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  • bt अध्या. 27 पेज 211-217
  • उसने “अच्छी तरह गवाही दी”

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  • उसने “अच्छी तरह गवाही दी”
  • ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
  • उपशीर्षक
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  • “पौलुस ने परमेश्‍वर को धन्यवाद दिया और हिम्मत पायी” (प्रेषि. 28:14, 15)
  • “सब जगह लोग इसके खिलाफ ही बात करते हैं” (प्रेषि. 28:16-22)
  • उसने ‘अच्छी तरह गवाही देकर’ हमारे लिए एक मिसाल रखी (प्रेषि. 28:23-29)
  • ‘वह परमेश्‍वर के राज का प्रचार करता रहा’ (प्रेषि. 28:30, 31)
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‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
bt अध्या. 27 पेज 211-217

अध्याय 27

उसने “अच्छी तरह गवाही दी”

पौलुस रोम में कैद है फिर भी प्रचार करता रहता है

प्रेषितों 28:11-31 पर आधारित

1. पौलुस और उसके साथियों का भरोसा किस पर है और क्यों?

करीब ईसवी सन्‌ 59 की बात है। एक बड़ा मालवाहक जहाज़ माल्टा द्वीप से इटली जा रहा है। इस जहाज़ में पौलुस को कैदी बनाकर ले जाया जा रहा है इसलिए उस पर एक सैनिक का पहरा है। पौलुस के साथ उसके दोस्त लूका और अरिस्तरखुस भी हैं। (प्रेषि. 27:2) यह जहाज़ शायद अनाज ले जा रहा है और इसके सामने की तरफ यूनानी देवता ज़्यूस के जुड़वाँ बेटे कास्टर और पोलुक्स की निशानी बनी है। जहाज़ के नाविकों को लगता है कि ‘ज़्यूस के बेटे’ उनकी हिफाज़त करेंगे। (प्रेषि. 28:11) मगर पौलुस और उसके साथियों का भरोसा यहोवा पर है। यहोवा ने पौलुस को बताया था कि वह रोम में सच्चाई की गवाही देगा और सम्राट के सामने हाज़िर होगा।​—प्रेषि. 23:11; 27:24.

2, 3. पौलुस का जहाज़ किस रास्ते जाता है? कौन हमेशा से पौलुस का साथ देता रहा है?

2 रास्ते में जहाज़ सुरकूसा में तीन दिन रुकता है। सुरकूसा, सिसिली द्वीप का एक बेहद खूबसूरत शहर है और एथेन्स और रोम जितना ही मशहूर है। सुरकूसा से जहाज़ आगे बढ़ता है और रेगियुम पहुँचता है जो इटली के दक्षिण में है। अब रेगियुम से जहाज़ को पुतियुली बंदरगाह जाना है, जो आज के नेपल्स शहर के पास है। वहाँ तक 320 किलोमीटर की दूरी तय करने में आम तौर पर एक दिन से ज़्यादा लगता है। लेकिन एक दक्षिणी हवा चलती है जिसके सहारे जहाज़ अगले ही दिन पुतियुली बंदरगाह पहुँच जाता है।​—प्रेषि. 28:12, 13.

3 अब पौलुस रोम की यात्रा के आखिरी पड़ाव पर है। रोम पहुँचने पर वह सम्राट नीरो के सामने पेश होगा। जब से पौलुस ने सफर शुरू किया, तब से “हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर” यहोवा उसके साथ रहा है। (2 कुरिं. 1:3) इस अध्याय में हम देखेंगे कि यहोवा आगे भी पौलुस का साथ देता है और मिशनरी सेवा के लिए पौलुस का जोश बना रहता है।

“पौलुस ने परमेश्‍वर को धन्यवाद दिया और हिम्मत पायी” (प्रेषि. 28:14, 15)

4, 5. (क) पुतियुली के भाई पौलुस और उसके साथियों के लिए क्या करते हैं? पौलुस को क्यों इतनी आज़ादी दी गयी? (ख) जब मसीही, जेलों में भी अच्छा चालचलन रखते हैं तो इसके क्या नतीजे होते हैं?

