यीशु के चमत्कारों से सबक़
“फिर तीसरे दिन गलील के काना में किसी का ब्याह था . . . यीशु और उसके चेले भी उस ब्याह में नेवते गए थे। जब दाखरस घट गया, तो यीशु की माता ने उस से कहा, कि उन के पास दाखरस नहीं रहा।” इस घटना ने यीशु के प्रथम चमत्कार के लिए परिस्थिति तैयार की।—यूहन्ना २:१-३.
क्या ऐसी समस्या यीशु के ध्यान में लाने के लिए अति महत्त्वहीन, अति तुच्छ नहीं थी? एक बाइबल विद्वान समझाता है: “पूर्व में पहुनाई एक अतिमहत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य था . . . वास्तविक पहुनाई, ख़ासकर एक विवाह दावत में, अतिबहुतायत की माँग करती थी। यदि एक विवाह दावत में खाना-पीना [ख़त्म] हो जाए, तो उस परिवार और युवा दंपति की नेकनामी हमेशा इस शर्मिंदगी से कलंकित हो जाती।”
इसलिए यीशु ने कार्य किया। उसने देखा कि “वहां यहूदियों के शुद्ध करने की रीति के अनुसार पत्थर के छः मटके धरे थे।” भोजन से पूर्व औपचारिक सफ़ाई यहूदियों में एक प्रथा थी और उपस्थित लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफ़ी पानी की ज़रूरत पड़ी थी। “मटकों में पानी भर दो,” अतिथियों की सेवा करनेवालों को यीशु ने आज्ञा दी। यीशु ‘भोज का प्रधान’ नहीं था, लेकिन उसने सीधे और अधिकारपूर्ण रूप से कहा। वृतान्त बताता है: “जब भोज के प्रधान ने वह पानी चखा, [तो वह] . . . दाखरस बन गया था।”—यूहन्ना २:६-९; मरकुस ७:३.
यह अजीब लग सकता है कि एक विवाह जैसी सामान्य परिस्थिति ने यीशु के प्रथम चमत्कार की स्थिति तैयार की, लेकिन वह घटना यीशु के बारे में बहुत कुछ बताती है। वह एक अविवाहित व्यक्ति था, और परवर्ती अवसरों में उसने अपने चेलों के साथ अविवाहित रहने के फ़ायदों के बारे में चर्चा की। (मत्ती १९:१२) लेकिन एक विवाह दावत में उसकी उपस्थिति ने प्रदर्शित किया कि वह विवाह के विरुद्ध बिलकुल नहीं था। वह संतुलित था, विवाह प्रबंध का समर्थक था; उसने उसे परमेश्वर की नज़रों में आदरणीय माना।—इब्रानियों १३:४ से तुलना कीजिए।
यीशु वह उदास वैरागी नहीं था जैसे कि चर्च के चित्रकारों ने बाद में उसका चित्रण किया है। स्पष्टतः उसे लोगों के साथ होना अच्छा लगता था और वह मिलनसारिता के विमुख नहीं था। (लूका ५:२९ से तुलना कीजिए।) अतः उसके कार्यों ने उसके अनुयायियों के लिए एक नमूना पेश किया। यीशु ने व्यक्तिगत तौर पर प्रदर्शित किया कि उन्हें अनावश्यक रूप से गंभीर या उदास नहीं होना था—मानो धार्मिकता का अर्थ आनन्दहीनता हो। इसके विपरीत, मसीहियों को बाद में आज्ञा दी गई थी: “प्रभु में सदा आनन्दित रहो।” (फिलिप्पियों ४:४) आज मसीही मनोरंजन को उचित सीमाओं में रखने का ध्यान रखते हैं। वे परमेश्वर की सेवा में आनन्द पाते हैं, लेकिन यीशु के उदाहरण का अनुकरण करते हुए, वे कभी-कभी मैत्रीपूर्ण वातावरण में एक दूसरे की संगति का आनन्द लेने के लिए भी समय निकाल पाते हैं।
यीशु की भावनाओं की कोमलता को भी देखिए। वह चमत्कार करने के लिए बाध्य नहीं था। इस बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं थी जिसे पूरा होना था। स्पष्टतः यीशु अपनी माँ की चिंता से और उस विवाह करनेवाले दंपति की दशा से प्रभावित था। वह उनकी भावनाओं की परवाह करता था और उन्हें शर्मिंदगी से बचाना चाहता था। क्या यह आपका विश्वास नहीं बढ़ाता है कि मसीह वास्तव में आप में दिलचस्पी रखता है—आपके दैनिक समस्याओं के बारे में भी?—इब्रानियों ४:१४-१६ से तुलना कीजिए।
