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  • समय और काल यहोवा के हाथों में हैं

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  • समय और काल यहोवा के हाथों में हैं
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
w98 9/15 पेज 10-15

समय और काल यहोवा के हाथों में हैं

“उस ने उन से कहा; उन समयों या कालों को जानना, जिन को पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं।”—प्रेरितों १:७.

१. समय के बारे में यीशु ने प्रेरितों के सवालों का जवाब कैसे दिया?

ईसाईजगत और दुनिया भर के लोग “उन सब घृणित कामों के कारण जो उस में किए जाते हैं, सांसें भरते और दुःख के मारे चिल्लाते हैं।” (यहेजकेल ९:४) ऐसे लोग हमेशा सोचते हैं कि यह बुरी रीति-व्यवस्था कब खत्म होगी, और उसकी जगह परमेश्‍वर का धार्मिक नया संसार कब आएगा? (२ पतरस ३:१३) यीशु की मौत से कुछ ही समय पहले और उसके पुनरुत्थान के बाद प्रेरितों ने उससे समय के बारे में सवाल पूछे। (मत्ती २४:३; प्रेरितों १:६) मगर, इनके जवाब में यीशु ने उन्हें यह नहीं बताया कि तारीखों का हिसाब कैसे लगाएँ। एक किस्से में उसने उन्हें एक ऐसा चिन्ह दिया जिसके कई पहलू थे, और दूसरे किस्से में उसने कहा कि ‘उन समयों या कालों को जानना, जिन को पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, उनका काम नहीं है।’—प्रेरितों १:७.

२. यह क्यों कहा जा सकता है कि यीशु अंतिम दिनों में होनेवाली घटनाओं के लिए अपने पिता द्वारा ठहराए हुए समय को हर वक्‍त नहीं जानता था?

२ हालाँकि यीशु यहोवा का एकलौता बेटा है, मगर अपने पिता के ठहराए हुए समय की जानकारी उसे हर वक्‍त नहीं थी। अंतिम दिनों के बारे में अपनी भविष्यवाणी में, यीशु ने नम्रता के साथ कबूल किया: “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता; न स्वर्ग के दूत, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता।” (मत्ती २४:३६) यीशु तब तक सब्र करने के लिए तैयार था जब तक कि उसका पिता खुद उसे इस रीति-व्यवस्था के नाश का सही-सही समय न बताए।a

३. परमेश्‍वर के उद्देश्‍य के बारे में यीशु के जवाबों से हम क्या सीख सकते हैं?

३ परमेश्‍वर के उद्देश्‍य की पूर्ति में कौन-सी घटनाएँ कब होंगी, उनसे संबंधित सवालों का जिस तरह यीशु ने जवाब दिया, उससे दो नतीजों पर पहुँचा जा सकता है। पहला, कि यहोवा ने हर बात के लिए समय ठहराया है; और दूसरा, कि वह उसे अकेले ही तय करता है। उसके सेवक इसकी उम्मीद नहीं कर सकते कि यहोवा उन्हें अपने समयों और कालों की सही-सही जानकारी पहले से दे।

यहोवा के समय और काल

४. प्रेरितों १:७ में “समयों” और “कालों” अनुवादित यूनानी शब्दों का मतलब क्या है?

४ “समयों” और “कालों” का मतलब क्या है? प्रेरितों १:७ में लिखीं यीशु की बातों में समय के दो पहलू हैं। ‘समय’ अनुवादित यूनानी शब्द का मतलब है “समयावधि,” या अरसा (लंबा या छोटा)। ‘काल’ उस शब्द का अनुवाद है जिसका मतलब है निर्धारित या ठहराया गया समय, कोई खास युग, या ज़माना, जिसकी अपनी कोई खासियत होती है। इन दोनों मूल शब्दों के बारे में, डब्ल्यू. ई. वाईन कहता है: “प्रेरितों १:७ में बताया है कि ‘पिता ने’ ‘समयों’ (क्रोनॉस) या समयावधियों, और ‘कालों’ (काइरॉस) या कुछ खास घटनाओंवाले युगों को ‘अपने अधिकार में रखा है।’”

५. यहोवा ने नूह को उस बिगड़ी हुई दुनिया का सफाया करने का अपना उद्देश्‍य कब बताया, और नूह ने कौन-सा दोहरा काम किया?