4 पुतियुली में कुछ मसीही भाई, पौलुस और उसके साथियों से ‘मिलते हैं और उनसे बिनती करते हैं कि वे उनके यहाँ सात दिन ठहरें।’ (प्रेषि. 28:14) उन मसीहियों ने भाइयों की ज़रूरतें पूरी करने में क्या ही बढ़िया मिसाल रखी! बेशक उनकी दरियादिली के बदले उन्हें कई आशीषें मिली होंगी। पौलुस और उसके साथियों की संगति से परमेश्‍वर की सेवा के लिए उनका जोश ज़रूर बढ़ा होगा। मगर पौलुस तो एक कैदी था और उस पर पहरा था, फिर उसे भाई-बहनों के यहाँ रहने की आज़ादी क्यों दी गयी? शायद इसलिए क्योंकि पौलुस ने अपने अच्छे व्यवहार से रोमी सैनिकों का भरोसा जीत लिया था।

5 आज भी जब यहोवा के साक्षियों को जेलों में डाला जाता है तो वे अपने अच्छे चालचलन से अधिकारियों का भरोसा जीत लेते हैं। इसलिए उन्हें कई मामलों में वह आज़ादी दी जाती है जो दूसरे कैदियों को नहीं मिलती। रोमानिया में कुछ ऐसा ही हुआ था। एक आदमी डकैती के जुर्म में 75 साल की सज़ा काट रहा था। फिर उसने बाइबल का अध्ययन शुरू किया और धीरे-धीरे अपनी सोच और व्यवहार को बदलने लगा। जब जेल के अधिकारियों ने देखा कि वह कितना बदल चुका है तो वे उसे कुछ काम सौंपने लगे। उन्हें उस पर इतना भरोसा हो गया कि वे उसे अकेले ही, जेल के लिए ज़रूरी चीज़ें खरीदने शहर भेजते थे। हमारे बढ़िया चालचलन से ना सिर्फ इस तरह के अच्छे नतीजे निकलते हैं बल्कि यहोवा की भी महिमा होती है।​—1 पत. 2:12.

6, 7. रोम के भाई कैसे दिखाते हैं कि वे पौलुस से बहुत प्यार करते हैं?

6 पुतियुली से पौलुस और उसके साथी एक मशहूर सड़क से सफर करते हैं जिसका नाम अपियुस मार्ग है जो रोम तक जाता है। यह सड़क लावा के बड़े-बड़े सपाट टुकड़ों से बनी थी। वे इस सड़क पर करीब 50 किलोमीटर पैदल चलकर पहले कपुआ पहुँचते हैं। इस रास्ते से इटली के गाँव-देहात के खूबसूरत नज़ारे देखे जा सकते थे और बीच-बीच में भूमध्य सागर की झलक भी मिलती थी। यह सड़क पौन्टीन मार्शिस नाम के एक दलदली इलाके से होकर गुज़रती थी और यहीं पर अपियुस का बाज़ार भी था। यहाँ से रोम करीब 60 किलोमीटर दूर था। लूका बताता है कि जब रोम के भाइयों ने “हमारे आने की खबर सुनी” तो वे हमसे मिलने निकल पड़े। उनमें से कुछ अपियुस के बाज़ार तक आए और बाकी भाई करीब 50 किलोमीटर का सफर तय करके तीन सराय नाम की जगह तक आए और उनका इंतज़ार करने लगे। पौलुस के लिए प्यार इन भाइयों को इतनी दूर तक खींच लाया!​—प्रेषि. 28:15.

7 इतना लंबा सफर करने के बाद रोम के भाई थककर चूर हो जाते हैं, मगर अपियुस के बाज़ार में उनके पास आराम करने की कोई जगह नहीं है। रोमी कवि और लेखक होरस बताता है कि यह बाज़ार “नाविकों से इतना भरा रहता था कि पाँव रखने तक की जगह नहीं होती थी और सराय के मालिकों को मुसाफिरों से बात करने की तमीज़ नहीं थी।” होरस यह भी बताता है कि “पानी बहुत गंदा था, उससे सड़ी बदबू आती थी।” होरस ने वहाँ खाने से भी इनकार कर दिया! लेकिन ऐसी बेकार जगह में भी रोम के भाई खुशी-खुशी पौलुस और उसके साथियों का इंतज़ार करते हैं। वे उनके सफर के इस आखिरी पड़ाव में उनके साथ रहना चाहते हैं और उनकी मदद करना चाहते हैं।

8. “भाइयों को देखते ही” पौलुस परमेश्‍वर को धन्यवाद क्यों कहता है?

