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  • ‘वे पवित्र शक्‍ति से भर गए’

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  • ‘वे पवित्र शक्‍ति से भर गए’
  • ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
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  • मिलते-जुलते लेख
  • “वे सब एक ही घर में इकट्ठा थे” (प्रेषि. 2:1-4)
  • ‘हर किसी को अपनी ही भाषा सुनायी दे रही थी’ (प्रेषि. 2:5-13)
  • ‘पतरस खड़ा हुआ’ (प्रेषि. 2:14-37)
  • ‘तुममें से हरेक बपतिस्मा ले’ (प्रेषि. 2:38-47)
  • पतरस पिन्तेकुस्त के दिन प्रचार करता है
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
  • पहली सदी के यहूदियों में मसीहियत का प्रचार
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2005
  • पाठकों के प्रश्‍न
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2003
  • ‘भांति-भांति की भाषा बोलनेवाले’ सुसमाचार सुन रहे हैं
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2005
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‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
bt अध्या. 3 पेज 20-27

अध्याय 3

‘वे पवित्र शक्‍ति से भर गए’

पिन्तेकुस्त के दिन जब चेलों पर पवित्र शक्‍ति उँडेली जाती है तो क्या-क्या होता है

प्रेषितों 2:1-47 पर आधारित

1. समझाइए कि पूरे यरूशलेम में कैसा माहौल छाया हुआ है।

यरूशलेम की हर गली में चहल-पहल है। जगह-जगह भीड़ जमा है, लोग खुशी और उमंग से भरे हुए हैं।a मंदिर की वेदी से धुआँ उठ रहा है और लेवियों का गाना दूर-दूर तक गूँज रहा है। वे हालेल (भजन 113 से 118) नाम का एक स्तुति-गीत गा रहे हैं, जिसमें दो समूह बारी-बारी से गाते हैं। दूर-दूर के देशों से भी लोग यरूशलेम आए हैं, जैसे एलाम, मेसोपोटामिया, कप्पदूकिया, पुन्तुस, मिस्र और रोम वगैरह से।b आखिर बात क्या है? हर जगह इतनी रौनक क्यों है? आज पिन्तेकुस्त का त्योहार है, जिसे ‘पकी हुई पहली फसल का दिन’ भी कहा जाता है। (गिन. 28:26) यह सालाना त्योहार जौ की कटाई खत्म होने और गेहूँ की कटाई शुरू होने के मौके पर मनाया जाता है।

एक नक्शा जिसमें दिखाया गया है कि ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन जिन लोगों ने खुशखबरी सुनी थी, वे किन-किन इलाकों से आए थे। 1. इलाके: लिबिया, मिस्र, इथियोपिया, बितूनिया, पुन्तुस, कप्पदूकिया, यहूदिया, मेसोपोटामिया, बैबिलोनिया, एलाम, मादै और पारथिया। 2. शहर: रोम, सिकंदरिया, मेम्फिस, अंताकिया (सीरिया का), यरूशलेम और बैबिलोन। 3. सागर/खाड़ी: भूमध्य सागर, काला सागर, लाल सागर, कैस्पियन सागर और फारस की खाड़ी।

यरूशलेम​—यहूदियों की उपासना की खास जगह

प्रेषितों की किताब के शुरूआती अध्यायों में बतायी ज़्यादातर घटनाएँ यरूशलेम में घटीं। यह शहर यहूदिया देश के बीचों-बीच पहाड़ियों पर बसा था और भूमध्य सागर से करीब 55 किलोमीटर दूर पूरब में था। ईसा पूर्व 1070 में राजा दाविद ने एक किले पर जीत हासिल की जो सिय्योन पहाड़ पर बसा था। समय के चलते सिय्योन के आस-पास लोग बसने लगे और इस तरह एक शहर बन गया। यह शहर यरूशलेम के नाम से जाना गया और इसराएल राष्ट्र की राजधानी बना।

सिय्योन पहाड़ के पास ही मोरिया पहाड़ है। यहूदियों के इतिहास के मुताबिक, अब्राहम मोरिया पहाड़ पर ही इसहाक की बलि चढ़ाने आया था। यह घटना प्रेषितों की किताब में बतायी घटनाओं के करीब 1,900 साल पहले हुई थी। सुलैमान ने मोरिया पहाड़ पर यहोवा का मंदिर बनाया था और तब से यह पहाड़ यरूशलेम शहर का हिस्सा बन गया। आगे चलकर यह मंदिर यहूदियों की उपासना की खास जगह बना और उनकी ज़िंदगी में मंदिर की एक अहम भूमिका रही।

