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  • “मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!”

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  • “मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!”
  • ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
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अध्याय 25

“मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!”

खुशखबरी की पैरवी करने में पौलुस ने एक मिसाल कायम की

प्रेषितों 25:1–26:32 पर आधारित

1, 2. (क) पौलुस कहाँ और किन हालात में है? (ख) किस सवाल का जवाब जानना हमारे लिए ज़रूरी है?

पौलुस अब भी कैसरिया में है और उस पर सख्त पहरा है। दो साल पहले जब वह मिशनरी दौरे से यहूदिया लौटा था, तो यहूदियों ने कम-से-कम तीन बार उसे जान से मारने की कोशिश की थी। (प्रेषि. 21:27-36; 23:10, 12-15, 27) मगर हर बार वे नाकाम रहे। फिर भी वे हाथ धोकर पौलुस के पीछे पड़े हैं। अब जैसे ही पौलुस को एहसास होता है कि उसे वापस अपने दुश्‍मनों के पास यरूशलेम भेजा जाएगा, तो वह रोमी राज्यपाल फेस्तुस से कहता है, “मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!”​—प्रेषि. 25:11.

2 क्या पौलुस के इस फैसले में यहोवा उसके साथ था? इस सवाल का जवाब जानना हमारे लिए ज़रूरी है क्योंकि हम भी इन आखिरी दिनों में परमेश्‍वर के राज की गवाही दे रहे हैं। हमें जानना होगा कि पौलुस ने “खुशखबरी की पैरवी करने और उसे कानूनी मान्यता दिलाने” के लिए जो तरीका अपनाया, क्या हम भी वैसा कोई तरीका अपना सकते हैं?​—फिलि. 1:7.

“न्याय-आसन के सामने खड़ा हूँ” (प्रेषि. 25:1-12)

3, 4. (क) यहूदियों ने यह बिनती क्यों की कि पौलुस को यरूशलेम भेजा जाए? पौलुस मौत के मुँह से कैसे बच निकलता है? (ख) यहोवा ने जैसे पौलुस को सँभाला था, उसी तरह आज वह हमें कैसे सँभालता है?

3 फेस्तुस, यहूदिया का नया राज्यपाल बनने के तीन दिन बाद यरूशलेम जाता है।a वहाँ प्रधान याजक और यहूदियों के खास-खास आदमी उसके सामने हाज़िर होते हैं और पौलुस पर बड़े-बड़े इलज़ाम लगाते हैं। विरोधी जानते हैं कि यह नया राज्यपाल हर कीमत पर सभी यहूदियों को खुश रखना चाहता है। इसलिए वे फेस्तुस से बिनती करते हैं कि वह पौलुस को यरूशलेम भेज दे ताकि उसके मुकदमे की सुनवाई वहाँ हो। सुनने में तो यह गुज़ारिश मामूली-सी लगती है लेकिन इसके पीछे उनकी एक घिनौनी चाल है। उन्होंने साज़िश की है कि जब पौलुस को कैसरिया से यरूशलेम लाया जाएगा तो वे उसे रास्ते में ही खत्म कर देंगे। लेकिन फेस्तुस उनकी बिनती ठुकरा देता है। वह कहता है, “तुम लोगों के जो बड़े अधिकारी हैं वे मेरे साथ [कैसरिया] चलें और उस आदमी ने अगर कुछ बुरा किया है, तो उस पर इलज़ाम लगाएँ।” (प्रेषि. 25:5) एक बार फिर पौलुस मौत के मुँह से बच निकलता है।

4 इन सारी परीक्षाओं के दौरान यहोवा, पौलुस के साथ था। उसने यीशु के ज़रिए हर कदम पर उसे सँभाला। याद कीजिए, एक दर्शन में यीशु ने पौलुस से कहा था, “हिम्मत रख!” (प्रेषि. 23:11) आज भी हम पर तरह-तरह की परीक्षाएँ आती हैं और हमें डराया-धमकाया जाता है। यहोवा हमें हर मुसीबत से तो नहीं बचाता, मगर वह हमें बुद्धि और ताकत ज़रूर देता है ताकि हम परीक्षाओं का सामना कर सकें और हार ना मानें। हम इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि परमेश्‍वर हमसे प्यार करता है और हमें “वह ताकत [देगा] जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है।”​—2 कुरिं. 4:7.