8 आयत बताती है, “भाइयों को देखते ही पौलुस ने परमेश्‍वर को धन्यवाद दिया और हिम्मत पायी।” (प्रेषि. 28:15) शायद पौलुस उनमें से कुछ भाइयों को पहले से जानता था, इसलिए उन्हें देखते ही पौलुस को बहुत हिम्मत और दिलासा मिलता है। लेकिन उन्हें देखकर पौलुस परमेश्‍वर को धन्यवाद क्यों कहता है? पौलुस देख सकता है कि ये भाई उससे कितना प्यार करते हैं और वह जानता है कि यह प्यार परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का ही एक गुण है। (गला. 5:22) आज भी पवित्र शक्‍ति मसीहियों को उभारती है कि वे अपने से ज़्यादा, अपने भाई-बहनों के बारे में सोचें और ज़रूरत की घड़ी में उनकी मदद करें, उन्हें दिलासा दें।​—1 थिस्स. 5:11, 14.

9. हम कैसे रोम के उन भाइयों जैसे बन सकते हैं?

9 मिसाल के लिए, पवित्र शक्‍ति मसीहियों को उभारती है कि वे सर्किट निगरानों, मिशनरियों और दूसरे पूरे समय के सेवकों की ज़रूरतों का खयाल रखें। इनमें से कइयों ने यहोवा की सेवा में ज़्यादा करने के लिए बड़े-बड़े त्याग किए हैं। आप खुद से पूछ सकते हैं: ‘जब सर्किट निगरान और उसकी पत्नी हमारी मंडली का दौरा करने आते हैं, तो क्या मैं उनकी मेहमान-नवाज़ी कर सकता हूँ? क्या मैं उनके साथ प्रचार करने की योजना बना सकता हूँ?’ इस तरह उन्हें सहयोग देने से आपको बहुत-सी आशीषें मिलेंगी। ज़रा सोचिए, रोम से आए उन भाइयों को क्या आशीषें मिली थीं। पौलुस और उसके साथियों ने उन्हें ज़रूर अच्छे-अच्छे अनुभव सुनाए होंगे जिससे उन्हें बहुत खुशी मिली होगी और उनका हौसला बढ़ा होगा।​—प्रेषि. 15:3, 4.

“सब जगह लोग इसके खिलाफ ही बात करते हैं” (प्रेषि. 28:16-22)

10. रोम में पौलुस को कहाँ और कैसे रखा जाता है? रोम पहुँचने के फौरन बाद वह क्या करता है?

10 पौलुस और उसके साथी आखिरकार रोम पहुँच जाते हैं। ‘पौलुस को अकेले रहने की इजाज़त मिलती है और उस पर पहरा देने के लिए एक सैनिक ठहराया जाता है।’ (प्रेषि. 28:16) आम तौर पर जब किसी को घर में नज़रबंद रखा जाता था, तो सैनिक एक ज़ंजीर से अपना हाथ और कैदी का हाथ बाँध देता था ताकि कैदी भाग ना सके। पौलुस को भी इसी तरह रखा जाता है। लेकिन ऐसे हालात में भी पौलुस परमेश्‍वर के राज के बारे में प्रचार करता रहता है। कोई भी ज़ंजीर उसे गवाही देने से नहीं रोक सकती। इसलिए रोम पहुँचने के तीन दिन बाद वह यहूदियों के खास आदमियों को बुलाता है। वह उन्हें अपने बारे में थोड़ा बताता है और फिर गवाही देना शुरू करता है।

11, 12. पौलुस रोम के यहूदियों से किस तरह बात करता है?

11 पौलुस कहता है, “भाइयो, मैंने अपने लोगों या अपने पुरखों के रीति-रिवाज़ों के खिलाफ कुछ नहीं किया। फिर भी मुझे यरूशलेम में कैदी बनाकर रोमियों के हाथ सौंप दिया गया। उन्होंने मामले की जाँच करने के बाद मुझे छोड़ देना चाहा क्योंकि मुझे मौत की सज़ा देने के लिए उन्हें मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। मगर जब यहूदियों ने एतराज़ जताया, तो मुझे मजबूरन सम्राट से फरियाद करनी पड़ी, लेकिन मेरा इरादा यह नहीं था कि अपनी जाति पर कोई दोष लगाऊँ।”​—प्रेषि. 28:17-19.