यहोवा के इस मंदिर में दुनिया के कोने-कोने से यहूदी आते थे। यहाँ आकर वे परमेश्‍वर के लिए बलिदान चढ़ाते, उसकी उपासना करते और अलग-अलग त्योहार मनाते थे। इस तरह वे परमेश्‍वर की इस आज्ञा को मानते थे, “साल में तीन बार सभी आदमी अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने हाज़िर हुआ करें। . . . उन्हें उस जगह हाज़िर होना है जो परमेश्‍वर चुनेगा।” (व्यव. 16:16) यरूशलेम में महासभा भी थी जो यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत थी और यहूदी समाज के प्रशासन की देखरेख भी करती थी।

2. ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन ऐसा क्या होता है जो पहले कभी नहीं हुआ था?

2 सुबह के करीब नौ बज रहे हैं। तभी एक ऐसी अनोखी घटना घटती है जिसे लोग सदियों तक नहीं भूलेंगे। यीशु के करीब 120 चेले एक कमरे में इकट्ठा हैं। अचानक “आकाश से साँय-साँय करती तेज़ आँधी जैसी आवाज़” सुनायी देती है जिससे सारा कमरा गूँज उठता है। (प्रेषि. 2:2) फिर कुछ ऐसा होता है जो पहले कभी नहीं हुआ था! चेलों को जीभ के आकार की लपटें दिखायी देती हैं और उनमें से हरेक के ऊपर एक-एक जा ठहरती है।c तब सभी चेले “पवित्र शक्‍ति से भर” जाते हैं और विदेशी भाषाएँ बोलने लगते हैं! जब चेले घर से बाहर आते हैं तो वे अलग-अलग देशों से आए लोगों से उनकी भाषा में बात करने लगते हैं। परदेसी यह देखकर दंग रह जाते हैं कि ये लोग यहूदी होकर हमारी भाषा कैसे बोलने लगे! हर किसी को चेलों के मुँह से ‘अपनी ही भाषा सुनायी दे रही है।’​—प्रेषि. 2:1-6.

3. (क) ईसवी सन्‌ 33 की घटना सच्ची उपासना के इतिहास में एक यादगार घटना क्यों थी? (ख) पतरस ने कैसे ‘राज की चाबियों’ में से पहली चाबी का इस्तेमाल किया?

3 यह घटना सच्ची उपासना के इतिहास में एक यादगार घटना थी। इससे परमेश्‍वर के इसराएल यानी अभिषिक्‍त मसीहियों की मंडली की शुरूआत हुई। (गला. 6:16) लेकिन उस दिन कुछ और भी हुआ। दरअसल पतरस को ‘राज की तीन चाबियाँ’ दी गयी थीं और हरेक चाबी से एक समूह के लोगों के लिए आशीषें पाने का मौका खुलता। उस दिन पतरस ने पहली चाबी का इस्तेमाल किया। (मत्ती 16:18, 19) कैसे? उसने यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवालों के सामने जो भाषण दिया, उससे उन्हें खुशखबरी कबूल करने और पवित्र शक्‍ति पाने का मौका मिला।d इस तरह वे परमेश्‍वर के इसराएल का हिस्सा बने और आगे चलकर वे मसीहा के राज में राजाओं और याजकों की हैसियत से राज करेंगे। (प्रका. 5:9, 10) समय के चलते, यह मौका सामरियों और उनके बाद गैर-यहूदियों को दिया गया। ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त की उन यादगार घटनाओं से आज मसीही क्या सीख सकते हैं?

“वे सब एक ही घर में इकट्ठा थे” (प्रेषि. 2:1-4)

4. ईसवी सन्‌ 33 की मंडली और आज की मसीही मंडली में क्या बात एक जैसी है?

4 मसीही मंडली की शुरूआत करीब 120 चेलों से हुई जो “एक ही घर” के ऊपरी कमरे में इकट्ठा थे और जिनका पवित्र शक्‍ति से अभिषेक हुआ था। (प्रेषि. 2:1) मगर उस दिन के खत्म होते-होते मंडली की गिनती बढ़ गयी क्योंकि हज़ारों लोगों ने बपतिस्मा लिया। यह तो बस एक शुरूआत थी। तब से लोगों की गिनती बढ़ती गयी है और आज भी इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। आज मसीही मंडली ऐसे लोगों से मिलकर बनी है जो परमेश्‍वर का गहरा आदर करते हैं। वे ‘राज की खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार’ करते हैं ताकि अंत आने से पहले “सब राष्ट्रों को गवाही दी जाए।”​—मत्ती 24:14.