चूँकि हर मटके में “दो दो, तीन तीन मन” पानी “समाता था,” यीशु के चमत्कार में बड़ी मात्रा में दाखरस शामिल था—शायद ३९० लीटर (१०५ गैलन)! (यूहन्ना २:६) इतनी बड़ी मात्रा की क्या ज़रूरत थी? यीशु पियक्कड़पन को प्रोत्साहित नहीं कर रहा था, एक ऐसी बात जिसकी परमेश्वर निंदा करता है। (इफिसियों ५:१८) इसके बजाय, वह ईश्वरीय उदारता को प्रदर्शित कर रहा था। क्योंकि दाखरस एक आम पेय था, कुछ भी अधिशेष का उपयोग दूसरे अवसरों पर किया जा सकता था।—मत्ती १४:१४-२०; १५:३२-३७ से तुलना कीजिए।
प्रारंभिक मसीहियों ने यीशु की उदारता के उदाहरण का अनुकरण किया। (प्रेरितों ४:३४, ३५ से तुलना कीजिए।) और उसी तरह यहोवा के लोगों को आज प्रोत्साहित किया जाता है कि “दिया करो।” (लूका ६:३८) लेकिन, यीशु के पहले चमत्कार का एक भविष्यसूचक अर्थ भी है। यह भविष्य में उस समय की ओर संकेत करता है जब भूख को पूर्णतः मिटाते हुए परमेश्वर उदारता से “ऐसी जेवनार करेगा जिस में भांति भांति का चिकना भोजन और निथरा हुआ दाखमधु” होगा।—यशायाह २५:६.
लेकिन यीशु द्वारा किए गए उन अनेक चमत्कारों के बारे में क्या जिनमें शारीरिक चंगाई शामिल थी? उनसे हम क्या सीख सकते हैं?
सब्त पर अच्छा कार्य करना
“उठ, अपनी खाट उठाकर चल फिर।” यीशु ने ये शब्द ३८ सालों से बीमार एक आदमी से कहे। सुसमाचार वृतान्त आगे कहता है: “वह मनुष्य तुरन्त चंगा हो गया, और अपनी खाट उठाकर चलने फिरने लगा।” आश्चर्य की बात है कि सभी परिस्थिति के इस परिवर्तन से ख़ुश नहीं थे। वृतान्त बताता है: “यहूदी यीशु को सताने लगे, क्योंकि वह ऐसे ऐसे काम सब्त के दिन करता था।”—यूहन्ना ५:१-९, १६.
सब्त का दिन सब के लिए आराम और आनन्द का दिन होना था। (निर्गमन २०:८-११) लेकिन, यीशु के दिनों तक यह एक अत्याचारी, मानव निर्मित नियमों का चक्रव्यूह बन गया था। विद्वान आलफ्रेड एडरशैम ने लिखा कि तलमूद के लम्बे सब्त-नियम के खंडों में “बातों पर गंभीर विचार किया गया है मानो वे महत्त्वपूर्ण धार्मिक बातें हों, ऐसी बातें जिनपर एक व्यक्ति सोच भी नहीं सकता कि एक बुद्धि संपन्न व्यक्ति गंभीरता से विचार करेगा।” (यीशु मसीहा का जीवन और काल, अंग्रेज़ी) रब्बी ऐसे तुच्छ, स्वेच्छाचारी नियमों को जो अकसर मानव संवेदनाओं की निर्दयता से अवहेलना करते थे, जीवन-मृत्यु का महत्त्व देते थे। ये नियम एक यहूदी के जीवन के क़रीब-क़रीब सभी पहलुओं को नियंत्रित करते थे। एक सब्त नियम में आज्ञा दी गई: “यदि एक भवन एक व्यक्ति पर गिरता है और शक है कि वह वहाँ है या नहीं, या कि वह जीवित है या नहीं, या कि वह अन्यजातीय है या यहूदी, तो वे मलबे को उसके ऊपर से हटा सकते हैं। यदि वे उसको जीवित पाते हैं तो वे और ज़्यादा मलबे को उसके ऊपर से हटाएँगे; लेकिन यदि [वह] मरा हुआ है तो उसे छोड देंगे।”—हरबर्ट डानबी द्वारा परिभाषित ट्राक्टेइट योमा ८:७, मिश्नाह, (अंग्रेज़ी)।
यीशु ने ऐसी तुच्छ बातों पर विधिवाद को किस दृष्टि से देखा? सब्त के दिन चंगाई करने के लिए आलोचना किए जाने पर उसने कहा: “मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूं।” (यूहन्ना ५:१७) यीशु कोई वैतनिक नौकरी नहीं कर रहा था ताकि अपने आप को धनी बनाए। इसके बजाय, वह परमेश्वर की इच्छा कर रहा था। जैसे लैवियों को सब्त के दिन अपनी पवित्र सेवा जारी रखने की अनुमति दी गई थी, वैसे ही यीशु न्यायसंगत रूप से मसीहा के तौर पर अपने परमेश्वर-नियुक्त कर्त्तव्यों को परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन किए बिना कर सकता था।—मत्ती १२:५.