५ जलप्रलय से पहले के संसार के लिए परमेश्‍वर ने १२० साल ठहराए थे। इसी संसार को इंसानों ने और मनुष्य का रूप धारण करनेवाले विद्रोही स्वर्गदूतों ने खुद बिगाड़ा था। (उत्पत्ति ६:१-३) परमेश्‍वर के साथ चलनेवाला नूह उस समय ४८० साल का था। (उत्पत्ति ७:६) उसके कोई बच्चा नहीं था और अगले २० साल तक उसे बच्चे नहीं हुए। (उत्पत्ति ५:३२) मगर काफी समय बीतने के बाद, जब नूह के बेटे बड़े हो गए और उन्होंने शादी कर ली, तब जाकर परमेश्‍वर ने नूह को इस दुनिया में से बुराई का सफाया करने का अपना उद्देश्‍य बताया। (उत्पत्ति ६:९-१३, १८) हालाँकि यहोवा ने नूह को जहाज़ बनाने और लोगों को प्रचार करने का दोहरा काम दिया था, फिर भी उसने नूह को अपना ठहराया हुआ समय नहीं बताया।—उत्पत्ति ६:१४; २ पतरस २:५.

६. (क) नूह ने कैसे दिखाया कि उसने तारीख को यहोवा पर छोड़ दिया था? (ख) हम नूह की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

६ कई सालों तक—शायद पचास साल तक—“परमेश्‍वर की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।” कोई पक्की तारीख जाने बिना “विश्‍वास ही से” नूह ने ऐसा किया। (उत्पत्ति ६:२२; इब्रानियों ११:७) यहोवा ने उसे एक हफ्ते पहले तक जलप्रलय शुरू होने का सही-सही समय नहीं बताया। (उत्पत्ति ७:१-५) नूह ने यहोवा पर पूरा यकीन और विश्‍वास रखा, जिसकी वज़ह से उसने तारीख को परमेश्‍वर पर छोड़ दिया। नूह कितना एहसानमंद रहा होगा जब उसने जलप्रलय के दौरान यहोवा की सुरक्षा को महसूस किया और बाद में जहाज़ से बाहर एक साफ-सुथरी दुनिया में कदम रखा! छुटकारे की ऐसी ही आशा के साथ, क्या हमें भी परमेश्‍वर पर उसी तरह का विश्‍वास नहीं रखना चाहिए?

७, ८. (क) जातियों और विश्‍व-शक्‍तियों का उदय कैसे हुआ? (ख) किस तरह यहोवा ने ‘मनुष्यों के समय को ठहराया, और उनके निवास के सिवानों को बान्धा है’?

७ जलप्रलय के बाद, नूह के ज़्यादातर वंशजों ने यहोवा की सच्ची उपासना को छोड़ दिया। एक ही जगह में रहने के उद्देश्‍य को मन में रखकर वे लोग एक नगर और झूठी उपासना के लिए गुम्मट बनाने लगे। यहोवा ने तय किया कि अब कुछ करने का वक्‍त आ गया है। सो उसने उनकी भाषा में गड़बड़ी पैदा कर दी और “उनको, [बाबेल] से सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया।” (उत्पत्ति ११:४, ८, ९) बाद में, कुछ खास भाषा बोलनेवाले लोग बढ़कर जातियाँ बन गए। इनमें से कुछ जातियाँ दूसरी जातियों को हराकर क्षेत्रीय शक्‍तियाँ बन गयीं, यहाँ तक कि विश्‍व-शक्‍तियाँ बन गयीं।—उत्पत्ति १०:३२.

