सच्चे उपासकों की एक बड़ी भीड़—वे कहाँ से आए हैं?
“देखो, हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक . . . बड़ी भीड़, . . . सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने खड़ी है।”—प्रकाशितवाक्य ७:९.
१. प्रकाशितवाक्य के भविष्यसूचक दर्शन आज हमारे लिए बहुत दिलचस्पी के क्यों हैं?
सामान्य युग प्रथम शताब्दी के अन्त के निकट, प्रेरित यूहन्ना ने यहोवा के उद्देश्य के सम्बन्ध में अद्भुत घटनाओं के दर्शन देखे। जो बातें उसने दर्शन में देखीं उनमें से कुछ अभी पूरी हो रही हैं। अन्य बातें निकट भविष्य में पूरी होनेवाली हैं। ये सभी घटनाएँ सारी सृष्टि के सामने अपने नाम को पवित्र करने के यहोवा के महान उद्देश्य की नाटकीय पराकाष्ठा पर केंद्रित हैं। (यहेजकेल ३८:२३; प्रकाशितवाक्य ४:११; ५:१३) इसके अतिरिक्त, इनमें हम सभी की जीवन प्रत्याशा अंतर्ग्रस्त है। यह कैसे है?
२. (क) प्रेरित यूहन्ना ने अपने चौथे दर्शन में क्या देखा? (ख) इस दर्शन के सम्बन्ध में हम कौन-से प्रश्नों पर चर्चा करने जा रहे हैं?
२ प्रकाशितवाक्य के दर्शनों की श्रंखला के चौथे दर्शन में, यूहन्ना ने स्वर्गदूतों को तब तक विनाश की हवाओं को थामे हुए देखा जब तक कि ‘हमारे परमेश्वर के दासों’ के माथे पर मुहर न लगा दी गयी। तब उसने एक अति रोमांचक घटना देखी—“हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था” यहोवा की उपासना करने और उसके पुत्र का सम्मान करने में संयुक्त थी। यूहन्ना को कहा गया कि ये वे लोग हैं जो बड़े क्लेश में से निकलकर आएँगे। (प्रकाशितवाक्य ७:१-१७) वे कौन हैं जिन्हें ‘हमारे परमेश्वर के दास’ कहा गया है? और कौन क्लेश से बचनेवालों की “बड़ी भीड़” बनेंगे? क्या आप उनमें से एक होंगे?
‘हमारे परमेश्वर के दास’ कौन हैं?
३. (क) यूहन्ना १०:१-१८ में यीशु ने अपने अनुयायियों के साथ अपने सम्बन्ध को कैसे सचित्रित किया? (ख) अपनी बलिदान-रूपी मृत्यु के माध्यम से यीशु ने अपनी भेड़ों के लिए क्या संभव बनाया?
३ अपनी मृत्यु से लगभग चार महीने पहले, यीशु ने ख़ुद को “अच्छा चरवाहा” और अपने अनुयायियों को “भेड़” कहा, जिनके लिए वह अपना जीवन अर्पित करता। लाक्षणिक भेड़शाला में उसे मिली भेड़ों का और उसके बाद उसके द्वारा उन्हें दी गयी ख़ास देखभाल का उसने ख़ास उल्लेख किया। (यूहन्ना १०:१-१८)a प्रेमपूर्वक, यीशु ने अपनी भेड़ों के लिए अपना प्राण अर्पित किया, इस प्रकार वह छुड़ौती मूल्य प्रदान किया जो पाप और मृत्यु से उन्हें मुक्त होने के लिए ज़रूरी था।
४. यीशु ने यहाँ जो कहा उसके सामंजस्य में भेड़ों के रूप में एकत्रित किए जानेवालों में से पहले जन कौन हैं?