12 पौलुस उन यहूदियों को ‘भाइयों’ कहकर उनका दिल जीतने की कोशिश करता है और अगर उनके मन में उसके बारे में कोई गलत राय हो, तो उसे दूर करने की कोशिश करता है। (1 कुरिं. 9:20) इसके अलावा, पौलुस उन्हें साफ-साफ बताता है कि वह अपने जाति-भाइयों पर यानी यहूदियों पर दोष लगाने के इरादे से रोम नहीं आया है बल्कि सम्राट से फरियाद करने आया है। लेकिन उन यहूदियों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। (प्रेषि. 28:21) यहूदिया प्रांत से अब तक यह खबर रोम के यहूदियों तक क्यों नहीं पहुँची थी? एक किताब बताती है, “सर्दियों के बाद इटली पहुँचनेवाले जहाज़ों में पौलुस का जहाज़ शायद सबसे पहला था। तो ज़ाहिर है कि यरूशलेम के यहूदी अधिकारियों की तरफ से अब तक कोई रोम नहीं पहुँचा होगा ना ही कोई खत आया होगा जो इस मामले के बारे में खबर दे सके।”

13, 14. पौलुस परमेश्‍वर के राज के बारे में कैसे बात शुरू करता है? हम भी कैसे पौलुस का तरीका अपना सकते हैं?

13 अब पौलुस उन यहूदियों से परमेश्‍वर के राज के बारे में बात करना शुरू करता है। उनकी दिलचस्पी जगाने के लिए वह कहता है, “मैंने तुम्हें बुलाने और तुमसे बात करने की बिनती की थी, क्योंकि इसराएल को जिसकी आशा थी उसकी वजह से मैं इन ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ हूँ।” (प्रेषि. 28:20) पौलुस ने जिस आशा का ज़िक्र किया वह मसीहा और उसके राज के बारे में थी और इसी संदेश का प्रचार मसीही कर रहे थे। पौलुस की बात सुनकर यहूदियों के खास आदमी कहते हैं, “हमें लगता है कि जो भी तेरे विचार हैं वे तुझी से सुनना सही होगा, क्योंकि जहाँ तक हमें इस गुट के बारे में मालूम हुआ है, सब जगह लोग इसके खिलाफ ही बात करते हैं।”​—प्रेषि. 28:22.

14 प्रचार में हमें भी पौलुस की तरह कोई ऐसी बात कहनी चाहिए या कोई ऐसा सवाल पूछना चाहिए जो लोगों को सोचने पर मजबूर करे और उनकी दिलचस्पी जगाए। इस बारे में सभा पुस्तिका, सेवा स्कूल  किताब और जी-जान  ब्रोशर में आपको अच्छे-अच्छे सुझाव मिल सकते हैं। क्या आप इन सुझावों को प्रचार में आज़माने की पूरी कोशिश करते हैं?

उसने ‘अच्छी तरह गवाही देकर’ हमारे लिए एक मिसाल रखी (प्रेषि. 28:23-29)

15. पौलुस ने जिस तरह गवाही दी, उससे हम कौन-सी चार बातें सीख सकते हैं?

15 फिर यहूदी, पौलुस से दोबारा मिलने के लिए एक दिन तय करते हैं। उस दिन “भारी तादाद में” यहूदी लोग पौलुस के ठहरने की जगह पर इकट्ठा होते हैं। आयत बताती है, “पौलुस ने सुबह से शाम तक उन्हें परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दी और समझाता रहा। वह मूसा के कानून और भविष्यवक्‍ताओं की किताबों से यीशु के बारे में दलीलें देकर उन्हें कायल करता रहा।” (प्रेषि. 28:23) पौलुस ने जिस तरह गवाही दी, उससे हम चार बातें सीख सकते हैं: (1) उसने परमेश्‍वर के राज पर खास ज़ोर दिया। (2) उसने दलीलें देकर अपने सुननेवालों को कायल करने की कोशिश की। (3) उसने शास्त्र का हवाला देकर बात की। (4) उसने अपने आराम की परवाह किए बगैर “सुबह से शाम तक” गवाही दी। हम वाकई पौलुस से कितना कुछ सीख सकते हैं! जब पौलुस ने उन यहूदियों को अच्छी तरह गवाही दी तो क्या नतीजा हुआ? लूका बताता है, “कुछ लोगों ने उसकी बातों पर यकीन किया” जबकि दूसरों ने नहीं किया। फिर उन यहूदियों में मतभेद हो गया और वे “वहाँ से जाने लगे।”​—प्रेषि. 28:24, 25क.

16-18. रोम के कुछ यहूदियों का रवैया देखकर पौलुस को ताज्जुब क्यों नहीं होता? जब लोग हमारा संदेश ठुकरा देते हैं, तो हमें कैसा महसूस करना चाहिए?