5. पहली सदी की मंडली के साथ इकट्ठा होने से मसीहियों को क्या आशीष मिली और आज भी क्या आशीष मिलती है?

5 मसीही मंडली भाई-बहनों का हौसला बढ़ाने में भी एक अहम भूमिका निभाती है। यह मंडली शुरू में अभिषिक्‍त लोगों से बनी थी और बाद में इसमें “दूसरी भेड़ें” भी शामिल हुईं। (यूह. 10:16) रोम की मंडली के भाई-बहन हमेशा एक-दूसरे की मदद करने के लिए तैयार रहते थे। पौलुस यह बात अच्छी तरह जानता था इसलिए उसने उन्हें लिखा, “मैं तुमसे मिलने के लिए तरस रहा हूँ ताकि तुम्हें परमेश्‍वर की तरफ से कोई आशीष दूँ जिससे तुम मज़बूत हो सको। या यूँ कहूँ कि मैं और तुम अपने-अपने विश्‍वास के ज़रिए एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकें।”​—रोमि. 1:11, 12.

रोम​—एक विशाल साम्राज्य की राजधानी

प्रेषितों की किताब में बतायी घटनाएँ जिस ज़माने में घटी थीं, उस दौरान रोम दुनिया का सबसे बड़ा और ताकतवर शहर था। रोम एक बहुत बड़े साम्राज्य की राजधानी था। यह साम्राज्य ब्रिटेन से लेकर उत्तरी अफ्रीका तक और अटलांटिक महासागर से फारस की खाड़ी तक फैला था।

रोम में अलग-अलग संस्कृति, जाति और भाषा के लोग रहते थे। वहाँ तरह-तरह के अंधविश्‍वास फैले हुए थे। पूरे रोमी साम्राज्य में पक्की सड़कें बनी हुई थीं जिस वजह से व्यापारियों और मुसाफिरों का रोम में आना-जाना लगा रहता था। रोम से थोड़ी दूरी पर ऑस्टीया बंदरगाह था। जब जहाज़ रोम के लिए राशन-पानी और महँगी-महँगी चीज़ें लाते तो ऑस्टीया बंदरगाह पर सारा माल उतार देते थे।

ईसवी सन्‌ पहली सदी तक रोम की आबादी दस लाख पार कर गयी थी। शायद इनमें से आधे लोग गुलाम थे। कुछ गुलाम अपराधी थे तो कुछ ऐसे बच्चे थे जिनके माँ-बाप ने उन्हें गुलामी में बेच दिया था या बेसहारा छोड़ दिया था। कुछ गुलाम ऐसे भी थे जिन्हें रोमी सेना किसी युद्ध के बाद बंदी बनाकर रोम ले आयी थी। इनमें से कुछ लोग यहूदी थे। उन्हें उस वक्‍त रोम लाया गया जब ईसा पूर्व 63 में रोमी सेनापति पॉम्पी ने यरूशलेम शहर जीत लिया था।

रोम के ज़्यादातर लोग बहुत गरीब थे और बहु-मंज़िला इमारतों में रहते थे, जो खचाखच भरी थीं। वे सरकार से मिलनेवाली मदद के सहारे जीते थे। जबकि रोम के सम्राट अपनी राजधानी को खूबसूरत बनाने में सारा पैसा बहा देते थे। उन्होंने रोम में बड़ी-बड़ी और आलीशान इमारतें खड़ी करवायीं जैसे थियेटर, स्टेडियम और अखाड़े। यहाँ संगीत और नाच-गाने के कई कार्यक्रम रखे जाते थे, योद्धाओं के बीच मुकाबले होते थे और रथों की दौड़ होती थी। आम जनता के लिए यह सारा मनोरंजन मुफ्त होता था।

6, 7. सब राष्ट्रों के लोगों को प्रचार करने के लिए आज मसीही मंडली क्या कर रही है?