४ लेकिन, ऐसा करने से पहले, यीशु ने अच्छे चरवाहे के रूप में व्यक्तिगत रूप से शिष्य इकट्ठे किए। पहले शिष्यों से उसका परिचय यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले, अर्थात् यीशु के दृष्टान्त के “द्वारपाल” ने करवाया। यीशु ऐसे लोगों की खोज में था जो ‘इब्राहीम के [संयुक्त] वंश’ का हिस्सा बनने के अवसर के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाते। (उत्पत्ति २२:१८; गलतियों ३:१६, २९) उसने उनके हृदय में स्वर्ग के राज्य के प्रति मूल्यांकन विकसित किया, और उसने उन्हें आश्वासन दिया कि वह अपने स्वर्गीय पिता के घर में उनके लिए एक जगह तैयार करने जा रहा था। (मत्ती १३:४४-४६; यूहन्ना १४:२, ३) उपयुक्त रूप से उसने कहा: “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के दिनों से अब तक स्वर्ग का राज्य वह लक्ष्य है जिसे प्राप्त करने का लोग यत्न करते हैं, और जो आगे बढ़कर यत्न करते हैं उसे वे प्राप्त कर रहे हैं।” (मत्ती ११:१२, NW) उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके पीछे चलनेवाले ये लोग उस भेड़शाला के साबित हुए जिसके बारे में यीशु ने कहा।
५. (क) प्रकाशितवाक्य ७:३-८ में उल्लिखित ‘हमारे परमेश्वर के दास’ कौन हैं? (ख) क्या बात दिखाती है कि उपासना में आत्मिक इस्राएलियों के साथ अनेक अन्य लोग मिल जाते?
५ प्रकाशितवाक्य ७:३-८ में, वे जो उस स्वर्गीय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सफलतापूर्वक आगे बढ़कर यत्न करते हैं उन्हें ‘हमारे परमेश्वर के दास’ भी कहा गया है। (१ पतरस २:९, १६ देखिए।) क्या वहाँ उल्लिखित १,४४,००० जन केवल शारीरिक यहूदी ही हैं? क्या यीशु के दृष्टान्त की लाक्षणिक भेड़शाला में केवल यहूदी ही हैं? निश्चित ही नहीं; वे परमेश्वर के आत्मिक इस्राएल के सदस्य हैं, वे सभी इब्राहीम के आत्मिक वंश में मसीह के साथी हैं। (गलतियों ३:२८, २९; ६:१६; प्रकाशितवाक्य १४:१, ३) निश्चय ही, वह समय अंततः आता जब वह नियत संख्या पूरी हो जाती। तब क्या होता? जैसा बाइबल ने पूर्वबताया था, अन्य लोग—उनकी एक बड़ी भीड़—यहोवा की उपासना करने में इन आत्मिक इस्राएलियों के साथ मिल जाते।—जकर्याह ८:२३.
“अन्य भेड़ें” —क्या वे ग़ैर-यहूदी मसीही हैं?
६. यूहन्ना १०:१६ किस विकास की ओर संकेत करता है?
६ यूहन्ना १०:७-१५ में एक भेड़शाला का उल्लेख करने के बाद, यीशु ने उस वर्णन में एक और समूह को सम्मिलित किया, उसने कहा: “मेरी और भी [अन्य, NW] भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं: मुझे उन का भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा।” (यूहन्ना १०:१६) ये “अन्य भेड़ें” कौन हैं?
७, ८. (क) यह विचार कि अन्य भेड़ें ग़ैर-यहूदी मसीही हैं क्यों एक ग़लत धारणा पर आधारित है? (ख) पृथ्वी के लिए परमेश्वर के उद्देश्य के सम्बन्ध में कौन-से तथ्यों का इस बात की हमारी समझ के साथ सम्बन्ध होना चाहिए कि अन्य भेड़ें कौन हैं?