5. जब पौलुस को फेस्तुस के सामने लाया गया तो फेस्तुस ने क्या किया?

5 कुछ दिन बाद फेस्तुस कैसरिया में ‘न्याय-आसन पर बैठता है।’b फेस्तुस के सामने पौलुस और वे यहूदी खड़े हैं जो यरूशलेम से आए हैं। वे पौलुस पर बेबुनियाद इलज़ाम लगाने लगते हैं। जवाब में पौलुस कहता है, “मैंने किसी के खिलाफ कोई पाप नहीं किया, न यहूदियों के कानून के खिलाफ, न मंदिर के खिलाफ और न ही सम्राट के खिलाफ।” यह बात साफ है कि पौलुस बेकसूर है और उसे कैद से रिहा कर देना चाहिए। मगर फेस्तुस क्या फैसला सुनाएगा? वह पौलुस से पूछता है, “क्या तू यरूशलेम जाना चाहता है ताकि वहाँ मेरे सामने इन मामलों के बारे में तेरा न्याय किया जाए?” (प्रेषि. 25:6-9) फेस्तुस ने यह कैसी बेतुकी बात कही! अगर पौलुस वापस यरूशलेम जाता तो उसके दुश्‍मन खुद उसका न्याय करते और बेशक उसे मौत की सज़ा सुनाते। यह बात कहकर फेस्तुस ने दिखाया कि उसे सच्चा इंसाफ करने से ज़्यादा, लोगों को खुश करने की पड़ी थी। कुछ समय पहले एक और राज्यपाल पुन्तियुस पीलातुस ने भी यीशु के साथ कुछ ऐसा ही किया था। (यूह. 19:12-16) आज भी हो सकता है कुछ जज, अधिकारियों को खुश करने के लिए, यहोवा के लोगों के मुकदमों में सच्चा न्याय ना करें। इसलिए हमारी बेगुनाही के पक्के सबूत होते हुए भी अगर अदालत हमारे खिलाफ फैसला करती है तो हमें ताज्जुब नहीं करना चाहिए।

6, 7. पौलुस सम्राट से फरियाद क्यों करता है? ऐसा करके उसने आज के मसीहियों के लिए क्या मिसाल रखी?

6 फेस्तुस यहूदियों को खुश करने के चक्कर में पौलुस की जान खतरे में डाल रहा है। इसलिए पौलुस रोमी नागरिक होने का अपना अधिकार इस्तेमाल करता है। वह फेस्तुस से कहता है, “मैं सम्राट के न्याय-आसन के सामने खड़ा हूँ, मेरा न्याय यहीं किया जाना चाहिए। मैंने यहूदियों के साथ कुछ बुरा नहीं किया, जैसा कि तुझे अच्छी तरह पता चल रहा है। . . . मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!” एक बार जब कोई सम्राट से फरियाद कर देता तो आम तौर पर उसे रद्द करना नामुमकिन था। इसलिए फेस्तुस कहता है, “तूने सम्राट से फरियाद की है, तू सम्राट के पास जाएगा।” (प्रेषि. 25:10-12) जब पौलुस ने देश के सबसे बड़े अधिकारी सम्राट से फरियाद की, तो उसने आज के सच्चे मसीहियों के लिए एक अच्छी मिसाल रखी। आज भी जब विरोधी “कानून की आड़ में मुसीबत खड़ी” करते हैं और प्रचार करने का हमारा अधिकार छीनने की कोशिश करते हैं, तो हम कानून की मदद लेकर अपने इस अधिकार की रक्षा करते हैं।c​—भज. 94:20.