6 आज भी मसीही मंडली का वही लक्ष्य है जो पहली सदी की मंडली का था यानी प्रचार करना। जब यीशु ने अपने चेलों को यह काम सौंपा तो उसने कहा, “सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ और उन्हें पिता, बेटे और पवित्र शक्‍ति के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें वे सारी बातें मानना सिखाओ जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है।” (मत्ती 28:19, 20) यह काम भले ही आसान नहीं है मगर इससे बहुत खुशियाँ मिलती हैं।

7 यहोवा के साक्षियों की मसीही मंडली आज वह काम पूरा कर रही है। इतनी सारी भाषाओं में खुशखबरी सुनाना आसान नहीं है। फिर भी यहोवा के साक्षी 1,000 से भी ज़्यादा भाषाओं में बाइबल के प्रकाशन तैयार करते हैं। अगर आप लगातार सभाओं में हाज़िर होते हैं और प्रचार और चेला बनाने का काम करते हैं, तो आपको खुश होना चाहिए। क्योंकि दुनिया में बहुत कम लोगों को यहोवा के नाम के बारे में गवाही देने का सम्मान मिला है और आप उनमें से एक हैं!

8. मसीही मंडली से हमें क्या मदद मिलती है?

8 दुनिया-भर में फैली भाइयों की बिरादरी के ज़रिए यहोवा हमें मज़बूत करता है ताकि मुश्‍किल वक्‍त में भी हम धीरज धर सकें। पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को लिखा, “आओ हम एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें ताकि एक-दूसरे को प्यार और भले काम करने का बढ़ावा दे सकें और एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसा कुछ लोगों का दस्तूर है बल्कि एक-दूसरे की हिम्मत बँधाएँ। और जैसे-जैसे तुम उस दिन को नज़दीक आता देखो, यह और भी ज़्यादा किया करो।” (इब्रा. 10:24, 25) मसीही मंडली यहोवा की तरफ से एक ऐसा इंतज़ाम है जिससे हम एक-दूसरे की हिम्मत बढ़ा सकते हैं। इसलिए आइए हम भाई-बहनों के हमेशा करीब रहें और सभाओं में एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना कभी ना छोड़ें!

‘हर किसी को अपनी ही भाषा सुनायी दे रही थी’ (प्रेषि. 2:5-13)

भीड़-भाड़वाली सड़क पर यीशु के चेले यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों को प्रचार कर रहे हैं।

“हम इन लोगों को हमारी अपनी भाषा में परमेश्‍वर के शानदार कामों के बारे में बोलते हुए सुन रहे हैं।”—प्रेषितों 2:11

9, 10. दूसरी भाषा बोलनेवालों को प्रचार करने के लिए कुछ मसीही क्या करते हैं?

9 ज़रा सोचिए, ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले कैसे उमंग से भर गए होंगे। “हर किसी को चेलों के मुँह से अपनी ही भाषा सुनायी दे रही थी।” (प्रेषि. 2:6) ऐसा नहीं था कि उन्हें यूनानी या इब्रानी भाषा नहीं आती थी, जो आम बोलचाल की भाषाएँ थीं। लेकिन जब उन्होंने अपनी भाषा में खुशखबरी सुनी, तो यह उनके दिल को छू गयी। आज मसीहियों को अलग-अलग भाषाएँ बोलने का वरदान तो नहीं मिला है, लेकिन कई मसीही दूसरी भाषा बोलनेवाले लोगों को प्रचार करते हैं। वे नयी भाषा सीखते हैं, ताकि दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में सेवा कर सकें या दूसरे देश जाकर सेवा कर सकें। इन मसीहियों ने पाया है कि अकसर जब वे लोगों से उनकी अपनी भाषा में बात करते हैं, तो लोग उनकी मेहनत की तारीफ करते हैं।

10 क्रिस्टीन की मिसाल लीजिए। वह सात भाई-बहनों के साथ मिलकर गुजराती भाषा सीख रही थी। एक बार क्रिस्टीन ने अपने साथ काम करनेवाली एक गुजराती औरत को उसकी भाषा में नमस्ते कहा। वह औरत हैरान रह गयी। वह जानना चाहती थी कि क्रिस्टीन इतनी मुश्‍किल भाषा सीखने के लिए मेहनत क्यों कर रही है। फिर क्रिस्टीन ने उसे गवाही दी। उस औरत ने क्रिस्टीन से कहा, “तुम जो संदेश दे रही हो, इसमें ज़रूर कुछ खास बात होगी।”

11. भले ही हमें कोई नयी भाषा नहीं आती फिर भी उस भाषा में गवाही देने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