७ मसीहीजगत के टीकाकार सामान्यतः यह दृष्टिकोण अपनाते हैं कि ये अन्य भेड़ें ग़ैर-यहूदी मसीही हैं और यह कि पहले उल्लिखित भेड़शाला में यहूदी हैं, वे जो व्यवस्था वाचा के अधीन थे, और यह कि दोनों समूह स्वर्ग जाते हैं। लेकिन यीशु एक यहूदी जन्मा और जन्म से ही व्यवस्था वाचा के अधीन था। (गलतियों ४:४) इसके अतिरिक्त, वे जो अन्य भेड़ों को ग़ैर-यहूदी मसीही समझते हैं जिन्हें स्वर्गीय जीवन का प्रतिफल मिलेगा, वे परमेश्वर के उद्देश्य के एक महत्त्वपूर्ण पहलू को ध्यान में लेने से चूक रहे हैं। जब यहोवा ने पहले मनुष्यों को सृजा और उन्हें अदन की वाटिका में रखा, तो उसने यह स्पष्ट कर दिया कि उसका उद्देश्य था कि पृथ्वी पर लोग बसें, कि सारी पृथ्वी एक परादीस हो, और कि उसके मानव रखवाले सर्वदा के जीवन का आनन्द उठाएँ—बशर्ते कि वे अपने सृष्टिकर्ता का आदर और आज्ञापालन करें।—उत्पत्ति १:२६-२८; २:१५-१७; यशायाह ४५:१८.
८ जब आदम ने पाप किया, तो यहोवा का उद्देश्य विफल नहीं हुआ। परमेश्वर ने प्रेमपूर्वक आदम की सन्तान के लिए प्रबन्ध किया कि उन्हें उन बातों का आनन्द उठाने का अवसर मिले जिनका मूल्यांकन करने से आदम चूक गया था। यहोवा ने पूर्वबताया कि वह एक मुक्तिदाता खड़ा करेगा, अर्थात् एक वंश जिसके द्वारा सभी जातियों को आशिषें उपलब्ध की जाएँगी। (उत्पत्ति ३:१५; २२:१८) उस प्रतिज्ञा का यह अर्थ नहीं था कि पृथ्वी के सभी अच्छे लोगों को स्वर्ग ले जाया जाएगा। यीशु ने अपने अनुयायियों को प्रार्थना करना सिखाया: “तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती ६:९, १०, तिरछे टाइप हमारे) यूहन्ना १०:१-१६ में अभिलिखित दृष्टान्त देने से कुछ ही समय पहले यीशु ने अपने शिष्यों को कहा था कि उसके पिता को यह भाया है कि केवल एक “छोटे झुण्ड” को स्वर्गीय राज्य दे। (लूका १२:३२, ३३) सो जब हम यीशु का यह दृष्टान्त पढ़ते हैं जिसमें वह एक अच्छे चरवाहे के रूप में अपनी भेड़ों के लिए अपना प्राण अर्पित करता है, तो उन अधिकांश लोगों को उस वर्णन में सम्मिलित नहीं करना एक भूल होगी जिन्हें यीशु अपनी प्रेममय देखभाल के अधीन लाता है, जो उसके स्वर्गीय राज्य की पार्थिव प्रजा बनते हैं।—यूहन्ना ३:१६.
९. वर्ष १८८४ में ही, बाइबल विद्यार्थियों ने अन्य भेड़ों की पहचान के बारे में क्या समझ लिया था?
९ वर्ष १८८४ में ही, वॉच टावर ने अन्य भेड़ों की पहचान उन लोगों के रूप में कर ली थी जिन्हें इस पृथ्वी पर ऐसी परिस्थितियों में जीवित रहने का अवसर दिया जाएगा जो परमेश्वर का आरंभिक उद्देश्य पूरा करेंगी। उन प्रारंभिक बाइबल विद्यार्थियों ने समझ लिया था कि इन में से कुछ अन्य भेड़ें ऐसे लोग होंगे जो यीशु की पार्थिव सेवकाई से पहले जीए और मर गए थे। लेकिन, कुछ विवरण थे जो उन्हें सही तरह समझ नहीं आए। उदाहरण के लिए, उन्होंने सोचा कि अन्य भेड़ों को तब इकट्ठा किया जाएगा जब सभी अभिषिक्त जन अपना स्वर्गीय प्रतिफल प्राप्त कर चुके होंगे। फिर भी, निश्चित ही उन्होंने यह समझ लिया था कि अन्य भेड़ें मात्र ग़ैर-यहूदी मसीही नहीं थे। अन्य भेड़ बनने का अवसर यहूदी और ग़ैर-यहूदी दोनों के लिए, सभी राष्ट्रों और जातियों के लोगों के लिए खुला है।—प्रेरितों १०:३४, ३५ से तुलना कीजिए।
१०. हमारे बारे में क्या सच होना चाहिए ताकि हम ऐसे लोग हों जिन्हें यीशु वास्तव में अपनी अन्य भेड़ें समझता है?