16 लोगों का यह रवैया देखकर पौलुस को बिलकुल ताज्जुब नहीं होता। वह जानता है कि बाइबल में पहले से बताया गया था कि कई लोग संदेश को ठुकरा देंगे। इससे पहले भी ऐसे कई लोगों से उसका सामना हो चुका था। (प्रेषि. 13:42-47; 18:5, 6; 19:8, 9) इसलिए जब कुछ लोग उसका संदेश ठुकराकर जाने लगते हैं तो वह उनसे कहता है, “पवित्र शक्‍ति ने भविष्यवक्‍ता यशायाह के ज़रिए तुम्हारे पुरखों से बिलकुल सही कहा था, ‘जाकर इन लोगों से कह, “तुम लोग सुनोगे मगर सुनते हुए भी बिलकुल नहीं समझोगे। और देखोगे मगर देखते हुए भी बिलकुल नहीं देख पाओगे। क्योंकि इन लोगों का मन सुन्‍न हो चुका है।”’” (प्रेषि. 28:25ख-27) कितने दुख की बात है कि इन लोगों का मन सुन्‍न हो चुका था, इस वजह से राज के संदेश का उन पर कोई असर नहीं हो रहा था!

17 हालाँकि यहूदियों ने परमेश्‍वर का संदेश ठुकरा दिया लेकिन पौलुस कहता है कि ‘गैर-यहूदी इसे ज़रूर सुनेंगे।’ (प्रेषि. 28:28; भज. 67:2; यशा. 11:10) पौलुस यह बात इतने यकीन से कह सका क्योंकि उसने खुद कई गैर-यहूदियों को राज का संदेश कबूल करते देखा था!​—प्रेषि. 13:48; 14:27.

18 आज भी जब लोग राज का संदेश ठुकरा देते हैं, तो हमें पौलुस की तरह ताज्जुब नहीं होता और ना ही हम निराश होते हैं। हम जानते हैं कि जीवन की ओर ले जानेवाले रास्ते पर बहुत कम लोग चलेंगे। (मत्ती 7:13, 14) लेकिन जब नेकदिल लोग यहोवा की उपासना करने लगते हैं, तो हम खुशियाँ मनाते हैं और दिल खोलकर उनका स्वागत करते हैं।​—लूका 15:7.

‘वह परमेश्‍वर के राज का प्रचार करता रहा’ (प्रेषि. 28:30, 31)

19. पौलुस घर में नज़रबंद रहकर भी क्या करता है?

19 लूका आखिर में जो लिखता है, वह सच में बहुत हौसला बढ़ानेवाला है। वह बताता है, “पौलुस पूरे दो साल तक किराए के मकान में रहा और जितने भी लोग उसके यहाँ आते उनका वह प्यार से स्वागत करता रहा। वह उनको परमेश्‍वर के राज का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह के बारे में बेझिझक और बिना किसी रुकावट के सिखाता रहा।” (प्रेषि. 28:30, 31) घर में नज़रबंद रहकर भी पौलुस दूसरों के लिए सच्चा प्यार और परवाह दिखाता है और विश्‍वास और जोश के साथ प्रचार करता है। वाकई, पौलुस की जितनी भी तारीफ की जाए कम है!

20, 21. कुछ मिसालें देकर बताइए कि रोम में पौलुस के प्रचार काम से किन्हें फायदा हुआ।

20 पौलुस ने जिन लोगों का प्यार से स्वागत किया उनमें से एक आदमी था, उनेसिमुस। वह एक दास था जो कुलुस्से से भागकर रोम आया था। पौलुस ने मसीही बनने में उनेसिमुस की मदद की और वह जल्द ही पौलुस का ‘विश्‍वासयोग्य और प्यारा भाई’ बन गया। पौलुस को उनेसिमुस से इतना लगाव हो गया था कि वह कहता है, ‘वह मेरा बच्चा है जिसका मैं पिता बना।’ (कुलु. 4:9; फिले. 10-12) उनेसिमुस की मदद करके पौलुस को कितनी खुशी हुई होगी!a

21 पौलुस के जोशीले प्रचार से और भी कई लोगों को फायदा हुआ। उसने फिलिप्पी के मसीहियों को खत में लिखा, “आज मैं जिस हाल में हूँ, उससे खुशखबरी फैलाने में मदद ही मिली है। सम्राट के अंगरक्षक दल के सब लोग और बाकी लोग भी जान गए हैं कि मैं मसीह की वजह से ज़ंजीरों में हूँ। अब प्रभु में ज़्यादातर भाइयों को मेरे कैद में होने की वजह से हिम्मत मिली है और वे पहले से ज़्यादा निडर और बेधड़क होकर परमेश्‍वर का वचन सुना रहे हैं।”​—फिलि. 1:12-14.

22. रोम में कैद रहते वक्‍त पौलुस क्या करता है?

