बाइबल का दृष्टिकोण
“संसार का कोई भाग नहीं”—इसका क्या अर्थ है?
सामान्य युग चौथी शताब्दी में, मसीही होने का दावा करनेवाले हज़ारों लोगों ने मिस्र के रेगिस्तानों में एकांत में जीने के लिए अपनी संपत्ति, नाते-रिश्तेदार और जीवन-शैली पीछे छोड़ दी। वे यूनानी शब्द एनाखोरिओ, जिसका अर्थ है “मैं अलग होता हूँ,” से लिए गए एन्कराइट नाम से जाने जाने लगे। एक इतिहासकार इनका वर्णन यूँ करता है, वे अपने समकालीन लोगों से अपने आपको दूर रखते थे। एन्कराइटों ने सोचा कि मानव समाज से अलग हो जाने से, वे “संसार का कोई भाग नहीं” होने की मसीही माँग का आज्ञापालन कर रहे थे।—यूहन्ना १५:१९.
बाइबल मसीहियों को “संसार से निष्कलंक” रहने की सलाह ज़रूर देती है। (याकूब १:२७) शास्त्र साफ़-साफ़ आगाह करता है: “हे व्यभिचारिणियो, क्या तुम नहीं जानतीं, कि संसार से मित्रता करनी परमेश्वर से बैर करना है? सो जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आप को परमेश्वर का बैरी बनाता है।” (याकूब ४:४) लेकिन क्या इसका अर्थ है कि मसीहियों से एन्कराइट बनने की, आक्षरिक अर्थ में दूसरों से अलग हो जाने की अपेक्षा की जाती है? क्या उन्हें उन सभी लोगों से दूर रहना चाहिए जो उनके धार्मिक विश्वासों का समर्थन नहीं करते?
मसीही समाज-विरोधी नहीं हैं
संसार का कोई भाग न होने की धारणा की चर्चा अनेक बाइबल वृत्तांतों में की गयी है जो मसीहियों को, परमेश्वर से विरक्त मानव समाज के समूह से अपने आपको अलग रखने की ज़रूरत को विशिष्ट करते हैं। (२ कुरिन्थियों ६:१४-१७; इफिसियों ४:१८; या २ पतरस २:२० से तुलना कीजिए।) अतः, सच्चे मसीही बुद्धिमत्तापूर्वक ऐसी मनोवृत्तियों, बोलचाल, व आचरण से दूर रहते हैं जो यहोवा के धर्मी तरीक़ों के ख़िलाफ़ हैं, जैसे कि संसार का दौलत, कुरसी का लालची रूप से पीछा करना, व सुख-विलास में अत्यधिक लिप्त होना। (१ यूहन्ना २:१५-१७) वे युद्ध व राजनैतिक मामलों में तटस्थ रहने के द्वारा भी संसार से अलग रहते हैं।
यीशु मसीह ने कहा कि उसके चेले “संसार का कोई भाग नहीं” होंगे। लेकिन उसने परमेश्वर से प्रार्थना भी की: “मैं यह बिनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख।” (यूहन्ना १७:१४-१६) स्पष्ट है, यीशु नहीं चाहता था कि उसके चेले समाज-विरोधी बनकर ग़ैर-मसीहियों से सारा नाता तोड़ दें। दरअसल, एकाकीपन “लोगों के साम्हने और घर घर” प्रचार करने व सिखाने की अपनी नियुक्ति को पूरा करने में एक मसीही के आड़े आएगा।—प्रेरितों २०:२०; मत्ती ५:१६; १ कुरिन्थियों ५:९, १०.
संसार से निष्कलंक बने रहने की सलाह, मसीहियों को दूसरे से अपने आपको श्रेष्ठ समझने के लिए कोई आधार नहीं देती। जो यहोवा का भय खाते हैं, वे “घमण्ड” से घृणा करते हैं। (नीतिवचन ८:१३) गलतियों ६:३ कहता है कि “यदि कोई कुछ न होने पर भी अपने आप को कुछ समझता है, तो अपने आप को धोखा देता है।” जो अपने आपको श्रेष्ठ समझते हैं, वे अपने आपको धोखा देते हैं क्योंकि “सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।”—रोमियों ३:२३.
“किसी को बदनाम न करें”
यीशु के समय में ऐसे लोग थे जो उन सभी की उपेक्षा करते थे जो उनके ख़ास धार्मिक समूह का भाग नहीं थे। इनमें फरीसी शामिल थे। वे मूसा की व्यवस्था, साथ ही यहूदी परंपराओं की बारीकियों से भली-भाँति परिचित थे। (मत्ती १५:१, २; २३:२) अनेक धार्मिक रिवाज़ों का ध्यानपूर्वक पालन करने में उनको गर्व होता था। फरीसी ऐसे व्यवहार करते थे मानो वे दूसरों से श्रेष्ठ हों। कारण बस उनकी बौद्धिक उपलब्धियाँ व धार्मिक ओहदा था। उन्होंने यह कहकर अपनी पाखंडी व तिरस्कारपूर्ण मनोवृत्ति को व्यक्त किया: “ये लोग जो व्यवस्था नहीं जानते, स्रापित हैं।”—यूहन्ना ७:४९.