८ अपने उद्देश्‍य को पूरा करने के लिए कभी-कभी परमेश्‍वर ने भी राष्ट्रीय सीमाएँ तय कीं और यह भी निर्धारित किया कि किस समय कौन-सी जाति एक क्षेत्र पर या पूरी दुनिया पर राज्य करेगी। (उत्पत्ति १५:१३, १४, १८-२१; निर्गमन २३:३१; व्यवस्थाविवरण २:१७-२२; दानिय्येल ८:५-७, २०, २१) प्रेरित पौलुस ने यहोवा के समयों और कालों के इसी पहलू का ज़िक्र किया जब उसने अथेने के यूनानी बुद्धिजीवियों से कहा: “जिस परमेश्‍वर ने पृथ्वी और उस की सब वस्तुओं को बनाया, . . . उस ने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं; और उन के ठहराए हुए समय, और [मनुष्यों के] निवास के सिवानों को . . . बान्धा है।”—प्रेरितों १७:२४, २६.

९. कैसे यहोवा ने राजाओं के ‘समयों और युगों को बदला’ है?

९ इसका मतलब यह नहीं निकलता कि यहोवा ही जातियों के बीच होनेवाले सभी राजनैतिक झगड़ों और बदलावों के लिए ज़िम्मेदार है। फिर भी, वह जब चाहे तब अपने उद्देश्‍य को पूरा करने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है। इसीलिए भविष्यवक्‍ता दानिय्येल ने, जो बाबुल की विश्‍व-शक्‍ति के पतन को और उसकी जगह मादी-फारस राज्य को आते देखनेवाला था, यहोवा के बारे में कहा: “समयों और युगों [या कालों] को वही बदलता है, वही राजाओं को हटाता और स्थापित करता है और बुद्धिमानों को बुद्धि और ज्ञानवानों को ज्ञान प्रदान करता है।”—दानिय्येल २:२१, NHT; यशायाह ४४:२४-४५:७.

“समय निकट आया”

१०, ११. (क) यहोवा ने कितने समय पहले ही वह समय ठहरा रखा था जब वह इब्राहीम के वंशजों को मिस्र की गुलामी से छुड़ाता? (ख) कौन-सी बात दिखाती है कि इस्राएलियों को यह सही-सही नहीं मालूम था कि वे कब छुड़ाए जाएँगे?

१० लगभग चार सौ साल पहले से ही यहोवा ने वह साल ठहरा रखा था जब वह विश्‍व-शक्‍ति मिस्र के राजा को गिराकर इब्राहीम के वंशजों को गुलामी से छुड़ानेवाला था। इब्राहीम को अपना उद्देश्‍य बताकर परमेश्‍वर ने वादा किया: “यह निश्‍चय जान कि तेरे वंश पराए देश में परदेशी होकर रहेंगे, और उस देश के लोगों के दास हो जाएंगे; और वे उनको चार सौ वर्ष . . . दुःख देंगे; फिर जिस देश के वे दास होंगे उसको मैं दण्ड दूंगा: और उसके पश्‍चात्‌ वे बड़ा धन वहां से लेकर निकल आएंगे।” (उत्पत्ति १५:१३, १४) महासभा के सामने इस्राएल के इतिहास का निचोड़ देते हुए, स्तिफनुस ने इस ४०० साल की अवधि का ज़िक्र किया और कहा: “जब उस प्रतिज्ञा के पूरे होने का समय निकट आया, जो परमेश्‍वर ने इब्राहीम से की थी, तो मिसर में वे लोग बढ़ गए; और बहुत हो गए। जब तक कि मिसर में दूसरा राजा न हुआ जो यूसुफ को नहीं जानता था।”—प्रेरितों ७:६, १७, १८.