11 माना कि हममें से हर कोई एक नयी भाषा नहीं सीख सकता, फिर भी हम दूसरी भाषा बोलनेवाले लोगों को गवाही दे सकते हैं। कैसे? एक तरीका है, JW लैंग्वेज  ऐप इस्तेमाल करके। इससे हम अपने इलाके में बोली जानेवाली भाषा में नमस्ते कहना और लोगों का हाल-चाल पूछना सीख सकते हैं। हम उस भाषा के कुछ शब्द भी सीख सकते हैं जिससे कि सुननेवाले बाइबल के संदेश में दिलचस्पी लें। फिर हम उन्हें jw.org वेबसाइट के बारे में बता सकते हैं और हो सके तो उनकी भाषा में उपलब्ध वीडियो और प्रकाशन दिखा सकते हैं। ऐसा करने से हमें वही खुशी मिलेगी जो पहली सदी के भाइयों को मिली थी जब उन्होंने अलग-अलग देश के लोगों को ‘उनकी भाषा’ में खुशखबरी सुनायी थी।

मेसोपोटामिया और मिस्र के यहूदी

यहूदियों के इतिहास के बारे में एक किताबg बताती है, “मेसोपोटामिया, मादै  और बैबिलोनिया  में [इसराएल के] दस गोत्रवाले राज्य और यहूदा राज्य के लोग रहते थे, जिनके पूर्वजों को अश्‍शूरी और बैबिलोनी लोग बंदी बनाकर इन इलाकों में ले आए थे।” एज्रा 2:64 के मुताबिक सिर्फ 42,360 इसराएली बैबिलोन की बँधुआई से यरूशलेम लौटे थे। यह ईसा पूर्व 537 की बात है। इतिहासकार फ्लेवियस जोसीफस बताता है कि ईसवी सन्‌ पहली सदी में “बैबिलोनिया के आस-पास” हज़ारों यहूदी रहते थे। ईसवी सन्‌ तीसरी और पाँचवीं सदी के दौरान इन यहूदियों ने अपने नियमों को एक किताब में लिखा जिसे बैबिलोनी तलमूद कहा जाता है।

अगर मिस्र की बात करें, तो कुछ दस्तावेज़ों से पता चलता है कि यहूदी वहाँ करीब ईसा पूर्व छठी सदी से रह रहे थे। या हो सकता है कि वे उससे पहले भी रह रहे हों। उस वक्‍त यिर्मयाह ने मिस्र के अलग-अलग इलाकों में रहनेवाले यहूदियों को एक संदेश दिया था, जिनमें से एक इलाका मेम्फिस था। (यिर्म. 44:1, फु.) जब यूनानी संस्कृति पूरी दुनिया में फैल रही थी तो उस दौरान भी शायद कई यहूदी मिस्र जाकर बस गए थे। जोसीफस बताता है कि सिकंदरिया शहर में जो लोग सबसे पहले आकर बसे, उनमें यहूदी भी थे। समय के गुज़रते उस शहर का एक बड़ा इलाका उन्हें दे दिया गया था। ईसवी सन्‌ पहली सदी के यहूदी लेखक फीलो का कहना है कि पूरे मिस्र में, “लिबिया की एक छोर से लेकर इथियोपिया की सरहदों तक” कम-से-कम दस लाख यहूदी रहते थे।

g द हिस्ट्री ऑफ द जुइश पीपल इन द ऐज ऑफ जीज़स क्राइस्ट (ईसा पूर्व 175–ईसवी सन्‌ 135)।

‘पतरस खड़ा हुआ’ (प्रेषि. 2:14-37)

12. (क) पिन्तेकुस्त के दिन योएल की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई? (ख) यीशु के चेलों को क्यों उम्मीद थी कि योएल की भविष्यवाणी उनके दिनों में पूरी होगी?

12 पिन्तेकुस्त के दिन, अलग-अलग देशों से आए लोगों की भीड़ जमा थी। उनसे बात करने के लिए ‘पतरस खड़ा हुआ।’ (प्रेषि. 2:14) उसने समझाया कि चेलों को अलग-अलग भाषा बोलने का वरदान परमेश्‍वर की तरफ से मिला है। और इससे योएल की भविष्यवाणी पूरी हुई। यहोवा ने योएल के ज़रिए कहा था, “मैं हर तरह के इंसान पर अपनी पवित्र शक्‍ति उँडेलूँगा।” (योए. 2:28) और चेलों को भी उम्मीद थी कि यह भविष्यवाणी पूरी होगी क्योंकि स्वर्ग लौटने से पहले यीशु ने उनसे कहा था, “मैं पिता से बिनती करूँगा और वह तुम्हें एक और मददगार देगा।” फिर यीशु ने बताया कि वह मददगार “पवित्र शक्‍ति” है।​—यूह. 14:16, 17.

