इब्राहीम ने प्रतिज्ञात मसीहा के आने की उत्सुकता से आशा की। अविश्वास से, यहूदी जवाब देते हैं: “अब तक तू पचास वर्ष का नहीं; फिर भी तू ने इब्राहीम को देखा है?
“मैं तुम से सच सच कहता हूँ,” यीशु जवाब देता है, “इब्राहीम के अस्तित्व में आने से पहले, मैं रहा हूँ।” बेशक, यीशु स्वर्ग में एक शक्तिशाली आत्मिक प्राणी के तौर से अपने मानव-पूर्व अस्तित्व का ज़िक्र कर रहा है।
यीशु के इस दावे से क्रोधित होकर, कि वह इब्राहीम से पहले अस्तित्व में रहा है, यहूदी उसे मारने के लिए पत्थर उठाते हैं। लेकिन वह छिप जाता है और मंदिर में से सही-सलामत निकल जाता है। यूहन्ना ८:३७-५९; N.W.; प्रकाशितवाक्य ३:१४; २१:८.
◆ यीशु किस तरह दिखाता है कि उसके दुश्मनों के पिता और उसके पिता अलग-अलग व्यक्ति हैं?
◆ यहूदियों का यीशु को सामरी कहने का मतलब क्या है?
◆ यीशु का भावार्थ क्या है जब वह कहता है कि उसके अनुयायी कभी मृत्यु नहीं देखेंगे?