7 आखिरकार पौलुस को रोम जाकर अपना मामला पेश करने का मौका दिया जाता है। इससे पहले उसे करीब दो साल कैद में रहना पड़ा और वह भी ऐसे जुर्म के लिए जो उसने किए ही नहीं थे। मगर जाने से पहले एक और अधिकारी उससे मिलना चाहता है।

भरी अदालत में फैसला सुनाया गया है। एक भाई, उसके वकील और बाकी यहोवा के साक्षी फैसला सुनकर शांत हैं। भाई पर केस करनेवाले लोग, जो साक्षी नहीं हैं, खुशी मना रहे हैं और अपने वकील को बधाई दे रहे हैं।

जब कोई अदालत हमारे खिलाफ फैसला सुनाती है, तो हम बड़ी अदालत में अपील करते हैं

‘मैंने आज्ञा नहीं तोड़ी’ (प्रेषि. 25:13–26:23)

8, 9. राजा अग्रिप्पा कैसरिया क्यों आता है?

8 कुछ दिन बाद राजा अग्रिप्पा और उसकी बहन बिरनीके कैसरिया आते हैं।d वे फेस्तुस से मिलते हैं और नया राज्यपाल बनने की खुशी में उसे ‘मुबारकबाद देते’ हैं। उस ज़माने में अधिकारी अकसर ऐसा करते थे। अग्रिप्पा, फेस्तुस से दोस्ती करने और उसके साथ राजनैतिक संबंध मज़बूत करने आया है, ताकि आगे चलकर उसे फायदा हो सके।​—प्रेषि. 25:13.

सच्ची उपासना की खातिर अदालतों में की अपील

जब यहोवा के साक्षियों को प्रचार करने से रोका गया, तो कुछ मामलों में उन्होंने मदद के लिए ऊँची अदालतों में अपील की है। आइए इसकी दो मिसालों पर गौर करें।

अमरीका के जॉर्जिया इलाके के ग्रिफिन शहर में कुछ साक्षियों को किताबें-पत्रिकाएँ बाँटने के लिए गिरफ्तार किया गया और जॉर्जिया की अदालतों ने उन्हें दोषी करार दिया। इस पर साक्षियों ने अमरीका के सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने 28 मार्च, 1938 को जॉर्जिया की अदालतों का फैसला रद्द कर दिया और साक्षियों के पक्ष में फैसला सुनाया। यह सबसे पहला मुकदमा था जिसमें साक्षियों ने देश की सबसे ऊँची अदालत में अपील की। इसके बाद भी उन्होंने कई बार इस अदालत का दरवाज़ा खटखटाया।g

दूसरी मिसाल है, ग्रीस के रहनेवाले भाई मीनोस कोकीनाकीस का मुकदमा। उन्हें 48 सालों के दौरान “धर्म-परिवर्तन करवाने” के इलज़ाम में 60 से भी ज़्यादा बार गिरफ्तार किया गया। अदालत के सामने उनकी 18 बार पेशी हुई। उन्होंने कई सालों तक एजियन सागर के द्वीपों में जेल की सज़ा काटी। सन्‌ 1986 में जब ग्रीस की बड़ी-बड़ी अदालतों ने भाई कोकीनाकीस के खिलाफ फैसला सुनाया, तो उन्होंने ‘मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत’ का दरवाज़ा खटखटाया। अदालत ने 25 मई, 1993 को फैसला सुनाया कि भाई कोकीनाकीस को अपना धर्म मानने और उसके बारे में बताने की आज़ादी है, मगर ग्रीस ने इस अधिकार का उल्लंघन किया है।

यहोवा के साक्षियों ने कई मुकदमों में यूरोपीय अदालत से अपील की है और ज़्यादातर मामलों में उनकी जीत हुई है। मानव अधिकारों के लिए लड़ने में साक्षियों को जितनी कामयाबी मिली है, उतनी कामयाबी किसी और धार्मिक या गैर-धार्मिक संगठन को नहीं मिली।