22 हालाँकि रोम में पौलुस को घर से बाहर जाने की आज़ादी नहीं है, फिर भी वह हाथ-पर-हाथ धरे बैठा नहीं रहता। वह कुछ ज़रूरी खत लिखता है जो आज मसीही यूनानी शास्त्र का हिस्सा हैं।b पौलुस के खतों से पहली सदी के मसीहियों को बहुत फायदा हुआ। इन खतों से आज हमें भी बहुत फायदा होता है क्योंकि इनमें परमेश्‍वर ने जो सलाह दी है वह आज भी बहुत काम की है।​—2 तीमु. 3:16, 17.

रोम में लिखीं पौलुस की पहली पाँच चिट्ठियाँ

ईसवी सन्‌ 60-61 के बीच जब पौलुस पहली बार रोम में कैद था तो उस दौरान उसने पाँच चिट्ठियाँ लिखीं। एक चिट्ठी उसने मसीही भाई फिलेमोन  के नाम लिखी। चिट्ठी में पौलुस फिलेमोन को बताता है कि तेरा दास उनेसिमुस जो तेरे यहाँ से भाग गया था अब एक मसीही बन चुका है। इस दौरान पौलुस उनेसिमुस के लिए एक पिता जैसा बना। अब वह उनेसिमुस को वापस फिलेमोन के पास भेज रहा था लेकिन एक दास की तरह नहीं जो उसके लिए ‘पहले बेकार’ था मगर एक मसीही भाई की तरह।​—फिले. 10-12, 16.

दूसरी चिट्ठी उसने कुलुस्सियों  के नाम लिखी। इसमें पौलुस कहता है कि उनेसिमुस “तुम्हारे यहाँ का है” यानी कुलुस्से का है। (कुलु. 4:9) पौलुस ने इफिसियों  के नाम भी एक चिट्ठी लिखी। उनेसिमुस और तुखिकुस को ये तीनों चिट्ठियाँ पहुँचाने का सम्मान मिला।​—इफि. 6:21.

पौलुस ने फिलिप्पियों  को भी एक चिट्ठी लिखी जिसमें वह बताता है कि वह “ज़ंजीरों में कैद” है। वह चिट्ठी पहुँचानेवाले इपाफ्रोदितुस का भी ज़िक्र करता है। दरअसल फिलिप्पी की मंडली ने ही उसे पौलुस की मदद करने के लिए भेजा था। लेकिन इपाफ्रोदितुस इतना बीमार हो गया कि वह मरने पर था। और जब उसे पता चला कि फिलिप्पी के भाइयों ने ‘सुना कि वह बीमार पड़ गया है’ तो वह और निराश हो गया। इस वजह से पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे “ऐसे भाइयों” की कदर करना ना छोड़ें।​—फिलि. 1:7; 2:25-30.

पौलुस ने यहूदिया के सभी इब्रानी मसीहियों को भी एक चिट्ठी लिखी। हालाँकि इब्रानियों  के नाम इस चिट्ठी में कहीं भी लेखक का नाम नहीं आता मगर सबूत दिखाते हैं कि यह पौलुस की ही चिट्ठी है। इसमें तर्क करने का जो अंदाज़ है वह पौलुस का ही हो सकता है। और चिट्ठी में पौलुस इटली से शुभकामनाएँ भेजता है और तीमुथियुस का ज़िक्र करता है जो उसके साथ रोम में था।​—फिलि. 1:1; कुलु. 1:1; फिले. 1; इब्रा. 13:23, 24.

23, 24. पौलुस की तरह आज कई मसीहियों ने कैद में रहते वक्‍त भी कैसे अपनी खुशी बरकरार रखी है?

23 आखिरकार पौलुस को रिहा किया जाता है। प्रेषितों की किताब यह तो नहीं बताती कि उसे कब रिहा किया गया लेकिन हम इतना जानते हैं कि उसे कैद में करीब चार साल हो चुके थे, दो साल कैसरिया में और दो साल रोम में।c (प्रेषि. 23:35; 24:27) मगर इस पूरे दौर में पौलुस हिम्मत नहीं हारता। वह सही नज़रिया बनाए रखता है और परमेश्‍वर की सेवा में उससे जितना बन पड़ता है वह करता है। हमारे ज़माने में भी जब यहोवा के कुछ सेवकों को उनके विश्‍वास की वजह से जेल में डाला गया, तो उन्होंने अपनी खुशी कम नहीं होने दी और वे प्रचार करते रहे। स्पेन में भाई अडौल्फो की मिसाल लीजिए। उन्होंने सेना में भरती होने से इनकार किया इसलिए उन्हें जेल हो गयी। एक अफसर ने उनसे कहा, “तुम कमाल के आदमी हो! हमने तुम्हारा जीना दुश्‍वार कर दिया, तुम पर एक-से-एक ज़्यादती की। फिर भी तुम्हारे चेहरे की वह मुस्कुराहट कम नहीं हुई और तुमने हमेशा हमारे साथ अच्छे-से बात की।”