13, 14. पतरस ने कैसे अपने सुननेवालों के दिलों को उभारा? हम भी यह कैसे कर सकते हैं?

13 पतरस ने अपने भाषण के आखिर में भीड़ से साफ-साफ कहा, “इसराएल का सारा घराना हर हाल में यह जान ले कि परमेश्‍वर ने इसी यीशु को प्रभु और मसीह ठहराया है, जिसे तुमने काठ पर लटकाकर मार डाला।” (प्रेषि. 2:36) भीड़ में से ज़्यादातर लोग उस वक्‍त मौजूद नहीं थे जब यीशु को काठ पर लटकाकर मार डाला गया था। इसलिए वे सीधे-सीधे उसकी मौत के लिए ज़िम्मेदार नहीं थे। लेकिन वे उसी राष्ट्र से थे जिसने यीशु को मार डाला था इसलिए वे भी दोषी थे। फिर भी पतरस ने क्या किया? उसने उन यहूदियों से बड़े आदर से बात की। वह चाहता था कि वे पश्‍चाताप करने के लिए उभारे जाएँ। क्या लोगों ने पतरस की बात का बुरा माना? नहीं। इसके बजाय, “उनका दिल उन्हें बेहद कचोटने लगा।” उन्होंने पूछा, “अब हमें क्या करना चाहिए?” पतरस का व्यवहार लोगों के दिल को छू गया और शायद इसी वजह से बहुत-से लोगों ने पश्‍चाताप किया।​—प्रेषि. 2:37.

14 हम भी पतरस की तरह लोगों के दिलों को उभार सकते हैं। अगर प्रचार में कोई हमसे ऐसी बात कहता है जो बाइबल के हिसाब से सही नहीं है, तो हमें उसके साथ बहस नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, हम उन विषयों पर बात कर सकते हैं जिन पर हम दोनों सहमत हों। फिर हम उससे परमेश्‍वर के वचन से बात कर पाएँगे। जब हम पतरस की तरह लोगों से आदर से बात करेंगे तो नेकदिल लोग हमारा संदेश स्वीकार करेंगे।

पुन्तुस में मसीही धर्म

ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन जिन लोगों ने यरूशलेम में पतरस का भाषण सुना उनमें पुन्तुस से आए यहूदी भी थे। पुन्तुस, एशिया माइनर के उत्तरी हिस्से में एक ज़िला था। (प्रेषि. 2:9) ये यहूदी जब वापस पुन्तुस लौटे तो वहाँ उन्होंने दूसरों को खुशखबरी सुनायी होगी। ऐसा हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि पतरस ने अपनी पहली चिट्ठी पुन्तुस और दूसरी जगहों में “फैले हुए” मसीहियों के नाम लिखी थी।h (1 पत. 1:1) पतरस की चिट्ठी से पता चलता है कि पुन्तुस के मसीही अपने विश्‍वास की खातिर ‘तरह-तरह की परीक्षाएँ झेल’ रहे थे। (1 पत. 1:6) शायद उन्हें विरोध और ज़ुल्मों का सामना करना पड़ा था।

सम्राट ट्रेजन और रोमी प्रांत बितूनिया और पुन्तुस के राज्यपाल, प्लीनी द यंगर ने एक-दूसरे को जो चिट्ठियाँ लिखीं, उनसे पता चलता है कि पुन्तुस के मसीहियों को सताया जा रहा था। करीब ईसवी सन्‌ 112 में प्लीनी ने एक खत में लिखा कि मसीही धर्म “छूत की बीमारी” की तरह सब लोगों में फैल रहा है, चाहे वे आदमी हों या औरत, बूढ़े हों या बच्चे, अमीर हों या गरीब। उसने मसीहियों से कहा कि वे या तो अपना धर्म छोड़ दें या मरने के लिए तैयार हो जाएँ। जिन लोगों ने मसीह की निंदा की या दूसरे ईश्‍वरों या सम्राट ट्रेजन की मूर्ति के आगे प्रार्थना की, उन्हें रिहा कर दिया गया। मगर प्लीनी ने यह भी माना कि “जो लोग पक्के मसीही हैं वे कभी अपने विश्‍वास से समझौता नहीं करते।”

h जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “फैले हुए” किया गया है वह उन यहूदियों के लिए इस्तेमाल होता था जो पैलिस्टाइन के बाहर के इलाकों में बसे थे। इससे पता चलता है कि पुन्तुस में सबसे पहले मसीही बननेवाले ज़्यादातर लोग यहूदी थे।