१० यीशु द्वारा दिए गए वर्णन पर ठीक बैठने के लिए, अन्य भेड़ों को ऐसे लोग होना है जो चाहे किसी भी प्रजातीय या नृजातीय पृष्ठभूमि के क्यों न हों, यीशु मसीह को अच्छे चरवाहे के रूप में स्वीकार करते हैं। इसमें क्या सम्मिलित है? उन्हें न्रमता और पीछे पीछे चलने की तत्परता दिखानी है, ये गुण भेड़ों की विशेषता हैं। (भजन ३७:११) जैसा छोटे झुण्ड के बारे में सच है, इन्हें भी ‘[अच्छे चरवाहे का] शब्द पहचानना’ है और अपने आपको दूसरों के बहकावे में नहीं आने देना है जो शायद उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करें। (यूहन्ना १०:४; २ यूहन्ना ९, १०) यीशु ने अपनी भेड़ों के लिए अपना प्राण अर्पित करके जो निष्पन्न किया उन्हें उस बात के महत्त्व का मूल्यांकन करना है और उस प्रबन्ध में पूरा विश्वास रखना है। (प्रेरितों ४:१२) उन्हें अच्छे चरवाहे का शब्द ‘सुनना’ है जब वह उनसे आग्रह करता है कि केवल यहोवा की ही पवित्र सेवा करें, पहले राज्य की खोज करते रहें, संसार से अलग रहें, और एक दूसरे के लिए आत्म-बलिदानी प्रेम दिखाएँ। (मत्ती ४:१०; ६:३१-३३; यूहन्ना १५:१२, १३, १९) क्या आप उन लोगों के विवरण पर ठीक बैठते हैं जिन्हें यीशु अपनी अन्य भेड़ समझता है? क्या आप चाहते हैं? जो लोग सचमुच यीशु की अन्य भेड़ें बनते हैं उनके लिए क्या ही मूल्यवान सम्बन्ध खुल जाता है!
राज्य अधिकार के लिए आदर
११. (क) अपनी उपस्थिति के चिह्न में यीशु ने भेड़ और बकरियों के बारे में क्या कहा? (ख) ये भाई कौन हैं जिनका उल्लेख यीशु करता है?
११ उपरोक्त दृष्टान्त देने के कई महीने बाद, यीशु फिर से यरूशलेम में था। जब वह जैतून पहाड़ पर बैठा हुआ ऊपर से मंदिर के क्षेत्र को देख रहा था तो उसने अपने शिष्यों को ‘अपनी उपस्थिति और रीति-व्यवस्था की समाप्ति के चिह्न’ का विस्तृत विवरण दिया। (मत्ती २४:३, NW) उसने फिर भेड़ों के इकट्ठे किए जाने के बारे में कहा। अन्य बातों के साथ-साथ, उसने कहा: “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। और सब जातियां उसके साम्हने इकट्ठी की जाएंगी; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। और वह भेड़ों को अपनी दहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा।” इस नीति-कथा में, यीशु ने दिखाया कि जिन पर राजा इस प्रकार ध्यान देगा उनका न्याय इस आधार पर होगा कि उन्होंने उसके “भाइयों” के साथ कैसा व्यवहार किया। (मत्ती २५:३१-४६) ये भाई कौन हैं? ये आत्मा से जन्मे मसीही हैं जो इसलिए “परमेश्वर के पुत्र” हैं। यीशु परमेश्वर का पहलौठा पुत्र है। अतः, वे मसीह के भाई हैं। वे प्रकाशितवाक्य ७:३ में उल्लिखित ‘हमारे परमेश्वर के दास’ हैं, जिन्हें मसीह के साथ उसके स्वर्गीय राज्य में भाग लेने के लिए मानवजाति में से चुना गया है।—रोमियों ८:१४-१७.