११ इस नए फिरौन ने इस्राएलियों को गुलाम बना दिया। मूसा ने उत्पत्ति की पुस्तक को अभी तक नहीं लिखा था, हालाँकि इसकी गुंजाइश है कि इब्राहीम से किए यहोवा के वादों के बारे में मूसा को मुँहज़बानी या लिखित रूप से बताया गया था। फिर भी, ऐसा लगता है कि इस्राएलियों के पास जो जानकारी थी, उससे वे गुलामी से अपने छुटकारे की पक्की तारीख का हिसाब नहीं लगा पाए। परमेश्‍वर जानता था कि वह उन्हें कब छुड़ाएगा, मगर ऐसा नज़र आता है कि दुःख उठानेवाले इस्राएलियों को इसकी जानकारी नहीं दी गयी। यूँ लिखा है: “बहुत दिनों के बीतने पर मिस्र का राजा मर गया। और इस्राएली कठिन सेवा के कारण लम्बी लम्बी सांस लेकर आहें भरने लगे, और पुकार उठे, और उनकी दोहाई जो कठिन सेवा के कारण हुई वह परमेश्‍वर तक पहुंची। और परमेश्‍वर ने उनका कराहना सुनकर अपनी वाचा को, जो उस ने इब्राहीम, और इसहाक, और याक़ूब के साथ बान्धी थी, स्मरण किया। और परमेश्‍वर ने इस्राएलियों पर दृष्टि करके उन पर चित्त लगाया।”—निर्गमन २:२३-२५.

१२. स्तिफनुस ने कैसे दिखाया कि मूसा यहोवा के ठहराए गए समय से पहले काम करने की कोशिश कर रहा था?

१२ स्तिफनुस की बातों से भी देखा जा सकता है कि इस्राएलियों को अपने छुटकारे का सही-सही समय मालूम नहीं था। मूसा के बारे में बताते हुए, उसने कहा: “जब वह चालीस वर्ष का हुआ, तो उसके मन में आया कि मैं अपने इस्राएली भाइयों से भेंट करूं। और उस ने एक व्यक्‍ति पर अन्याय होते देखकर, उसे बचाया, और मिसरी को मारकर सताए हुए का पलटा लिया। उस ने सोचा, कि मेरे भाई समझेंगे कि परमेश्‍वर मेरे हाथों से उन का उद्धार करेगा, परन्तु उन्हों ने न समझा।” (तिरछे टाइप हमारे) (प्रेरितों ७:२३-२५) सो मूसा परमेश्‍वर के ठहराए गए समय से ४० साल पहले ही काम करने की कोशिश कर रहा था। स्तिफनुस ने दिखाया कि मूसा को ४० साल और रुकना पड़ा, तब जाकर परमेश्‍वर ने ‘उसके हाथों इस्राएलियों का उद्धार किया।’—प्रेरितों ७:३०-३६.

१३. हमारी हालत मिस्र से छुटकारे के पहले के इस्राएलियों से कैसे मिलती-जुलती है?

१३ हालाँकि “उस प्रतिज्ञा के पूरे होने का समय निकट आया” था और उसकी तारीख परमेश्‍वर ने तय कर रखी थी, फिर भी मूसा और सारे इस्राएल को विश्‍वास करना था और यहोवा के नियुक्‍त समय का इंतज़ार करना था, न कि पहले से ही उसके बारे में अटकलें लगानी थीं। हमें भी पूरा यकीन है कि इस बुरी रीति-व्यवस्था से हमारा छुटकारा नज़दीक आ रहा है, और हमें मालूम है कि हम “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-५) सो क्या हमें विश्‍वास दिखाकर यहोवा के महान दिन के नियुक्‍त समय का इंतज़ार नहीं करना चाहिए? (२ पतरस ३:११-१३) तब, मूसा और इस्राएलियों की तरह हम भी छुटकारे का शानदार गीत गाएँगे, और यहोवा की स्तुति करेंगे।—निर्गमन १५:१-१९.

“जब समय पूरा हुआ”

१४, १५. हम कैसे जानते हैं कि परमेश्‍वर ने इस पृथ्वी पर अपने बेटे को भेजने का समय ठहरा रखा था, और भविष्यवक्‍ताओं के साथ-साथ स्वर्गदूत भी किस पर आस लगाए बैठे थे?