24 कुछ वक्‍त बाद जेल के अधिकारियों को अडौल्फो पर इतना भरोसा हो गया कि वे उसकी कोठरी का दरवाज़ा खुला छोड़ देते थे। जेल के पहरेदार बाइबल की बातें सुनने के लिए उसके पास जाते थे। एक पहरेदार तो बाइबल पढ़ने के लिए अडौल्फो की कोठरी में जाया करता था और अडौल्फो नज़र रखता था कि कोई आ ना जाए। इस तरह एक कैदी कुछ वक्‍त के लिए “पहरेदार” बन जाता था! आइए हम ऐसे वफादार साक्षियों से सीखते रहें ताकि हम मुश्‍किल-से-मुश्‍किल परीक्षा में भी ‘निडर और बेधड़क होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाते रहें।’

25, 26. यीशु की कौन-सी बात को पौलुस पूरा होते देखता है? हमारे दिनों में यह बात कैसे पूरी हो रही है?

25 प्रेषितों की किताब जोशीले प्रचारकों की दास्तान सुनाने के बाद अब इस बेहतरीन जानकारी के साथ खत्म होती है: पौलुस घर की चारदीवारी में कैद है फिर भी जो कोई उससे मिलने आता है, उसे वह “परमेश्‍वर के राज का प्रचार” करता है। इस किताब के पहले अध्याय में हमने पढ़ा था कि यीशु ने अपने चेलों से कहा, “जब तुम पर पवित्र शक्‍ति आएगी, तो तुम ताकत पाओगे और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, यहाँ तक कि दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।” (प्रेषि. 1:8) इस बात को 30 साल भी नहीं हुए थे कि राज के संदेश का “प्रचार पूरी दुनिया में किया जा चुका” था।d (कुलु. 1:23) यह इस बात का सबूत है कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति कितने ज़बरदस्त तरीके से काम करती है!​—जक. 4:6.

26 आज अभिषिक्‍त मसीही और “दूसरी भेड़ें” 240 देशों में “परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही” दे रहे हैं! पहली सदी के मसीहियों की तरह वे पवित्र शक्‍ति की वजह से ही ऐसा कर पा रहे हैं। (यूह. 10:16; प्रेषि. 28:23) क्या आप भी इस काम में जी-जान लगाकर हाथ बँटा रहे हैं?

ईसवी सन्‌ 61 के बाद पौलुस की ज़िंदगी

ऐसा मालूम होता है कि ईसवी सन्‌ 61 में पौलुस सम्राट नीरो के सामने हाज़िर हुआ और सम्राट ने उसे बेगुनाह बताकर छोड़ दिया। इसके बाद पौलुस ने क्या किया? इस बारे में हमारे पास ज़्यादा जानकारी नहीं है। वह बहुत समय से स्पेन जाने की सोच रहा था। ऐसा मालूम होता है कि वह शायद इसी दौरान वहाँ गया होगा। (रोमि. 15:28) करीब ईसवी सन्‌ 95 में रोम के एक लेखक क्लेमेंट ने लिखा कि पौलुस ने “पश्‍चिम की छोर तक” सफर किया। इसका मतलब उसे स्पेन जाने का भी मौका मिला होगा।

पौलुस ने अपनी रिहाई के बाद तीन चिट्ठियाँ लिखीं। ये थीं, 1 और 2 तीमुथियुस और तीतुस। इन चिट्ठियों से पता चलता है कि पौलुस क्रेते, मकिदुनिया, नीकुपुलिस और त्रोआस भी गया था। (1 तीमु. 1:3; 2 तीमु. 4:13; तीतु. 1:5; 3:12) इसके बाद पौलुस को गिरफ्तार कर लिया गया। हमें यह तो नहीं पता कि उसे यूनान के नीकुपुलिस में गिरफ्तार किया गया या कहीं और, लेकिन एक बात तो पक्की है कि करीब ईसवी सन्‌ 65 में वह दोबारा रोम में कैद था। इस बार सम्राट नीरो पौलुस पर कोई रहम नहीं करता। वह क्यों? रोमी इतिहासकार टैसीटस ने बताया कि ईसवी सन्‌ 64 में जब रोम शहर जलकर राख हो गया था, तो नीरो ने झूठ फैलाया कि मसीहियों ने आग लगायी थी। और वह उन पर बेदर्दी से ज़ुल्म करने लगा।