१२. जिस तरह लोग मसीह के भाइयों के साथ व्यवहार करते हैं वह अति महत्त्वपूर्ण क्यों है?
१२ जिस प्रकार अन्य मनुष्य राज्य के इन वारिसों के साथ व्यवहार करते हैं वह अति महत्त्वपूर्ण है। क्या आप उन्हें यीशु मसीह और यहोवा के दृष्टिकोण से देखते हैं? (मत्ती २४:४५-४७; २ थिस्सलुनीकियों २:१३) इन अभिषिक्त जनों के प्रति एक व्यक्ति की मनोवृत्ति स्वयं यीशु मसीह के प्रति और उसके पिता, विश्व सर्वसत्ताधारी के प्रति उसकी मनोवृत्ति को प्रतिबिम्बित करती है।—मत्ती १०:४०; २५:३४-४६.
१३. वर्ष १८८४ में बाइबल विद्यार्थियों ने भेड़ और बकरियों की नीति-कथा को किस हद तक समझा था?
१३ अगस्त १८८४ के अंक में वॉच टावर ने सही तरह से बताया कि इस नीति-कथा में ‘भेड़’ वे लोग हैं जिनके सामने पृथ्वी पर परिपूर्ण जीवन की प्रत्याशा रखी होगी। यह भी समझा जा चुका था कि यह नीति-कथा तब लागू होगी जब मसीह अपने महिमावान स्वर्गीय सिंहासन से शासन कर रहा होगा। फिर भी, उस समय उन्हें स्पष्ट रीति से यह समझ नहीं आया था कि वहाँ वर्णित विभाजन कार्य वह कब शुरू करेगा या वह कार्य कब तक चलेगा।
१४. वर्ष १९२३ में एक अधिवेशन भाषण ने बाइबल विद्यार्थियों को इस बात का मूल्यांकन करने में कैसे मदद दी कि यीशु की भविष्यसूचक नीति-कथा को कब पूरा होना था?
१४ लेकिन, १९२३ में, एक अधिवेशन भाषण में उस समय वॉच टावर संस्था के अध्यक्ष, जे. एफ. रदरफर्ड ने भेड़ और बकरियों की नीति-कथा की पूर्ति का समय स्पष्ट किया। क्यों? अंशतः, क्योंकि नीति-कथा दिखाती है कि राजा के भाई—कम से कम उनमें से कुछ—उस समय भी पृथ्वी पर होते। मनुष्यों में से केवल आत्मा से जन्मे अनुयायी ही वस्तुतः उसके भाई कहला सकते थे। (इब्रानियों २:१०-१२) ये पूरी सहस्राब्दी के दौरान पृथ्वी पर नहीं होते, जिससे कि लोगों को उनके प्रति यीशु द्वारा वर्णित तरीक़ों से भलाई करने का अवसर मिलता।—प्रकाशितवाक्य २०:६.
१५. (क) यीशु की नीति-कथा की भेड़ों की सही तरह से पहचान करने में कौन-से विकासों ने बाइबल विद्यार्थियों की मदद की? (ख) भेड़ों ने राज्य के प्रति अपने मूल्यांकन का प्रमाण कैसे दिया है?