‘तुममें से हरेक बपतिस्मा ले’ (प्रेषि. 2:38-47)

15. (क) पतरस ने अपने भाषण में क्या कहा और इसका क्या नतीजा हुआ? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि जिन लोगों ने पिन्तेकुस्त के दिन बपतिस्मा लिया उन्होंने जल्दबाज़ी में यह कदम नहीं उठाया?

15 जिन लोगों ने पतरस से पूछा था कि उन्हें क्या करना चाहिए, पतरस ने उनसे कहा, ‘पश्‍चाताप करो और तुममें से हरेक बपतिस्मा ले।’ (प्रेषि. 2:38) नतीजा, करीब 3,000 लोगों ने बपतिस्मा लिया।e उन्होंने यरूशलेम में या उसके आस-पास के कुंडों में बपतिस्मा लिया होगा। क्या उन्होंने जल्दबाज़ी में यह कदम उठाया? क्या इसका मतलब है कि आज बाइबल विद्यार्थियों और मसीही माता-पिताओं के बच्चों को जल्द-से-जल्द बपतिस्मा ले लेना चाहिए, फिर चाहे वे इसके लिए तैयार ना हों? बिलकुल नहीं! याद रखिए, पिन्तेकुस्त के दिन जिन लोगों ने बपतिस्मा लिया वे या तो यहूदी थे या उन्होंने यहूदी धर्म अपना लिया था। यानी, वे ध्यान से परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करते थे और एक ऐसे राष्ट्र से थे जो यहोवा को समर्पित था। यही नहीं, वे पूरे जोश से परमेश्‍वर की उपासना करते थे। तभी तो वे हर साल त्योहार मनाने के लिए इतना लंबा सफर तय करके यरूशलेम आते थे। लेकिन वे परमेश्‍वर के मकसद में यीशु की भूमिका के बारे में नहीं जानते थे। अब जब उन्होंने इस बारे में सीख लिया और यीशु पर विश्‍वास किया, तो वे बपतिस्मा लेकर मसीह  के चेले बन सकते थे और अपनी सेवा जारी रख सकते थे।

यहूदी धर्म अपनानेवाले कौन थे?

ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन जिन लोगों ने पतरस का भाषण सुना था, उनमें ‘यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले’ भी थे।​—प्रेषि. 2:10.

यहूदी धर्म अपनानेवाले दरअसल गैर-यहूदी थे, जिन्होंने यहूदी धर्म अपनाया था। उनमें से एक निकुलाउस था, जो “अंताकिया का रहनेवाला था।” वह उन काबिल आदमियों में से एक था जिन्हें विधवाओं को खाना बाँटने का “ज़रूरी काम” दिया गया था। (प्रेषि. 6:3-5) यहूदी धर्म अपनानेवालों को यहूदी ही समझा जाता था क्योंकि उन्होंने इसराएल के परमेश्‍वर को अपना परमेश्‍वर मान लिया था। वे इसराएल को दिए कानून मानते थे और उन्होंने दूसरे सभी ईश्‍वरों को ठुकरा दिया था। साथ ही, आदमियों और लड़कों ने खतना करवाया था और इसराएल राष्ट्र के सदस्य बन गए थे।

ईसा पूर्व 537 में यहूदियों को बैबिलोन की बँधुआई से रिहा किया गया। तब उनमें से कई लोग वापस इसराएल देश नहीं गए बल्कि दूर-दूर के इलाकों में जा बसे। वहाँ भी वे यहूदी धर्म को ही मानते रहे। इस वजह से इसराएल देश के आस-पास के और दूर-दूर के इलाकों में भी लोग यहूदी धर्म के बारे में जान पाए। प्राचीन समय के लेखक होरस और सेनेका बताते हैं कि अलग-अलग देशों के लोग यहूदियों और उनके धार्मिक विश्‍वास को पसंद करने लगे। और वे भी उनकी तरह रहने लगे और उन्होंने यहूदी धर्म अपना लिया।

16. पहली सदी के मसीहियों ने किस तरह त्याग की भावना दिखायी?