यीशु के सब्त-दिन चंगाईयों ने यहूदी शास्त्रियों और फरीसियों के “अत्यधिक धर्मी” होने का पर्दाफ़ाश किया—अपने विचारों में अनम्य और असंतुलित। (सभोपदेशक ७:१६, NHT) निश्चित ही, यह परमेश्वर की इच्छा नहीं थी कि अच्छे कार्य सप्ताह के केवल कुछ ही दिनों तक सीमित रहें; न ही परमेश्वर का इरादा था कि सब्त एक खोखला नियमों का पालन हो। यीशु ने मरकुस २:२७ में कहा: “सब्त का दिन मनुष्य के लिये बनाया गया है, न कि मनुष्य सब्त के दिन के लिये।” यीशु लोगों से, न कि स्वेच्छाचारी नियमों से, प्रेम करता था।
अतः, आज मसीहियों के लिए अच्छा होगा कि वे अपने विचारों में ज़रूरत से ज़्यादा सख़्त या नियमों के प्रति प्रवृत्त न हों। कलीसिया में जो अधिकार में हैं उन्हें अत्यधिक मानव-निर्मित नियमों और विधियों का भार दूसरों पर डालने से दूर रहना चाहिए। यीशु का उदाहरण हमें अच्छा कार्य करने के अवसरों को ढूँढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित करता है। उदाहरण के लिए, एक मसीही कभी यह नहीं सोचेगा कि वह बाइबल सच्चाईयों को केवल तभी बाँटेगा जब वह औपचारिक रूप से घर-घर की सेवकाई में लगा हुआ है या जब वह भाषण दे रहा है। प्रेरित पतरस कहता है कि एक मसीही को ‘जो कोई उस से उसकी आशा के विषय में कुछ पूछे, उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहना’ चाहिए। (१ पतरस ३:१५, तिरछे टाइप हमारे।) अच्छे कार्य करने में समय की कोई पाबंदी नहीं है।
करुणा में एक सबक़
एक और उल्लेखनीय चमत्कार लूका ७:११-१७ में लिपिबद्ध है। वृतान्त के अनुसार, यीशु “नाईन नाम के एक नगर को गया, और उसके चेले, और बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी।” आज भी आधुनिक अरबी गाँव नेईन के दक्षिण-पूर्व में दफ़न स्थल देखे जा सकते हैं। “जब वह नगर के फाटक के पास पहुंचा,” तो उसने एक कोलाहल भरा दृष्य देखा। “देखो, लोग एक मुरदे को बाहर लिए जा रहे थे; जो अपनी मां का एकलौता पुत्र था, और वह विधवा थी: और नगर के बहुत से लोग उसके साथ थे।” एच. बी. ट्रिस्ट्रॉम नोट करता है कि प्राचीन समयों से “दफ़न का तरीक़ा बदला नहीं है।” वह आगे यह कहता है: “मैं ने औरतों को अर्थी के आगे चलते हुए देखा है, जिनके आगे पेशेवर मातमी स्त्रियाँ चलती हैं। शोक के सबसे अनियंत्रित हाव-भाव से वे अपने हाथ ऊपर उठाती हैं, बाल खींचती हैं, और मृत व्यक्ति का नाम ले-लेकर पुकारती हैं।”—बाइबल देशों में पूर्वी रिवाज़ें, (अंग्रेज़ी)।
ऐसे कोलाहल भरे शोरगुल के बीच एक दुःखित विधवा चल रही है जिसका दर्शन साक्षात् दुःख का दर्शन था। अपने पति को वह पहले ही खो चुकी थी, और लेखक हरबर्ट लॉक्यर के अनुसार, वह अपने बेटे को “अपने बुढ़ापे का सहारा, अपने अकेलेपन का सांत्वना—घर का सहारा और आधार” मानती थी। “अपने एकलौते बेटे को खोने से उसका आख़री बचा हुआ सहारा भी खो गया था।” (बाइबल के सब चमत्कार, अंग्रेज़ी) यीशु की प्रतिक्रिया? लूका के भावपूर्ण शब्दों में “उसे देख कर प्रभु को तरस आया, और उस से कहा; मत रो।” यह अभिव्यक्ति “तरस आया” एक यूनानी शब्द से ली गयी है जिसका शाब्दिक अर्थ है “अन्तड़ियाँ।” इसका अर्थ है “भावात्मक तौर पर अत्यधिक उत्तेजित होना।” (वाइन्स् एक्सपोसिट्री डिक्शनरी ऑफ ओल्ड एन्ड न्यू टेस्टमेंट् वर्डस्, अंग्रेज़ी) हाँ, यीशु की गहरी भावनाएँ अत्यधिक उत्तेजित हो गई थीं।