१५ वर्ष १९२३ में उस भाषण में उन लोगों की पहचान करने का प्रयास किया गया जो भेड़ और बकरियों के प्रभु के विवरण पर ठीक बैठते हैं। लेकिन नीति-कथा का पूर्ण अर्थ स्पष्ट होने से पहले अन्य बातों को भी समझना ज़रूरी था। आगामी वर्षों के दौरान, यहोवा ने क्रमिक रूप से इन महत्त्वपूर्ण विवरणों की ओर अपने सेवकों का ध्यान खींचा। इसमें स्पष्ट रूप से ये बातें समझना सम्मिलित था: १९२७ में यह कि “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” पृथ्वी पर आत्मा-अभिषिक्त मसीहियों का सम्पूर्ण निकाय है; १९३२ में, यहोवा के अभिषिक्त सेवकों के साथ सम्बन्ध रखने के बारे में निडरता से अपनी पहचान कराने की ज़रूरत का भी मूल्यांकन करना, जैसे यहोनादाब ने येहू के साथ किया। (मत्ती २४:४५; २ राजा १०:१५) उस समय, प्रकाशितवाक्य २२:१७ के आधार पर, इन भेड़-समान लोगों को ख़ासकर प्रोत्साहित किया गया कि दूसरों तक राज्य संदेश ले जाने में हिस्सा लें। मसीहाई राज्य के प्रति उनका मूल्यांकन उन्हें प्रभु के अभिषिक्त जनों के प्रति मात्र लोकोपकारी कृपा दिखाने के लिए ही नहीं बल्कि मसीह के द्वारा अपना जीवन यहोवा को समर्पित करने के लिए और उसके अभिषिक्त जनों के साथ निकटता से सम्बन्ध रखने के लिए भी प्रेरित करता। वे उस कार्य में जोश के साथ हिस्सा लेते जो अभिषिक्त जन कर रहे हैं। क्या आप ऐसा कर रहे हैं? वे जो ऐसा करते हैं, उनसे राजा कहेगा: “हे मेरे पिता के धन्य लोगो, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है।” उनके सामने राज्य के पार्थिव क्षेत्र में परिपूर्णता में अनन्त जीवन की महान प्रत्याशा होगी।—मत्ती २५:३४, ४६.
“बड़ी भीड़” —वे कहाँ जा रहे हैं?
१६. (क) प्रकाशितवाक्य ७:९ के बहुसंख्यक लोगों, या बड़ी भीड़ की पहचान के सम्बन्ध में प्रारंभिक बाइबल विद्यार्थियों को कौन-सी ग़लत धारणाएँ थीं? (ख) कब और किस आधार पर उनका दृष्टिकोण सही किया गया?
१६ कुछ समय तक यहोवा के सेवक विश्वास करते थे कि प्रकाशितवाक्य ७:९, १० के बहुसंख्यक लोग (या, बड़ी भीड़) यूहन्ना १०:१६ की अन्य भेड़ों और मत्ती २५:३३ की भेड़ों से भिन्न थे। क्योंकि बाइबल कहती है कि वे ‘सिंहासन के साम्हने खड़े हैं,’ यह सोचा गया था कि वे स्वर्ग में होंगे, लेकिन सिंहासनों पर बैठे, मसीह के साथ सह-वारिसों के रूप में शासन नहीं करेंगे, बल्कि सिंहासन के सामने अप्रधान स्थान पर होंगे। उन्हें कम वफ़ादार मसीही समझा जाता था, ऐसे लोग जिन्होंने सच्चे आत्म-बलिदान की आत्मा नहीं दिखायी। वर्ष १९३५ में वह दृष्टिकोण सही किया गया।b मत्ती २५:३१, ३२ जैसे पाठों के प्रकाश में प्रकाशितवाक्य ७:९ की जाँच से स्पष्ट हो गया कि यहाँ पृथ्वी पर लोग “सिंहासन के साम्हने” हो सकते थे। यह भी बताया गया कि परमेश्वर के पास वफ़ादारी के दो स्तर नहीं हैं। उन सभी को उसके प्रति खराई बनाए रखने की ज़रूरत है जिन्हें उसका अनुमोदन प्राप्त होगा।—मत्ती २२:३७, ३८; लूका १६:१०.