16 इसमें कोई शक नहीं कि बपतिस्मा लेनेवालों पर यहोवा की आशीष थी। ब्यौरा बताता है, “वे सभी जिन्होंने विश्‍वास किया, साथ इकट्ठा होते और उनके पास जो कुछ था आपस में बाँट लेते थे। वे अपना सामान और अपनी जायदाद बेच देते और मिलनेवाली रकम सबमें बाँट देते थे। हरेक को उसकी ज़रूरत के मुताबिक देते थे।”f (प्रेषि. 2:44, 45) सच में, पहली सदी के उन मसीहियों में बहुत प्यार था और उनमें त्याग की भावना भी थी। आज हम भी उनकी तरह बनना चाहते हैं।

17. बपतिस्मा लेने से पहले एक व्यक्‍ति को कौन-से ज़रूरी कदम उठाने होंगे?

17 बाइबल में बताया है कि अगर एक व्यक्‍ति परमेश्‍वर को अपना जीवन समर्पित करना चाहता है और बपतिस्मा लेना चाहता है, तो उसे कुछ ज़रूरी कदम उठाने होंगे। सबसे पहले, उसे परमेश्‍वर के वचन से सीखना होगा। (यूह. 17:3) वह जो सीख रहा है उस पर विश्‍वास करना होगा। फिर उसे अपने पापों पर गहरा अफसोस करना होगा और बीते समय में उसने जैसी ज़िंदगी जी उसके लिए पश्‍चाताप करना होगा। (प्रेषि. 3:19) इसके बाद उसे अपनी ज़िंदगी में बदलाव करने होंगे और ऐसे काम करने होंगे जो परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक हैं। (रोमि. 12:2; इफि. 4:23, 24) ये सारे कदम उठाने के बाद वह प्रार्थना में परमेश्‍वर को अपना जीवन समर्पित करेगा और फिर बपतिस्मा लेगा।​—मत्ती 16:24; 1 पत. 3:21.

18. जो लोग बपतिस्मा लेकर यीशु के चेले बनते हैं उन्हें क्या मौका मिलता है?

18 क्या आपने समर्पण और बपतिस्मे का कदम उठाया है और यीशु के चेले बन गए हैं? अगर हाँ, तो पहली सदी के चेलों की तरह आपको भी अच्छी तरह गवाही देने और यहोवा की मरज़ी पूरी करने का मौका मिला है। क्या आप इस मौके के लिए यहोवा को शुक्रिया नहीं कहना चाहेंगे?

a यह बक्स देखें, “यरूशलेम​—यहूदियों की उपासना की खास जगह।”

b ये बक्स देखें: “रोम​—एक विशाल साम्राज्य की राजधानी;” “मेसोपोटामिया और मिस्र के यहूदी” और “पुन्तुस में मसीही धर्म।”

c “जीभ” के आकार की ये लपटें सचमुच की लपटें नहीं थीं बल्कि सिर्फ लपटों “जैसी”  लग रही थीं। इससे मालूम होता है कि हर चेले के ऊपर कुछ चमकता हुआ दिखायी दे रहा था जो आग की लपटों जैसा था।

d यह बक्स देखें, “यहूदी धर्म अपनानेवाले कौन थे?”

e यह कोई आखिरी घटना नहीं है जब एक ही दिन में इतने सारे लोगों ने बपतिस्मा लिया। ध्यान दीजिए कि 7 अगस्त, 1993 को यूक्रेन में क्या हुआ। वहाँ के कीव शहर में यहोवा के साक्षियों के एक अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में 7,402 लोगों ने बपतिस्मा लिया। इसके लिए छ: हौद तैयार किए गए थे और बपतिस्मा देने में पूरे दो घंटे पंद्रह मिनट लगे।

f यह इंतज़ाम उन भाई-बहनों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए था, जो दूर के देशों से आए थे और ज़्यादा सीखने के लिए यरूशलेम में ही रुक गए थे। यह इंतज़ाम सिर्फ कुछ समय के लिए ही किया गया था। जिन मसीहियों ने दान दिया उन्होंने अपनी मरज़ी से और खुशी-खुशी ऐसा किया। इसका यह मतलब नहीं था कि वे साम्यवादी विचारों को मानते थे, जिसके मुताबिक सबकी संपत्ति पर सबका बराबर हक माना जाता है।​—प्रेषि. 5:1-4.

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