१४ यहोवा ने अपने एकलौते बेटे को मसीहा के तौर पर पृथ्वी पर भेजने के लिए एक समय ठहरा रखा था। पौलुस ने लिखा: “जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्‍वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्मा, और व्यवस्था के आधीन उत्पन्‍न हुआ।” (गलतियों ४:४) यह परमेश्‍वर के उस वादे की पूर्ति थी कि वह एक वंश भेजेगा—‘शीलो, जिसके अधीन राज्य राज्य के लोग होंगे।’—उत्पत्ति ३:१५; ४९:१०.

१५ परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता—यहाँ तक कि स्वर्गदूत भी—उस “काल” की आस लगाए बैठे थे जब मसीहा इस पृथ्वी पर आकर पापी इंसानों के लिए उद्धार का रास्ता खोलता। “इसी उद्धार के विषय में” पतरस ने कहा, “उन भविष्यद्वक्‍ताओं ने बहुत ढूंढ़-ढांढ़ और जांच-पड़ताल की, जिन्हों ने उस अनुग्रह के विषय में जो तुम पर होने को था, भविष्यद्वाणी की थी। उन्हों ने इस बात की खोज की कि मसीह का आत्मा जो उन में था, और पहिले ही से मसीह के दुखों की और उन के बाद होनेवाली महिमा की गवाही देता था, वह कौन से और कैसे समय [काल] की ओर संकेत करता था। . . . इन बातों को स्वर्गदूत भी ध्यान से देखने की लालसा रखते हैं।”—१ पतरस १:१-५, १०-१२.

१६, १७. (क) किस भविष्यवाणी के द्वारा यहोवा ने पहली सदी के यहूदियों को मसीहा की अपेक्षा करने में मदद दी? (ख) दानिय्येल की भविष्यवाणी का मसीहा के लिए जो यहूदियों की अपेक्षा थी उस पर क्या असर पड़ा?

१६ अटल विश्‍वास रखनेवाले अपने भविष्यवक्‍ता दानिय्येल के द्वारा, यहोवा ने “सत्तर सप्ताह” की भविष्यवाणी की थी। इस भविष्यवाणी से पहली सदी के यहूदियों को पता चलता कि वादा किए गए मसीहा का आना नज़दीक है। उस भविष्यवाणी का भाग यूँ कहता है: ‘यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा के निकलने से लेकर अभिषिक्‍त प्रधान मसीहा के समय तक सात सप्ताह बीतेंगे, और फिर बासठ सप्ताह।’ (दानिय्येल ९:२४, २५) आम तौर पर यहूदी, कैथोलिक, और प्रॉटॆस्टॆंट विद्वान इस बात पर सहमत होते हैं कि यहाँ जिस “सप्ताह” का ज़िक्र किया गया है, उस “सप्ताह” का हर दिन एक साल के बराबर है। सो दानिय्येल ९:२५ के ६९ “सप्ताह” (४८३ साल) सा.यु.पू. ४५५ में शुरू हुए, जब फारस के राजा अर्तक्षत्र ने नहेमायाह को ‘यरूशलेम को फिर से बसाने’ का अधिकार दिया। (नहेमायाह २:१-८) ये “सप्ताह” ४८३ साल बाद खत्म हुए—सा.यु. २९ में, जब यीशु का बपतिस्मा हुआ और वह पवित्र आत्मा द्वारा अभिषिक्‍त होकर मसीहा या ख्रिस्त बना।—मत्ती ३:१३-१७.