क्या यहोवा के साक्षियों की जीत से दूसरों को भी फायदा होता है? प्रोफेसर चार्ल्स सी. हेन्स लिखते हैं, “हम सब यहोवा के साक्षियों के बहुत एहसानमंद हैं। कितनी ही बार उनकी बेइज़्ज़ती की गयी, उन्हें शहरों से भगाया गया और मारा-पीटा गया। मगर वे अपने (और हमारे) हक के लिए लड़ते रहे ताकि हर किसी के पास अपना धर्म मानने की आज़ादी हो। उनकी जीत हम सबकी जीत है!”

g ऐसे ही एक मुकदमे के बारे में जानने के लिए 8 जनवरी, 2003 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के पेज 3-11 पढ़ें।

9 जब फेस्तुस, राजा अग्रिप्पा को पौलुस के बारे में बताता है तो अग्रिप्पा की दिलचस्पी बढ़ जाती है। अगले दिन, ये दोनों बड़ी धूम-धाम से आते हैं और पौलुस का मामला सुनने के लिए बैठते हैं। मगर उनकी शानो-शौकत, पौलुस की बातों के आगे फीकी पड़ जाती है।​—प्रेषि. 25:22-27.

10, 11. पौलुस अग्रिप्पा के साथ किस तरह पेश आता है? वह अपनी बीती ज़िंदगी के बारे में क्या बताता है?

10 पौलुस बड़े आदर के साथ बात करना शुरू करता है। वह कहता है कि उसे खुशी हो रही है कि उसे राजा अग्रिप्पा के सामने अपनी सफाई पेश करने का मौका मिला है। वह इसलिए कि अग्रिप्पा को यहूदियों के सभी रिवाज़ों और उनके मसलों की अच्छी जानकारी है। फिर पौलुस अपनी बीती ज़िंदगी के बारे में बताता है, “मैं अपने धर्म के सबसे कट्टर पंथ को मानता था और एक फरीसी की ज़िंदगी जीता था।” (प्रेषि. 26:5) जब पौलुस एक फरीसी था तो उसे परमेश्‍वर के इस वादे पर विश्‍वास था कि मसीहा आएगा। मसीही बनने के बाद वह इस बात का प्रचार करने लगा कि मसीहा आ चुका है और वह यीशु ही था। पौलुस का कहना था कि परमेश्‍वर के जिस वादे पर मैं विश्‍वास करता हूँ, मेरे विरोधी भी विश्‍वास करते हैं, फिर भी इसी वादे को लेकर मुझ पर मुकदमा चलाया जा रहा है। यह सब सुनने के बाद अग्रिप्पा की दिलचस्पी और बढ़ जाती है।e

11 फिर पौलुस समझाता है कि वह पहले मसीहियों को कितनी बेरहमी से सताता था। वह बताता है, “एक वक्‍त पर मुझे भी लगता था कि यीशु नासरी के नाम का कड़ा विरोध करना मेरा फर्ज़ है। . . . मैं उनके [यानी मसीह के चेलों के] खिलाफ गुस्से से इस कदर पागल हो गया था कि दूसरे शहरों में भी जाकर उन पर ज़ुल्म ढाने लगा।” (प्रेषि. 26:9-11) पौलुस कुछ बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कह रहा है। कई लोग जानते हैं कि वह सच में बहुत ज़ालिम था, उसने मसीहियों का जीना दुश्‍वार कर दिया था। (गला. 1:13, 23) इसलिए अग्रिप्पा अब जानना चाहता है कि ऐसा क्या हुआ कि मसीहियों का यह कट्टर दुश्‍मन बदल गया।

12, 13. (क) पौलुस के मुताबिक वह एक मसीही कैसे बना? (ख) पौलुस किस तरह “अंकुश पर लात” मार रहा था?