पौलुस जानता था कि उसकी मौत करीब है। इसलिए तीमुथियुस के नाम दूसरी चिट्ठी में उसने उसे और मरकुस को जल्द-से-जल्द आने के लिए कहा। लूका और उनेसिफुरुस भी पौलुस को दिलासा देने उसके साथ थे। (2 तीमु. 1:16, 17; 4:6-9, 11) उनकी हिम्मत की दाद देनी होगी क्योंकि उस समय अगर कोई खुद को मसीही बताता, तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाता और तड़पा-तड़पाकर मार डाला जाता था। करीब ईसवी सन्‌ 65 में तीमुथियुस को दूसरी चिट्ठी लिखने के कुछ ही समय बाद, पौलुस को मौत की सज़ा दी गयी। कहा जाता है कि इसके करीब तीन साल बाद नीरो ने खुदकुशी कर ली।

खुशखबरी का प्रचार “पूरी दुनिया में किया जा चुका है”

करीब ईसवी सन्‌ 61 में जब पौलुस रोम में कैद था, तब उसने लिखा कि “खुशखबरी” का प्रचार “पूरी दुनिया में किया जा चुका है।” (कुलु. 1:23) पौलुस के कहने का क्या मतलब था?

“पूरी दुनिया” से पौलुस का मतलब था कि दुनिया के बहुत-से इलाकों में “खुशखबरी” सुनायी जा चुकी थी। लेकिन अब भी ऐसे कई इलाके थे जहाँ प्रचार होना बाकी था। कुछ उदाहरण देखते हैं। ईसा पूर्व चौथी सदी में सिकंदर महान एशिया के इलाकों को अपने कब्ज़े में करते-करते, भारत की सरहदों तक पहुँच गया था। जूलियस सीज़र ने ईसा पूर्व 55 में ब्रिटेन को अपने कब्ज़े में कर लिया था और क्लौदियुस ने ईसवी सन्‌ 43 में उस द्वीप के दक्षिणी हिस्से को अपने रोमी साम्राज्य में मिला लिया था। पूर्वी एशिया के इलाके भी काफी जाने-माने थे क्योंकि यहीं से दुनिया के दूसरे देशों तक रेशम की सप्लाई होती थी।

क्या पौलुस के दिनों में ब्रिटेन और पूर्वी एशिया के इलाकों में खुशखबरी सुनायी गयी थी? इसकी गुंजाइश कम लगती है। करीब ईसवी सन्‌ 56 में पौलुस ने कहा था कि वह स्पेन जाना चाहता है, ‘जहाँ प्रचार नहीं हुआ था।’ (रोमि. 15:20, 23, 24) ईसवी सन्‌ 61 में जब पौलुस ने कुलुस्सियों को लिखा कि खुशखबरी का प्रचार पूरी दुनिया में किया जा चुका है, तब तक वह स्पेन नहीं जा पाया था। फिर भी यह कहा जा सकता है कि उस वक्‍त तक राज का संदेश दुनिया में दूर-दूर तक फैल चुका था। ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन जिन यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों ने बपतिस्मा लिया था, उनके देशों तक खुशखबरी ज़रूर पहुँची होगी। साथ ही, यीशु के प्रेषितों ने जिन देशों का दौरा किया वहाँ भी प्रचार हो चुका होगा।​—प्रेषि. 2:1, 8-11, 41, 42.

a पौलुस उनेसिमुस को अपने साथ रखना चाहता था। लेकिन वह जानता था कि ऐसा करने से वह रोम का कानून तोड़ रहा होगा और अपने मसीही भाई फिलेमोन का हक भी मार रहा होगा जो उनेसिमुस का मालिक था। इसलिए उसने उनेसिमुस को फिलेमोन के पास वापस भेज दिया और उसके हाथ एक खत भी दिया। खत में पौलुस ने फिलेमोन से गुज़ारिश की कि वह अपने दास उनेसिमुस को अपना मसीही भाई समझकर प्यार से कबूल करे।​—फिले. 13-19.

b यह बक्स देखें, “रोम में लिखीं पौलुस की पहली पाँच चिट्ठियाँ।”

c यह बक्स देखें, “ईसवी सन्‌ 61 के बाद पौलुस की ज़िंदगी।”

d यह बक्स देखें, “खुशखबरी का प्रचार ‘पूरी दुनिया में किया जा चुका है।’”

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