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  • ‘बहुत-सा फल लाते रहिए’
  • हमारी राज-सेवा—2007
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हमारी राज-सेवा—2007
km 6/07 पेज 1

‘बहुत-सा फल लाते रहिए’

यीशु ने लाक्षणिक भाषा का इस्तेमाल करते हुए, खुद को सच्ची दाखलता, अपने पिता को किसान और आत्मा से अभिषिक्‍त अपने चेलों को दाखलता की फलती हुई डालियाँ बताया। किसान यानी अपने पिता के कामों का ज़िक्र करते हुए, यीशु ने इस बात पर ज़ोर दिया कि डाली का दाखलता से मज़बूती से जुड़े रहना निहायत ज़रूरी है। (यूह. 15:1-4) इससे हमें यह सबक मिलता है कि जिस किसी का यहोवा के साथ करीबी रिश्‍ता है, उसे यीशु यानी “सच्ची दाखलता” की फलती हुई डाली की तरह बनने की ज़रूरत है। इसलिए हमें ‘आत्मा के फल’ और राज्य के फल, बहुतायत में लाते रहना चाहिए।—गल. 5:22, 23; मत्ती 24:14; 28:19, 20.

2 आत्मा के फल: हमारी आध्यात्मिक तरक्की काफी हद तक इस बात से आँकी जा सकती है कि हम कितनी अच्छी तरह से आत्मा के फल दिखाते हैं। क्या आप परमेश्‍वर के वचन का लगातार अध्ययन और उससे सीखी बातों पर मनन करने के ज़रिए, आत्मा के फल बढ़ाने में मेहनत करते हैं? (फिलि. 1:9-11) परमेश्‍वर से पवित्र आत्मा के लिए प्रार्थना करने से कभी मत झिझकिए। क्योंकि यह आत्मा आपमें ऐसे गुण पैदा कर सकती है, जिनसे यहोवा की महिमा होती है और जो आपको आध्यात्मिक तरक्की करते रहने में मदद दे सकते हैं।—लूका 11:13; यूह. 13:35.

3 इसके अलावा, आत्मा के फल बढ़ाने से हम और भी ज़्यादा जोशीले सेवक बन सकते हैं। मिसाल के लिए, प्यार और विश्‍वास के गुण, हमें ज़िंदगी की भाग-दौड़ से वक्‍त निकालकर लगातार प्रचार में जाने के लिए उभारते हैं। मेल या शांति, धीरज, कृपा, नम्रता और संयम जैसे गुण हमें अपने विरोधी के साथ सही तरह से पेश आने में मदद करते हैं। और आनंद के साथ प्रचार करने से हमें उस वक्‍त भी संतोष मिलता है, जब लोग हमारी बात सुनने से इनकार कर देते हैं।

4 राज्य के फल: हम राज्य के फल भी लाना चाहते हैं। ये फल लाने में “स्तुतिरूपी बलिदान” चढ़ाना शामिल है, यानी “उन होठों का फल जो [यहोवा] के नाम का अंगीकार करते हैं।” (इब्रा. 13:15) ऐसा हम जोश के साथ, लगातार सुसमाचार सुनाने के ज़रिए करते हैं। क्या आप प्रचार में अपने हुनर को निखारने के ज़रिए, राज्य के और भी ज़्यादा फल लाने की कोशिश कर रहे हैं?

5 यीशु ने ज़ाहिर किया था कि उसके चेले अलग-अलग मात्रा में फल लाएँगे। (मत्ती 13:23) इसलिए हमें खुद की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, हमें यहोवा को अपना सर्वोत्तम देना चाहिए। (गल. 6:4) परमेश्‍वर के वचन की मदद से हमें अपने हालात की ईमानदारी से जाँच करनी चाहिए। ऐसा करने से, हमें ‘बहुत सा फल लाने’ और लगातार यहोवा की महिमा करने में मदद मिलेगी।—यूह. 15:8.

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