12 पौलुस बताता है कि वह एक मसीही कैसे बना, “जब मैं प्रधान याजकों से अधिकार और आज्ञा पाकर दमिश्‍क जा रहा था, तो हे राजा, भरी दोपहरी में आकाश से एक रौशनी चमकी जो सूरज से भी तेज़ थी। वह रौशनी मेरे और मेरे साथ चलनेवालों के चारों तरफ चमक उठी। तब हम सब ज़मीन पर गिर पड़े और मैंने एक आवाज़ सुनी जो मुझसे इब्रानी भाषा में कह रही थी, ‘शाऊल, शाऊल, तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है? इस तरह विरोध करके तू अपने लिए मुश्‍किल पैदा कर रहा है।’ मगर मैंने कहा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ और प्रभु ने कहा, ‘मैं यीशु हूँ, जिस पर तू ज़ुल्म कर रहा है।’”f​—प्रेषि. 26:12-15.

13 यह दर्शन पाने से पहले पौलुस एक तरह से “अंकुश पर लात” मार रहा था। (प्रेषि. 26:14, फु.) बाइबल के ज़माने में अंकुश एक लंबा छड़ होता था जिसका एक सिरा नुकीला और धातु से बना होता था। इससे किसान अपने जानवरों को बार-बार कोंचता या हाँकता था ताकि वे आगे बढ़ें या सही दिशा में जाएँ। लेकिन अगर एक जानवर इसका विरोध करता और अंकुश पर लात मारता, तो वह खुद को ही चोट पहुँचाता। उसी तरह पौलुस भी परमेश्‍वर की मरज़ी के खिलाफ काम करके अपने लिए मुश्‍किलें पैदा कर रहा था। वह दिल का सच्चा था मगर उसे गुमराह किया गया था। (यूह. 16:1, 2) इसलिए यीशु ने, जिसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया था, दमिश्‍क के रास्ते में उसे दर्शन दिया और अपनी सोच बदलने में उसकी मदद की।

14, 15. पौलुस ने जो बदलाव किए, उसका क्या नतीजा हुआ?

14 फिर यीशु ने पौलुस को एक खास काम दिया। इस बारे में उसने अग्रिप्पा से कहा, “जो आज्ञा मुझे स्वर्ग के इस दर्शन में मिली, मैंने उसे नहीं तोड़ा। मैंने सबसे पहले दमिश्‍क के लोगों को, फिर यरूशलेम के लोगों को और पूरे यहूदिया प्रदेश में और फिर दूसरे राष्ट्रों में भी यह संदेश दिया कि उन्हें पश्‍चाताप करना चाहिए और पश्‍चाताप दिखानेवाले काम करके परमेश्‍वर की तरफ फिरना चाहिए।” (प्रेषि. 26:19, 20) यीशु ने पौलुस को जो काम दिया था, उसे करने के लिए उसे अपने अंदर कई बदलाव करने थे। और उसने ऐसा ही किया। इसका क्या नतीजा हुआ? वह कई सालों तक प्रचार कर पाया। यही नहीं, जिन लोगों ने पौलुस के संदेश पर यकीन किया उन्होंने बुरे काम करने छोड़ दिए और वे परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने लगे। वे देश के अच्छे नागरिक बन गए और कायदे-कानूनों को मानने लगे।

15 लेकिन पौलुस के विरोधियों के लिए यह सब कोई मायने नहीं रखता। पौलुस कहता है, “इसीलिए यहूदियों ने मुझे मंदिर में पकड़ लिया और मुझे मार डालने की कोशिश की। मगर परमेश्‍वर मेरी मदद करता रहा इसलिए मैं आज के दिन तक छोटे-बड़े सभी को गवाही दे रहा हूँ।”​—प्रेषि. 26:21, 22.

16. जजों और अधिकारियों से बात करते वक्‍त हम पौलुस का तरीका कैसे अपना सकते हैं?