फरीसियों के पास ग़ैर-फरीसियों के लिए एक अवमानित करनेवाला पद भी था। इब्रानी पद एमहाएरेट्स का प्रयोग मूलतः समाज के साधारण सदस्यों को पुकारने के लिए एक सकारात्मक तरीक़े से किया जाता था। लेकिन समय के गुज़रते, यहूदा के अहंकारी धार्मिक अगुवों ने एमहाएरेट्स का अर्थ बदलकर इसे तुच्छता का अर्थ दे दिया। दूसरे समूहों ने, जिनमें मसीही होने का दावा करनेवाले लोग शामिल हैं, अपने से भिन्न धार्मिक विश्वास रखनेवाले लोगों को पुकारने के लिए, अनेक पदनामवाले शब्दों को अपमानजनक तरीक़े से इस्तेमाल किया।
लेकिन, प्रथम-शताब्दी मसीहियों ने उन लोगों को किस दृष्टिकोण से देखा जिन्होंने मसीहियत को स्वीकार नहीं किया था? यीशु के चेलों को सलाह दी गयी थी कि वे अविश्वासियों के साथ “नम्रता” व “गहरे आदर” से पेश आएँ। (२ तीमुथियुस २:२५; १ पतरस ३:१५, NW) प्रेरित पौलुस ने इस संबंध में एक अच्छा उदाहरण रखा। वह अहंकारी न होकर ऐसा था कि लोग उसके पास बेझिझक आ सकते थे। अपने आपको दूसरों से श्रेष्ठ समझने के बजाय, वह नम्र व प्रोत्साहक था। (१ कुरिन्थियों ९:२२, २३) तीतुस को लिखी अपनी ईश्वर-प्रेरित पत्री में, पौलुस ‘किसी को बदनाम न करने, झगड़ालू न होने, पर कोमल स्वभाव के होने, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहने’ की सलाह देता है।—तीतुस ३:२.
बाइबल में पद “अविश्वासी” को कभी-कभी ग़ैर-मसीहियों के बारे में बताने के लिए प्रयोग किया गया है। लेकिन, कोई सबूत नहीं है कि शब्द “अविश्वासी” को किसी आधिकारिक पदनाम या उपाधि के तौर पर प्रयोग किया गया था। यक़ीनन, इसे ग़ैर-मसीहियों को तुच्छ जानने या उन्हें अवमानित करने के लिए प्रयोग नहीं किया गया था, क्योंकि यह बाइबल सिद्धांतों के ख़िलाफ़ होता। (नीतिवचन २४:९) आज यहोवा के साक्षी अविश्वासियों के प्रति कठोर या घमंडी होने से दूर रहते हैं। वे ग़ैर-साक्षी रिश्तेदारों या पड़ोसियों को अपमानजनक नाम देना अशिष्ट समझते हैं। वे बाइबल सलाह को मानते हैं, जो कहती है: “प्रभु [का] दास . . . सब के साथ कोमल . . . हो।”—२ तीमुथियुस २:२४.
“सब के साथ भलाई करें”
संसार के साथ घनिष्ठता रखने के ख़तरों को पहचानना अनिवार्य है, ख़ासकर ऐसे जनों के साथ घनिष्ठता जो ईश्वरीय स्तरों के लिए घोर अनादर दिखाते हैं। (१ कुरिन्थियों १५:३३ से तुलना कीजिए।) फिर भी, बाइबल जब ‘सब के साथ भलाई करने’ की सलाह देती है, तब “सब” शब्द में वे सभी शामिल हैं जो मसीही विश्वासों को नहीं मानते। (गलतियों ६:१०) स्पष्टतया, कुछ-कुछ हालात में प्रथम-शताब्दी मसीही अविश्वासियों के साथ भोजन में सहभागी हुए थे। (१ कुरिन्थियों १०:२७) अतः, आज अविश्वासियों के साथ मसीही एक संतुलित तरीक़े से पेश आते हैं और उन्हें अपना पड़ोसी समझते हैं।—मत्ती २२:३९.
यह मान लेना ग़लत होगा कि एक व्यक्ति बस इसलिए अशिष्ट या अनैतिक है क्योंकि वह बाइबल सच्चाइयों से वाक़िफ़ नहीं है। हालात व लोग भिन्न होते हैं। अतः, हरेक मसीही को फ़ैसला करना चाहिए कि वह किस हद तक अविश्वासियों के साथ अपना संपर्क बनाए रखेगा। लेकिन, एक मसीही के लिए अपने आपको एन्कराइटों की तरह शारीरिक रूप से अलग रखना या फरीसियों की तरह श्रेष्ठ समझना अनावश्यक व अशास्त्रीय होगा।