यीशु की अपनी माँ उस समय शायद एक विधवा थी, इसलिए वह संभवतः अपने दत्तकी पिता, यूसुफ को खोने का दर्द अच्छी तरह जानता था। (यूहन्ना १९:२५-२७ से तुलना कीजिए।) उस विधवा को यीशु से याचना नहीं करनी पड़ी। स्वेच्छा से “उस ने पास आकर अर्थी को छूआ,” इस तथ्य के बावजूद कि मूसा की व्यवस्था के अनुसार एक शव को छूना एक व्यक्ति को अशुद्ध बना देता था। (गिनती १९:११) अपनी चमत्कारिक शक्तियों द्वारा यीशु अशुद्धता के कारण को निकाल सकता था! “उस ने कहा; हे जवान, मैं तुझ से कहता हूं, उठ। तब वह मुरदा उठ बैठा, और बोलने लगा: और उस ने उसे उस की मां को सौंप दिया।”
कोमलता का क्या ही अच्छा सबक़! मसीहियों को इन “अन्तिम दिनों” में प्रकट प्रेमरहित, निर्दयी मनोवृत्तियों का अनुकरण नहीं करना है। (२ तीमुथियुस ३:१-५) इसके विपरीत, १ पतरस ३:८ प्रबोधित करता है: “निदान, सब के सब एक मन और कृपामय और भाईचारे की प्रीति रखनेवाले, और करुणामय . . . बनो।” जब हमारी जान-पहचान का एक व्यक्ति किसी की मृत्यु या एक गंभीर बीमारी का अनुभव करता है, तब हम पुनरुत्थान नहीं कर सकते, या बीमार व्यक्ति को चंगा नहीं कर सकते। लेकिन शायद केवल वहाँ उपस्थित होने के द्वारा और उनके साथ रोने के द्वारा हम व्यावहारिक मदद और सांत्वना प्रदान कर सकते हैं।—रोमियों १२:१५.
यीशु द्वारा किया गया यह उल्लेखनीय पुनरुत्थान भविष्य की ओर भी संकेत करता है—एक समय जब “जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे।” (यूहन्ना ५:२८, २९) संसार भर में, शोकित लोग व्यक्तिगत तौर पर यीशु की करुणा का अनुभव करेंगे जब गुज़रे माता, पिता, बच्चे, और मित्र कब्र से लौटेंगे!
चमत्कारों के सबक़
तो फिर, स्पष्टतः यीशु के चमत्कार शक्ति के रोमांचक प्रदर्शनों से कहीं अधिक थे। उन्होंने परमेश्वर की बड़ाई की और इस प्रकार मसीहियों के लिए एक नमूना छोड़ा जिनसे “परमेश्वर की बड़ाई” करने का आग्रह किया गया है। (रोमियों १५:६) उन्होंने अच्छे कार्यों को करने, उदारता दिखाने, और करुणा प्रदर्शित करने का प्रोत्साहन दिया। उससे भी महत्त्वपूर्ण, ये मसीह के सहस्राब्दिक शासन के दौरान किए जानेवाले सामर्थ के कामों के पूर्वदर्शन थे।
पृथ्वी पर रहते वक़्त, यीशु ने अपने सामर्थ के काम तुलनात्मक रूप से छोटे भौगोलिक क्षेत्र में किया। (मत्ती १५:२४) महिमान्वित राजा के तौर पर उसका अधिकार-क्षेत्र संसार के कोनों तक विस्तृत होगा! (भजन ७२:८) जब यीशु पृथ्वी पर था, तब जिन्होंने उसकी चमत्कारिक चंगाई और पुनरुत्थान प्राप्त किए, वे अंततः मर गए। उसके स्वर्गीय शासन के अधीन, पाप और मृत्यु पूर्ण रूप से हटा दिए जाएँगे, जिससे अनन्त जीवन का रास्ता खुल जाएगा। (रोमियों ६:२३; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) जी हाँ, यीशु के चमत्कार एक महिमान्वित भविष्य के आने की सूचना देते हैं। यहोवा के गवाहों ने लाखों लोगों को इसका भाग बनने की वास्तविक आशा विकसित करने में मदद दी है। जब तक वह समय न आए, यीशु मसीह के चमत्कारों ने जल्द ही होनेवाली बातों का क्या ही अद्भुत पूर्वानुभव प्रदान किया है!
[पेज 7 पर तसवीरें]
यीशु पानी को दाखरस में बदलता है