16 सच्चे मसीही होने के नाते हमें अपने विश्‍वास की “पैरवी करने के लिए हमेशा तैयार” रहना चाहिए। (1 पत. 3:15) अगर कभी हमें जजों और अधिकारियों के सामने लाया जाता है, तो हम पौलुस का तरीका अपना सकते हैं। पौलुस ने फेस्तुस और अग्रिप्पा के साथ आदर से बात की और उन्हें बताया कि खुशखबरी से उसे और दूसरों को क्या-क्या फायदे हुए हैं। उसी तरह हम भी बता सकते हैं कि बाइबल की सच्चाइयों ने कैसे हमारी ज़िंदगी सँवार दी है और दूसरों की ज़िंदगी में भी खुशहाली लायी है। यह सब सुनकर हो सकता है, जजों और अधिकारियों का रवैया बदल जाए और वे हमारे साथ नरमी से पेश आएँ।

“तू मुझे मसीही बनने के लिए कायल कर देगा” (प्रेषि. 26:24-32)

17. पौलुस की बातों का फेस्तुस पर क्या असर होता है? फेस्तुस की तरह आज भी लोगों का क्या रवैया होता है?

17 पौलुस की इन दमदार बातों का उन दोनों अधिकारियों पर क्या असर होता है? आयत बताती है, “पौलुस अपने बचाव में ये बातें बोल ही रहा था कि फेस्तुस ने ऊँची आवाज़ में कहा, ‘अरे पौलुस, तेरा दिमाग खराब हो गया है, बहुत ज्ञान ने तुझे पागल कर दिया है!’” (प्रेषि. 26:24) आज भी कई लोगों का रवैया फेस्तुस की तरह होता है। उन्हें हमारी बातें बेतुकी लगती हैं। बहुत पढ़े-लिखे लोगों को अकसर बाइबल की शिक्षाओं पर यकीन करना मुश्‍किल लगता है जैसे, मरे हुओं को फिर से ज़िंदा किया जाएगा।

18. पौलुस, फेस्तुस की बात का क्या जवाब देता है? पौलुस की बात सुनकर अग्रिप्पा क्या कहता है?

18 पौलुस के पास फेस्तुस की बात का जवाब हाज़िर है। वह कहता है, “हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं हूँ, मैं सच्ची बातें कह रहा हूँ और पूरे होश-हवास में बोल रहा हूँ। सच तो यह है कि जिस राजा के सामने मैं बेझिझक बात कर रहा हूँ, वह खुद भी इन बातों के बारे में अच्छी तरह जानता है . . . हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यवक्‍ताओं की बातों पर यकीन करता है? मैं जानता हूँ तू यकीन करता है।” तब अग्रिप्पा, पौलुस से कहता है, “थोड़ी ही देर में तू मुझे मसीही बनने के लिए कायल कर देगा।” (प्रेषि. 26:25-28) अग्रिप्पा ने यह बात सच्चे दिल से कही थी या नहीं, यह तो हम नहीं जानते। मगर एक बात साफ है कि पौलुस की गवाही का इस राजा पर गहरा असर हुआ।

19. फेस्तुस और अग्रिप्पा, पौलुस के बारे में किस नतीजे पर पहुँचते हैं?

19 इसके बाद अग्रिप्पा और फेस्तुस खड़े हो जाते हैं। यह इस बात का इशारा है कि सुनवाई का वक्‍त पूरा हो चुका है। ‘जाते-जाते वे एक-दूसरे से कहने लगते हैं, “इस आदमी ने ऐसा कुछ नहीं किया कि इसे मौत की सज़ा दी जाए या जेल में डाला जाए।” तब अग्रिप्पा फेस्तुस से कहता है, “अगर इस आदमी ने सम्राट से फरियाद न की होती, तो इसे रिहा किया जा सकता था।”’ (प्रेषि. 26:31, 32) अब वे जान गए हैं कि उनके सामने जो आदमी खड़ा है वह बेगुनाह है। शायद अब से वे दूसरे मसीहियों के साथ नरमी से पेश आएँ।