१७ यह हम नहीं जानते कि पहली सदी के यहूदियों को सही-सही पता था या नहीं कि वे ४८३ साल कब शुरू हुए। मगर जब यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने अपनी सेवकाई की शुरुआत की, तब “लोग आस लगाए हुए थे, और सब अपने अपने मन में यूहन्‍ना के विषय में विचार कर रहे थे, कि क्या यही मसीह तो नहीं है।” (लूका ३:१५) कुछ बाइबल विद्वान दानिय्येल की भविष्यवाणी को इस अपेक्षा की वज़ह बताते हैं। इस आयत पर टिप्पणी करते हुए, मैथ्यू हॆन्री ने लिखा: “यहाँ हम देखते हैं . . . कि यूहन्‍ना की सेवकाई और बपतिस्मे से लोग इस नतीजे पर कैसे पहुँचे कि मसीहा, और उसका आना निकट है। . . . दानिय्येल के सत्तर सप्ताह अब खत्म हो रहे थे।” विगुरु, बाक्वॆस्‌ और ब्रासेक की फ्रॆंच मानुएल बीबलीक कहती है: “लोग जानते थे कि दानिय्येल द्वारा बताए गए सत्तर सप्ताहों के साल अब खत्म हो रहे थे; बपतिस्मा देनेवाले यूहन्‍ना की इन बातों को सुनकर किसी को भी ताज्जुब नहीं हुआ कि परमेश्‍वर का राज्य नज़दीक है।” यहूदी विद्वान अब्बा हिलेल सिल्वर ने लिखा कि उस समय की “तिथियों” के मुताबिक, “मसीहा की अपेक्षा पहली सदी के सा.यु. २५ से सा.यु. ५० के दौरान की गयी थी।”

घटनाएँ—कोई तारीख नहीं

१८. जबकि दानिय्येल की भविष्यवाणी ने यहूदियों को उस समय की पहचान करने में मदद दी कि मसीहा की उम्मीद कब की जा सकती थी, फिर भी यीशु के मसीहा होने का सबसे पक्का सबूत क्या था?

१८ हालाँकि तिथियों ने यहूदियों को यह जानने में कुछ हद तक मदद दी कि मसीहा कब आएगा, फिर भी उस समय की घटनाएँ दिखाती हैं कि ये तिथियाँ ज़्यादातर लोगों को यीशु के मसीहा होने का यकीन नहीं दिला सकीं। अपनी मौत से लगभग एक साल पहले, यीशु ने अपने शिष्यों से पूछा: “लोग मुझे क्या कहते हैं?” उन्होंने कहा: “यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला, और कोई कोई एलिय्याह, और कोई यह कि पुराने भविष्यद्वक्‍ताओं में से कोई जी उठा है।” (लूका ९:१८, १९) हमारे पास इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है कि यीशु ने कभी लाक्षणिक सप्ताहों की भविष्यवाणी का इस्तेमाल करके यह साबित किया कि वह खुद मसीहा है। मगर एक मौके पर उसने कहा: “मेरे पास जो गवाही है वह यूहन्‍ना की गवाही से बड़ी है: क्योंकि जो काम पिता ने मुझे पूरा करने को सौंपा है अर्थात्‌ यही काम जो मैं करता हूं, वे मेरे गवाह हैं, कि पिता ने मुझे भेजा है।” (यूहन्‍ना ५:३६) तिथियों के बजाय, यीशु के प्रचार ने, उसके चमत्कारों ने, और उसकी मौत के समय की घटनाओं (जैसे चमत्कारी अंधेरा, मंदिर का परदा बीच से फटना, और भूकंप) ने यह साबित किया की वही परमेश्‍वर द्वारा भेजा गया मसीहा था।—मत्ती २७:४५, ५१, ५४; यूहन्‍ना ७:३१; प्रेरितों २:२२.

१९. (क) मसीहियों को कैसे पता चलता कि यरूशलेम का नाश नज़दीक है? (ख) यरूशलेम से भाग जानेवाले शुरुआती मसीहियों को अब भी काफी विश्‍वास की ज़रूरत क्यों थी?