१७, १८. (क) पृथ्वी पर अनन्त जीवन की उत्सुकता से प्रत्याशा करनेवालों की संख्या में १९३५ से बड़ी वृद्धि का कारण क्या था? (ख) बड़ी भीड़ के लोग कौन-से अत्यावश्यक कार्य में जोश के साथ हिस्सा ले रहे हैं?
१७ अनेक वर्षों तक यहोवा के लोगों ने पृथ्वी के सम्बन्ध में परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के बारे में बात की थी। दशक १९२० में उन्होंने जिन घटनाओं की अपेक्षा की थी उसके कारण उन्होंने घोषित किया कि “अभी जीवित लाखों लोग कभी नहीं मरेंगे।” लेकिन उस समय लाखों लोगों ने जीवन के लिए परमेश्वर के प्रबन्धों को स्वीकार नहीं किया था। जिन्होंने सत्य को स्वीकार किया था उनमें से अधिकांश लोगों में पवित्र आत्मा ने स्वर्गीय जीवन की आशा उत्पन्न की थी। लेकिन, ख़ासकर १९३५ के बाद एक उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ। ऐसा नहीं था कि द वॉचटावर ने पृथ्वी पर अनन्त जीवन की आशा को नज़रअंदाज़ किया था। दशकों तक यहोवा के सेवकों ने इसके बारे में बात की थी और उन लोगों को ढूँढा था जो बाइबल के विवरण पर ठीक बैठते हैं। लेकिन, यहोवा के नियत समय पर उसने बातों को इस तरह निर्देशित किया कि बड़ी भीड़ के ये भावी सदस्य प्रकट हुए।
१८ उपलब्ध रिकार्ड दिखाते हैं कि अनेक वर्षों तक स्मारक में उपस्थित होनेवाले अधिकांश लोग प्रतीकों में भाग लेते थे। लेकिन १९३५ के बाद २५ वर्षों में, मसीह की मृत्यु के वार्षिक स्मारक के समय उपस्थिति में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई। यह उनकी संख्या से सौ गुना से भी ज़्यादा हो गयी थी जो उसमें भाग ले रहे थे। ये अन्य लोग कौन थे? बड़ी भीड़ के भावी सदस्य। स्पष्टतया, उन्हें इकट्ठा करने और निकट भविष्य में बड़े क्लेश से बचने के लिए उन्हें तैयार करने का यहोवा का समय आ गया था। जैसे पूर्वबताया गया था, वे “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से” निकलकर आए हैं। (प्रकाशितवाक्य ७:९) वे जोश के साथ उस कार्य में हिस्सा ले रहे हैं जो यीशु ने पूर्वबताया था जब उसने कहा: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।”—मत्ती २४:१४.
[फुटनोट]
a यूहन्ना अध्याय १० की भेड़शालाओं की विस्तृत और दिनाप्त चर्चा के लिए अक्तूबर १, १९८४ की प्रहरीदुर्ग के पृष्ठ १९-२८ और फरवरी १५, १९८४ की द वॉचटावर का पृष्ठ ३१ देखिए।
b द वॉचटावर, अगस्त १ और १५, १९३५.
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▫ प्रकाशितवाक्य अध्याय ७ का दर्शन ख़ास दिलचस्पी का क्यों है?
▫ यूहन्ना १०:१६ की अन्य भेड़ें ग़ैर-यहूदी मसीहियों तक ही सीमित क्यों नहीं हैं?
▫ वे जो अन्य भेड़ों के बारे में बाइबल के विवरण पर ठीक बैठते हैं उनके बारे में क्या सच होना चाहिए?
▫ भेड़ और बकरियों की नीति-कथा राज्य अधिकार के प्रति आदर को कैसे विशिष्ट करती है?
▫ क्या बात दिखाती है कि प्रकाशितवाक्य ७:९ की बड़ी भीड़ को इकट्ठा करने का यहोवा का समय कब आया?