20. क्या पौलुस का बड़े-बड़े अधिकारियों को गवाही देना बेकार था? समझाइए।

20 पौलुस ने फेस्तुस और अग्रिप्पा को गवाही दी मगर उनमें से कोई भी मसीही नहीं बना। तो क्या पौलुस का उन दोनों को गवाही देना बेकार था? जी नहीं। आम तौर पर यहूदिया के “राजाओं और राज्यपालों” को गवाही देना लगभग नामुमकिन होता था मगर पौलुस को वह मौका मिला। (लूका 21:12, 13) इतना ही नहीं, जब दूसरे मसीहियों ने सुना कि पौलुस के साथ क्या-क्या हुआ और वह कैसे परीक्षाओं के दौरान वफादार रहा, तो उन्हें भी बहुत हिम्मत मिली।​—फिलि. 1:12-14.

21. मुश्‍किलों के बावजूद प्रचार करते रहने से कौन-से अच्छे नतीजे निकलते हैं?

21 आज भी जब हम परीक्षाओं और विरोध के बावजूद प्रचार करते रहते हैं, तो इसके कई अच्छे नतीजे निकलते हैं। हम उन अधिकारियों को गवाही दे पाते हैं जिनसे आम तौर पर मिलना मुमकिन नहीं होता। और जब हम मुश्‍किलों में धीरज रखते हैं, तो हमारी वफादारी देखकर दूसरे भाई-बहनों को हौसला मिलता है। फिर वे भी हिम्मत से परमेश्‍वर के राज की अच्छी तरह गवाही देते हैं।

पुरकियुस फेस्तुस​—यहूदिया का राज्यपाल

पुरकियुस फेस्तुस के बारे में हमारे पास जो भी जानकारी है वह सिर्फ प्रेषितों की किताब में और फ्लेवियस जोसीफस के लेखनों में दर्ज़ है। फेलिक्स के बाद, फेस्तुस करीब ईसवी सन्‌ 58 में यहूदिया का राज्यपाल बना। फेस्तुस सिर्फ दो-तीन साल शासन कर पाया, फिर उसकी मौत हो गयी।

पुरकियुस फेस्तुस।

फेस्तुस के बाद एल्बीनुस राज्यपाल बना। मगर फेस्तुस कई मामलों में फेलिक्स और एल्बीनुस से बेहतर और काबिल राज्यपाल था। जब फेस्तुस नया-नया राज्यपाल बना तब पूरे यहूदिया में डाकू-लुटेरों ने आतंक मचा रखा था। जोसीफस ने बताया, “फेस्तुस . . . ने ठान लिया कि वह देश से डाकू-लुटेरों को मिटाकर रहेगा। उसने बड़ी तादाद में उन्हें पकड़वाया और उनमें से कइयों को मौत की सज़ा सुनायी।” फेस्तुस के राज में यहूदियों ने मंदिर के एक तरफ दीवार खड़ी की ताकि राजा अग्रिप्पा मंदिर में होनेवाले काम ना देख सके। फेस्तुस ने उस दीवार को गिरा देने का हुक्म दिया। मगर फिर यहूदियों की गुज़ारिश पर उसने उन्हें इजाज़त दी कि वे रोमी सम्राट नीरो के आगे अपना मामला पेश करें।

कहा जाता है कि फेस्तुस अपराधियों और बागियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करता था। लेकिन यहूदियों को खुश करने के लिए उसने कई बार इंसाफ को दरकिनार कर दिया, जैसे पौलुस के मामले में उसने किया।

राजा हेरोदेस अग्रिप्पा द्वितीय

प्रेषितों अध्याय 25 में जिस अग्रिप्पा की बात की गयी है, वह राजा हेरोदेस अग्रिप्पा द्वितीय है। वह हेरोदेस महान का परपोता था। उसका पिता वही हेरोदेस था जिसने 14 साल पहले यरूशलेम की मंडली पर ज़ुल्म किए थे। (प्रेषि. 12:1) अग्रिप्पा, हेरोदेस के शाही खानदान का आखिरी राजा था।