१९ उसी तरह, यीशु की मौत के बाद, शुरुआती मसीहियों को यहूदी रीति-व्यवस्था के आनेवाले विनाश की तारीख पता लगाने का कोई तरीका नहीं दिया गया। लाक्षणिक सप्ताहों के बारे में दानिय्येल की भविष्यवाणी में उस व्यवस्था के विनाश का ज़िक्र ज़रूर किया गया। (दानिय्येल ९:२६ख, २७ख) मगर यह विनाश “सत्तर सप्ताहों” के खत्म होने के बाद होता (सा.यु.पू. ४५५–सा.यु. ३६)। दूसरे शब्दों में, सा.यु. ३६ में पहले अन्यजातीय लोगों का यीशु के अनुयायी बनने के बाद, दानिय्येल अध्याय ९ में मसीहियों को तिथियों की कोई जानकारी नहीं मिली जिससे वे उसके बाद की घटनाओं का पता लगा सकते थे। उन्हें तिथियाँ नहीं, बल्कि घटनाएँ बतातीं कि यहूदी व्यवस्था का जल्द ही अंत होना है। यीशु ने जो घटनाएँ पहले से बतायीं, वे सा.यु. ६६ से अपनी अंतिम सीमा पर पहुँचने लगीं, जब रोमी सेना ने यरूशलेम पर हमला बोला और फिर लौट गयी। इसने यरूशलेम और यहूदिया के वफादार, और सचेत मसीहियों को ‘पहाड़ों पर भाग जाने’ का मौका दिया। (लूका २१:२०-२२) उन शुरुआती मसीहियों के पास कोई निश्‍चित तिथि नहीं थी, सो वे नहीं जानते थे कि यरूशलेम का नाश कब होगा। जब तक कि सा.यु. ७० में रोमी सेना ने लौटकर यहूदी व्यवस्था का नाश नहीं किया तब तक अपने घर, ज़मीन-जायदाद और दुकान वगैरह छोड़कर चार साल तक यरूशलेम से दूर रहने के लिए उन लोगों को कितने विश्‍वास की ज़रूरत रही होगी!—लूका १९:४१-४४.

२०. (क) हम नूह, मूसा और पहली सदी के यहूदिया के मसीहियों के उदाहरणों से कैसे लाभ उठा सकते हैं? (ख) हम अगले लेख में किस विषय पर चर्चा करेंगे?

२० नूह, मूसा और पहली सदी के यहूदिया के मसीहियों की तरह, आज हम भी समय और काल को यहोवा के हाथों में छोड़ सकते हैं। हमारा यह विश्‍वास कि हम अंत के समय में जी रहे हैं और हमारा छुटकारा नज़दीक है, सिर्फ तारीखों पर नहीं, बल्कि ऐसी घटनाओं पर आधारित है जो बाइबल भविष्यवाणियों की पूर्ति में होती हैं। इसके अलावा, हालाँकि हम मसीह की उपस्थिति के दौरान जी रहे हैं, हमें अब भी विश्‍वास करने और चौकस रहने की ज़रूरत है। शास्त्र में पहले से बतायी गयी रोमांचक घटनाओं का हमें बेसब्री से इंतज़ार करते रहना चाहिए। इसी विषय पर हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।

[फुटनोट]

a प्रहरीदुर्ग, अगस्त १, १९९६, पेज ३०-१ देखिए।

दोहराने के लिए

◻ जहाँ तक यहोवा के समयों और कालों का सवाल है, यीशु ने अपने प्रेरितों से क्या कहा?

◻ नूह को कितने समय पहले पता चला कि जलप्रलय शुरू होनेवाला है?

◻ क्या बात बताती है कि मूसा और इस्राएली ठीक-ठीक समय नहीं जानते थे कि कब वे लोग मिस्र से छुड़ाए जाएँगे?

◻ हम लोग यहोवा के समयों और कालों के बारे में बाइबल के उदाहरणों से कैसे लाभ उठा सकते हैं?

[पेज 11 पर तसवीर]

नूह ने विश्‍वास की वज़ह से समय और कालों को यहोवा के हाथों में छोड़ दिया

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