राजा हेरोदेस अग्रिप्पा द्वितीय।

ईसवी सन्‌ 44 में जब अग्रिप्पा के पिता की मौत हुई तब अग्रिप्पा सिर्फ 17 साल का था। उस वक्‍त वह रोम में था और रोमी सम्राट क्लौदियुस के दरबार में शिक्षा हासिल कर रहा था। सम्राट के सलाहकारों को लगा कि अग्रिप्पा अपने पिता की राजगद्दी सँभालने के लिए बहुत छोटा है, इसलिए उसकी जगह एक रोमी राज्यपाल को पद सौंपा गया। फ्लेवियस जोसीफस का कहना है कि अग्रिप्पा, रोम में रहते वक्‍त भी यहूदियों की तरफ से बोलता था और उनकी भलाई के लिए काम करता था।

ईसवी सन्‌ 50 के आस-पास क्लौदियुस ने अग्रिप्पा को कालसिस इलाके का राजा बनाया और ईसवी सन्‌ 53 में इतूरैया, त्रखोनीतिस और अबिलेने इलाके भी उसकी रियासत में जोड़ दिए। अग्रिप्पा को यरूशलेम के मंदिर की निगरानी का ज़िम्मा सौंपा गया और उसे यहूदियों के महायाजकों को ठहराने का अधिकार भी मिला। क्लौदियुस के बाद, अगले सम्राट नीरो ने अग्रिप्पा की सरहदें बढ़ा दीं और उसे गलील और पेरिया प्रांत के कुछ इलाके दिए। जब अग्रिप्पा, पौलुस से मिला तब वह अपनी बहन बिरनीके के साथ कैसरिया आया हुआ था। बिरनीके ने अपने पति को छोड़ दिया था, जो किलिकिया का राजा था।​—प्रेषि. 25:13.

ईसवी सन्‌ 66 में जब यहूदियों ने रोम के खिलाफ बगावत की तो अग्रिप्पा ने उन्हें शांत करने की बहुत कोशिश की मगर वह नाकाम रहा। उलटा, वह खुद उन बागियों का निशाना बन गया। अब उसके पास रोमियों का साथ देने के सिवा कोई चारा नहीं था। जब यहूदियों की बगावत कुचल दी गयी, तो इसके बाद नए सम्राट वेस्पेसियन ने अग्रिप्पा की वफादारी के लिए उसे बतौर इनाम और भी कुछ इलाके दे दिए।

a यह बक्स देखें, “पुरकियुस फेस्तुस​—यहूदिया का राज्यपाल।”

b यहाँ बताया गया “न्याय-आसन” एक कुर्सी थी जो ऊँचे चबूतरे पर रखी जाती थी। इसे ऊँचे पर रखने का यह मतलब था कि इस पर बैठकर न्यायी जो फैसला सुनाता है, वह पत्थर की लकीर होता है। पीलातुस ने भी एक “न्याय-आसन” पर बैठकर यीशु के मुकदमे की सुनवाई की थी।

c यह बक्स देखें, “सच्ची उपासना की खातिर अदालतों में की अपील।”

d यह बक्स देखें, “राजा हेरोदेस अग्रिप्पा द्वितीय।”

e मसीही होने के नाते पौलुस मानता था कि यीशु ही मसीहा है, जबकि यहूदियों ने यीशु को ठुकरा दिया था। इसी वजह से यहूदियों को लगता था कि पौलुस ने यहूदी धर्म से बगावत की है।​—प्रेषि. 21:21, 27, 28.

f पौलुस ने कहा कि वह “भरी दोपहरी में” सफर कर रहा था। इस बारे में एक बाइबल विद्वान कहता है, “दोपहर के समय बहुत गरमी होती थी, इसलिए मुसाफिर अकसर उस वक्‍त आराम करते थे। लेकिन अगर उन्हें कहीं पहुँचने की जल्दी होती, तो वे बिना आराम किए सफर जारी रखते थे। पौलुस दोपहर के वक्‍त सफर कर रहा था, इससे पता चलता है कि मसीहियों पर ज़ुल्म ढाने का पौलुस पर कितना जुनून सवार था।”

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